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मृत्यु-पूर्व पहले पद छोड़ा, फिर छोड़ी लालू की पार्टी
कृष्ण किसलय (संपादक, सोनमाटी)
पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. रघुवंश प्रसाद सिंह का दिल्ली एम्स में 12-13 सितम्बर की रात निधन होना पूरे बिहार को मर्माहत करने वाली घटना है। उनकी पहचान बिहार के कद्दावर, स्पष्ट वक्ता, सादगीपूर्ण समाजवादी नेता के रूप में थी और उनकी इज्जत सभी राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता करते थे। 74 वर्षीय डा. रघुवंश प्रसाद सिंह पांच बार लोकसभा सदस्य, बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों के सदस्य, विधान परिषद के सभापति और राज्य, केन्द्र सरकारों में मंत्री रहे। बेदाग छवि की बदौलत एक दशक से किसी पद पर नहीं होने के बावजूद बिहार के राजनीतिज्ञों में उनका कद ऊंचा था। ईमानदारी ऐसी कि लगातार विधायक, राज्य सरकार में मंत्री और सांसद, केेंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद अपने निर्वाचन क्षेत्रों के सीमामढ़ी या वैशाली जिलों में अपने लिए कोई स्थाई मकान नहीं बनाया, किराये के मकान में ही उनका चुनावी आशियाना सजता रहा। वह 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सचिव बने थे। 1977-79 में बिहार के ऊर्जा मंत्री रहे। इसके बाद लोकदल के अध्यक्ष बने। 1985-90 में लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष भी रहे। डा. रघुवंश प्रसाद सिंह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए-एक) की केेंद्रीय सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री थे, तब ग्रामीणों को 100 दिन रोजगार देने वाला मनरेगा कानून लागू हुआ था। गांवों के गरीब मजदूरों की जिंदगी को न्यूनतम गारंटी की आर्थिक ऊर्जा से लैस करने वाली और गांव से पलायन रोकने वाली दुनियाभर में चर्चित ऐतिहासिक मनरेगा कानून का असली शिल्पकार उन्हें ही माना जाता है।
ऐसे थे समाजवादी डा. रघुवंश प्रसाद सिंह
सीतामढ़ी के गोयनका कालेज में गणित के प्राध्यापक रहे दिग्गज समाजवादी नेता डा. रघुवंश प्रसाद सिंह 1974 के छात्र आंदोलन में पहली बार गिरफ्तार हुए थे। पुलिस रिकार्ड में फरार चल रहे डा. रघुवंश प्रसाद सिंह को कालेज में योगदान करने के लिए कालेज प्रबंधन ने कहा। तब कालेज पहुंचकर उन्होंने योगदान नहींकिया, क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करना तो समर्पण करने जैसा ही है। सीतामढ़ी के विधायक महंत श्यामसुंदर दास का आवास चौहत्तर के छात्र आंदोलन के संघर्ष का मुख्यालय था। महंत के गांव के छापाखाना से आंदोलन से संबंधित सामग्री छपती-वितरित होती थी, जिसकी जिम्मेदारी रघुवंश प्रसाद सिंह ही संभालते थे। अपने घर, परिवार, पत्नी, बच्चों से अलग रहकर, खाने-रहने-पहनने के ठिकाना से बेपरवाह रहकर वह जयप्रकाश नारायण का संदेश घर-घर पहुंचाने का काम कर रहे थे। उनके समाजवादी चरित्र को जटिल जातीय संरचना वाले बिहार के सियासी चेहरे को बदल देने वाली उस घटना से भी याद किया जाता है कि 1977 में बिहार में मुख्यमंत्री पद के राजपूत बिरादरी के दिग्गज कांग्रेसी सत्येंद्रनारायण सिंह और पिछड़े वर्ग के समाजवादी कर्पूरी ठाकुर की दावेदारी में उन्होंने राजपूत होकर भी कर्पूरी ठाकुर के पक्ष में वोट दिया था।
मुख्यमंत्री से तीन मांग, फेसबुक पर भी पोस्ट
डा. रघुवंश प्रसाद सिंह ने लालू प्रसाद यादव को चि_ी लिखकर राजद से इस्तीफा देने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर तीन मांगें रखीं और चिट्ठी को फेसबुक पर भी पोस्ट कर मुख्यमंत्री से मांगों को पूरा करने का आग्रह किया। उनकी पहली मांग थी कि विश्व की प्रथम गणतंत्र-भूमि वैशाली में 26 जनवरी को मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रध्वज फहराने की परिपाटी बने, जैसाकि वर्ष 2000 से पहले राजधानी पटना के बजाय रांची जाकर मुख्यमंत्री झंडोत्तोलन करते थे। उनकी दूसरी मांग अफगानिस्तान के काबुल संग्रहालय में रखे हुए महात्मा बुद्ध के भीक्षा-पात्र को मंगवाकर वैशाली के निर्माणाधीन बौद्ध संग्रहालय में रखा जाए। इस मांग के क्रम में उनका सुझाव था कि पटना के गांधी सेतु से हाजीपुर के बीच कहींभी एक तोरणद्वार बने, जिस पर लिखा हो- विश्व का प्रथम गणतंत्र वैशाली। बौद्ध स्थल वैशाली परिसर के तालाबों को बिहार सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम (जल जीवन हरियाली) से आच्छादित किया जाए। उनकी तीसरी मांग थी कि मनरेगा कानून में आम किसानों की जमीन पर भी काम करने का संशोधन अध्यादेश बिहार विधानसभा चुनाव की आचार-संहिता लागू होने से पहले लाया जाए।
मुश्किल वक्त में भी लालू के साथ मगर…
वह मुश्किल वक्त में भी राजद, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव से दूर नहीं हुए और तीन दशक से अधिक समय तक लालू प्रसाद यादव के प्रबल राजनीतिक सहयोगी बने रहे। जबकि राजद के श्याम रजक, शिवानंद तिवारी सहित कई वरिष्ठ नेता 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में राजद की हार के बाद पाला बदलकर नीतीश कुमार के साथ हो गए। राजद के सबसे अधिक पढ़े-लिखे नेता और अगड़ी जाति के होकर भी रघुवंश प्रसाद सिंह राजद की पिछड़ी जाति की राजनीति में मिसफिट नहीं हुए। बेशक हाल के दिनों में वह पार्टी में अपनी उपेक्षा से आहत थे, क्योंकि उन्हें राज्यसभा में भेजने के योग्य भी गया और कमतर राजनीतिक हैसियत वाले राज्यसभा भेजे गए। राजद के बैनर-पोस्टर में लालू, राबड़ी, मीसा भारती, तेजप्रताप और तेजस्वी की तस्वीरों को ही लगातार प्रमुखता देना रघुवंश प्रसाद सिंह को रास नहीं आता था।
इतनी दूर चले गए आप, नि:शब्द हूं…
10 सितम्बर को एम्स, दिल्ली में भर्ती रहते हुए ही उन्होंने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखकर राजद छोडऩे की घोषणा की थी। इससे पहले 23 जून को उन्होंने विवादास्पद छवि के रामा सिंह को राजद में लाए जाने के तेजस्वी यादव के प्रयास पर राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। रामा सिंह दो दशकों से उनके राजनीतिक विरोधी थी और उन्हीं से 2014 में लोकसभा का चुनाव हारे थे। अपनी छवि पर जीवन के अंतिम दिनों में दाग नहीं लगे, शायद इसीलिए मृत्यु-पूर्व पहले राजद का पद छोड़ा और फिर पार्टी छोड़ दी। राजद से इस्तीफा देने वाला पत्र लिखने के बाद लालू प्रसाद यादव का नाम लिए बिना उन्होंने आधा दर्जन अलग-अलग संदर्भ पत्र लिखे और मीडिया को मुहैया कराया। रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन से दुखी लालू प्रसाद यादव ने अपने ट्वीट में कहा है- रघुवंश बाबू, ये आपने क्या किया! मैंने 11 सितम्बर को कहा था कि आप कहीं नहीं जा रहे, लेकिन आप इतनी दूर चले गए, नि:शब्द हूं, दु:खी हूं।
हसनपुर घाट पर अंतिम संस्कार
रघुवंश नारायण सिंह के पार्थिव शरीर को दिल्ली से 13 सितम्बर की देर शाम करीब पौने आठ बजे पटना के विधानमंडल परिसर पहुंचा, जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को उनके कौटिल्यनगर स्थित आवास पर भी रखा गया, जहां लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। 14 सितम्बर को वैशाली जिला स्थित उनके पैतृक गांव शाहपुर से 15 किलोमीटर दूर हसनपुर घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। वह अपने पीछे अपने दो पुत्र और एक पुत्री छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी किरण सिंह का निधन पहले ही हो चुका है।
देहरादून (दिल्ली कार्यालय) से प्रकाशित चाणक्य मंत्र में पटना (बिहार) से कृष्ण किसलय की रिपोर्ट