डेहरी-आन-सोन (रोहतास, बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। बिहार के पूर्व पथ निर्माण मंत्री, डिहरी के विधायक इलियास हुसैन के चुनाव लडऩे से अयोग्य होने के बाद इस विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में महारथी कौन बनेगा? इस सवाल को लेकर तरह-तरह से कयास लगाए जाते रहे हैं? इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे के लिए कई प्रमुख दलों ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। राजद ने इलियास हुसैन के बेटा फिरोज हुसैन को टिकट देने की घोषणा कर दी है। राष्ट्र सेवा दल के अध्यक्ष प्रदीप जोशी ने यहां से चुनाव लडऩे की घोषणा पहले से कर रखी है। इन्तजार एनडीए से है कि यह किस घटक दल के खाते में जाता है और कौन प्रत्याशी घोषित किया जाता है?
अलकतरा घोटाला के कांड (आरसी 2-97) में पूर्व मंत्री इलियास हुसैन सहित सात को पांच-पांच साल की सजा सुनााई गई है। इलियास हुसैन और उनके आप्त सचिव को सितम्बर 2018 में भी अलकतरा घोटाला के दूसरे मामले में चार साल की सजा सुनाई जा चुकी है। सभी रांची (झारखंड) के होटवार जेल में हैं।
साजिश बताने वाले शराब, बालू, पत्थर माफिया
पत्रकार अखिलेश कुमार का कहना है कि आज जो लोग इलियास हुसैन की कोर्ट से मिली सजा को बतौर सफाई साजिश बता रहे हैं, वे बालू, पत्थर, शराब माफिया हैं। इस संबंध में अखिलेश कुमार ने सोशल मीडिया (अपनी फेसबुक वाल) पर लिखा– अलकतरा घोटाला की रिपोर्टिंग करने मैं (अखिलेश कुमार) पथनिर्माण मंत्री इलियास हुसैन के गांव मुंजी (रोहतास) गया था।
इलियास हुसैन के आलीशान मकान में 63 केबीए का जनरेटर लगा था। उन्होंने पड़ोस के गांवों में भी किसानों से भूखंड खरीदे थे। मैंने (अखिलेश कुमार) विवरण और दस्तावेज इक_ा कर डालटनगंज (झारखंड) से प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार को दिया, मगर समाचार प्रकाशित नहीं हुआ। उस समय बिहार-झारखंड दोनों एक थे। तब मैं पटना मेंं सबसे बड़े दैनिक के वरिष्ठ पत्रकार (अब सेवानिवृत्त) से मिला। मुझे उनके द्वारा इलियास हुसैन का नाम लेते हुए प्रलोभन दिया गया। इसके बाद मैंने दस्तावेज दैनिक आर्यावर्त के पत्रकार को दे दिया। आर्यावर्त में मुंजी के नवनिर्मित आलीशान मकान की तस्वीर के साथ पेज-1 पर प्रमुखता से रिपोर्ट छपी थी। (यह घटना 23 साल पहले की है)
यह कैसी राजनीति ?
अखिलेश कुमार ने 19 मार्च 2019 को अपनी फेसबुक वाल पर लिखा है– दोपहर मैं डेहरी विधानसभा क्षेत्र के खपड़ा गांव में बैठा था। दर्जनभर से अधिक राजद कार्यकर्ता एक युवक के साथ पहुंचे। युवक से परिचय कराया गया, यह फिरोज हुसैन हैं मो. इलियास हुसैन के पुत्र। राजनीति में आजकल यही चल रहा है। दल में समर्पित कार्यकर्ताओं के बदले बेटे और परिवार के सदस्यों को राजनीतिक विरासत में जगह दिलाने में सभी दल के नेता शामिल हैं। इलियास हुसैन भी शामिल हो गए तो आश्चर्य नहीं। राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व जिलाध्यक्ष पुराने समाजवादी करीब 80 वर्षीय बुजुर्ग बुचुल सिंह यादव को देखकर मैं उनके पास चला गया। वह मो. हुसैन को चार दशक से मदद करते रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को नाती के उम्र के लड़के के समर्थन में गांव-गांव पीछे घूमते देख सोचने पर मजबूर हो गया कि आखिर देश में कैसी राजनीति हो रही है?
(यहां प्रसारित तस्वीर कोई ढाई दशक पहले इलियास हुसैन के पुश्तैनी गांव मुंजी में बने मकान की है,
जो पत्रिका चर्चित बिहार में प्रकाशित हुई है)
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डिहरी विधानसभा क्षेत्र के जातीय गणित में कायस्थ भी भूमिका में
डिहरी विधानसभा क्षेत्र की नई मतदाता सूची के मुताबिक, दो लाख 88 हजार से अधिक मतदाताओं में सबसे अधिक यादव और उसके बाद कोईरी, राजपूत,भूमिहार जाति के करीब 16-16 हजार मत होने का अनुमान हैं। इस क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की सघन आबादी भी है, जिनमें मोमिन सर्वाधिक हैं। कायस्थ मतदाताओं की संख्या इस क्षेत्र में करीब दस हजार आंकी जाती है, भले ही बिहार में कायस्थों की संख्या प्रतिशत एक से दो के बीच हो। इस जाति का मत शहर (डेहरी-आन-सोन) में अधिक सघन है। यह मत-समूह किसी प्रत्याशी की ओर झुका तो कई समीकरण बदल सकते हैं।
1951 से 2015 तक कौन रहा जनप्रतिनिधि ?
1951 में बिहार के प्रसिद्ध श्रमिक नेता सोशलिस्ट पार्टी के बसावन सिंह और इसके बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बसावन सिंह ही डिहरी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। इस क्षेत्र से 1962, 1967 में कांग्रेस के देश प्रसिद्ध मोमिन नेता अब्दुल क्यूम अंसारी और 1969 में कांग्रेस के रियासत करीम विधायक बने। 1977 में फिर बसावन सिंह बतौर जनता पार्टी उम्मीदवार विजयी हुए। 1980 में जनता पार्टी (सेक्यू.) के मोहम्मद इलियास हुसैन चुने गए। अगली बार 1985 में कांगेस के खालिद अनवर अंसारी विधायक बने। 1990 में फिर इलियास हुसैन जनता दल के टिकट पर चुने गए और 2005 तक राजद के विधायक रहे। 2005 में ही दूसरी बार अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में राष्ट्र सेवा दल के स्वतंत्र उम्मीदवार प्रदीप कुमार जोशी और 2010 में इसी दल की ज्योति रश्मि विधायक चुनी गईं। 2015 में फिर इलियास हुसैन की वापसी हुई, मगर वह अलकतरा घोटाला में जेल चले गए। 2015 में इलियास हुसैन (राजद) को 49 हजार 402, जितेन्द्र कुमार उर्फ रिंकू सोनी (रालोसपा) को 45 हजार 504, प्रदीप जोशी (राष्ट्र सेवा दल) को 29 हजार 541, अशोक कुमार सिंह (भाकपा-माले) को २१९७, संतोष पांडेय (बसपा) को 2154, ब्रजमोहन सिंह (भाकपा) को 1723, उपेंद्र सिंह शक्ति (सपा) को 1529 मत मिले थे।
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हम भी लड़ेंगे विधान सभा का उपचुनाव !
चुनाव का कवरेज पत्रकारिता है और उम्मीदवार होना राजनीति है। मुख्यमंत्री चैम्बर में बैठा हुआ पत्रकार पत्रकारिता करता है और राजनीति भी। हम पत्रकारिता को विधानसभा के गलियारे से वोटरों के दालान में, खलिहान में, मिठाई और पान की दुकान में ले जाना चाहते हैं। इसलिए हम डिहरी विधानसभा क्षेत्र का चुनाव लड़ेंगे, यह जानते हुए भी कि हार सुनिश्चित है। चुनाव में हार-जीत लगी रहती है। मधेपुरा में लालू यादव, बाढ़ में नीतीश कुमार, हाजीपुर में रामविलास पासवान भी चुनाव हार चुके हैं। यूपी में भी योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे से खाली हुई गोरखपुर सीट भाजपा हार जाती है। डिहरी में हम हार ही जाएंगे तो भला कौन सी आफत आ जाएगी? हम सिर्फ यादव, राजपूत, भूमिहार और कुशवाहा जाति से वोट मांगने जाएंगे, जो हमारी ‘चारपाईÓ के स्तंभ होंगी। हालांकि यह चारों जातियां पार्टियों के बंधुआ वोटर रही हैं। हमारी लड़ाई इस बंधुआवाद के खिलाफ भी होगी। देश में पार्टियों के लिए सीट, उम्मीदवार का चयन जाति के आधार पर होता है। मगर चुनाव आयोग कहता है कि जाति के आधार पर वोट नहीं मांग सकते। इसलिए हमने टारगेट जातियों के लिए ‘चारपाईÓ शब्द गढ़ लिया है, ताकि जाति के लांछन (आरोप) से बच सकें।
चुनाव हम लड़ेंगे ही हारने के लिए। लेकिन हम हार ही जाएंगे, इसकी कोई गारंटी तो है नहीं। हमारी चारपाई मजबूती से खड़ी हो गई तो कई महारथियों की ‘खटिया खड़ीÓ हो जाएगी। यादवों की लड़ाई भूमिहार-राजपूत से जमीन की नहीं, सत्ता और स्वाभिमान की रही है। इसमें कुशवाहा भी साथ खड़े हो जाएं तो सत्ता और स्वाभिमान दोनों ही अपना। चुनाव प्रचार के लिए मुझे मतदान होने के दिन तक समय देना है। ओबरा विधानसभा क्षेत्र के डिहरा गांव (लख) से डिहरी (डेहरी-आन-सोन) की दूरी 15 किलोमीटर है। घर से खाकर प्रचार के लिए निकलिए और रात में वापस घर। हम तो डिहरी विधानसभा क्षेत्र का कई चक्कर लगा चुके हैं। बचपन में सिनेमा देखने से लेकर ट्रेन पकडऩे तक के लिए डिहरी से नाता रहा है। चुनाव जीत गए तो सदन में बैठेंगे और हार गए तो सदन की प्रेस-दीर्घा में। मुखिया का चुनाव लड़कर अनुभव की छोटी पुस्तक लिखी थी। विधायकी का चुनाव लड़कर अनुभव की दूसरी थोड़ी बड़ी पुस्तक लिख डालेंगे।
-वीरेंद्र यादव, पत्रकार 9199910924