स्कूल खुले, नौ माह बाद परिसरों में पहुंचे विद्यार्थी/ आनलाइन संगीत सम्मेलन/ युगपुरुष संपूर्णानंद

परिसर में पढ़ाई से विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास : डा.वर्मा

(संतपाल सीनियर सेकेेंड्र्री स्कूल)

सासाराम (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। लंबे समय तक घर में रहे विद्यार्थियों के चेहरों पर प्रफुल्लता लौटी है। दक्षिण बिहार के अग्रणी विद्यालय संतपाल सीनियर सेकेेंड्र्री स्कूल के परिसर में आनलाइन पढ़ाई से ऊब चुके छात्र-छात्राओं ने नौ महीनों बाद अपने कदम रखे। विद्यालय की हर कक्षा, हर शौचालय, पेयजल स्थल, कार्यालय कक्ष, वेटिंग एरिया सभी जगह को स्कूल खुलने से एक दिन पहले ही सैनिटाइज किया गया। विद्यार्थियों के कक्षा में जाने से पहले थर्मल स्क्रीनिंग की गई। विद्यार्थियों को जगह-जगह लगाए गए सैनिटाइजर मशीन से हाथों को सैनिटाइज करना पड़ा। विद्यार्थियों को निर्धारित सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर सीटों पर बैठाया गया और हर समय मास्क लगाए रखने की हिदायत दी गई। सरकार की ओर से विद्यालय में नौवीं से बारहवीं तक के 50 प्रतिशत विद्यार्थियों को एक दिन अंतराल पर उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। इस मौके पर विद्यालय परिसर में उपस्थित रहकर विद्यालय के अध्यक्ष डा. एसपी वर्मा ने कोविड-19 के पैरामीटर की मानीटरिंग की। कहा कि अध्ययनरत विद्यार्थियों का स्वास्थ्य पहली प्राथमिकता है। बताया कि बेशक आनलाइन पढ़ाई से छात्र-छात्राएं अपने पाठ्यक्रम के अनुसार तैयारी करते रहे। मगर परिसर में पढ़ाई से विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता है, जिसका कोई विकल्प नहीं है। कक्षा में पढ़ाई का बड़ा लाभ शिक्षक-शिक्षिकाओं की बातों को स्पष्ट सुनना और बेहिचक शंका समाधान है। विद्यालय प्रबंधक रोहित वर्मा, सचिव वीणा वर्मा, प्राचार्या आराधना वर्मा के साथ शिक्षक-शिक्षिकाओं ने कोविड-19 से बचाव के लिए विद्यार्थियों को लैस किया और अलर्ट भी किया।

समूचे समाज को जोड़ता है संगीत : सत्यम मिश्रा

पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में हेलो फेसबुक पर आनलाइन संगीत सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए सत्यम मिश्रा (बेतिया) ने कहा कि कहा कि संगीत की तीनों प्रमुख विधाएं गायन, वादन, नृत्य मानसिक तनाव दूर कर शांति स्थापित करती हैं और समूचे समाज को जोडऩे का कार्य करती हैं। अध्यक्षता करते हुए सत्येन्द्र ने कहा कि संगीत या कोई भी कला मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का काम करती है। संगोष्ठी का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि संगीत आदमी को सामाजिक बनाने का कार्य हजारों सालों से करता रहा है। नीतू कुमारी नवगीत, मधुरेश नारायण, डा. नूतन सिंह के साथ मध्य प्रदेश से डा. शरदनारायण खरे मुंबई से बेदु परमि सतेंद्र संगीत, दिल्ली से सारिका सिंह ने फिल्मी गीत और गजल-भजन गाए। जबकि प्रीति प्रयाग ने कथक नृत्य प्रस्तुत किया।

डा.संपूर्णानंद : राजनीति, दर्शन, साहित्य और पत्रकारिता के युगपुरुष

बहुमखी प्रतिभा के धनी डा. सम्पूर्णानन्द भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रकांड विद्वान होने के साथ विख्यात साहित्यकार थे। इनका जन्म वाराणसी मेू 01 जनवरी 1890 ई. को सम्भ्रान्त कायस्थ परिवार में हुआ था। क्वीन्स कालेज (वाराणसी) से बीएससी करने के बाद पैओगाजिकल ट्रेनिंग कालेज (इलाहाबाद) से एलटी की परीक्ष उत्तीर्ण कीं। वह डूंगरपुर कालेज (बीकानेर) में प्रधानाचार्य थे कि 1921 ई. में महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आन्दोलन के आह्वान से प्रेरित वाराणसी लौटकर ज्ञानमंडल के मर्यादा (मासिक) और टूडे (अंग्रेजी दैनिक) का सम्पादन करने लगे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रथम पंक्ति के सेनानी के रूप में सक्रिय रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का शिक्षा मंत्री बनाया गया। 1955 ई. में मुख्यमंत्री बने। 1962 ई. में राजस्थान के राजयपाल बने। 1967 ई. में वह काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के कुलपति बने और मृत्युपर्यन्त 10 जनवरी 1969 तक वाराणसी में ही बने रहे। 1940 ई. में वह भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए थे और उन्हें सर्वोंच्च उपाधि साहित्य वाचस्पति भी प्राप्त हुई थी। वह काशी नागरी प्रचारिणी सभा के भी अध्यक्ष और संरक्षक रहे। वाराणसी का संस्कृत विश्वविद्यालय तो उनकी ही देन है।
डा. संपूर्णानंद की प्रसिद्ध कृतियां :
हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत के प्रकांड विद्वान डा. सम्पूर्णानन्द ने आजीवन प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में दर्शन, इतिहास, संस्कृति, गंभीर साहित्य से संबंधित वैचारिक लेखन के साथ अनेक ग्रन्थों की रचना की। पुरुषसूक्त, पृथ्वी से सप्तर्षि मंडल, भारतीय सृष्टिक्रम विचार, हिन्दू देव परिवार का विकास, भाषा की शक्ति, अधूरी क्रान्ति, भारत के देशी राज्य, महात्मा गांधी इनकी चर्चित पुस्तकेें हैं। सम्राट अशोक, सम्राट हर्षवर्धन, चेत सिंह आदि ऐतिहासिक व्यक्तियों और महात्मा गांधी, देशबन्धु चितरंजन दास आदि आधुनिक महापुरुषों की जीवनी लिखी है। आर्यों का आदिदेश में तर्कों-साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध किया कि आर्य भारत के मूलवासी थे, बाहर से नहीं आए थे। उनकी स्मृतियों को शत-शत नमन

-प्रस्तुति : डा. राकेश श्रीवास्तव

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