मां शब्द ही अतुलनीय है : अरुण दिव्यांश
मां शब्द तो एकवर्णीय शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘माता’। मां शब्द वास्तव में एक असाधारण शब्द है, जो रिश्तों का निर्माण करता है, रिश्तों को जोड़ता है, रिश्ते को पावन बनाता है। हर रिश्तों का मूल यह मां है। एक मां ही सारे रिश्तों को जन्म देती है और हर एक दूसरे को आपस में जोड़ती है। एक मां ही तो होती है जो हर रिश्तों को सुमन की के रूप में प्रेम रूपी धागे में पिरोकर एक माला बना लेती है और उसे गले का हार बनाकर अपने गले में धारण कर लेती है, और हर रिश्ते को अपने कंधे लेकर संग में चलना आरंभ कर देती है। मां तो स्वयं साक्षात सृष्टि है, संस्कार है, प्यार है, शिक्षा है, आदर है, स्नेह है, सम्मान है, आचरण है, सत्कार है, व्यवहार है और संग में मां ही अरमान भी है। वह एक एक करके सबके अरमान पूरी करती है किंतु वह अपने लिए कुछ नहीं मांगती है। कोई धन नहीं, कोई जायदाद नहीं । वह तो केवल अपने नाम का अर्थात ‘मां’ शब्द का मूल्य मांगती है। मां तो परिवार के हर सदस्यों हेतु अपने आपको सदा न्यौछावर करती रहती है। ‘मां’ शब्द तो बहुमूल्य है , इसका मूल्य कौन चुका सकता है ? किंतु वह ‘मां’ शब्द के मूल्य में केवल प्रेम सौहार्द मांगती है, सम्मान मांगती है। एक मां सबकी अरमान पूरे करते चलती है, किंतु सब मिलकर एक मां का अरमान पूरे करने में असमर्थ सा हो जाते हैं। जबकि मां किसी से धन, जायदाद, घर, द्वार कुछ नहीं मांगती। उसे तो बस प्रेम के साथ श्रद्धा, आदर सम्मान से भरे दो शब्द चाहिए। मां बस इतने में ही अति प्रसन्न होती है। जिस प्रकार भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं, वैसे ही मां भी भाव की ही भूखी होती है, क्योंकि मां जन्मदात्री होती है, जो नौ माह तक बच्चे को गर्भ में रखकर और असह्य कष्टों को सहन करके बच्चे को जन्म देती है, शायद इसीलिए मां के समक्ष भगवान भी तुच्छ हो जाते हैं।
यही कारण है कि मां शब्द ही अतुलनीय है, जिसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है।
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