(प्रसंगवश/कृष्ण किसलय) : कृषि कानूनों के व्यावहारिक असर पर संसद में विचार की दरकार/ (देशांतर/निशांत राज) : अगली सदी आते-आते समुद्र में डूब जाएंगे तीन सौ शहर

-0 प्रसंगवश 0-
कृषि कानूनों के व्यावहारिक असर पर संसद में विचार की दरकार
-कृष्ण किसलय
(संपादक, सोनमाटी)

संभवत: देश में किसानों के लिए पहली बार भारत बंद का आह्वान हुआ। सच है कि देश के 50 करोड़ से अधिक किसानों की दशा अत्यंत दयनीय है, जो सर्वाधिक गरीबी में गुजर-बसर करते रहे हैं। किसानों की दशा सुधारने के लिए भारतीय कृषि व्यवस्था को प्रतिस्पर्धी और आधुनिक बनना पड़ेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आश्रित रहने से तो किसानों का पिछड़ापन बना रहेगा। वैसे भी बमुश्किल 10 फीसदी किसान, जो थोड़ा ज्यादा खेत के काश्तकार हैं, ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ उठा पाते हैं। कम जोत वाले किसान कृषि उत्पाद खुले बाजार में औने-पौने दाम पर ही बेच देते हैं, क्योंकि वे अपनी जरूरत पूर्ति के लिए अनुकूल बाजार का ज्यादा इंतजार नहींकर सकते। दरकार तो समर्थन मूल्य नीति को कुछ साल जारी रखते हुए ही नए सुधार की है। सरकार ने तीनों कृषि कानून बनाने से पहले किसानों से समुचित विमर्श नहींकिया और न ही उन्हें इनके लाभ समझाए। शुक्र है कि किसान आंदोलन अभी गैर राजनीतिक बना हुआ है, उनके मंच पर राजनेताओं को जगह नहींमिली है और न ही तोड़-फोड़ या हिंसा का सहारा लिया गय है। माना जा रहा है कि केेंद्र सरकार ने नए कृषि कानून लाने में होने वाले प्रतिरोध की अनदेखी की है। किसान मान रहे है कि जो तीन कानून सरकार किसानों पर लाद रही है, उनका मनमाना उपयोग होगा। सरकार कानूनी शब्दों की अपनी व्याख्या के आधार पर किसानों की आशंकाओं को खारिज करने का प्रयास कर रही है।
सरकार यह कह रही है कि नए कृषि कानून खरीद-बिक्री की मौजूदा व्यवस्था में किसी तरह के बदलाव की बात नहीं करते। तब सवाल यह है कि किसान अपना धान न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत कम मूल्य पर निजी व्यापारियों के हाथों बेचने के लिए बाध्य क्यों हैं? कागज-पत्रों में सख्ती के कारण ही किसान औने-पौने कीमत पर अपना उत्पाद बेचना पसंद करता है। किसान आंदोलन के नेता यह मान रहे हैं कि नए कृषि कानून प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के बजाय किसानों को बड़े व्यापारियों के हाथ का खिलौना बना देने वाले हैं।
अगर अब सरकार संशोधन करती है और उस संशोधन में एमएसपी दर पर कृषि उत्पादन खरीदने की बाध्यता होती है तो आढ़ती या निजी थोक विक्रेता आयात बाजार में सस्ता कृषि उत्पाद उपलब्ध होने की स्थिति में आयातित कृषि उत्पाद खरीदने के विकल्प का रुख कर लेंगे। देश में कृषि उत्पादों के महंगा होने की वजह उनमें ज्यादा लागत होना है। किसान देश की जरूरत से 30 फीसदी से अधिक धान-गेहूं पैदा करते हैं। फिर भी वे निर्यात बाजार में खड़ा नहींहो पाते हैं। एमएसपी की बाध्यता के कारण सरकारी खरीद होने से सरकारी गोदामों में पड़ा हुआ अनाज सड़ता रहता है और सरकार 1.8 लाख करोड़ रुपये हर साल खर्च करने के लिए मजबूर होती है। कृषि के क्षेत्र में निजी पूंजी निवेश इसलिए प्रवेश नहींकरता है कि उत्पादकता बेहद कम है।
किसान चाहे जाड़ा की हाड़ कंपाती ठंड हो, बदन को झुलसा देने वाली गर्मी हो या बरसात की झड़ी हो, पूरी जिंदगी अपनी छोटी जोत वाले खेतों में मरता-खपता रहता है। बिहार में तो औसतन प्रति किसान परिवार 0.4 हेक्टेयर जमीन है। इस स्थिति में किसान राशन-पानी बांध देश की राजधानी में डेरा डालने के निर्णय तक पहुंच गया तो बेशक यह गंभीर विचारणीय मुुद्दा है। अत: जरूरी है कि सरकार हर संभव स्तर पर किसान नेताओं से बातचीत कर किसानों का भरोसा हासिल करे। तीनों कृषि कानूनों के व्यावहारिक असर का त्वरित अध्ययन कराए, ताकि अध्ययन रिपोर्ट पर संसद में बहस कर सर्वानुमति का रास्ता निकाला जा सके।

देशांतर : अगली सदी आते-आते समुद्र में डूब जाएंगे तीन सौ शहर

ग्लेशियरों के पिघलने की मौजूदा रफ्तार जारी रही तो अगले सदी तक दुनिया के समुद्र तट के करीब तीन सौ शहर डूब जाएंगे। डूबने वाले शहरों में भारत के मंगलोर, मुंबई, कोलकाता, काकीनाडा (आंध्र प्रदेश) भी होंगे। विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते 12 हजार वर्षों की तुलना में अगली सदी में बर्फ सबसे अधिक तेजी से पिघलेगी। बर्फ पिघलने की मौजूदा दर के आधार पर यह आकलन किया गया है कि अगली सदी में छह लाख करोड़ टन बर्फ पिघल जाएगी। हालांकि बीती सदियों और हजारों सालों में बर्फ के पिघलने की दर कभी एक जैसी नहीं रही है, मगर पिछले दशकों में यह लगातार तेज होती जा रही है।
यह भी आकलन किया गया है कि यदि समुद्र का जलस्तर एक मीटर तक ऊपर उठता है तो यहां के तटों का 14 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका तबाह हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया है कि भारत में 2050 तक करीब चार करोड़ लोग समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण विस्थापन का शिकार होना पड़ेगा। उत्तरी गोलार्ध में ग्रीनलैंड का बर्फ भंडार पिछली सदियों की तुलना में बहुत तेजी से पिघल रहा है। बीते साल 53 हजार करोड़ टन बर्फ पिघल कर समुद्र में मिल गई। यह भी कहा जा रहा है कि ग्रीनलैंड का सारा बर्फ पिघल गया तो समुद्र का जल स्तर किसी दो मंजिले मकान से भी ज्यादा ऊपर उठ जाएगा।
ग्रीनलैंड के ग्लेशियरों के पिघलने के एक अध्ययन से यह जानकारी सामने आई थी कि 1980 से 2012 के दौरान समुद्र का जलस्तर 8 मिलीमीटर से अधिक ऊपर उठ गया है। इसके बाद के सालों में यह जानकारी हुई कि ग्रीनलैंड के ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर 20 सेमी ऊपर उठ गया है। ग्रीनलैंड अटलांटिक और आर्कटिक महासागरों के बीच बसा एक द्वीपीय देश है। यह लगभग 21 लाख 66 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसके लगभग 80 प्रतिशत हिस्से में बर्फ ही बर्फ है। हालांकि यह तकनीकी रूप से उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप का एक हिस्सा है, पर ऐतिहासिक रूप से यह डेनमार्क और नॉर्वे जैसे यूरोपीय देशों के साथ जुड़ा हुआ है। आज ग्रीनलैंड को डेनमार्क के भीतर एक स्वतंत्र क्षेत्र माना जाता है। तटवर्ती इलाकों में जहां बर्फ नहीं है, वहां पर आबादी बसी हुई है। वर्ष 2018 के एक आंकड़े के मुताबिक, तब इसकी आबादी 57651 थी। यहां के लोग मुख्य रूप से मछली पर निर्भर हैं। मछली एक्सपोर्ट भी की जाती है। जब धूप खिलती है तो यहां का नजारा सतरंगी हो जाता है। वह समय यहां के लोगों के लिए उत्सव जैसा होता है। यहां पर दो महीने धूप खिलती है।
कुछ साल पहले एक रिपोर्ट में माना गया कि समुद्र में जलस्तर बढऩे के तीन मुख्य कारण हैं। लगातार तापमान बढऩे से समुद्र का पानी अपने आप फैल रहा हैए जिससे इसका जल स्तर ऊपर उठ रहा है। दूसरा कारण यह है कि पूरी दुनिया में काफी अधिक मात्रा में जमीन के अंदर का पानी पंप से खींचकर निकाला जा रहा है। तीसरा कारण है ग्लेशियरों का पिघलना। समुद्र का जल स्तर बढऩे के पीछे सबसे बड़ी भूमिका ग्लेशियरों के पिघलने की ही है। ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग से पिघल रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। दुनिया भर के वैज्ञानिक और पर्यावरणविदों की चिंता है कि ऐसे ही चलता रहा तो 21वीं सदी के अंत तक औसत तापमान 3.7 डिग्री सेल्सियस हो सकता है। पेरिस समझौते के तहत दुनिया का दीर्घकालीन औसत तापमान डेढ़ से दो डिग्री सेल्सियस तक रखने का टारगेट रखा गया है।

निशांत राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी

  • Related Posts

    जीएनएसयू में रैगिंग निषेध सेमिनार का आयोजन, दी गई दूर रहने की सलाह

    डेहरी-आन-सोन  (रोहतास) विशेष संवाददाता। जमुहार स्थित गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित नारायण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के तत्वावधान में चिकित्सा शिक्षा हेतु आए नवागंतुक छात्रों एवं उनके सीनियर बैच…

    भारत के राष्ट्रपति जीएनएसयू के तृतीय दीक्षान्त समारोह में होंगे शामिल

    डेहरी-आन-सोन  (रोहतास) विशेष संवाददाता। जमुहार स्थित गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय का तृतीय दीक्षान्त समारोह आज 11:00 बजे दिन से प्रारंभ होगा। इसके मुख्य अतिथि भारत गणराज्य के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

    You Missed

    हम सभी को अपनी जीवन शैली में सुधार कर के बच्चों एवं वृद्ध व्यक्ति को दिव्यांगता से बचाव के निरंतर प्रयास करना चाहिए : गोपाल नारायण सिंह

    हम सभी को अपनी जीवन शैली में सुधार कर के बच्चों एवं वृद्ध व्यक्ति को दिव्यांगता से बचाव के निरंतर प्रयास करना चाहिए : गोपाल नारायण सिंह

    7 दिसंबर को सासाराम में होगा जदयू का जिला कार्यकर्ता सम्मेलन

    7 दिसंबर को सासाराम में होगा जदयू का जिला कार्यकर्ता सम्मेलन

    नमस्ते बिहारः तृतीय बृहत जनसंवाद में लोगों ने हाथ उठाकर बिहार को बदलने का लिया संकल्प

    नमस्ते बिहारः तृतीय बृहत जनसंवाद में लोगों ने हाथ उठाकर बिहार को बदलने का लिया संकल्प

    नशा मुक्त बिहार मैराथन में सशस्त्र सीमा बल का उल्लेखनीय योगदान

    नशा मुक्त बिहार मैराथन में सशस्त्र सीमा बल का उल्लेखनीय योगदान

    डॉ. उदय सिन्हा बने साइट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष

    डॉ. उदय सिन्हा बने साइट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष

    प्रकाश गोस्वामी बने बिहार विधान परिषद सभापति के पांचवी बार प्रतिनिधि

    प्रकाश गोस्वामी बने बिहार विधान परिषद सभापति के पांचवी बार प्रतिनिधि