वाट्सएप पर प्रतिक्रिया : धारावाहिक तिल-तिल कर मरने की दास्तां बहुत सारगर्भित स्टोरी है, बहुत विस्तृत और शोधपूर्ण लेख है। बधाई। मैंने भी जनसत्ता में एक बार इस मसले (मृत रोहतास उद्योगसमूह, डालमियानगर, बिहार) पर लिखा था।
– कौशलेन्द्र प्रपन्न, वरिष्ठ लेखक-पत्रकार (दिल्ली)
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तिल-तिल मरने की दास्तां (अंतिम किस्त 13)
– कृष्ण किसलय
यक्ष प्रश्न कि कैसे बंद हुआ देश का विशाल उद्योगसमूह ?
आश्चर्यपूर्ण यह सवाल अभी भी खड़ा है कि आखिर बिहार व दश का इतना बड़ा उद्योगसमूह बंद कैसे हो गया? यह यक्ष प्रश्न आज भी पूरी तरह अनुत्तरति है। डालमियानगर जैसे औद्योगिक परिसर को जमीन पर उतरना हो तो आज 25-50 हजार करोड़ रुपये पूंजी व बड़ी संख्या में दक्ष मानव संसाधन जुटाने के साथ दशकों तक क्रमबद्ध निर्माण कार्य करना होगा। इस उद्योगसमूह का खत्म हो जाना भारतीय समाज की मेधा, उद्यमिता, राजनीतिक व संस्थागत इच्छाशक्ति, व्यावसायिक योग्यता, ईमानदारी, समाजिक सरोकार और लोकतंत्र के स्वरूप पर भी सवाल है, जिसके लिए व्यवस्था के अंग विधायिका (संसद व विधानसभा), न्यायपालिका व कार्यपालिका के साथ जनता, कारोबारी वर्ग सभी जिम्मेदार हैं। चिमनियों के चमन रहे डालमियानगर औद्योगिक परिसर के मरघट के सन्नाटे में तब्दील कर दिए जाने के कई कारण हैं। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि बिजली, पूंजी, सक्षम मानव संसाधन व अत्याधुनिक तकनीक के अभाव के साथ विवादों का जंगल, श्रमिक यूनियन में गुंडई का प्रवेश सतह पर दिखने वाले इसके बड़े कारण थे।
पर्दे के पीछे का असली कारण
मगर सतह पर नहीं दिखने वाले पर्दे के पीछे के महत्वपूर्ण कारणों में अशोक जैन परिवार की उदासीनता, आक्रोश और डालमियानगर के प्रति पैदा हुई नफरत की भावना भी है। इसे पत्रकार विजयबहादुर सिंह हत्याकांड में आत्माराम सरावगी के जेल जाने की स्थिति, 1984 की आम सभा में अशोक जैन पर पत्थर फेेंके जाने, अशोक जैन के रो देने के रूप में चिह्निïत किया जा सकता है। ये सब घटनाएं मालिक (प्रमोटर) और प्रबंधक के स्वाभिमान, सुरक्षा, अस्मिता से जुड़ी हुई थीं।
सतह पर दिखने वाले बड़े कारण बिजली और हड़ताल!
सतह पर दिखने वाले कारणों में बिजली आपूर्ति रोहतास उद्योगसमूह की बंदी का बड़ा कारण था। बिजली 1979-80 में 1686 बार और 1980-81 में 1974 बार ट्रिप हुई थी। इसके अलावा दोनों सालों में 14 हजार 590 घंटे बिजली प्रतिबंध (लोड रिस्ट्रक्शन) का भी सामना करना पड़ा। बिहार सरकार ने बकाए बिजली बिल को किस्तों में जमा करने को कहा। प्रबंधन ने निर्धारित एक किस्त जमा करने के बाद यह मांग की कि उसे 12 मेगावाट बिजली हर हाल में चाहिए, इसलिए राज्य सरकार उसके बंद पड़े बिजलीघर को चालू करने के लिए ऋण की व्यवस्था कराए। राज्य सरकार ने रोहतास उद्योग के लिए ऋण का प्रबंध करने में सरकार की भूमिका को इसलिए अस्वीकार कर दिया था कि अशोक जैन ने सरकार को सूचित किए बिना राजस्थान स्थित वनस्पति कारखाना अपने पारिवारिक सदस्य को कम कीमत में बेच दी थी, जिससे उन पर भरोसा नहींकिया जा सकता था। डालमियानगर में 12 हजार किलोवाट का पावर हाउस था, जिससे अतिरिक्त बिजली की आपूर्ति राज्य सरकार के लिए भी होती थी।
तालाबंदी प्रबंधन की योजना पूर्व नियोजित
मजदूरों की हड़ताल की प्रवृति को भी बड़ा कारण नहीं माना जा सकता क्योंकि भले यूनियनों का प्रबंधन से असहयोग भाव था, पर रोहतास उद्योगसमूह के इतिहास में वर्ष 1983 से 35 साल पहले भी सबसे लंबी हड़ताल हो चुकी थी। बिजली संकट और सरकार के अडिय़ल रवैये के बीच सरकार पर दबाव बनाने की प्रबंधन की रणनीति पूर्व नियोजित थी, क्योंकि तालाबंदी के बाद कारखानों में तैयार माल बेचा गया, जिसका खुलासा सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर हुए मूल्यांकन के वक्त हुआ था।
बेचा आईडीबीआई को बगैर सूचना दिए जयपुर का वनस्पति कारखाना
तालाबंदी की योजना पूर्व नियोजित थी और अशोक जैन व उनके परिवार के अंदरूनी फैसले के कारण ऐसा था। इसके प्रमाण में एक और घटना यह है कि अशोक जैन ने आर्थिक सहयोग करने (कर्ज देने) वाली वित्तीय कंपनी को जानकारी दिए बिना ही जयपुर स्थित अपने हनुमान वनस्पति कारखाने को मात्र 70 लाख रुपये में अपने एक रिश्तेदार को बेच दिया था। यह डालमियानगर कारखानों में 1984 की तालाबंदी से पहले की बात है। रोहतास इंडस्ट्रीज के मालिकाना हक में जयपुर (राजस्थान) स्थित हनुमान वनस्पति का भी कारखाना था, जिस पर वित्तीय संस्थान भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आईडीबीआई) ने 1.05 करोड़ रुपये का कर्ज दे रखा था। डालमियानगर कारखानों को चलाने और उनके आधुनिकीकरण के मद्देनजर आईडीबीआई ने 59 करोड़ रुपये ऋण देने की स्वीकृति डालमियानगर पावर हाउस के लिए दी थी। मगर अशोक जैन को लेकर पुराने अनुभव के आधार पर आईडीबीआई ने कहा कि बिहार सरकार रोहतास इंडस्ट्रीज के मामले में गारंटी देगी तो ही यह ऋण दे पाना संभव होगा।
अशौक जैन ने नहीं स्वीकार किया बिहार सरकार का प्रस्ताव
बिहार सरकार की ओर से कहा गया कि वित्त पोषण करने के मामले में रोहतास इंडस्ट्रीज के संचालक (निदेशक) मंडल में सरकार के प्रतिनिधि को रखना होगा, तभी सरकार वित्तीय संस्थान को गारंटी देगी। इस शर्त को अशोक जैन ने स्वीकार नहीं किया। सरकार भी सहयोग नहींकरने पर अड़ी रही। दोनों पक्षों के अडिय़ल रवैये के कारण रोहतास उद्योगसमूह को बंद हो जाना पड़ा। तब चंद्रशेखर सिंह मुख्यमंत्री थे।
डालमियानगर गंवाने के बाद भी नहीं बदली फितरत, भेजे गए जेल
रोहतास उद्योगसमूह को चला पाने की असमर्थता में प्रबंधकीय दावा छोडऩे के बावजूद अशोक जैन की फितरत (स्वभाव) नहीं बदली। उन्हें 1998 में वित्तीय हेराफेरी के आरोप में फारेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (फेरा कानून) के तहत मुंबई स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया था। बेशक, बहुत अधिक पैसा बिना बेईमानी के नहीं आता। अधिसंख्य कारोबारियों की तरह रोहतास उद्योगसमूह सहित अन्य उद्योगों व कारोबार के संस्थापक रामकृष्ण डालमिया और उनके नाती अशोक जैन भी इस अंतरतथ्य के सिद्ध उदाहरण हैं।
अशोक जैन की गिरफ्तारी से 43 साल पहले उनके नाना रामकृष्ण डालमिया को भी जेल जाना पड़ा था, जिन्हें 1956 में केेंद्र सरकार द्वारा गठित विवान बोस जांच आयोग ने स्टाक मार्केट के जरिये कोष में गड़बड़ी करने का दोषी पाया था। तब १९५८ में अमेरिका के अखबारों में रामकृष्ण डालमिया के बारे मेें भारत के राकफेलर के रूप में टिप्पणियां की थीं। रामकृष्ण डालमिया की मृत्यु 85 साल की आयु में 1978 में हुई।
रोहतास उद्योगसमूह की संपत्ति पर गिद्धदृष्टि
बहरहाल, अब रोहतास उद्योगसमूह की जमीन व संपत्ति पर अनेकों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है, जो डालमियानगर से तिऊरा-पिपराडीह तक फैली हुई है और जिसकी जमीन बिहार के नासरीगंज (रोहतास) और झारखंड के डालटनगंज (पलामू) में भी हैं। इसके कारखानों कबाड़ (मशीनों) को निपटाने की कूटनीति जारी है।
एक तबका ऐसा है जो यह माना रहा है कि कारखाने के कबाड़ को हटाने और जमीन के समतल होने के बाद नया कारखाना स्थापित होगा, यह महज प्रचार भर है। शहर से एकदम जुड़े होने के कारण डालमियानगर परिसर की जमीन बेहद कीमती है, जिस पर अनेक नेताओं, अधिकारियों, भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टि गड़ी हुई है। मशीनों का कबाड़ हटाकर जमीन बेचने के लिए 10 साल पहले भी नया कारखाना लगाने का शगूफा छोड़ा गया था। तब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे और सोनिया गांधी कांग्रेस नेतृत्व वाली केेंद्र सरकार में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष थीं।
जिसे जहां मौका मिला, खूब कमाया
अभी भी रोहतास उद्योगसमूह की अनेक संपत्ति सामने नहीं आई है, जिन पर कब्जा जमा हुआ है। डेहरी-आन-सोन में लाइट रेलवे की आवासीय कालोनी से इसके डेहरी सिटी स्टेशन तक तीन किलोमीटर की लंबाई में कब्जा तो नंगी आंखों से भी दिखता है। जिसे जहां मौका मिला, कब्जा जमाया और खूब कमाया भी। जबकि इस उद्योगसमूह में कार्यरत कर्मचारियों और इस पर आश्रित अन्य कारोबारियों की पीढिय़ां सड़क पर आ गईं, खानाबदोश बन गईं और तिल-तिल कर जलते हुए जिंदा रहने पर मजबूर हुईं। (आगे भी जारी)
– कृष्ण किसलय,
समूह संपादक,
सोनमाटी मीडिया समूह