बिहार : सियासी समीकरण में बदलाव का आगाज

(प्रतिंबिंब /राजनीतिक विश्लेषण -कृष्ण किसलय)। बिहार उपचुनाव के परिणाम का कई दृष्टियों से विश्लेषण होगा, जहां भाजपा और कांग्रेस के अलावा राजद और जदयू प्रमुख सियासी खिलाड़ी हैं। राजस्थान के उपचुनाव में परिणाम भाजपा के विरुद्ध जा चुका है, पर वहां दो ही सियासी खिलाड़ी भाजपा और कांग्रेस थीं। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से ही यह कयास लगाया जा रहा है कि 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए (नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस) अपने चारों राजनीतिक दलों के बीच सीट बंटवारे के मसले को किस तरह सुलझाएगा? फिलहाल बिहार में एनडीए गठबंधन के दो प्रमुख राजनीतिक दलों लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास पासवान) व राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (उपेन्द्र कुशवाहा) के 9 और भाजपा के 22 सांसद हैं।

कांग्रेस चाहती है बड़े खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत होना
दूसरी ओर, बिहार में कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने को बिहार में एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर मतदाताओं के सामने प्रस्तुत करना चाहती है और कांग्रेस ने सियासी समीकरण के बदलाव का आगाज भी कर दिया है। उसने खुलेआम अपने पूर्ववर्ती नेताओं से कांग्रेस के हाथ को मजबूत करने की अपील कर बिहार में अपने को दुरुस्त करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। कांग्रेस की निगाह उन नेताओं पर है, जो कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों में गए, पर वहां अपने को समायोजित नहीं कर पा रहे हैं या उनके समीकरण नहीं बैठ पा रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व की निगाह अपने पुराने समर्थकों-कार्यकर्ताओं-नेताओं के साथ भाजपा के बागी नेताओं पर भी है। ऐसे नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री, मौजूदा केंद्रीय मंत्री और राज्य मंत्री भी शामिल हैं।

उपेन्द्र कुशवाहा अपने को मानते हैं मुख्यमंत्री का चेहरा
कांग्रेस तारिक अनवर और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं से तालमेल बैठाना चाहती है। इस दिशा में पप्पू यादव का नाम भी चर्चा में है, जिनकी पत्नी रंजीता रंजन कांग्रेस की सांसद व प्रदेश सचिव हैं। माना जा रहा है कि उपेन्द्र कुशवाहा के रिश्ते केेंद्र में एनडी गठबंधन मेंऔर बिहार में नीतिश कुमार से ठीक नहीं है। उपेन्द्र कुशवाहा अपने को बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा मानते हैं। उनके दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के लगभग हर आयोजन में उपेन्द्र कुशवाहा के मुख्यमंत्री होने की बात उठाई जाती है।

इधर, राजद नेता तेजस्वी यादव ने खुलकर उपेन्द्र कुशवाहा को राजद के साथ आने को कहा है, मगर उपेन्द्र कुशवाहा 2009 के लोकसभा चुनाव परिणाम को देखकर ही 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाबत फैसला लेंगे। फिलहाल उपेन्द्र कुशवाहा बिहार में राजद के साथ अपना रिश्ता बढ़ा रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन में राजद बिहार में वोट बैंक के लिहाज से लालू प्रसाद के जेल में होने के बावजूद यहं मजबूत स्थिति में दिखती है।
मगर भाजपा स्थापित हुई तो…?
यह तो तय है कि केेंद्र में सरकार भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की बनेगी या फिर कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) की। मगर कांग्रेस इतनी मजबूत नहीं है कि वह बिहार में अपना वर्चस्व बना सके, क्योंकि वह तो यहां खुद बैसाखी पर है। पिछले चुनाव परिणाम से यह राजनीतिक परिदृश्य स्पष्ट हो चुका है कि अगर भाजपा स्थापित हो गई तो क्षेत्रीय दल का वर्चस्व खत्म हो जाएगा।
यह साल सियासी तैयारी का
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा नेतृत्व वाली केेंद्र सरकार के आक्रामक प्रचार रणनीति का सामना करने के लिए विपक्ष अपने-अपने स्तर पर तैयारी में जुट गया है। इस लिहाज से यह वर्ष सियासी तैयारी का साल है और चुनौती व वर्चस्व के लिए राजनीतिक संघर्ष का वर्ष भी। मोदी-विरोधी वाले विपक्षी दलों में नेतृत्व का चेहरा बनने के लिए होड़ है। सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है। हालांकि यूपीए की चेयरपर्सन अभी सोनिया गांधी हैं और वह सक्रिय भी हंै। उधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दूसरी पंक्ति में बैठने वाली नेता नहीं बनी रहना चाहतीं। ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस की रणनीति मोदी सरकार के स्पष्टविरोध की है। गुजरात चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार के बाद ममता बनर्जी का रवैया कांग्रेस को लेकर बदला हुआ माना जा रहा है।
वामपंथी दलों के संयुक्त मोर्चा की भी चर्चा
बिहार में वामपंथी दलों के संयुक्त मोर्चा को लेकर भी चर्चा जारी है। भाजपा के प्रभाव को राज्य में रोकने के लिए सभी वामपंथी दल लगभग एकमत है। वामपंथी दलों में भाकपा व माकपा के मुकाबले भाकपा (माले) का जनाधार बिहार में ज्यादा है, जहां वह रोहतास, औरंगाबाद, भोजपुर, सीवान में प्रभावशाली है।
राजनीतिक दलों के नए समीकरण व रणनीति
बिहार का विधानसभा चुनाव (2020) दूर है और लोकसभा चुनाव भी थोड़ा दूर (2019 में) है। मगर बिहार में अररिया लोकसभा क्षेत्र और भभुआ व जहानाबाद विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव परिणाम राज्य में राजनीतिक दलों के नए समीकरण व रणनीति तय करेंगे। इसका आगाज जोकीहाट के विधायक सरफराज आलम के जदयू से नाता तोडकऱ राजद में शामिल होने के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के एनडीए छोड़ राजद में और कांग्रेस के नेता अशोक चौधरी के जदूय में जाने से हो भी चुका है। बहरहाल, उप चुनाव में यदि एनडीए की जीत होती है तो वह इसे जनता का भरोसा मिलने के तौर पर पेश करेगा। यदि महागठबंधन की जीत होगी तो इसका श्रेय लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव को मिलेगा और उसके जनाधार के विस्तार के लिए नई ताकत मिलने की बात मानी जाएगी।

– कृष्ण किसलय
समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह
प्रिंट और डिजिटल संस्करण

14.03.2018

पूर्ववर्ती जनप्रतिनिधियों के वारिसों को ही वोट, मगर भाजपा-जदयू का गठबंधन असरकारी नहीं 

बिहार में लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों पर हुए चुनाव के परिणाम को ऊपरी तौर पर यही कहा जा सकता है कि मतदाताओं ने एक तरह से अपने पूर्ववर्ती जनप्रतिनिधियों के वारिसों को ही वोट दिया है। फिर भी यह तो कहा ही जा सकता है कि भाजपा और जदयू का गठबंधन बिहार में असरकारी साबित नहीं हुआ। अररिया लोकसभा सीट पर भी राजद ने भाजपा को हरा कर, भभुआ विधानसभा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस को हरा कर और जहानाबाद विधानसभा सीट पर राजद ने जदयू को हरा कर कब्जा जमाया है। इन सीटों पर क्रमश: राजद, भाजपा और राजद का ही कब्जा था, जिनके नेताओं के निधन से ये सीटें रिक्त हुई थीं।

अररिया लोकसभा क्षेत्र में 59 फीसदी हुए मतदान में राजद प्रत्याशी को 509334 वोट और भाजपा प्रत्याशी को 337346 वोट मिले। लालू प्रसाद की पार्टी राजद के सरफराज आलम ने भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को 61988 वोटों से हराया। अररिया लोकसभा सीट राजद सांसद तस्लीमुद्दीन की मृत्यु के बाद खाली हुई थी। अररिया लोकसभा क्षेत्र में 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम को इस सीट पर राजद ने चुनावी मैदान में उतारा था। उप चुनाव से पहले जदयू के विधायक (निलंबित) रह चुके सरफराज सत्तारूढ़ जदयू को छोड़कर राजद में शामिल हुए थे।


भभुआ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को जीत मिली है, जहां भाजपा उम्मीदवार रिंकीरानी पांडे ने कांग्रेस के शंभू सिंह पटेल को 15 हजार से अधिक अंतर से पराजित किया। यह सीट भाजपा के विधायक आनंदभूषण पांडेय के निधन के बाद खाली हुई थी। जहानाबाद विधानसभा क्षेत्र में राजद के कुमार कृष्ण मोहन ने जदयू के अभिराम वर्मा को बड़ेे अंतर से मात दी है। राजद के विधायक मुंद्रिका सिंह यादव के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। आरजेडी ने यहं 35036 वोटों से जीत दर्ज की है।

-सोनमाटी समाचार (निशांत राज)

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