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पृथ्वी के दुर्लभतम आदिवासियों पर कोरोना ने फैलाए डरावने डैने
-कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटीडाटकाम)
सभ्य दुनिया की महामारियों से मुक्त मानी जानी वाली भारत सहित कई देशों में पृथ्वी की दुर्लभतम प्राचीनतम जनजातियों पर भी कोविड-19 ने अपने खतरनाक डैने पसार दिए हैं। विश्व की अति आदिम आदिवासी समुदाय के निवास वाले हिंद महासागर में अवस्थित अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के वैश्विक महामारी कोरोना के चपेट में आना दुनियाभर के लिए चिंता का विषय बन गया है। चिंता इसलिए कि विलुप्तप्राय प्राचीनतम जनजातियां आधुनिक आदमी के लिए नृवंश-भाषा-पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन का विषय हैं और अंडमान के आदिम आदिवासी तो समूचे एशियावासियों के पुरखे हैं। अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के आधा दर्जन द्वीपों पर पृथ्वी से विलुप्त हो जाने की कगार पर खड़ी प्रचीनतम जनजातियां जंगल के भीतर प्राकृतिक अवस्था (नंग-धड़ंग) में ही रहकर वन्यजीवन गुजारती हैं। सामान्य जनजीवन से दूर रहने वाली इन दुर्लभ जनजातियों को पृथ्वी पर बचाए रखने का उपक्रम किया जाता रहा है। इसीलिए उनके वास वाले संरक्षित जंगल क्षेत्रों में देश-दुनिया के किसी बाहरी व्यक्ति के प्रवेश की अनुमति नहीं है।
572 में 37 द्वीपों पर आदमी का वास, पांच पर अति प्राचीन आदिवासी :
बंगाल की खाड़ी के दक्षिण 572 छोटे-बड़े द्वीपों वाले अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के 37 द्वीपों पर आदमी का निवास है, जिनमें पांच द्वीप पर अति प्राचीन आदिवासी समुदाय ग्रेटअंडमानी, ओंग, शोम्पैन, जारवा और सेन्टीनेलीज अलग-अलग रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, द्वीपसमूह के दक्षिण में संरक्षित वन क्षेत्र में ग्रेटअंडमानी जनजाति के 53, जारवा जनजाति के 470 और ओंग जनजाति के 115 लोग बचे हुए हैं। सुदूर घने जंगल में आक्रामक सेन्टीनेलीज और शौम्पैन जनजातियों की जनसंख्या का ठीक-ठीक पता नहीं है। वर्ष 1850 में अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के कई द्वीपों को ब्रिटेन ने उपनिवेश बनाया था और दो दशक बाद 1870 में अंडमान-निकोबार ट्रंक रोड का निर्माण किया था। घने जंगल के भीतर बारातांग से दिगलीपुर तक करीब चार सौ गांवों से गुजरने वाली ट्रंक रोड के निर्माण और वनोत्पाद दोहन के लिए सोन नद अंचल के झारखंड और बिहार के कैमूर पर्वत से भी आदिवासी श्रमिकों को ले जाया गया था, जो द्वीपसमूह के मूल प्राचीन बाशिंदों से अलग वहीं बस गए।
50 हजार साल पुराने बाशिंदे हैं अंडमान के आदिम आदिवासी :
अंडमान की प्राचीनतम जनजातियों पर शोध-संरक्षण का कार्य करने वाली लंदन की संस्था सर्वाइवल इंटरनेशनल के अनुसार, 19वीं सदी में 1850 से पहले ग्रेटअंडमानी भाषियों की अनुमानित-आकलित संख्या पांच हजार और 18वीं सदी में दस हजार थी। मगर उत्तरजीविता (फर्टिलिटी) के कमजोर हो जाने और बाहरी लोगों के संपर्क में आने से नई बीमारियों के कारण भी इनकी संख्या घटती गई। ग्रेटअंडमानी भाषासमूह की बोली (बो) बोलने वाले आखिरी व्यक्ति (85 वर्षीय महिला बोआ सीनियर) की मौत 2010 में हुई। भाषाशास्त्री मानते हैं कि ग्रेटअंडमानी समूह की 10 बोलियां (अब बोलने वाले नहीं होने से 6 लुप्त) संथाली, तमिल और संस्कृत से बहुत-बहुत पुरानी हैं, जिन्हें ये आदिम आदिवासी कम-से-कम 50 हजार सालों से बोलते रहे हैं और जिन बोलियों का सिरा अफ्रीका से जुड़ा रहा है। ब्रिटिश स्कूल आफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकी स्टडीज के लिए ग्रेटअंडमानी पर अंतरराष्ट्रीय शोध करनेवाली भाषाविद पद्मश्री डा. अन्विता अब्बी के अनुसार, 1867 में ग्रेटअंडमानी समूह की बोली बोलने वाली जनजाति के लोगों की संख्या करीब तीन हजार थी।
कोविड-19 से अंडमान-निकोबार में 41 मौत, ग्रेटअंडमानी भी संक्रमित :
अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह के पूर्वी भाग में हुई चिकित्सकीय जांच में 2985 लोग कोविड-19 से संक्रमित पाए गए, जिनमें 41 की मौैत भी हुई। अति प्राचीन जनजातियों से अलग दूसरी सभ्य जनजातियों में कोरोना संक्रमण का पहला मामला जून में चिह्नित हुआ था। जबकि ग्रेटअंडमानी जनजाति में कोरोना संक्रमण का पहला मामला अगस्त के दूसरे पखवारा में तब चिह्नित हुआ, जब स्ट्रेट आइलैंड (द्वीप) के ग्रेटअंडमानी भाषी 53 लोगों का कोविड-19 जांच हुई। स्ट्रेट आइलैंड की जनजाति में अनेक राजधानी पोर्टब्लेयर में अब मजदूरी करने लगे हैं। इन्हें कोरोना से बचाने के लिए जंगल में अलग स्थान पर स्थानांतरित किया गया है। ग्रेटअंडमानी भाषी जनजाति के दो व्यक्ति कोरोना अस्पताल में और दो अन्य केयर सेंटर में भर्ती हैं। अंडमान-निकोबार में कोविड-19 की स्थिति की निगरानी कर रहे डा. अविजित राय के अनुसार, इस द्वीपसमूह के 10 द्वीपों (आइलैंड) पर कोविड-19 का संक्रमण फैला है, जहां कोरोना से लडऩे के लिए 10 केयर सेंटर बनाए गए हैं। दो अस्पतालों और तीन स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों की देखभाल की व्यवस्था है। अंडमान-निकोबार में कोरोना की निगरानी के लिए सरकार ने समुद्र में कई विशेष बोट तैनात किए हैं।
(स्तंभकार सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार के सचिव और वरिष्ठ विज्ञान लेखक हैं। प्रतीकात्मक तस्वीर : गूगल से)
संपर्क : सोनमाटी-प्रेस गली, जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया, पो. डालमियानगर, जिला रोहतास (बिहार) फोन : 9523154607, 8708778136
अतिथि पक्षियों के लिए दो महीने तक हो पेड़ काटने पर प्रतिबंध
आरा (भोजपुर)-सोनमाटी संवाददाता। राजधानी जाने वाली आरा-पटना सड़क के बीच कायमनगर बाजार स्थित सड़क किनारे दशकों से खड़े पर्यावरणरक्षक पेड़ों को बिना पूर्व तैयारी किए बेतरतीब तरीके से काटे जाने से अतिथि प्रवासी पक्षियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। ये अतिथि सारस पक्षी (साइबेरियन क्रेन) दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर वाले बर्फीले हिमालय को पार कर रूस सहित साइबेरिया के अन्य देशों से हर साल कोई पांच हजार किलोमीटर तक का सफर तय कर मई महीने में आते हैं। सारस पक्षियों के जोड़े पसंदीदा कायमनगर के जल-क्षेत्र वाले पेड़ों पर अस्थाई आशियाना बनाते और प्रजनन करते हैं। फिर अपनी नई पीढ़ी के लंबी उड़ान भरने लायक बड़े हो जाने पर उन्हें लेकर अक्टूबर महीने तक अपने मूल देश वापस लौट जाते हैं। अपने शीत देश से हजारों किलोमीटर दूर आकर अनुकूल गर्म इलाकों (बिहार की नदी, नहर, तालाब वाले अंचल) में अपना ठिकाना इसलिए बनाते हैं कि वे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रजनन कर सकेें। इन पक्षियों को आने-जाने के रास्तों का और अपने बसेरा (पेड़) का सही-सही ज्ञान रहता है। इसीलिए अपने पूर्व परिचित पेड़ पर ही पहुंचकर नीड़ का निर्माण करते हैं।
फोरलेन सड़क का निर्माण करने के लिए निर्माता कंपनी द्वारा पेड़ों को निर्ममता से काटे जाने के कारण पक्षियों की मौजूदगी से खुशनुमा गुलजार रहने वाले इलाके का पर्यावरण संकट में है। मेहमान चिडिय़ों का आशियाना (घोंसले) सैकड़ों की संख्या में नष्ट हुए हैं और नहींउड़ सकने वाले उनके अंडे-चूजे दम तोड़ चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण का कार्य करने वाली संस्था पीपुल फार एनीमल्स एंड बर्डस (आरा) का प्रतिनिधि मंडल ने अध्यक्ष पशु-पक्षी प्रेमी दीपक कुमार अकेला के नेतृत्व में कायमनगर पहुंचकर स्थल निरीक्षण किया और बिना योजना पेड़ों को काटने के कृत्य को भ्रूण-हत्या बताया। बताया कि अतिथि प्रवासी पक्षियों (साइबेरियन क्रेन) की विचलित करने वाली दशा यह पर्यावरण संरक्षण के राज्य सरकार के कार्यक्रम जल जीवन हरियाली के भी विरुद्ध है। दीपक कुमार अकेला ने दो महीनों तक पेड़ों को नहीं काटने की मांग की है, ताकि प्रवासी पक्षी अपने मूल देश लौटने के महीने तक सुरक्षित रह सकें। पीपुल फार एनीमल्स एंड बर्डस (आरा) के दल में गोपाल प्रसाद, धीरज कुमार स्वर्णकार, अशोक तिवारी, संजय कुमार, जीतू सोनी के साथ जिला परिषद अध्यक्ष आरती देवी, छात्र नेता कुमुद पटेल, सरपंच अब्दुल कलाम आजाद आदि शामिल थे।
रिपोर्ट : दीपक कुमार अकेला, तस्वीर : पीपुल फार एनीमल्स एंड बर्डस