बिहार की ये महाबली महिलाएं

जागरूकता दूत बन साइकिल से विश्वयात्रा

नई दिल्ली/पटना/सासाराम/संझौली (सोनमाटी समाचार)। बिहार की सविता महतो महिलाओं की सुरक्षा का सामूहिक संदेश लेकर और उनकी विश्वदूत बनकर दिल्ली के इंडिया गेट से साइकिल से अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर निकल चुकी हैं। महिला सुरक्षा और यौन हिंसा के खिलाफ समाज में व्यापक जागरूकता के लिए आगे आई सविता का अगला पड़ाव भारत की सीमा पार नेपाल है और फिर वहां से वह भूटान, पाकिस्तान, श्रीलंका के सफर पर होंगी।

पहले उत्तराखंड और देश भर में जगा चुकी हैं अलख

सारण के पानापुर गांव की मूलवासी (जन्मी) और चौहान महतो व क्रांति देवी की पुत्री सविता अपनी नई अंतरराष्ट्रीय साइकिल यात्रा से पहले बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के लिए भारत 29 राज्यों में 12 हजार किलोमीटर से अधिक का सफर कर चुकी हैं। भारत यात्रा को दौरान इन्होंने स्कूल-कॉलेज में जाकर छात्र-छात्राओं से रूबरू हुई और बेटियों को पढ़ाने-बचाने का संदेश दिया था। और, इससे भी पहले वह अपने नदी संरक्षण अभियान के तहत हरिद्वार से साइकिल यात्रा की शुरू की थी और ऋषिकेश, श्रीनगर, चंबा होते हुए उत्तरकाशी तक की यात्रा की थी।

पिस्तौल वाली दबंग मुखिया आभा

वक्त आने पर पिस्टल का ट्रिगर दबाने की हिम्मत रखने वाली और जनसेवा के लिए प्रतिबद्ध महिला मुखिया आभा देवी अपने पंचायत और अपने इलाके में लोकप्रिय हैं। बिहार में महिला सशक्तिकरण की प्रतिनिधि बनी आभा देवी भले ही 2011 में पति राम अयोध्या शर्मा की मदद से पहली बार मुखिया बनी थीं, मगर बाद में पंचायत के विकास की कमान खुद संभाल ली और अपनी कमर में साड़ी की बांध में पिस्तौल खोंसकर चलने के कारण महिला सुरक्षा की कहावत बन गईं। आभा देवी फुलवारी शरीफ प्रखंड (पटना) के गोनपुरा पंचायत की मुखिया हैं, जो पटना महानगर योजना समिति की सदस्य भी हैं।
दिलेरी से भगाया दंगाइयों को
मुखिया आभा देवी की दिलेरी पिछले वर्ष दो दिसम्बर को देखी गई थी, जब फुलवारी शरीफ में दंगा भड़काने के प्रयास के मद्देनजर असामाजिक तत्वों ने गोनपुरा के कुछ घरों में आग लगा दी। मुखिया आभा देवी ने मौके पर पहुंचकर अपने पिस्टल के बल पर दंगाइयों को वहां से खदेडऩे में सफल रहीं। वास्तव में अगर मुखिया ने दिलेरी नहीं दिखाई होती तो कई घर दंगे की चपेट में होते। गांव में समस्या होने पर वह सुलझाने के लिए अकेली ही निकल पड़ती हैं। इसी क्रम में 2014 में उन पर जानलेवा हमला हुआ था। मगर उस हमले से वह वह भयभीत नहीं हुईं। इसके बाद उन्होंने डीएम से सुरक्षा के लिए पिस्टल के लाइसेंस की मांग की और 2016 में उन्हें हथियार रखने का लाइसेंस मिल गया।
पूर्ण शराबबंदी, विकास, शिक्षा के लिए निरंतर सक्रिय
मुखिया आभा देवी के प्रयास से गोनपुरा में बिहार की पूर्ण शराबबंदी लागू है। उनकी सक्रिय पहल पर गोनपुरा गांव में इंटर कॉलेज, 6 आंगनबाड़ी भवन, मनरेगा भवन का निर्माण हो चुका है। वह अपने ग्राम पंचायत की 16 महादलित लड़कियों को सामाजिक संस्थाओं की मदद से गोनपुरा से बाहर उच्च शिक्षा के लिए भेजने में सफल रही हैं।

स्वच्छ भारत की पहली प्रदेश आईकान मधु

बिहार में रोहतास जिला का संझौली प्रखंड राज्य का पहला व देश का दूसरा खुले में शौच मुक्त ओडीएफ (ओपेन डिफेक्शन फ्री) प्रखंड घोषित हुआ था, जिसके लिए डा. मधु उपाध्याय ने अपनी टीम के साथ अग्रणी नेतृत्व-कार्य किया। डा. मधु उपाध्याय संझौली प्रखंड की उप प्रमुख हैं, जिन्हें ओडीएफ के सफल संचालन के लिए केेंद्र सरकार की ओर से निर्गत सम्मानपत्र प्रखंड विकास अधिकारी गायत्री देवी ने सौंपा है।

पहला ओडीएफ प्रखंड संझौली
बिहार में ओडीएफ अभियान की शुरुआत जून 2016 में हुई थी। रोहतास जिले में डीएम अनिमेष कुमार पराशर के नेतृत्व में तेज गति से काम आगे बढ़ा और संझौली राज्य का पहला ओडीएफ प्रखंड बना। पूरे देश को ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) बनाने के लिए साढ़े तीन साल पहले महात्मा गांधी की जयंती (02 अक्टूबर) पर स्वच्छ भारत अभियान शुरू हुआ था। अभी तक देश की 67 फीसदी आबादी ही ओडीएफ सकी है। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती (2019) तक देश को ओडीएफ बनाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार खुले में शौच के मामले में भारत दुनिया में नंबर-वन देश है। बिहार में तो वास्तव में 40 फीसदी आबादी ही ओडीएफ हो सकी है। राज्य में 1.40 करोड़ शौचालय बनाने का लक्ष्य है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दावा है कि मार्च 2019 तक राज्य के सभी 4555 ग्राम पंचायत ओडीएफ हो जाएंगे।

जागृति अभियान से ही गांवों में प्रतिष्ठा का बना ओडीएफ
डा. मधु उपाध्याय अपने अनुभव के आधार पर यह मानती हैं कि खुले में शौच से मुक्ति के लिए आम लोगों की सोच में बदलाव लाना होगा और सामुदायिक शौचालयों की देख-रेख के लिए कामयाब तंत्र विकसित करना होगा। इसके लिए सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जागृति अभियान लगातार जारी रखना होगा, क्योंकि सदियों की आदत कुछ दिनों की पहल से नहीं छूट सकती। सामुदायिक शौचालयों के उपयोग की निगरानी के लिए जवाबदेह तंत्र के बिना ग्रामीण इलाकों में ओडीएफ की संस्कृति पूरी तरह स्थापित नहीं हो सकती। बहरहाल, इस मामले में जागृति अभियान से ग्रामीण इलाकों के लिए ओडीएफ प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है।

दिव्यांग चेतना की आवाज रीभा

दिव्यांगों के संघर्ष और उनके सफल जीवन की प्रेरणादायक जीवनी की कहानी (दिव्यांगता एक वरदान) लिखकर चर्चित हुईं डा. रीभा तिवारी दिव्यांग चेतना की आवाज बनकर उभरी हैं। मध्य प्रदेश के जबलपुर में साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था वर्तिका की ओर से आयोजित समारोह में एक अप्रैल को इन्हें राष्ट्रीय दिव्यांग चेतना अलंकरण सम्मान प्रदान किया गया। लेखन के साथ महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सक्रिय डा. रीभा तिवारी सासाराम के शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में अध्यापिका हैं।

जबलपुर के समारोह में इन्होंने दिव्यांगता पर आधारित अपने आलेख का पाठ किया और उसके जरिये उन्होंने यह संदेश दिया कि दिव्यांगों को सहानुभूति नहीं, समानुभूति की दरकार है। समाज दिव्यांगों की जिन्दगी में रोशनी बनकर उनके सपनों को साकार करने में मदद कर सकता है। सिर्फ सरकारी सहयोग या सरकार के भरोसे ही दिव्यांगों का भला नहीं हो सकता। समाज के समर्थवानों को इस मामले में आगे आना होगा और लोगों को संवेदना दिखानी होगी। नि:शक्तों के लिए काम कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं को जरूरत की वस्तुएं दान में देकर और अन्याय-अत्याचार का शिकार दिव्यांगों को कानूनी मदद दिलने की व्यापक पहल होनी चाहिए।

प्रस्तुति (इनपुट एवं तस्वीर) : कृष्ण किसलय, मिथिलेश दीपक, निशांत राज

 

 

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