समकालीन कविता में चेतना व ऊर्जा समाहित रहती है।
पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। फेसबुक पर अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आनलाइन हेलो फेसबुक कविसम्मेलन का आयोजन किया गया l इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने करते हुए कहा कि “समाज की वर्तमान विसंगतियों से दूर एवं यथास्थिति से अनभिज्ञ कविताएं समकालीन नहीं हो सकती, भले वह आज की कविता ही क्यों ना हो? कबीर आज इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि वर्षों पूर्व लिखी गई उनकी कविताएं उस वक्त जितनी जीवंत दिखती थी उतनी ही आज भी! आमजन से जुड़ी हुई वर्तमान विसंगतियों पर प्रहार करती हुई जीवंत कविताएं ही समकालीन हो सकती है! चाहे वह कविता गीत गजल के रुप में लिखी गई हो या फिर छंदमुक्त के रूप में l वर्तमान संदर्भ में कविता का जीवंत होना ही समकालीनता है l ”
सम्मेलन के मुख्य अतिथि खंडवा, मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित कवि डॉ शरद नारायण खरे ने कहा कि “कविता तभी सार्थक मानी जाएगी,जब वह अपने युग के हालातों का बोध कराए।समकालीनता से परिपूर्ण कविता ही सार्थक मानी जाएगी।अपने युग से बेख़बर कविता कदापि भी सार्थक व उपयोगी नहीं मानी जा सकती।वर्तमान के हालातों, विकृतियों,विडम्बनाओं व नकारात्मकताओं को चित्रित करने वाली कविता ही आज के लिए न केवल उपयुक्त मानी जाएगी,बल्कि सराही व स्वीकारी भी जाएगी। कविता में समकालीनता बोध तो प्रतिबिम्बित होना ही चाहिए,अन्यथा कविता निरर्थक-सी जान पड़ती है।वस्तुत: कविता में अपने समय का प्रतिबिम्ब होने से ही कविता में चेतना व ऊर्जा समाहित दृष्टिगोचर होती है।कविता को समकालीनता से रहित कर देने से कविता कविता रह ही नहीं जाती है। ”
जिन कवियों ने आनलाइन कवि सम्मेलन समकालीन कविताएं पढ़ी, उनकी और उनके अलावा नीरज सिंह, रूचि.मधुरेश नारायण, मुरली मधुकर, संतोष मालवीय,दुर्गेश मोहन सुनील कुमार उपाध्याय की भी भागीदारी रही l
फिलहाल यह काफी है कि तुम खुद को बदल लो!,
दुनिया को बदलने में अभी वक्त लगेगा l
(आराधना प्रसाद)
कहानी से बड़ा किरदार होना,
जरूरी है बहुत दमदार होना!
(प्रखर पुंज)
सुनो ठेकेदारों दलालों तुम भी सुनो आपने अपने अनुयायियों की सिसकियां,
यदि कान है तुम्हारे!
(पुष्प रंजन)
एक अदना सा पंछी,
अपनी पूरी शक्ति को समेटे,
छोड़ने को तैयार!
(ऋचा वर्मा)
मन वृंदावन बिन सुन परल बा! (डॉ सुनील कुमार उपाध्याय)
प्यार के मुश्किल सफर में,
हूं अभी हर एक नजर में!
एक अदना सा पंछी,
अपनी पूरी शक्ति को समेटे,
छोड़ने को तैयार!
(ऋचा वर्मा)
मन वृंदावन बिन सुन परल बा!
(डॉ सुनील कुमार उपाध्याय)
प्यार के मुश्किल सफर में,
हूं अभी हर एक नजर में!
(मीना कुमारी परिहार)
सावन की घटा घनघोर,
रिमझिम वर्षा चाहूँ ओर,
सखी वन में नाचे मोर
(राम नारायण यादव)
तमाम उम्र हम तुम्हें भुला सकेंगे क्या ?
(सुनील कुमार)
प्रस्तुति :ऋचा वर्मा (उपाध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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