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जनतंत्र के निरंतर अलोकतांत्रिक बनते चरित्र के बीच विवश मतदान
-कृष्ण किसलय (समूह संपादक, सोनमाटी)
मतदाताओं का फैसला हो चुका है। बिहार की 17वीं विधानसभा के लिए उनके सामने इस बार भी आपराधिक रिकार्ड वाले प्रत्याशियों में से ही अपने पसंद का विकल्प चुनने भर की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता रही है। इस बार तो चुनाव लडऩे वाले आपराधिक रिकार्ड के प्रत्याशी 2015 के मुकाबले दो फीसदी अधिक हो गए। 2015 में चुनाव लडऩे वाले कुल प्रत्याशियों में 30 फीसदी के विरुद्ध पुलिस थानों में मामले दर्ज हुए थे, जिनमें या तो पुलिस अनुसंधान जारी था या कोर्ट में पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी थी। इस बार कुल 3722 उम्मीदवारों ने अपना जो शपथपत्र दायर किया है, उसके अनुसार 1201 अर्थात 32 फीसदी से ऊपर पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। 115 प्रत्याशियों ने यह भी स्वीकार किया है कि उन पर महिला अत्याचार के मामले दर्ज हैं और इनमें 12 ने तो बलात्कार का आरोप दर्ज होना भी स्वीकार किया है। राजनीतिक दलों के स्तर पर देखा जाए तो राजद के करीब 70 फीसदी उम्मीदवार आपराधिक रिकार्ड वाले हैं और करीब इतने ही आपराधिक रिकार्ड वाले उम्मीदवार भाजपा के हैं। राजद के 141 में से 98 प्रत्याशियों पर और भाजपा के 109 में से 76 प्रत्याशियों पर विभिन्न अपराध करने के आरोप हैं। जबकि अपराध के आरोप वाले कांग्रेस के 64 फीसदी, लोजपा के 52 फीसदी और जदयू के 49 फीसदी प्रत्याशी हैं। इस बार बिहार के 217 अर्थात 80 फीसदी विधानसभा क्षेत्रों को इसलिए ही संवेदनशील माना गया कि इनमें आपराधिक छवि (पुलिस रिकार्ड में दर्ज) तीन या इससे अधिक प्रत्याशी चुनाव के मैदान में उतरे।
दुबारा विधायक बनने वालों की बढ़ गई दौलत :
इस बार भी उम्मीदवारों में सिर्फ 10 फीसदी ही महिलाएं है। 243 सीटों के लिए तीन चरणों के निर्वाचन में कुल प्रत्याशियों में राष्ट्रीय दलों के 349, राज्य की पार्टियों के 470, गैर मान्यताप्राप्त दलों के 1607 और निर्दलीय 1296 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। 322 प्रत्याशी की योग्यता सिर्फ साक्षर भर की है और 15 तो पूरी तरह निरक्षर ही हैं। 42 फीसदी प्रत्याशियों (1556) ने 5वीं से 12वीं तक ही शिक्षा प्राप्त की है। 48 फीसदी (1794) स्नातक या इससे अधिक शिक्षा प्राप्त हैं। इस बार 371 महिला उम्मीदवार हैं। 2015 में 273 महिलाओं (आठ फीसदी) सहित 3450 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था। 1535 यानी 41 फीसदी उम्मीदवार 40 साल तक की उम्र वाले हैं। इस बार भी करोड़पति प्रत्याशियों का बोलबाला रहा। 290 प्रत्याशियों की संपत्ति पांच करोड़ रुपये से अधिक है। राजद के प्रत्याशी भाजपा और जदयू से अधिक संपत्ति वाले हैं। राजद के 141 में 120, जदयू के 115 में 96 और भाजपा के 109 में 94 प्रत्याशी करोड़पति हैं। दुबारा चुनाव लडऩे वाले विधायकों की संख्या 201 है, जिनकी संपति में औसतन 71 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। वारिसनगर के रालोसपा बीके सिंह सर्वाधिक संपत्ति वाला प्रत्याशी हैं, जो 85 करोड़ रुपये के मालिक हैं। दूसरे स्थान पर राजद के अनंत सिंह (मोकामा) के पास 68 करोड़ रुपये और तीसरे स्थान पर कांग्रेस के जगानंद शाही (बरबीघा) के पास 61 करोड़ रुपये की संपत्ति है। सबसे कम संपत्ति वालेतीन शीर्ष उम्मीदवार भारतीय मोमिन कांफ्रेेंस के शिवकुमार (दिनारा), निर्दलीय राजकिशोर सिंह (मनेर) और मो. मोजाहिद (दरभंगा) के पास हजार-डेढ़ हजार की संपत्ति है। आठ निर्दलीयों के पास कोई संपति ही नहीं है।
यह सब जानकारी एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स की ओर से उम्मीदवारों द्वारा दायर नामांकन के आधार पर दी गई है। इस तरह जाहिर है कि लोकतंत्र की सूरत लगातार अलोकतांत्रिक होती जा रही है और मतदाता के पास विवश मतदान के सिवा दूसरा अधिकार नहींहै।
अंतरराष्ट्रीय पोस्टकार्ड प्रदर्शनी में सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी पुरस्कृत
कुदरा, कैमूर (बिहार)-सोनमाटी संवाददाता। कैमूर जिला के अभिनेता, लेखक और डाकटिकट, पोस्टकार्ड संग्रहकर्ता सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी को आनलाइन डाकटिकट संग्रह अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में पुरस्कृत किया गया। दुनिया में पोस्टकार्ड के प्रचलन के 150 साल पूरे होने पर भारत में पहली बार आनलाइन प्रदर्शनी का आयोजन कर्नाटक की संस्था डेबटपेक्स2020 द्वारा किया गया, जिसमें 151 देशों के पोस्टकार्ड संग्रहकर्ताओं ने हिस्सा लिया। पोस्टकार्ड का आविष्कार दुनिया में पहली बार 1869 में आस्ट्रिया में किया गया था। पोस्टकार्ड के लोकप्रिय होने पर ब्रिटेन में 1872 में इसकी शुरुआत हुई। भारत में पोस्टकार्ड की शुरुआत 1879 में हुई थी। सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी ने ग्वालियर स्टेट के पोस्टमास्टर जनरल की ओर से रद्द किए गए 48 पोस्टकार्ड प्रदर्शनी में प्रस्तुत किए। प्रस्तुत पोस्टकार्ड का इस्तेमाल 1888-1904 की अवधि में ईस्ट इंडिया कंपनी और ग्वालियर स्टेट (भारतीय उपनिवेश का राज्य) के बीच हुए पत्राचार के लिए किया गया था।
विदा हुआ घोड़ा बाजार, बादल-बिजली-साधू थे किरदार!
सिसई (सिवान) – कार्यालय प्रतिनिधि। इस बार भी सिसई के घोड़ा बाजार में बिकने के लिए हजारों घोड़े सजे। दशहरा के बाद सजने वाले सिसई घोड़ा मेला में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमबंगाल आदि दूसरे राज्यों से खरीदार-बिक्रेता पहुंचे। मेले में हर दिन घोड़ा रेस हुआ और घोड़ों की नीलामी हुई। सिसई मेला साल में दो बार लगता है, होली और दशहरा बाद अगले दिन से। दशहरा बाद वाला घोड़ा बाजार विदा हो चुका। अब घोड़ा के शौकीनों को होली का इंतजार है। दोनों बार का मेला 10 दिनों के लिए ही होता है। इस बार कोरोना के कारण घोड़ा बाजार भी प्रभावित हुआ। फिर भी एक लाख रुपये से लेकर 15 लाख रुपये कीमत तक के घोड़े मौजूद रहे। घोड़ा बाजार में घोड़ा की कीमत उसकी नस्ल और उसकी उम्र के आधार पर तय होती है। खरीदने से पहले घोड़ा या घोड़ी को दौड़ा कर और उस पर सवारी कर भी परखा जाता है।
तीन लाख का बादल : मेले में बिकने आए हर घोड़े की पहचान के लिए उसके मालिक ने अपने-अपने अलग नाम रखे थे। मेले में आया बादल नाम का घोड़ा काफी चर्चा में था, क्योंकि उसकी खासियत डांस करने की थी। बादल की कीमत उसके मालिक ने तीन लाख रुपये रखी थी। उसकी ट्रेनिंग ऐसी थी कि घोड़ा-पालक साईस का इशारा पाते ही वह ठुमके लगाने लगता था। बादल को ठुमके लगाते (नाचते) देख लोगों की भीड़ मनोरंजन केलिए एकत्र हो जाती थी।
पांच लाख की बिजली : इसी तरह एक घोड़ी थी बिजली, जिसकी कीमत पांच लाख रुपये थी। बादल और बिजली दोनों एक ही निर्देशक (मालिक) के किरदार थे। दोनों एक ही टेंट के नीचे रहते थे। बिजली के मालिक उसकी खातिरदारी में लगातार लगा रहता था, ताकि उसकी चमक फीकी नहीं पड़ जाए। काफी फुर्तीली बिजली की उम्र अभी दो साल ही थी। वह सफेद रंग की थी। सफेद घोड़ी की मांग शादी में दूल्हा की सवारी के लिए अधिक बनी रहती है।
सबसे महंगा साधू : सिसई मेले में सबसे महंगा घोड़ा था साधू। साधू भी सफेद था, जिसकी कीमत 15 लाख रुपये थी। बलूच नस्ल का साधू गुजरात में पाया जाता है। बलोच नस्ल का घोड़ा संपन्न शौकीन लोगों की पहली पसंद मानी जाती है।
(देशांतर/सोनमाटी समाचार नेटवर्क) : सिंध प्रांत में फिर नाबालिग का अपहरण, धर्म-परिवर्तन कर शादी
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 13 साल की बच्ची का अपहरण कर पहले उसका धर्म परिवर्तन कराया गया और फिर 44 साल के शख्स से उसकी शादी करा दी गई। इस मामले में पाकिस्तान की अदालत ने बच्ची को अपहरणकर्ताओं के साथ ही भेजने और मामले में कोई गिरफ्तारी नहींकरने का आदेश दिया। सिंध प्रांत में इस नाइंसाफी के बाद बच्ची और उसकी मां के बिलखने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। ईसाई धर्म की 13 साल की आरजू रजा के पिता का कहना है कि करांची के घर से उसका अपहरण किया गया। दो दिन बाद पुलिस ने संपर्क कर पीडि़त के पिता को कि आरजू की शादी हो गई है। शादी करने वाले शख्स ने निकाह का सर्टिफिकेट दिखाकर बताया कि आरजू रजा ने धर्म परिवर्तरन कर लिया। सर्टिफिकेट में आरजू की उम्र 18 साल बताई गई है। हालांकि परिवार का कहना है, वह 13 साल की है।
जबरन बनाए जाते हैं मुस्लिम :
अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के लिए बदनाम सिंध में यह पहली घटना नहीं है। जून में आई एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि सिंध प्रांत में बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कर उन्हें मुस्लिम बनाए जाने का मामला सामने आया है। सिंध के बादिन में 102 हिंदुओं को जबरन इस्लाम धर्म कबूल कराया गया, जिनमें बच्चे, महिलाएं और पुरुष शामिल थे। मानवाधिकार संस्था मूवमेंट फार सालिडरिटी एंड पीस के अनुसार, पाकिस्तान में हर साल 1000 से ज्यादा ईसाई और हिंदू महिलाओं या लड़कियों का अपहरण होता है। अपहरण के बाद उनका धर्म परिवर्तन तुरंत करवा कर दिया जाता है। फिर इस्लाम की रीति-रिवाज से अपहृत लड़की या महिला का निकाह करवा दिया जाता है। धर्मपरिवर्तन की पीडि़तों में ज्यादातर की उम्र 12 साल से 25 साल के बीच होती है।