सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है   Click to listen highlighted text! सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है
राज्यविचारसमाचारसोन अंचल

संगोष्ठी : दोतरफा चुनौतियों के दबाव में हिंदी पत्रकारिता

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। न्यू मीडिया ने स्थापित मीडिया के सामने नई चुनौती ही नहीं पेश की है बल्कि परिवर्तन की नई लकीर भी खींच दी है। जाहिर है कि हिंदी पत्रकारिता के सामने भी आंतरिक और बाह्य दोतरफा दबाव है, जिससे वर्तमान में जूझने और भविष्य में रूपांतरित होने की बड़ी चुनौती है। चुनौतियों के दबावों के बीच गुजरी दो सदियों में हिन्दी पत्रकारिता बेहतर रूप में खड़ी हुई है। ये विचार गोपालनारायण सिंह विश्वविद्यालय (जीएनएसयू) के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की ओर से विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित संगोष्ठी में विभिन्न विद्वान वक्ताओं ने व्यक्त किए। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए जीएनएसयू के कुलपति प्रो. (डा.) एमएल वर्मा ने 1826 में साप्ताहिक उदन्त मार्तण्ड से हिंदी पत्रकारिता की दो सदी की यात्रा पर प्रकाश डाला।

कायम है हिन्दी पत्रकारिता की भरोसेमंद साख
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता शांति प्रसाद जैन कालेज के प्राचार्य एवं अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन के महासिचव डा. गुरूचरण सिंह ने विभिन्न ऐतिहासिक उदाहरणों और तात्विक उपमाओं के साथ सभ्यता के आरंभ से ही मीडिया के उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने 19वीं सदी में सन् संतावन के भारतीय स्वाधीनता संग्राम में रोहतास जिला के योगदान को रेखांकित करते हुए इसके बाद पैदा हुए रोहतास जिला के प्रथम कवि-पत्रकार के रूप में इतिहास में दर्ज भवानीदयाल संन्यासी के महात्मा गांधी के साथ दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के लिए और भारत में स्वाधीनता संग्राम में उनके लेखन-पत्रकारिता के अप्रतिम योगदान की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज भी हिन्दी पत्रकारिता के भरोसेमंद बने होने की साख बहुत हद तक कायम है और इस साख के विस्तार को आंचलिक पत्रकारों के श्रम-पसीने से भी सींचा गया है। मगर अफसोस नींव के इन पत्थरों को समर्थ मीडिया हाउस से भी वांछित समुचित पारिश्रमिक नहीं मिलता।

मिशनरी भावना तिरोहित, पूंजी न्यस्त अर्थ ने ली जगह
सोनमाटी के संपादक एवं वरिष्ठ लेखक-स्तंभकार कृष्ण किसलय ने बताया कि मीडिया अर्थात संप्रेषण माध्यम का आरंभ तो तभी हो गया था, जब आदमी ने गुफाओं में रहते हुए सोचना शुरू किया और सोच को प्रतिबिंबत करने वाले गुफाचित्र बनाएं। बताया कि संप्रेषण के एक सशक्त माध्यम के रूप में रंगमंच हजारों सालों तक स्थापित मीडिया बना रहा। पांच हजार साल से भी पहले से मंचित किया जाने वाला भस्मासुर वध नाटक भारतीय भूभाग का प्रथम नाटक है, जो कालांतर में धार्मिक आख्यान के रूप में परिवर्तित हो गया। संयोग से आदमी के संप्रेषण माध्यम (मीडिया) के इन दोनों ही रूपों (सीमित और विस्तृत) के प्रमाण रोहतास जिला के कैमूर पर्वत की गुफाओं में मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि देश की आजादी के लिए आरंभिक संघर्ष करने वालों में और यहां तक की इस संघर्ष को अभियान बनाने वाली कांग्रेस पार्टी की स्थापना करने वालों में अधिसंख्य पत्रकार ही थे। 1947 तक भारतीय पत्रकारिता का मिशन देश की आजादी था, जिसे पाने के लिए हिंदी के पत्रों-पत्रकारों के एक बड़े हिस्से ने अपने को होम किया। देश को आजादी मिलने के बाद पत्रकारिता की पूर्ववर्ती मिशनरी भावना तिरोहित हो गई और पूंजी निवेश से विराट आकार ग्रहण करने वाली पत्रकारिता के न्यस्त अर्थ ने उसकी जगह ले ली। 20वीं सदी में ही बाजार के गिरफ्त में चली जाने वाली पत्रकारिता या मीडिया के समक्ष 21वीं सदी में तो इंटरनेट आधारित न्यू मीडिया ने नई चुनौती उपस्थित कर दी है।

न्यूज मीडिया को रोज लडऩा होता है जीता जाने वाला युद्ध 
दैनिक भास्कर के रोहतास जिला ब्यूरो प्रमुख एवं वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि आज पत्रकारिता पूरी तरह बाजार के दबाव में है और उसके समक्ष सदियों की विश्वसनीयता को बनाए रखने की चुनौती दरपेश है। उन्होंने हिंदी के प्रथम समाचारपत्र उदन्त मार्तण्ड के लघु आकार के बावजूद असमय काल-कवलित हो जाने का जिक्र करते हुए कहा कि आज बड़े आकार को संभालना, उसके स्वरूप को अपने मानक रूप में बनाए रखना बड़े पराक्रम का काम है, जिससे मीडिया टीम को आंचलिक स्तर तक भी रोज जूझना पड़ता है। बाजार के दबाव और कन्टेंट के भरोसे की साख का बेहतर संतुलन बनाए रखने के लिए न्यूज मीडिया को रोज जीता जाने वाला युद्ध लडऩा होता है।
संगोष्ठी का संचालन जीएनएसयू के जनसंपर्क अधिकारी एवं वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्रनारायण सिंह ने किया। अंत में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रभारी डा. अमित मिश्रा ने धन्यवाद-ज्ञापन किया। संगोष्ठी में विशेष रूप से उपस्थित जीएनएसयू के कुलसचिव डा. आरएस जायसवाल, नारायण चिकित्सा महाविद्यालय (एनएमसीएच) के प्राचार्य डा. एसएन सिन्हा, जीएनएसयू के परीक्षा नियंत्रक डा. कुमार आलोक प्रताप, प्रबंधन संस्थान के डीन डा. आलोक कुमार, एनएमसीएच के महाप्रबंधक उपेंद्र सिंह के साथ विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अध्यापक  भी मौजूद थे।

तस्वीर 1.  बायें से दायें डा. आलोक कुमार, डा. आरएस जायसवाल, डा. गुरूचरण सिंह, डा. एमएल वर्मा, कृष्ण किसलय, नरेंद्र कुमार सिंह

तस्वीर 2. उपस्थित अतिथि श्रोता

(रिपोर्ट, तस्वीर : भूपेंद्रनारायण सिंह, पीआरओ, जीएनएसयू)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Click to listen highlighted text!