शेष बच रहे रोहतास इंडस्ट्रीज काम्पलेक्स के मूल्यांकन का कार्य शुरू, क्षतिपूर्ति पाने से वंचित कर्मियों के लिए पेश होगा कंपनी जज के समक्ष प्रस्ताव, आपूर्तिकर्ताओं के भुगतान का मुद्दा भी विचाराधीन
-कृष्ण किसलय-
डेहरी-आन-सोन (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। 20वींसदी में अनेक उपभोक्ता वस्तु उत्पादों के लिए एशिया भर में प्रसिद्ध रहे विशाल रोहतास उद्योगसमूह की शेष बची रह गई अचल संपत्ति के मूल्यांकन का कार्य शुरू कर दिया गया है, ताकि इसकी विभिन्न संपत्तियों की बाजार कीमत की जानकारी हो सके और आवश्यक होने पर कंपनी जज के आदेश पर इनकी बिक्री की जा सके। इसके लिए पटना के दो सिविल अभियंत्रण फार्म को मूल्यांकन का कार्य सौंपा गया है। रोहतास इंडस्ट्रीज काम्पलेक्स के स्थानीय प्रबंधन की रिपोर्ट के आधार पर कंपनी जज (पटना हाई कोर्ट) के अधीन कार्यरत प्रशासकीय समापक (आफिशियल लिक्विेडेटर) की ओर से कंपनी जज को कोर्ट में क्षतिपूर्ति (लाभांश) पाने से वंचित रह गए रोहतास इंडस्ट्रीज के कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए प्रस्ताव पेश करने और आदेश प्राप्त करने की तैयारी भी की जा रही है।
क्या बिका गया और क्या है बच रहा?
20वीं सदी में देश के तीसरे औद्योगिक नगर रहे डालमियानगर स्थित रोहतास इंडस्ट्रीज के कारखाने, आवासीय परिसर व अन्य जमीन में से मशीनों के कबाड़ सहित 219 एकड़ कारखाना परिसर (141 करोड़ रुपये में), ग्रामीण क्षेत्र में स्थित करीब 500 एकड़ बांक फार्म (18 करोड़ रुपये में), करीब 80 एकड़ सूअरा हवाईअड्डा (17 करोड़ रुपये में), डालमियानगर आवासीय परिसर के 28 बंगले व क्वार्टर और डालटनगंज (झारखंड) की जमीन वर्ष 2000 के बाद मगर 20वींसदी के पुराने बाजार भाव पर ही बेचे गए थे। इन सब की बिक्री से प्राप्त राशि से स्थाई कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति, विभिन्न वित्तीय व सरकारी संस्थानों के कर्ज आदि करीब 250 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। रोहतास इंडस्ट्रीज के स्थाई कर्मचारियों को 60 साल की उम्र पूरी होने तक पीएफ और वेतनमान के हिसाब से निर्धारित क्षतिपूर्ति करीब सौ करोड़ रुपये, विभिन्न वित्तीय संस्थान व सरकारी उपक्रमों के बकाए करीब सौ करोड़ रुपये और तालाबंदी के बाद कारखाना संचालन के लिए बिहार योजना मद से लिए गए कर्ज के 36 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।
कंपनी प्रबंधन द्वारा तालाबंदी किए जाने और इसके मुख्य प्रमोटर (मालिक) अशोक जैन द्वारा कारखाना चलाने में असमर्थता व्यक्त करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को टेकओवर कर बिहार सरकार को सौंप दिया। बिहार की लालू प्रसाद, राबड़ी देवी की सरकारें रोहतास उद्योगसमूह के कारखानों को चला पाने में सक्षम नहीं हुई तो पटना हाई कोर्ट ने 1997 में इसके समापन (लिक्विडेशन) और इसे कंपनी जज के कार्यालय से संबद्ध करने का आदेश दिया।
दो सिविल इंजीनियरिंग एसोसिएट्स को दी गई है बाजार भाव के आकलन की जिम्मेदारी
डालमियानगर रोहतास इंडस्ट्रीज काम्पलेक्स के प्रभारी अधिकारी एआर वर्मा ने सोनमाटीडाटकाम को बताया कि कंपनी की संपत्तियों की नई बाजार कीमत जानने के लिए पटना के दो सिविल इंजीनियरिंग एसोसिएट्स मूल्यांकन और मेसर्स संजीव शंकर को जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने बताया कि रोहतास इंडस्ट्रीज और इसकी सहयोगी कंपनियों में स्थाई कर्मचारी रहे करीब सौ लोगों या उनके परिजनों की ओर से दावा प्राप्त हुआ है। कंपनी जज के आदेशानुसार क्षतिपूर्ति भुगतान की समय सीमा दिसम्बर 2017 तक ही निर्धारित थी। चूंकि जनवरी 2018 से अब तक करीब सौ लोगों के दावे आए हैं, इसलिए पटना स्थित आफिशियल लिक्विडेटर के माध्यम से नए दावों पर निर्देश प्राप्त करने के लिए कंपनी जज के समक्ष प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाएगा और उस पर प्राप्त कोर्ट के यथाआदेश का अनुपालन होगा। उन्होंने एक सवाल के जवाब में यह बताया कि रोहतास इंडस्ट्रीज और इसकी सहयोगी इकाइयों में विभिन्न तरह की सामग्री, स्टेश्नरी आदि की आपूर्ति करने वालों की ओर से भी कंपनी बंद होने के बाद सैकड़ों की संख्या में दावे किए गए हैं। इनके दावे भी आफिशियल लिक्विडेटर के स्तर पर विचारधीन है।
अभी भी है शहर में और ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों एकड़ जमीन
एआर वर्मा ने बताया कि रोहतास इंडस्ट्रीज काम्पलेक्स की संपति में नगर परिषद क्षेत्र के डालमियानगर में 220 सौ एकड़ का आवासीय परिसर और 11 एकड़ का बंद चीनी कारखाना है। डालमियानगर में ही हनुमान मंदिर, माडल स्कूल, गल्र्स व ब्यायज हाई स्कूल, बंद अस्पताल भवन, डालमियानगर मार्केट, खेल व आमसभा मैदान आदि हैं। डालमियानगर से बाहर भी सैकड़ों एकड़ जमीन हैं, जिनमें डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे के डिहरी सिटी स्टेशन (डेहरी-आन-सोन) से चुटिया (नौहट्टा) तक के सभी रेलवे स्टेशन, पाश्र्वा माइनिंग एंड ट्रेडिंग कंपनी, अशोका सीमेंट और सासाराम व नासरीगंज चीनी मिल के ईख तौल केेंद्र की जमीन शामिल है।
(तस्वीरें : निशांत राज)
कभी काम करते थे 20 हजार कर्मचारी, आज मृत्यशैया की देखरेख को दो दर्जन
डालमियानगर (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। करीब 35 साल पहले डालमियानगर स्थित विशाल रोहतास उद्योगसमूह के कारखानों व उपक्रमों और इसके कोलकाता-दिल्ली तक स्थित दफ्तरों में स्थाई-अस्थाई तौर पर लगभग 20 हजार कर्मचारी काम करते थे। आज औद्योगिक कब्रिस्तान बन चुके इसके परिसर की संपत्ति की देखरेख के लिए कंपनी जज (पटना हाईकोर्ट) के अधीन आफिसियल लिक्वडेटर के नियंत्रण में डालमियानगर में महज दो दर्जन कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके आवासीय परिसर को कर्मचारी या उनके वारिस को या कंपनी जज के आदेश से अन्य को किराये पर दिया गया है। आवासीय परिसरों, मार्केट व जमीन पर लगने वाली सब्जी मंडी आदि से किराये के रूप में करीब चार लाख रुपये महीने की आमदनी होती है।
समापन में चले जाने के बाद रोहतास इंडस्ट्रीज काम्पलेक्स का डालमियानगर परिसर साफ-सफाई, सार्वजनिक रोशनी-व्यवस्था या किसी तरह के विकास कार्य के लिए डेहरी-डालमियानगर नगर परिषद, विधायक-सांसद कोष या जिला प्रशासन पर निर्भर है, क्योंकि यह जनप्रतिनिधि निर्वाचन की प्रक्रिया के तहत नगर परिषद, डेहरी विधानसभा और काराकाट लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। मगर इसकी सीमा के भीतर किसी तरह के कार्य के लिए कंपनी जज के आदेश की अपरिहार्यता के कारण त्वरित निर्णय या विधायक-संसद के संज्ञान के अभाव में यह उपेक्षित रहा है। डालमियानगर परिसर में अधिकृत तौर पर रहे लोगों या अधिकृत दफ्तरों में बिजली-आपूर्ति की व्यवस्था की जिम्मेदार बिजली विभाग की है। मगर उसका इस तरफ ध्यान नहीं है। बिजली आपूर्ति के जर्जर तार कभी भी जानलेवा दुर्घटना के सबब बन सकते हैं। डालमियानगर आवासीय परिसर की भूमिगत नालों-नालियों के ढक्कन क्षतिग्रस्त या गायब हैं, जिनके गड़्ढे में किसी अनहोनी की आशंका लगातार बनी रहती है। डालमियानगर परिसर की खुली पड़ी जमीन का या तो अतिक्रमण हो रहा है या फिर इन्हें शौचस्थल बना दिया गया है।
क्वार्टरों में बिजली आपूर्ति व मीटर लगाना बिजली विभाग की जिम्मेदारी
रोहतास इंडस्ट्रीज काम्पलेक्स के डालमियानगर प्रभारी अधिकारी एआर वर्मा के अनुसार, लोग कंपनी के पुराने हो चुके मकानों में रह रहे हैं। यहां बिजली के तार जर्जर हैं, नालियों के मेनहोल खुले पड़े हुए हैं। कभी भी किसी तरह की दुर्घटना से इनकार नहीं किया जा सकता। कंपनी जज का आदेश है, परिसर के क्वार्टरों में बिजली आपूर्ति व उसके लिए मीटर लगाना बिजली विभाग की और बिजली बिल का भुगतान करना रह रहे लोगों की जिम्मेदारी है। कंपनी के खुली पड़ी जमीन की भरसक घेराबंदी की गई है और जेनरल आफिस (प्रशासनिक कार्यालय) के पीछे (पश्चिम) में स्थित जमीन पर शीशम, सागवान, नीम, आंवला, गुलमोहर आदि के पेड़ भी लगाए गए हैं।
(तस्वीरें : निशांत राज)