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(प्रसंगवश : कृष्ण किसलय) -oबिहार विधानसभा चुनावo- हो चुका फैसला/ सियासी वजूद तलाशते युवा चेहरे/ राजनीतिक दलों के लोक-लुभावन वादे

(कृष्ण किसलय)

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बिहार विधानसभा चुनाव : हो चुका फैसला
-कृष्ण किसलय (समूह संपादक, सोनमाटी)

बिहार के अगले पांच सालों की सियासत का फैसला हो चुका है। विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के 16 जिलों में 71 सीटों पर 28 अक्टूबर को मतदान के बाद राज्य के मतदाता 03 नवम्बर के दूसरे चरण के 17 जिलों में 94 विधानसभा सीटों के लिए और 07 नवम्बर के तीसरे चरण के 15 जिलों में 78 सीटों के लिए अपनी-अपनी पसंद-नापसंद तय कर चुके हैं। 16वीं विधानसभा की अवधि 29 नवम्बर को समाप्त हो रही है। तैयारी 17वीं विधानसभा के गठन की और सरकार बनाने की है। मतदाताओं ने जो फैसला दिया है, उसका परिणाम 10 नवम्बर की मतगणना में ईवीएम से बाहर आएगा। मतदाताओं ने किस आधार पर अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों को चुना? इस बाबत कई-कई तरह से कयास लगाए जा रहे हैंं। इसमें कोई शक नहीं कि 15 सालों में छह बार मुख्यमंत्री बन चुके नीतीश कुमार की सरकार बनाने की यह आखिरी सियासी लड़ाई है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चमक की अग्निपरीक्षा भी। मतदाताओं ने अपना फैसला दे दिया है। मत-परिणाम यह तय करेगा कि नीतीश कुमार को आगे के लिए मौका मिलेगा या नहीं और यह भी नरेंद्र मोदी की चमक बिहार के संदर्भ में कितनी बरकरार रह गई है। साथ में यह भी कि बिहार की भावी राजनीति की दशा-दिशा क्या होगी?

क्या रहा मतदान का आधार ?

अपनी-अपनी रैलियां कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के पक्ष में और कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने महागठबंधन के पक्ष में मतदाताओं को मोडऩे का प्रयास किया। नीतीश कुमार ने बताया कि उनके पास विकास के साथ काम करने का लंबा अनुभव है, जबकि अनुभवहीन भी मुख्यमंत्री बनने का दावा कर रहे हैं। बिना कोई नाम लिए उन्होंने यह प्रचार भी किया कि किसी के लिए तो परिवार ही बिहार है, मगर उनके लिए पूरा बिहार ही परिवार है। उन्हें मौका मिला तो इस बार हर गांव में स्ट्रीट लाइट होगा और हर खेत तक पानी पहुंचेगा। जबकि महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने सवाल खड़ा किया कि रोजगार देने, उद्योग लगाने के मामले में 15 साल में बिहार में क्या किया? इस बीच लालू प्रसाद यादव ने भी जेल से ही अपने चिर-परिचित अंदाज मेेंं यह ट्विट किया- अब त रहे द, तू थाक गइल, ऐ नीतीश…!

जंगलराज तो लालू के पहले से था :

नरेंद्र मोदी ने 90 के दशक के कांग्रेस कार्यकाल वाले अराजक बिहार का जिक्र किया तो 90 के बाद के लालू-राबड़ी कार्यकाल के जंगल राज की भी चर्चा की। जबकि राहुल गांधी ने कहा कि मोदी-नीतीश सिर्फ सपना दिखाते रहे हैं। आखिर कैसा था नब्बे के दशक का अराजक बिहार और उसके बाद का जंगल राज, जिसका जिक्र कर नरेंद्र मोदी, अमित शाह और नीतीश कुमार ने मतदाताओं को डराने का प्रयास किया। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने लालू-राबड़ी सरकार के कार्यकाल में बिहार की कानून-व्यवस्था को लेकर पहली बार जंगलराज की टिप्पणी की थी। उस टिप्पणी का सियासी हलके में प्रचार के रूप में इस्तेमाल कर 1990-2005 तक की लालू-राबड़ी सरकार के बारे में जंगल राज कहा जाने लगा। मगर खराब कानून-व्यवस्था की शुरुआत तो लालू यादव के सत्ता में आने से बहुत पहले हो चुकी थी। लालू को सत्ता में लाने का मंडल कमीशन, बोफोर्स मुद्दा के साथ एक कारण ही जंगलराज था। आजादी के बाद जातीय उन्माद से ऊपर सत्ता की तानाशाही और निकम्मेपन पर अंतिम हस्तक्षेप लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया था, जिसके डेढ़ दशक गुजरने के बाद बिहार में नेता-अपराधी-ठेकेदार माफिया का गठजोड़ अपना पेट भर रहा था। अस्सी के दशक के आरंभ से ही बिहार में कांग्रेस की सत्ता अराजक बनी हुई थी। 1980-1990 में कांग्रेस की सरकार छह बार बदलीं थी- जगन्नाथ मिश्र (1980-1983), चंद्रशेखर सिंह (1983-1985), बिंदेश्वरी दुबे (1985-1988), भागवत झा आजाद (1988-1989), सत्येंद्रनारायण सिंह (1989) और फिर जगन्नाथ मिश्र। लालू यादव के सत्ता में आने के समय तो नए जंगलराज की जमीन तैयार थी। जगन्नाथ मिश्र ने सवर्ण-कुव्यवस्था को बढ़ावा दिया था तो लालू प्रसाद यादव ने पिछड़ों की कुव्यवस्था को।

अगड़ी, पिछड़ी, दलित जातियों की थी निजी सेनाएं :

1977 में बेलछी कांड के बाद मध्य बिहार के पटना, गया, जहानाबाद, अरवल, भोजपुर, बक्सर, रोहतास, कैमूर, औरंगाबाद, नालंदा, सीवान जमीन पर कब्जे के लिए जातीय संघर्ष के केंद्र बन गए थे। कुर्मी, भूमिहार, राजपूत जातियों के साथ दलित जातियों ने भी अपनी सेना बना ली थी। मजदूर किसान संघर्ष समिति, भाकपा-माले, एमसीसी निचली जातियों के साथ थे। पारसबीघा (1980) में 13 दलितों, पीपरा (1980) में 14 दलितों, गईनी (1982) में छह दलितों, कैथीबिगहा (1985) में 10 दलितों और अरवल (1986) में 21 दलितों की हत्या के बाद दलेलचक-बघौरा (1987) में 52 राजपूतों की हत्या के बड़े कांड हुए। छोटी-बड़ी घटनाओं में 1980 से 90 के बीच 500 से अधिक लोग मारे गए थे। औरंगाबाद के दरमिया में राजपूत जमींदार अंबिका सिंह के परिवार के 11 सदस्यों के सिर धड़ से अलग कर दिए गए। रामदेव सिंह को कथित तौर पर जगन्नाथ मिश्र के वित्त राज्य मंत्री प्रभुनाथ सिंह के कहने पर पटना के निकट गोली मारी गई थी। राजनीति का अपराधीकरण हो चुका था और अपराध का राजनीतिकरण। वर्ष 1980 के चुनाव पूर्व जब बेगूसराय का कामदेव सिंह मुठभेड़ में मारा गया तो राजनेताओं ने कतारबद्ध होकर श्रद्धांजलि दी थी। एक सरकारी जमीन पर कब्जा को लेकर दलितों के आंदोलन को कुचलने के लिए जब 19 अप्रैल 1986 को अरवल पुलिस थाना के सामने भीड़ पर फायरिंग से पुलिस की गोलियों से 21 हरिजन मारे गए तो जगन्नाथ मिश्रा ने अपनी ही पार्टी के कार्यकाल की इस घटना की तुलना जालियांवाला बाग से की थी। पीयूसीएल का कहना था कि नरसंहार सरकार के इशारे पर हुआ।

हिंसा बना संप्रदाय और भ्रष्टाचार हुआ संस्थागत :

हिंसा अलग ही संप्रदाय में तब्दील हो गई थी। नेता किराये के अपराधी का इस्तेमाल करते और जमींदार अपने लड़ाकों को बंदूकों से लैस करते थे। नक्सलियों को भूमि-युद्ध के लिए हथियार चाहिए था। यही कारण था कि ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह बंदूक बनाने सैकड़ों कारखाने थे, जिनका कारोबार था। भ्रष्टाचार संस्थागत हो गया। सरकारी नौकरी में तबादला, नियुक्ति, पदोन्नती, हर ठेके में नेता का हिस्सा, दफ्तरों में हर छोटे-बड़े काम के रेट तय थे। 24 अक्टूबर 1989 को भागलपुर में रामशिला पूजन जुलूस में हिंसा हुई तो बुनकर मुसलमान निशाने पर आ गए और लोगाइन गांव में उन्मादी भीड़ ने 25 मुस्लिम परिवारों के सभी सदस्यों की हत्या कर दी। शवों को खेत की मिट्टी में दबाकर उस पर पौधे लगा दिए गए। भागलपुर दंगे में करीब 1200 लोग मारे गए थे। सेना की कई बटालियन बुलानी पड़ी। दंगे की आग ठंडी हुई तो जगन्नाथ मिश्रा दुबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे। मुसलमान कांग्रेस से दूर हो गए। लालू यादव सत्ता में आए तो यादव-मुस्लिम समीकरण का अमोघ राजनीतिक मंत्र गढ़ा। लालू यादव पत्नी राबड़ी देवी के साथ 15 सालों के शासन में भागलपुर दंगे के आरोपियों को सजा नहीं दिला सके। नीतीश कुमार के कार्यकाल में जरूर एक मुख्य आरोपी कामेश्वर यादव को निचली अदालत ने सजा सुनाई, मगर कामेश्वर यादव को हाईकोर्ट ने रिहा कर दिया। इस पर नीतीश सरकार 2017 में सुप्रीम कोर्ट में गई।

मंजू वर्मा के बहाने सुशासन पर दागे गए सवाल :

हालांकि नीतीश कुमार ने जेल गईं पूर्व मंत्री मंजू वर्मा को उम्मीदवार बनाने से परहेज नहीं किया। मंजू वर्मा के पति का नाम मुजफ्फरपुर बालिकागृह कांड में उछला था। पति चंद्रशेखर वर्मा के साथ जेल जाने से पहले मंजू वर्मा बिहार की समाज कल्याण मंत्री थीं, जिनके आवास से सीबीआई छापेमारी में हथियार मिले थे। सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्प्णी के बाद मंजू वर्मा ने कोर्ट में आत्मसमर्पण किया था। नीतीश कुमार के विरोधियों ने चुनाव प्रचार में उन पर सवाल दागा कि कहां गया स्वच्छ चेहरे को चुनाव में उतारने वाला वादा? वास्तव में साफ छवि के उम्मीदवार के जीतने की संभावना कम, दागी की अधिक और धनी उम्मीदवार की संभावना सबसे अधिक होती है। जैसाकि एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफाम्र्स (एडीआर) का पिछले विधानसभा चुनाव परिणामों के आधार पर निष्कर्ष है। राज्य में वर्ष 2005 से अब तक 10785 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और अधिसंख्य उन्हीं उम्मीदवारों की जीत हुई, जिन पर अपराधिक मामले हैं। एडीआर और इलेक्शन वाच ने 28 अक्टूबर को संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के 71 सीटों के उम्मीदवारों के बारे में मतदान से पहले बताया था कि सभी 1064 उम्मीदवारों में 31 फीसदी (328 उम्मीदवार) पर थानों में आपराधिक मामले दर्ज हैं। 29 पर महिला अत्याचार और 03 पर बलात्कार का भी आरोप है। 61 सीटों पर 03 से अधिक दागी प्रत्याशी हैं। कांग्रेस के 21 प्रत्याशियों में नौ (43 फीसदी), जदयू के 35 में दस (29 फीसदी) और बसपा के 26 में पांच (19 फीसदी) पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हंै, जैसा कि प्रत्याशियों का ही हलफनामा है।

स्नातक शिक्षा प्राप्त नहीं 43 फीसदी प्रत्याशी :

जिन प्रत्याशियों पर सबसे अधिक मुकदमें दर्ज हैं, उनमें सबसे ऊपर राजद के अनंत सिंह (मोकामा) हैं। सबसे पैसा वाला उम्मीदवार अनंत सिंह ही हैं, जिन्होंने 68 करोड़ 56 लाख 78 हजार 795 रुपये होने की स्वप्रमाणित घोषणा की है। दूसरे नंबर पर बरबीघा के कांग्रेस प्रत्याशी गजेंद्र साही और तीसरे नंबर पर जदयू प्रत्याशी हैं। 12 फीसदी प्रत्याशियों के पास 02 करोड़ से 5 करोड़ तक, 28 फीसदी के पास 50 लाख से 2 करोड़ तक, 30 फीसदी के पास 10 लाख से 50 लाख तक और 22 फीसदी के पास 10 लाख रुपये से कम की संपत्ति है। सबसे अधिक करोड़पति उम्मीदवार राजद में, उसके बाद जदयू और फिर भाजपा में हैं। इसके बाद लोजपा, कांग्रेस और बसपा का स्थान है। पांच प्रत्याशियों कपिलदेव मंडल (जमालपुर), अशोक कुमार (मोकामा), प्रभु सिंह (चैनपुर), गोपाल निषाद (नबीनगर) और महावीर मांझी (बोधगया) की संपत्ति शून्य है। जीत के साथ निर्वाचित प्रतिनिधियों की संपत्ति भी बढ़ जाती है। औसतन हर उम्मीदवार के पास पहले 1.09 करोड रुपये की संपत्ति थी, जिसके पास जीतने के बाद 2.25 करोड़ रुपये हो गई। प्रथम चरण के 455 उम्मीदवार (43 फीसदी) कक्षा 5 से 12 तक और 49 फीसदी उम्मीदवार स्नातक या इससे अधिक शिक्षित हैं। 74 प्रत्याशी सिर्फ साक्षर और 05 प्रत्याशी अ-साक्षर भी हैं। स्नातक या उससे अधिक शिक्षा वालों में 33 प्रतिशत और 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले उम्मीदवारों में 29 प्रतिशत आपराधिक मामलों के आरोपी हैं।

मतदान के सिवा लोकतंत्र में कोई भागीदारी नहीं :

आज यह कटु सत्य है कि पांच साल के अंतराल पर होने वाले चुनाव के लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया होने के बावजूद मतदान करने के सिवा आम जनता लोकतंत्र की सक्रिय हिस्सेदार नहीं हो सकती। चुनाव इतना अधिक खर्चीला, पेंचीदा हो गया है कि आम जनता की भूमिका सिर्फ मतदान भर की रह गई है। चुनाव कालेधन के बल पर होता है। जो रकम बताई-दिखाई जाती है, उससे दस गुनी खर्च होती है। चुनाव के अत्यधिक खर्चीला हो जाने से ही सांसद-विधायक प्रश्न पूछने की कीमत लेते और राजनीतिक दल टिकट बेचते हैं। बेशक, सियासत आज कारोबार में तब्दील हो चुका है। पहले पार्टियां उम्मीदवार को आर्थिक मदद देती थी। आज उम्मीदवार पार्टी को चंदा देते हैं। पैसे ने राजनीति का चरित्र बदल दिया। राजनीति सेवा से धंधा हो गई। राजनीतिक दल झांसे पर झांसा देते रहे और मतदाता उनके झांसे में आकर मतदान करते रहे। बहरहाल, इस बार मतदाताओं ने मतदान में नीर-क्षीर विवेक से कितना विचार किया कि लोक की बेहतरी के लिए कौन बेहतर उम्मीदवार हो सकता है? किसकी जीत से सत्ता-शासन भरोसेमंद बन सकता है? देश-समाज को लोकतंत्र की ओर कौन ले जा सकता है? इन सब सवालों का जवाब तो 10 नवम्बर की मतगणना से चुनाव परिणाम के आने के बाद ही मिल सकेगा।

देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित चाणक्य मंत्र में प्रकाशित पटना (बिहार) से कृष्ण किसलय की रिपोर्ट-1

सियासी वजूद तलाशते युवा चेहरे

बिहार की 17वीं विधानसभा के लिए चुनाव की सियासी लड़ाई नेताओं की पुरानी पीढ़ी बनाम नई पीढ़ी की भी है। एनडीए के नीतीश कुमार के अलावा मुख्यमंत्री के दो चेहरों तीसरा मोर्चा रालोसपा, बसपा, एआईएमआईएम के उपेंन्द्र कुशवाहा और जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव के सामने तीन युवा मुख्यमंत्री चेहरा हैं। तेजस्वी यादव कांग्रेस और वाम दल समर्थित राजद का मुख्यमंत्री चेहरा हैं। चिराग पासवान संभावना के समीकरण के मुख्यमंत्री चेहरा तो प्लुरल्स पार्टी की लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी युवा आकांक्षा की प्रतीकात्मक मुख्यमंत्री चेहरा हैं। विधानसभा का चुनाव पुराना चेहरा बनाम नए चेहरा का तो रहा ही, कई प्रसिद्ध नेताओं की नई पीढ़ी (वंशधर) की जोरआजमाईश का भी है। अब 10 नवम्बर के चुनाव परिणाम से तय होने जा रहा है कि कौन कितना दमदार?

गरीब का बेटा तेजस्वी यादव !

राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के 31 वर्षीय छोटा बेटा तेजस्वी यादव 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उपमुख्यमंत्री बने थे और नीतीश कुमार के इस्तीफा देने तक 20 महीनों तक अपने पद पर बने रहे थे। इससे पहले उनकी पहचान विराट कोहली के साथ खेलने वाले क्रिकेटर के रूप में रही है। दिल्ली डेयरडेविल्स खिलाड़ी रहे तेजस्वी यादव पिता लालू यादव के चारा घोटाला में जेल जाने के बाद राजनीति में आ गए। उन पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। अपने को गरीब का बेटा कहने वाले तेजस्वी यादव ने नौवीं तक की स्कूली शिक्षा दिल्ली के आरके पुरम स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल से पाई है।

बिहारी फर्स्ट चिराग पासवान

2003 में कंप्यूटर साइंस में बी-टेक करने वाले बिहार के जमुई से लोजपा के 38 वर्षीय युवा सांसद चिराग पासवान (भूतपूर्व केेंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र) राजनीति में प्रवेश करने से पहले बालीवुड में 2011 में फिल्म (मिले ना मिले हम) से अपना करियर शुरू किया था। फिल्म नहीं चली तो उन्होंने फिल्मी दुनिया को बाय-बाय कर लिया और राजनीति के संसार में आकर भारतीय राजनीति के दिग्गज रामविलास पासवान के बेटे के रूप में अपनी पहचान बनाई। चिराग पासवान 2014 में 16वीं लोकसभा में मोदी लहर में सांसद बने और 2019 में भी जमुई संसदीय क्षेत्र से जीत हासिल की।

सन आफ मल्लाह मुकेश सहनी

सन आफ मल्लाह के रूप में पहचान बनाने वाले दरभंगा जिले के सुपौल बाजार निवासी मुकेश सहनी विकासशील इंसान पार्टी के युवा अध्यक्ष हैं, जो एनडीए के साथ है। एक गरीब मछुआरे परिवार में जन्म लेने वाले मुकेश सहनी 19 साल की उम्र में बेहतर मजदूरी की तलाश में मुंबई गए और अपने श्रम, अपनी क्षमता के बल पर मुकाम हासिल किया। मुंबई में पहले कास्मेटिक दुकान में काम किया। इसके बाद बालीवुड फिल्मों में सेट डिजाइन करने लगे। उन्हें शाहरुख खान की फिल्म देवदास और सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान का भी सेट डिजाइन करने का अवसर मिला। फिर उन्होंने मुकेश सिनेवल्र्ड प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी बनाकर करोड़ों की कमाई की। 2013 में बिहार के डेढ़ करोड़ की संख्या वाले निषाद समाज के लिए काम करना शुरू किया। 2013 में बिहार के अखबारों में तस्वीर के साथ सन आफ मल्लाह का बड़ा-बड़ा विज्ञापन छपा तो लोगों का ध्यान मुकेश सहनी की तरफ गया। उनका संपर्क भाजपा के नीति-निर्माताओं में से एक अमित शाह से हुआ और अमित शाह के साथ चुनावी रैली में जाने मौका भी मिला। इस तरह मुकेश सहनी को बिहार में पहचान मिली और उन्होंने 2018 में विकासशील इंसान पार्टी बना ली।

गोल्डन-गर्ल श्रेयसी सिंह

जमुई विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लडऩे वाली गोल्डन-गर्ल के नाम से मशहूर भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी सिंह नेशनल शूटर हैं, जो 2018 के राष्ट्रमंडल खेल की स्वर्णपदक विजेता रही हैं। उन्होंने ग्लासगो में 2014 के राष्ट्रमंडल खेल में निशानेबाजी की डबलट्रैप स्पर्धा में रजत पदक जीता था। समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे श्रेयसी सिंह के पिता दिग्विजय सिंह चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी की केेंद्र सरकारों में मंत्री थे, जिनका 24 जून 2010 को ब्रेन हेमरेज से लंदन में निधन हो गया। श्रेयसी सिंह की मां पुतुल देवी भी सांसद रह चुकी हैं।

शरद की बेटी सुभाषिनी राज

2010 से मधेपुरा जिले की बिहारीगंज विधानसभा सीट पर कब्जा जमाने वाले जदयू के निरंजन कुमार मेहता के विरुद्ध कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩे वाली सुभाषिनी राज राव दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव की बेटी हैं। लालू प्रसाद यादव को भी हराने वाले सुभाषिनी के पिता शरद यादव मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से चार बार सांसद चुने जा चुके हैं। उनकी बेटी सुभाषिनी ने पिता की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए मधेपुरा की धरती को ही चुना। हालांकि उन्होंने उस कांग्रेस के जरिये सियासत में कदम रखा, जिसके खिलाफ राजनीति कर उनके पिता शरद यादव सियासत के परवान चढ़े।

लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी

बिहार विधानसभा के चुनाव मैदान में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में उतरने वाली लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी प्लुरल्स पार्टी की अध्यक्ष हैं। इस पार्टी ने जाति को पेशा या काबिलियत से जोड़कर अपने सभी उम्मीदवारों का धर्म बिहारी बताया। लंदन के स्कूल आफ इकोनामिक्स से लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर पढ़ाई कर बिहार लौटी दरभंगा जिला निवासी पुष्पम प्रिया चौधरी जदूय के पूर्व विधायक (विधान परिषद) विनोद चौधरी की बेटी हैं। पुष्पम प्रिया चौधरी की आकांक्षा मुख्यमंत्री बनने और बिहार को वैश्विक कृषि तकनीक से जोडऩे की है।

बिहारी बाबू का बेटा लव सिन्हा

39 वर्षीय लव सिन्हा भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता, राजनेता शत्रुघ्न सिन्हा के बड़े पुत्र और चर्चित अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा के भाई हैं। उन्होंने मिसौरी वेबस्टर यूनिवर्सिटी के स्कूल आफ कम्युनिकेशन से स्नातक किया है। लव सिन्हा खुद अभिनेता और इनका खुद का स्वरोजगार है। इन्होंने फिल्मी करियर 2010 में फिल्म सदियां से शुरू की थी। अपना प्रचार बिहार और बिहारी बाबू का बेटा के रूप में करने वाले लव सिन्हा ने 2020 के बिहार चुनाव में बांकीपुर (पटना) विधानसभा क्षेत्र से राजनीतिक करियर की शुरुआत की है।

लालू की बड़ी संतान मीसा भारती

इस बार के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की बड़ी संतान मीसा भारती पहले की तरह स्टार प्रचारक से अधिक सक्रिय नजर नहीं आईं। जब लालू यादव ने उनसे 14 साल छोटे छोटा बेटा तेजस्वी यादव को पार्टी का नेता बना दिया और मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी तो शायद उन्होंने अपने को अतिरिक्त सक्रियता से किनारा कर लिया। लंबे समय से राजनीतिक तौर पर सक्रिय मीसा भारती 2016 से राज्यसभा सांसद हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव पटना के पाटलीपुत्र सीट से हार गई थीं। जब लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला में मुख्यमंत्री पद छोडऩा पड़ा और एकदम घरेलू महिला उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने बिहार के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली, तब मीसा भारती उनकी व्यक्तिगत सलाहकार होती थीं। तेजप्रताप और तेजस्वी बहुत छोटे थे। आपातकाल के दौरान लालू यादव को मिसा (मेंटेनेंस आफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) के तहत जेल में रखा गया था और उसी दौरान इस पहली संतान का जन्म हुआ तो नाम ही रख दिया मीसा भारती। तेजप्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच पार्टी (राजद) के नेतृत्व को लेकर टकराव में मीसा भारती तेजप्रताप यादव के समर्थन में थीं। मीसा भारती ने एमबीबीएस किया है, लेकिन प्रैक्टिस नहीं की। लालू यादव की पांच अन्य बेटियां भी आगे चलकर दावा कर सकती हैं, इसलिए उन्होंने नेतृत्व के प्रश्न को तेजस्वी के हाथों में कमान सौंप दी।

देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित चाणक्य मंत्र में प्रकाशित पटना (बिहार) से कृष्ण किसलय की रिपोर्ट-2

राजनीतिक दलों के लोक-लुभावन वादे

भारतीय जनता पार्टी :
पटना में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा जारी की गई भाजपा के घोषणा-पत्र में पांच साल (2020-25) में आत्मनिर्भर बिहार बनाने का रोडमैप रखा गया। कोरोना वायरस वैक्सीन के बारे में कहा गया कि वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होते ही बिहार के हर नागरिक को मुफ्त में टीका लगेगा। बिहार में मेडिकल, इंजीनियरिंग सहित अन्य तकनीकी शिक्षा को हिंदी भाषा में मुहैया कराने का वादा किया गया। सरकार बनने पर पहले वर्ष में विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में 3 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की बात कही गई। बिहार को नेक्स्ट जनरेशन आईटी हब बनाया जाएगा। पांच वर्षों में 5 लाख से ज्यादा रोजगार उपलब्ध कराने और बिहार नेक्स्ट जेनरेशन आईटी हब बनाने का वादा किया गया। बताया गया कि बिहार की एनडीए सरकार ने 10 लाख स्वयं सहायता समूहों के जरिये 1.20 करोड़ महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया। आगे स्वयंसहायता समूहों से एक करोड़ महिलाओं को जोड़कर माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के जरिये एक करोड़ महिलाओं को स्वावलंबी बनाया जाएगा।

जनता दल (यूनाइटेड) :
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठनारायण सिंह द्वारा जारी घोषणा-पत्र में पार्टी ने सक्षम बिहार-स्वावलंबी बिहार के लिए सात निश्चय के दूसरे चरण (पार्ट-2) की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई। युवा शक्ति-बिहार की प्रगति, सशक्त महिला-सक्षम महिला, हर खेत तक सिंचाई का पानी, स्वच्छ गांव-समृद्ध गांव, स्वच्छ शहर-विकसित शहर, सुलभ संपर्कता और सबके लिए अतिरिक्त स्वास्थ्य सुविधा का वादा किया गया। सरकार बनने पर युवाओं को उच्चस्तरीय प्रशिक्षण के साथ व्यवसाय के लिए मदद दी जाएगी। नए उद्यम के लिए 50 फीसदी (अधिकतम तीन लाख रुपये) और महिलाओं को 50 फीसदी (अधिकतम 5 लाख रुपये) अनुदान के साथ 5 लाख रुपये तक ब्याज मुक्त ऋण दिया जाएगा। इंटर पास होने पर अविवाहित युवती को 25 हजार रुपये और स्नातक होने पर 50000 रुपये की आर्थिक मदद मिलेगी।

कांग्रेस पार्टी :
बिहार कांग्रेस के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल द्वारा जारी कांग्रेस के घोषणा-पत्र में 10 लाख सरकारी नौकरी, कृषि कर्ज माफ, 1500 रुपये बेरोजगारी भत्ता, बिजली बिल में 50 फीसदी छूट और हाल के तीन कृषि कानूनों को समाप्त करने के वादे हैं। 10 लाख सरकारी नौकरी देने का फैसला महागठबंधन की सरकार बनने पर उसकी पहली कैबिनेट बैठक में लिया जाएगा। कहा गया कि वादे वहींकिए गए , जो पूरा हो सकते हैं। राजीव गांधी रोजगार मित्र योजना, श्रीकृष्ण सिंह खिलाड़ी प्रोत्साहन योजना, सरदार वल्लभभाई पटेल पेयजल अधिकार योजना, डा. राजेंद्र प्रसाद वृद्ध सम्मान योजना, होनहार बेटियों को मुफ्त स्कूटी, मोबाइल पशु अस्पताल आदि का भी वादा किया गया।

राष्ट्रीय जनता दल :
तेजस्वी यादव ने राजद के घोषणा-पत्र में कहा कि अगर सरकार बनी तो उनकी कलम से पहला फैसला 10 लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देने का होगा। सरकारी नौकरी में बहाली के लिए विद्यार्थियों का आवेदन शुल्क माफ होगा। आपदा के वक्त प्रवासिय परिवारों को बिहार सरकार से मदद मिलेगी। मनरेगा में प्रति परिवार के बजाय प्रति व्यक्ति 200 दिन काम की गारंटी होगी। मनरेगा की तर्ज पर शहरी रोजगार योजना बनेगी। संविदा पर नियोजित शिक्षकों को स्थाई कर समान काम समान वेतन होगा। वर्ष 2005 से लागू अंशदायी पेंशन योजना बंद कर पहले जैसी पेंशन योजना लागू होगी।

लोक जनशक्ति पार्टी :
अध्यक्ष चिराग पासवान द्वारा लोजपा के घोषणापत्र में कहा गया है कि चार लाख से अधिक बिहारियों के विचार के आधार पर बिहार फस्र्ट, बिहारी फस्र्ट का विजन है, जिसमें उनके पिता रामविलास पासवान का अनुभव भी शामिल है। 15 साल सत्ता में रहने के बाद भी नली-गली और खेत में पानी पहुंचाने का वादा करने वाली नीतीश सरकार पर कटाक्ष किया गया और सवाल खड़ा किया गया कि बिहार में रोजगार के लिए क्या किया? बिहार को सशक्त करने के लिए क्या किया? क्यों विकास के हर मापदंड में देश के बाकी राज्यों के मुकाबले बिहार सबसे ज्यादा है। पलायन और बाढ जैसे मुद्दों के लिए कुछ नहीं किया गया। बिहार में कारखाने नहीं लगने के लिए नीतीश सरकार हास्यास्पद बहाने कर रही है।

राष्ट्रीय लोक समता पार्टी :
रालोसपा ने अपने वचनपत्र में 25 सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया। नवोदय विद्यालय की तर्ज पर हर जिले में स्कूल की स्थापना होगी, जिसमें विद्यार्थियों को पढऩे, रहने और खाने की मुफ्त आवासीय सुविधा होगी। स्पोट्र्स यूनिवर्सिटी की स्थापना होगी। शहर में वार्ड क्लीनिक और गांव में 2000 की आबादी पर गांव क्लीनिक की स्थापना की जाएगी। सुधा माडल के आधार पर सब्जी, फल, उत्पादक किसानों की कापरेटिव बनेगी। कानून-व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए जनसंख्या के अनुपात में पुलिस बल की नियुक्ति करने का वादा किया गया। विधानसभा के प्रथम सत्र में भारत सरकार को भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना के लिए प्रस्ताव पास कर भेजने का वादा किया गया। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बसपा और सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम है।

जन अधिकार पार्टी :
जन अधिकार पार्टी के घोषणा-पत्र में अध्यक्ष पप्पू यादव ने गरीबों को मिलने वाली पेंशन की रकम 3000 रुपये करने की बात कही है। इंटर पास छात्राओं को स्कूटी और छात्रों को मोटरसाइकिल देने की बात कही गई है। घोषणापत्र को प्रतिज्ञापत्र बताते हुए कोर्ट में एफिडेविट देकर जारी करने की बात कही गई।

प्लुरल्स पार्टी :
बिहार की राजनीति में विज्ञापनों के आधार पर अचानक प्रवेश करने वाली लंदन रिटर्न पुष्पम प्रिया चौधरी की प्लुरल्स पार्टी के घोषणापत्र में 2020-2030 के लिए मास्टर प्लान की बात कही गई। कामन स्कूल सिस्टक के जरिये शिक्षा सुधार का वादा किया गया, जिसमें नेताओं, अफसरों के बच्चे को सरकारी स्कूल में ही पढऩे की बात कही गई है। घोषणापत्र का नाम आठ दिशा-आठों पहर दिया गया और आठ जोन में बिहार को बांट कर विकास करने की बात कही गई। 80 लाख लोगों को रोजगार देने और कृषि को उद्योग का दर्जा देने की भी बात कही गई।

देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित चाणक्य मंत्र में प्रकाशित पटना (बिहार) से कृष्ण किसलय की रिपोर्ट-3

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