सोनमाटी का एक्सक्लूसिव “तिल तिल मरने की दास्तां” के सारे क़िस्त पढ़े. काफी अच्छा लगा, अपने शहर के इतिहास के बारे में जान कर. बहुत बहुत धन्यवाद कृष्ण किसलय जी, आपके इस अद्भुत आलेख के लिए. मैंने पहले कई बार डेहरी डालमियानगर के इतिहास के लिए गूगल किया था लेकिन इतनी विस्तृत जानकारी कभी नहीं मिली. मेरी सलाह है आप इसपर एक किताब भी लिखे, जो आनेवाली पीढ़ी के लिए जानकारी का श्रोत बने.
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रोहतास इंडस्ट्रीज के एशिया प्रसिद्ध कारखानों को चलाने की हुई एक और आखिरी कोशिश
डेहरी-आन-सोन (बिहार) – कृष्ण किसलय। भारतीय औद्योगिक इतिहास के मोहनजोदड़ो हड़प्पा बन चुके बिहार के डालमियानगर स्थित मृत (समापन में) रोहतास इंडस्ट्रीज के एशिया प्रसिद्ध कारखानों को चलाने की एक और आखिरी कोशिश के क्रम में बड़े अप्रवासी भारतीय उद्योगपति लक्ष्मीनारायण मित्तल के भारतवासी श्वसुर व देश के प्रतिष्ठित उद्योगपति लक्ष्मीनारायण डालमिया का प्रस्ताव सामने आया। लक्ष्मीनारायण डालमिया के प्रस्ताव आने से पहले बिहार के भूतपूर्व उद्योगमंत्री विपिनविहारी सिन्हा (तिलौथू स्टेट) की पहल पर टाटा स्टील (टिस्को) के प्रबंध निदेशक जेजे ईरानी ने भी डालमियानगर कारखाना परिसर का दौरा कर वस्तुस्थिति और कारखानों की स्थिति का जायजा लिया था। जेजी ईरानी के दौरे में विपिनविहारी सिन्हा भी उनके साथ थे। देश की अग्रणी कारपोरेट कंपनी टिस्को के प्रबंध निदेशक के डालमियानगर दौरे का अर्थ यही था कि कहीं-न-कहीं डालमियानगर को चला लेने का बीज और आकांक्षा मौजूद थी। मगर फिक्की (भारतीय उद्योगों के संगठन) के अध्यक्ष और देश के सबसे बड़े समाचारपत्र समूह के प्रमुख रहे अशोक जैन के प्रभाव के कारण देश के किसी उद्योगपति या औद्योगिक घराने द्वारा रोहतास इंडस्ट्रीज के कारखानों को चला पाने की आधिकारिक इच्छा सामने नहीं आ सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को सौंप दिया रोहतास उद्योगसमूह प्रकरण
उधर, सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मीनारायण मित्तल के 60 करोड़ रुपये में कारखाना परिसर सौंपे जाने और कारखानों को चलाने के लिए विभिन्न चरणों में किए जाने वाले निवेश के प्रस्ताव को पर्याप्त या संतोषपूर्ण नहीं होने के कारण नामंजूर कर दिया। तब लक्ष्मीनारायण मित्तल के प्रस्ताव को बिहार सरकार का पूर्ण समर्थन प्राप्त नहीं हो सका था और राज्य सरकार के साथ केेंद्र का भी रवैया उदासीनता का था। उस समय केेंद्र में पमुलापर्टि वेंकटा नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री और राज्य में लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे। इस तरह सुप्रीम कोर्ट में रोहतास इंडस्ट्रीज के मामले के 10 सालों तक चलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर 1995 को इस प्रकरण को पटना उच्च न्यायालय को सौंप दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कंपनी जज (उच्च न्यायालय) से रोहतास इंडस्ट्रीज के समापन (लिक्विडेशन) की कार्यवाही को आगे बढ़ाने को कहा था, पर हाई कोर्ट से यह भी इच्छा जाहिर की थी कि इस उद्योगसमूह को चालू करने का एक संभव अवसर की तलाश की जाए।
कारखानों को चलाने के लिए निकाला गया ग्लोबल टेंडर
उच्चतम न्यायालय की भावना के अनुरूप हाई कोर्ट ने रोहतास उद्योगसमूह को खरीदने या सौंपने से संबंधित एक वैश्विक निविदा (ग्लोबल टेंंडर) समाचारपत्रों में प्रकाशित कराया। इस टेंडर के आधार पर स्टेर्लिट ग्रुप आफ इंडस्ट्रीज (इंडिया) लिमिटेड का एक हजार करोड़ रुपये का विभिन्न चरणों में निवेश कर डालमियानगर के कारखानों को चलाने और उनका उन्नयन करने का प्रस्ताव सामने आया। इस कंपनी के मुंबई स्थित परियोजना प्रबंधक संदीप गोखले ने बिहार सरकार के पास अपना विस्तृत प्रस्ताव 12 अगस्त 1996 को प्रस्तुत किया, जिसमें 41 करोड़ रुपये में कारखानों को लेने और कर्मचारियों सहित अन्य देनदारों का भुगतान करना भी शामिल था। इस प्रस्ताव के परिप्रेक्ष्य में 14 मार्च 1997 को बिहार सरकार के औद्योगिक विकास विभाग की ओर से उद्योग भवन के कमरा संख्या 152 में इस मुद्दे पर राज्य सरकार के अधिकारियों, रोहतास इंडस्ट्रीज पर बकाए के दावेदार सरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि अधिकारियों, डालमियानगर के श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों की संभवत: अंतिम बैठक हुई थी। उस बैठक में डालमियानगर से रोहतास इंडस्ट्रीज वर्कर्स कोआपरेटिव सोसायटी के सिद्धनाथ सिंह, मजदूर पंचायत के प्रभुनाथ पांडेय, मजदूर सेवा संघ के डीके राम, समन्वय समिति के वंशलोचन सिंह, रोहतास इंडस्ट्रीज कर्मचारी के आरपी वर्मा व गिरिजानंदन सिंह, मजदूर यूनियन के हरिकृष्ण मांझी, कर्मचारी संघ के रामेश्वर सिंह और मजदूर संघ के नागेश्वर भी शामिल हुए थे।
1997 में हाई कोर्ट ने दिया वाइंडिग-अप का फैसला
राज्य सरकार के स्तर पर मंथन और विचार-विमर्श के आलोक में 23 मई 1997 को पटना उच्च न्यायालय ने स्टेर्लिट इंडस्ट्रीज के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। संभवत: पटना उच्च न्यायालय के कंपनी जज ने अपना यह फैसला इस आधार पर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले कारखानों को 60 करोड़ रुपये में सौंपने का प्रस्ताव आ चुका था, जिसे भी खारिज कर दिया गया था। अंतत: 12 सालों तक चले न्यायिक जद्दोजहद के बाद कंपनी जज ने डालमियानगर के रोहतास उद्योगसमूह व इसकी सहयोगी कंपनियों को समापन में डाल देने (वाइंडिंग अप करने) और इसके कारखानों को कबाड़ के भाव बेचने व इसकी संपत्तियों के बाजार भाव के हिसाब से निष्पादित करने का आदेश दे दिया।
फिर भी जनमत बनाने का हुआ प्रयास
न्यायालय के स्तर पर रोहतास उद्योगसमूह के चलाने के मामले के पूरी तरह विफल हो जाने बाद रोहतास इंडस्ट्रीज के चंद कर्मचारियों और समाजसेवियों ने अपने अत्यंत सीमित व्यक्तिगत संसाधन से जनमत बनाने और जनजागरण का गैर राजनीतिक कार्यक्रम आरंभ किया, जिसका नेतृत्व रोहतास इंडस्ट्रीज में वरिष्ठ लेखाधिकारी रहे एआर वर्मा ने किया। इस संघर्ष को संगठित तौर पर आगे बढ़ाने के लिए रोहतास उद्योगसमूह कर्मचारी संघर्ष समिति का गठन कर इसका संयोजक एआर वर्मा को बनाया गया। संघर्ष समिति के तत्वावधान में 20 कर्मचारियों ने 20 अक्टूबर 1998 को डालमियानगर रेलचक्का जाम आंदोलन में मारे गए नवयुवकों (द्वारिका प्रसाद व दुखी राम) की स्मृति में 24 घंटे का सामूहिक उपवास रख जनमत निर्माण के अभियान की शुरुआत की। जनमत निर्माण के लिए जारी उपवास को समर्थन देने के लिए शहर और क्षेत्र के बुद्धिजीवियों, चिकित्सकों, साहित्यकारों-पत्रकारों, राजनीतिज्ञों, कारोबारियों से नैतिक सक्रिय सहयोग का आह्वान किया गया। प्रसिद्ध वरिष्ठ चिकित्सक डा. सुनील बोस, सांसद वशिष्ठनारायण सिंह, सांसद सुशील सिंह, वरिष्ठ समाजवादी समाजसेवी विश्वनाथ प्रसाद सरावगी आदि जैसे शख्सियतों ने उपवास-स्थल पर पहुंच कर रोहतास उद्योगसमूह के कर्मचारियो के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त की।
सांसदों का ध्यान आकर्षित करने दिल्ली पहुंचा डालमियानगर का दल
रोहतास इंडस्ट्रीज को चलाने के लिए प्रमोटर की तलाश के प्रति बिहार के विधायकों व देश के सांसदों का ध्यान आकर्षित करने का कार्यक्रम संघर्ष समिति ने चलाया, जिसके अंतर्गत दिसम्बर 1998 में एक प्रतिनिधि दल ने एआर वर्मा के नेतृत्व में दिल्ली की यात्रा की। इस दल में स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण किसलय (सोनमाटी के समूह संपादक) और स्थानीय वरिष्ठ राजनीतिक कार्यकर्ता अशोक पासवान (अभी लोजपा नेता) भी शामिल थे। इस दल की ओर से दिल्ली में लोकसभा के स्थानीय (काराकाट संसदीय क्षेत्र) सांसद वशिष्ठनारायण सिंह (अभी जदूय के प्रदेश अध्यक्ष), राज्यसभा सांसद व प्रसिद्ध अभिनेत्री शबाना आजमी, सांसद संजय निरूपम (अभी कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता), सांसद सुशील सिंह आदि के आवास पर रोहतास इंडस्ट्रीज के बारे में जानकारी देते हुए उन्हें ज्ञापन सौंपा गया।
सांसद संजय निरूपम ने तो अपने आवास पर नाश्ते के वक्त आमंत्रित विस्तृत चर्चा की और मुंबई में अपने संपर्क के उद्योगपतियों-कारोबारियों से रोहतास इंडस्ट्रीज को चलाने के लिए वार्ता करने का आश्वासन दिया था।
बाद में रोहतास इंडस्ट्रीज पर आश्रित अपने प्रिंटिंग प्रेस (एसएसआई यूनिट) के बंद हो जाने से वेरोजग।र और पूंजी के भी रोहतास इंडस्ट्रीज में डूब जाने के कारण पारिवारिक रोजी-रोटी की जिम्मेदारी को लेकर अखबार (दैनिक जागरण) की नौकरी के लिए कृष्ण किसलय के देहरादून (उत्तराखंड) चले जाने और फिर एआर वर्मा के भी कुछ दिनों के लिए डालमियानगर छोड़कर दूसरी जगह नौकरी करनेे के कारण जनमत जागरण का अभियान समाप्त हो गया।
यह समाचारकथा (तिल-तिल मरने की दास्तां) अभी जारी रहेगी।