बंगलुरु में पत्रकारिता की दुनिया की एक निडर आवाज, सांप्रदायिक सद्भाव के लिये संघर्ष की आवाज गौरी लंकेश की हिंदुत्ववादी आतंकवादियों ने कर्नाटक में उनके घर में घुस कर 6 सितंबर को हत्या कर दी। अपने पिता पी. लंकेश के ही नक्शेकदम पर चलकर गौरी लंकेश कन्नड़ भाषा में साप्ताहिक अखबार ‘लंकेश’ का संपादन-प्रकाशन कर रही थीं। दो साल पहले कर्नाटक में हम्पी विश्वविद्यालय के पूर्व उपकुलपति व जाने-माने लेखक 70 वर्षीय एमएम कलबुर्गी की हत्या इन्हीं तत्वों ने की थी। गौरी लंकेश की हत्या भारत में हिंदू आतंकवाद के बढ़ते खतरे का संकेत है। इनकी हत्या भी डाभोलकर, पानसारे और कलबुर्गी की हत्या की तरह ही की गई।
15 रुपये कीमत वाले 16 पन्नों के साप्ताहिक ‘लंकेश’ के 13 सितंबर का अंक गौरी लंकेश के लिए आखिरी अंक साबित हुआ। उनके आखिरी संपादकीय से पता चलता है कि कन्नड़ की इस पत्रकार की कलम की धार कैसी थी? वह हर अंक में संपादकीय कालम ‘कंडा हागे’ लिखती थीं, जो साप्ताहिक के तीसरे पन्ने पर छपता था। इस बार उन्होंने ‘फेक न्यूज के जमाने में’ शीर्षक से संपादकीय लिखी। उन्होंने लिखा-
‘पिछले साल तक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के फेक न्यूज प्रोपेगैंडा को रोकने या सामने लाने वाला कोई नहीं था। अब बहुत से लोग इस काम में जुट गए हैं। इससे अब फेक न्यूज के साथ असली न्यूज भी सामने आने लगा है। उदाहरण के लिए 15 अगस्त के दिन लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण के विश्लेषण का वीडियो 17 अगस्त को वायरल हुआ, जिसे ध्रुव राठी ने तैयार किया था। राठी ने बताया था कि राज्यसभा में सरकार ने महीना भर पहले कहा कि 33 लाख नए करदाता आए हैं। इससे पहले वित्त मंत्री जेटली ने 91 लाख नए करदाताओं की बात कही थी। अंत में आर्थिक सर्वे में बताया गया कि 5.4 लाख 40 नए करदाता जुड़े हैं। इसमें कौन सा सच है?
ध्रुव राठी वीडियो के माध्यम से काम कर रहे हैं। प्रतीक सिन्हा वेबसाइट के जरिये काम कर रहे हैं। होक्स स्लेयर, बूम, फैक्ट चेक और अन्य वेबसाइटें भी यह काम कर रही हैं। फेक न्यूज की सच्चाई को उजागर करने के काम से संघ के लोग परेशान हो गए हैं। महत्वपूर्ण तो यह है कि झूठ की चाशनी से सच व तथ्य को सामने लाने वाले पैसे के लिए काम नहीं कर रहे हैं। इनका मकसद झूठ की फैक्ट्री को लोगों के सामने लाना है’।
लघुकथा लेखन संक्षिप्तता का संयोजन नहीं बल्कि एक साधना है : सुनीता मिश्रा
पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। कौन कहता है लघुकथा का विकास नहीं हो रहा ? लघुकथा में नित्य नए प्रयोग हो रहे हैं, यह संकेत मिलता है आज के कई समकालीन…