सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो…
डिहरी-आन-सोन (रोहतास) से निशान्त राज की रिपोर्ट-
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो,
खुद अपने-आप से बाहर निकल सको तो चलो।
यही है जिंदगी, कुछ ख्वाब, चन्द उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।।
सुप्रसिद्ध कलमकार निदा फाजली की इन पंक्तियों की भावना के साथ बिहार के रोहतास जिला अंतर्गत विश्वविश्रुत सोन नद तट के सबसे बड़े शहर डेहरी-आन-सोन में सांस्कृतिक सर्जना की संवाहक संस्था सोन कला केन्द्र नाटककारों, फिल्मकारों, निर्देशकों, अभिनेताओं, पत्रकारों, संस्कृतिकर्मियों और समाजसेवियों का कारवां लेकर अपनी राह बनाने-खोजने चल पड़ी है।
नृत्य प्रतियोगिता 4 अगस्त को
शंकर लाज (स्टेशन रोड) में दयानिधि श्रीवास्तव की अध्यक्षता में 07 जुलाई की हुई बैठक में सदस्यता संकल्प, संस्था के विधान (बायलाज), नृत्य प्रतियोगिता, पंजीकरण आदि पर चर्चाएं हुईं और अलग-अलग उपसमितियों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गईं। बतौर परिचय कार्यक्रम के रूप में विद्यालय स्तरीय दो दिवसीय अंतरजिला नृत्य प्रतियोगिता का संयोजन 04 अगस्त को करने का निर्णय किया गया, जिसमें दूसरा दिन परिचय-समारोह सह प्रमाणपत्र, स्मृतिचिह्नï वितरण का होगा। नृत्य प्रतियोगिता का संयोजक ओमप्रकाश सिंह ढनढन बनाए गए, जिसमें चंद्रभूषण मणि, जीवन प्रकाश, मुकुल मणि समन्वयक होंगे। जबकि संस्था का विधान (बायलाज) बनाने और पंजीकरण का कार्यभार कृष्ण किसलय को अन्य वरिष्ठ सदस्यों के साथ सौंपा गया।
किलाबंद नहीं, कलात्मक सर्जना को समर्पित सबकी संस्था
संस्था के अध्यक्ष दयानिधि श्रीवास्तव ने शहर के सभी सक्रिय वरिष्ठ कलाकारों-संस्कृतिकर्मी से संस्था से जुडऩे की अपील की। विचार-विनिमय में वरिष्ठ नाटककार कृष्ण किसलय ने कहा कि किलाबंद दरवाजा वाली नहीं, यह आदान-प्रदान और विचार-विनिमय की संस्था है। वरिष्ठ फिल्मकार चंद्रभूषण मणि और कार्यकारी अध्यक्ष ध्वनि-प्रकाश विशेषज्ञ जीवन प्रकाश ने कहा कि संस्था शहर और सोन क्षेत्र की कलात्मक सर्जना को समर्पित है। वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र मिश्र, जगनारायण पांडेय और उपाध्यक्ष उपेन्द्र कश्यप ने इस विचार में यह भी जोड़ा कि संस्था सबकी है, सबके लिए है। सचिव मुकुल मणि ने जानकारी दी कि संस्था सोशल मीडिया के तीन रूपों फेसबुक, व्हाट्सएप और जी-मेल पर दर्ज हो चुकी है, जिसका पेज क्रमश: Sone Kala Kendra, सोन कला केेंद्र और आईडी सोनकलाकेेंद्रडाटडीओएस (sonekalakendra.dos) है।
बैठक में सलाहकार सदस्य कुमार बिन्दु, स्वयंप्रकाश मिश्र सुमंत, उपाध्यक्ष सुनील शरद, संयुक्त सचिव मनीष कुमार सिंह उज्जैन, उप सचिव ओमप्रकाश सिंह ओम, कोषाध्यक्ष राजीव कुमार सिंह, अनिल कुमार, सिमल सिंह, रामनारायण प्रसाद आदि के साथ बतौर नए वरिष्ठ सदस्य रंगकर्मी कपिलमुनि पांडेय, अनिल पाठक, पारस प्रसाद और सुधांशु शेखर ओझा, गुलशन कुमार, धनजी सिंह, दीपक सिंह उपस्थित थे। सर्वानुमति से वरिष्ठ पत्रकार, संस्कृतिकर्मी मुकेश पांडेय, अखिलेश कुमार को भी वरिष्ठ सदस्य के रूप में संबद्ध करने का निर्णय लिया गया।
(रिपोर्ट : निशांत राज, उपसचिव सह संचार समन्वयक, तस्वीर : अनिल कुमार)
पटना में काव्यगोष्ठी : कहां गए वे लोग वे बातें उजालों से भरी…?
पटना (सोनमाटी संवाददाता)। साहित्य परिक्रमा तथा वरिष्ठ नागरिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में गोविंद एन्क्लेव अपार्टमेंट में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता प्रतिष्ठित कवि-गीतकार-कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की। अपने अल्प अध्यक्षीय संबोधन के बाद भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अपनी रचना पढ़ी- कहां गए वे लोग वे बातें उजालों से भरी, कामयाब जो हुए उडऩ छू होते चले गए!
वरिष्ठ गजलकार प्रेम किरण ने अपने अंदाज में कहा- इंसान की नाकामयाबियों पर सवाल उठाया, कर सकेगा वो हमें बर्बाद क्या, हम हुए भी हैं कभी आबाद क्या, कोई मैना है न बुलबुल शाख पर, बागवां भी हो गये सैय्याद क्या?
डा. किशोर सिन्हा ने अपनी रचना पढी- हसरतें हरी घास बनकर उगती है आस-पास…।
हास्य-व्यंग्य के वरिष्ठ कवि विश्वनाथ प्रसाद वर्मा ने सुनाया- दांव-पेंच खूब जानते हो, रात-दिन डींगें हांकते हो।
सिलचर (असम) से पधारे कहानीकार-कवि चित्तरंजन भारती ने अपनी इस रचना का पाठ किया- हम साधारण, जनपक्षधर होकर भी क्या मिला?
सुपौल (पटना) के योगानंद हीरा ने कविता पढ़ी- मेरी भी कल्पना थी मकान की, मगर नींव ली भावना की कब्र पर !
कवि-गीतकार मधुरेश नारायण ने मधुर कंठ से साईं भजन प्रस्तुत कर माहौल को भक्तिमय बना दिया- कभी तो घूमते-फिरते सांईं घर मेरे भी आ जाओ, दर्शन को मैं हरस रहा, अपनी झलक दिखा जाओ…।
सिद्धेश्वर ने सामयिक संदर्भ की कविता पाठ की- मंदिर हो या मस्जिद या गुरुद्वारा ऐ सिद्धेश, तूने कहीं भी सर को, झुकाया नहीं है क्या?
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हिंदी के प्रतिनिधि शायर घनश्याम ने श्रोताओं को मुग्ध किया- गुलशन-गुलशन खार दिखाई देता है, मौसम कुछ बीमार दिखाई देता है, जाने कैसी हवा चली है जहरीली, जीना अब दुश्वार दिखाई देता है।
शायर शुभचंद्र सिन्हा ने तेवरदार गजल पेश की- इक तेरे ख्यालों के सितम हैं बेसुमार, उस पर तेरे न आने का बहाना है बहुत।
कविगोष्ठी में विभा रानी श्रीवास्तव, युवा कवयित्री लता प्रासर और शशिकान्त श्रीवास्तव की ने भी अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं, जिन्हें श्रोताओं ने पसन्द किया। संचालन वरिष्ठ कवि-कथाकार-चित्रकार सिद्धेश्वर ने किया और अंत में मधुरेश नारायण ने धन्यवाद-ज्ञापन किया।
(रिपोर्ट : रूबीना गुप्ता, पटना 9234760365