सोनघाटी की रंगयात्रा (3)
-स्वर्णजयंती वर्ष : 50 सालों में पहली बार रंग कार्यशाला का आयोजन
-1979 में चंद्रभूषण मणि ने शुरू की थी डेहरी-आन-सोन में जयशिव कला मंदिर के बैनरतले बड़े स्तर पर अखिल भारतीय लघु हिन्दी नाट्य प्रतियोगिता
-दस साल बाद 1989 में कृष्ण किसलय के नेतृत्व में अभिनव कला संगम द्वारा आरंभ हुई कई दृष्टियों से श्रेष्ठ प्रतियोगिता, शहर में रंगयात्रा की नई परंपरा कीभी डाली गई नींव
मिथिलेश दीपक/निशांत राज
२०वींसदी के सत्तर के दशक में इलाहाबाद नाट्य संघ के बहुभाषी लघु नाट्य प्रतियोगिता के प्रति बिहार के भी नाट्यकर्मियों का प्रतिष्ठापूर्ण अनुराग था। उस प्रतियोगिता में नाट्य दलों व रंगकर्मियों का शामिल होना तब गौरव की बात मानी जाती थी और उस प्रतियोगिता में पुरस्कार पाना बड़ी बात थी। बिहार में पटना, रांची, जमशेदपुर के बाद डेहरी-आन-सोन में भी छोटे स्तर की नाट्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, पर कोई प्रतियोगिता नियमित नहीं हो सकी, आगे नहीं बढ़ सकी।
तब डेहरी-आन-सोन और दाउदनगर में रंगमंच को गति देने वाले युवा निर्देशक चंद्रभूषण मणि (बाद में भोजपुरी फिल्मों के निर्देशक) ने डेहरी में जयशिव कला मंदिर के बैनरतले अपने शहर में पहले संपन्न हो चुकी प्रतियोगिता से बड़े स्तर पर नाट्य प्रतियोगिता शुरू की, जिसकी प्रेेरणा उन्होंने इलाहाबाद नाट्य संघ से मिली थी। उन्होंने इलाहाबाद में ठहरकर नाट्य संस्थाओं के नाम-पते प्राप्त किए थे। 1979 में शुरू हुई जयशिव कला मंदिर की प्रतियोगिता 1984 के बाद बंद हो गई।
1989 में अभिनव कला संगम द्वारा युवा नाटक लेखक-रंगकर्मी-पत्रकार कृष्ण किसलय के नेतृत्व में आरंभ हुई अखिल भारतीय हिन्दी लघु नाट्य प्रतियोगिता जयशिव कला मंदिर की प्रतियोगिता के मुकाबले कई दृष्टियों से बड़े स्तर पर हुई। अभिनव कला संगम ने ही डेहरी-आन-सोन में प्रतियोगिता में शामिल रंगकर्मियों की रंगयात्रा निकालने की नई परंपरा की शुरूआत की। इससे शहर में माहौल तैयार होता और लोगों की रूचि जगती। अभिनव कलासंगम कीसफलता व प्रबंधन नियोजन के बेहतर तरीके को देखकर जयशिव कला मंदिर ने 1991 में एक बार फिर प्रतियोगिता आयोजित की, मगर पाली रोड (रामकृष्ण आश्रम) में वह अंतिम प्रतियोगिता साबित हुई, क्योंकि जयशिव कला मंदिर की टीम चंद्रभूषण मणि के नेतृत्व में फिल्म के क्षेत्र की ओर मुड़ गई।
अभिनव कला संगम को 1991 में भी नाट्य मंचन के लिए लकड़ी का ही मंच बनवाना पड़ा, जो रेलवे स्टेशन से सटे अशर्फीलाल के हाता में बना था। पहले दिन प्रतियोगिता आरंभ होने से ठीक पहले हुई बारिश ने जाड़े के मौसम को तीखा बना दिया, मगर उद्घाटन सत्र के प्रथम नाटक ने ऐसा शमां बांधा कि दर्शक कड़कड़ाती ठंड में भी पंडाल में अंत तक बैठे जमे रहे। दूसरी प्रतियोगिता में रंगकर्मियों के ठहरने के लिए शांित निकेतन (पाली रोड) जैसी भव्य व्यवस्था नहींथी। खाने-ठहरने की व्यवस्था डालमियानगर बालिका विद्यालय के परिसर में की गई थी। प्रतियोगिता व आवासीय व्यवस्था केलिए डालमियानगर माडलस्कूल का रंगमंच व परिसर 1992 में मिला। तब से माडल स्कूल में प्रतियोगिता होने लगी।
अभिनव कला संगम की 1989 की प्रथम प्रतियोगिता की भव्य व्यवस्था की चर्चा के कारण 1991 की दूसरी प्रतियोगिता में पहले से ज्यादा सशक्त नाट्य दलों ने भाग लिया था। प्रतियोगिता आयोजन में सहयोग के लिए अग्रणी सरूरअली अंसारी (मुगलसराय), प्रो.अनिल सुमन (रांची) और श्रीमती कृष्णा सिन्हा (जमशेदपुर ) जैसे निर्देशक-समीक्षकजुड़ गए।
दो सप्ताह का प्रशिक्षण शिविर (रंग-कार्यशाला)
डेहरी-आन-सोन (डालमियानगर) में सक्रिय हिन्दी रंगमंच के पांच दशकों के इतिहास में पहली बार 1991 में रंग-कार्यशाला का आयोजन किया गया। संयोग से उस साल स्थानीय हिंदी रंगमंच का स्वर्ण वर्ष भी था। रंग-कार्यशाला भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के उपक्रम उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सहयोग से हुआ था। पहले सप्ताह भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान रंगकर्मी डा. ब्रजवल्लभ मिश्र ने नाटक व रंगमंच के सैद्धांतिक पक्षों की अभिनय के साथ उदाहरण देकर व्याख्या प्रस्तुत की। दूसरे सप्ताह में गायन, वादन, नृत्य व अभिनय के व्यावहारिक पक्षों पर अकादमिक जानकारी देने के साथ उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के प्रथम कार्यक्रम अधिकारी विपिन शर्मा ने अभ्यास वर्ग का निर्देशन-संयोजन किया। वह रंग-कार्यशाला युवा नाटक लेखक व रंगकर्मी कृष्ण किसलय की अध्यक्षता में हुई थी। इसमें स्थानीय वरिष्ठ रंगकर्मी उदय प्रसाद सिन्हा, अशोक घायल, रमेशचंद्र गुप्ता, महात्म दुबे, स्वयंप्रकाश मिश्र वर्ग-परीक्षक थे। प्रशिक्षण पाकर उस समय की दो छात्राएं निशि गुप्ता और संगीता मौर्य ने अभिनय व नृत्य प्रस्तुत किया था। अभ्यास-वर्ग में शामिल पांच दर्जन प्रशिक्षणार्थी छात्र-छात्राओं को उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केेंद्र की ओर से प्रमाणपत्र दिया गया था।
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सौजन्य : विश्वविश्रुत सोन नद के तट के सबसे बड़े नगर डेहरी-आन-सोन को केेंद्र में रखकर लिखी जा रही सोनघाटी की रंग-यात्रा की सामग्री मुख्य रूप से नाटककार-निर्देशक स्वर्गीय किशोर वर्मा और अभिनव कला संगम के संस्थापक अध्यक्ष कृष्ण किसलय (नाटककार-रंगकर्मी-कथाकार-पत्रकार) की आकाशवाणी पटना से प्रसारित रेडियो वार्ता व नवभारत टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है। इसमें सुप्रसिद्ध रंग समीक्षक डा. ब्रजवल्लभ मिश्र का भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर व्याख्यान, रेडियो नाटक लोहासिंह के यशस्वी लेखक-अभिनेता रामेश्वर सिंह कश्यप, यूनिवर्सिटी प्रोफेसर व वरिष्ठ साहित्य समीक्षक डा, नंदकिशोर तिवारी, वरिष्ठ नाटककार श्रीशचंद्र सोम के विचार है। पत्रकार संसद (डेहरी-आन-सोन) के सांस्कृतिक कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार-रंगकर्मी नवेन्दु के हिरना-हिरनी आख्यान, सोनमाटी (समाचार-विचार पत्र), सोनधारा-1992 (अकस स्मारिका), उत्कर्ष (संपादक उपेन्द्र कश्यप, युवा लेखक पत्रकार) से भी सामग्री का संदर्भवश उपयोग हुआ हैं।
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