पटना (कार्यालय प्रतिनिधि)। ग़ज़ल को साधना और दूसरी तरफ ग़ज़ल के लहजे में बात करना, दोनों ही आंतरिक चेतना है और इस आंतरिक साधना और वैचारिक अभिव्यक्ति में, लब्ध प्रतिष्ठित शायर अशोक अंजुम द्वारा कही गई ग़ज़लें, सिर्फ समीक्षकों या आलोचकों को नहीं बल्कि आम जन के हृदय में भी रचने बसने की पूरी क्षमता रखती है। इसकी एक ख़ाश वज़ह यह हो सकती है कि अलीगढ़ निवासी अशोक अंजुम को युवा अवस्था से ही पद्म भूषण गोपाल दास नीरज का सानिध्य प्राप्त होता रहा है और आप सभी लोग जानते हैं कि नीरज जी की ग़ज़ल, जिसे वे गीतिका कहा करते थे, उनकी भाषा और शैली इसलिए इतनी लोकप्रिय हुई क्योंकि उनकी ग़ज़लों में हिंदी की प्रधानता रहती थी। उर्दू शब्द का उपयोग उन्होंने किया भी है तो बहुत कम l और फिर ऐसे उर्दू शब्दों का उपयोग किया है, जिसके लिए बार-बार उर्दू हिंदी डिक्शनरी देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। हर ग़ज़ल के प्रकाशित होने के साथ-साथ उसके नीचे उर्दू शब्दों का हिंदी अर्थ, या मंच पर ग़ज़ल का पाठ करते समय, उर्दू शब्द का हिंदी अर्थ भी बतलाने की ज़रूरत बहुत कम पड़ी। क्योंकि उनकी उर्दू शब्दावली आम लोगों के बोलचाल की भाषा में शामिल थे।अशोक अंजुम की ग़ज़लों में भी यही विशेषता देखने को मिलती है। जब वे अपने अंदाज में बयां करते हैं कि -खाना- पीना, हंसी-ठिठोली, सारा कारोबार अलग !जाने क्या-क्या कर देती है आँगन की दीवार अलग !सारे भाई, मां-बापू भी कहने को संग रहते हैं यूं तो सारे ही अपने हैं लेकिन है परिवार अलग! अपनी ग़ज़लों में कितनी सहजता से अशोक अंजुम बड़ी-बड़ी बातें कह जाते हैं, जितनी बड़ी-बड़ी बातें वे अपने दोहे अपनी गीतिका आदि में भी कहते हुए नजर आते हैं। काव्य की विविध विधाओं पर उनकी साधना को देखकर लगता है, अशोक अंजुम काव्य विधा के संपूर्ण कवि है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया । अशोक अंजुम की नवीन पुस्तक ‘ ग़ज़लकार अशोक अंजुम ‘ पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि अशोक अंजुम की ढेर सारी ग़ज़लें युगबोध से भी जुड़ी हुई है। तभी तो वे अपनी ग़ज़ल के माध्यम से युगबोध की बातें करते हैं, सामाजिक राजनीतिक विसंगतियों पर प्रहार करते हैं,और कहते हैं -थम गए रिश्ते पुराने सीढ़ियां बढ़ती गई,लोग ऊंचे उठ गए और दूरियां बढ़ती गई l
मुख्य अतिथि अशोक अंजुम ने कहा आज के रचनाकार एक दिन में ही साहित्य के आकाश को छू लेना चाहते हैं और बिना मेहनत परिश्रम किये त्वरित रूप से सारे मान सम्मान का लेना चाहते हैं। जबकि साहित्य सृजन एक कठिन तपस्या और साधना है, इन बातों को हमें समझना होगा।
अपने अध्यक्षीय टिप्पणी में चर्चित शायरा आशा शैली ने कहा कि अशोक अंजुम का ग़ज़ल से बहुत पुराना रिश्ता है। शायद पहले मैंने इन्हें प्रयास पत्रिका में पढ़ा था। हमने शैलसूत्र त्रैमासिक 2007 में शुरू की थी और उस समय अशोक अंजुम का नाम ग़ज़ल की ऊँचाइयों पर था। शैलसूत्र के लिए अशोक अंजुम की जो ग़ज़लें हमें मिलीं वे शिल्प और अभिव्यक्ति के स्तर पर उत्तम थीं। यूँ तो मैं इससे पहले भी पढ़ती रही थी और इनकी ग़ज़ल मेरी नज़र में थी फिर भी शैलसूत्र के माध्यम से इनके रचना कर्म से गहरा परिचय हुआ। आज मंच पर अंजुम को और भी अच्छे से सुना तो लगा कि जितना मैं जानती थी वह बहुत कम है। इनकी सरल भाषा में कही गई ग़ज़ल अपने आप में परिपूर्ण है।और सर्व ग्राह्य है। वैसे देखा जाए तो आज के समय में उर्दू के कुछ शब्द हिन्दी में ऐसे घुलमिल गये हैं कि उन्हें अलगाया नहीं जा सकता। मैं इस कामयाबी के लिए अशोक अंजुम की लगन और मेहनत को जिम्मेदार मानते हुए इसके लिए इन्हें बधाई देती हूँ और पटल को इस शानदार और जानदार कार्यक्रम के लिए संयोजक सिद्धेश्वर जी को शुभकामना के साथ हार्दिक बधाई देती हूँ। कार्यक्रम का संचालन सिद्धेश्वर एवं इंदु उपाध्याय के किया। सुधा पांडे, निशा भास्कर, अशोक दर्द पूनम, सरला मेहता, डॉ अनुज प्रभात,राज प्रिया रानी, रश्मि लहर,श्रीकांत गुप्ता, अलका गुप्ता आदि l इसके अतिरिक्त विज्ञान व्रत, संतोष मालवीय सुनील कुमार उपाध्याय, नमिता सिंह, जैमिनी विजेंद्र, संतोष मालवीय, संजय श्रीवास्तव आदि ने कविता का पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन डा. अनुज प्रभात ने किया ।
प्रस्तुति : बीना गुप्ता जन संपर्क पदाधिकारी,भारतीय युवा साहित्यकार परिषद , पटना,बिहार,मोबाइल 9 2 3 4 7 6 0 3 6 5Email :[email protected]