डेहरी-आन-सोन (बिहार)-कृष्ण किसलय। भारत की प्रसिद्ध सोन नहर प्रणाली के होने के बावजूद जलसंकट के कारण बिहार और झारखंड के दस जिलों की खेती अब वर्षा के पानी के भरोसे होती जा रही है। बिहार और सोन नद के जलग्रहण क्षेत्र में 60 फीसदी कम बारिश होने से सोन नहरों का जलसंकट इस साल भयानक दौर में है और 22 लाख एकड़ से अधिक धान की खेती संकट में है। जबकि पिछली सदियों में पानी से लबालब भरी रहने वाली सोन नहर प्रणाली की ख्याति मिस्र की विश्वप्रसिद्ध स्वेज नहर की तरह थी। आज सोन नहरें बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही हों, मगर कभी इतना पानी हुआ करता था कि इसमें पांच हजार जलपोत चलते थे।
वाणसागर और रिहंद के कारण नहरों में पानी की भारी किल्लत
धान की बीज-पौध तैयार करने के लिए रोहतास जिला स्थित इंद्रपुरी बराज से सोन नहरों में मई के आखिरी हफ्ते में ही पानी छोड़ा जाना चाहिए, मगर उत्तर प्रदेश के रिहंद जलाशय और मध्य प्रदेश के वाणसागर जलाशय से बिहार के हिस्से का पानी नही मिलने से बिहार के सोन कमांड क्षेत्र के आठ जिलों (पटना, गया, रोहतास, भोजपुर, औरंगाबाद, कैमूर, बक्सर, अरवल) और झारखंड के दो जिलों (गढ़वा, पलामू) के किसान परेशान हंै। पानी की कमी होने का बहाना बनाकर रिहंद जलाशय और बाणसागर जलाशय दोनों ने पानी छोड़े जाने से हाथ खड़े कर लिए। सोन नदी के पानी को अपने-अपने पनबिजली उत्पादक इकाइयों के लिए मध्य प्रदेश वाणसागर जलाशय में और उत्तर प्रदेश रिहंद जलाशय में भंडारित कर लेते हैं, जिस कारण बिहार के इंद्रपुरी बैराज (जलाशय) में पानी नहींजमा हो पाता है।
निर्धारित है पानी का कोटा, फिर भी बिहार को नहीं मिलता अपना पूरा हिस्सा
बाणसागर जलाशय के मेंटेनेंस के लिए इस साल 35 करोड़ रुपये की मांग की गई थी थी। बिहार के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता की ओर से पांच करोड़ रुपये का चेक नौ जून को जमा भी कर दिया गया था। फिर भी बिहार के हिस्से का पानी नहीं छोड़ा गया। अंतरराज्यीय करार के मुताबिक, मध्य प्रदेश को वाणसागर जलाशय से सोन नदी में हर माह तीन हजार घनसेक और साल भर में 10 लाख एकड़ फीट पानी छोडऩा है, पर वाणसागर जलाशय से एक बूंद पानी बाहर नहींनिकाला गया था। जब मामला केेंद्रीय जल आयोग में पहुंचा तो मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पानी देने का भरोसा दिया गया और अब जाकर मध्य प्रदेश के वाणसागर जलाशय से सोन नदी के लिए पानी छोड़ा भी गया। हालांकि अभी तक मुख्य सोन नहरों के कई लिंक (शाखा) नहरों के टेल-इंड (अंतिम छोर) तक पानी नहीं पहुंचा है। केंद्रीय जल आयोग की बैठक में जुलाई के लिए रिहंद जलाशय से भी पानी का कोटा निर्धारित कर दिया गया है। रिहंद जलाशय से जुलाई में 12.70 लाख एकड़ फीट पानी इंद्रपुरी बराज के लिए तय किया गया है।
इस साल तो मानसून ने भी दिया है दगा
इस साल मानसून के देर से आने और बारिश काफी कम होने से भी किसानों की मुश्किल बढ़ गई है। सोन कमांड क्षेत्र में धान की खेती संकट में है। किसान अपनी खरीफ फसल (मुख्यत: धान) को लेकर चिंतित है, जिसका बीचड़ा (बीज-पौध) पानी के अभाव में सूखने लगा है। बिहार में अब तक बमुश्किल 20 फीसदी खेतों में ही धान की रोपनी हो सकी है। जबकि 34 लाख एकड़ खेत में धान का बीचड़ा (बीज-पौध)के रोपे जाने और 153 लाख टन धान उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सोन नहरों वाले जिलों के किसान नहर के पानी पर आश्रित होने के कारण खरीफ फसल की तैयारी बारिश के हिसाब के बाजय अपने हिसाब से करते हैं। सोन नहरों वाले जिलों में इस साल बारिश भी 60 फीसदी (अभी तक) कम हुई है।
राष्ट्रीय औसत से डेढ़ गुना अधिक उपज देने वाला सोनघाटी का यह इलाका
बिहार में सोन कमांड क्षेत्र में दो-तिहाई क्षेत्रफल (22.5 लाख एकड़) में धान की खेती होती है। सोन नहर प्रणाली के दोनों शीर्ष से जुड़े जिलों रोहतास और औरंगाबाद में तो नहर के परिणामस्वरूप ही राष्ट्रीय औसत (1057 किलो प्रति हेक्टेयर) व राज्य औसत (1239 किलो प्रति हेक्टेयर) से करीब डेढ़ गुना अधिक (1665 किलो प्रति हेक्टयर) धान का उत्पादन होता है। जबकि सोन नहर प्रणाली से पहले वर्षा से निर्भर इस इलाके में धान की उपज राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम होती थी। पहली पंचवर्षीय योजना में देश का सबसे उपजाऊ माना गया और 1967 के देशव्यापी अकाल में भी अच्छी पैदावार देने वाला यह इलाका आज भारी संकट के दौर से गुजर रहा है।
1965 में बना इंद्रपुरी बैराज भी अब कम कारगर
डेहरी-आन-सोन में तीन किलोमीटर चौड़ीे पाट के कारण हहराते मिनी सागर जैसा दिखने वाली सोन नदी पर 14 फीट ऊंचा व 12469 फीट लंबा एनिकट का वीयर (बांध) बनाकर इसके जलस्तर को ऊंचा उठाया गया और एनिकट के पूर्वी सिरे की नहर में 1874 और पश्चिमी सिरे की नहर में 1876 में पानी प्रवाहित किया गया था। 1867 में स्थापित हुई ईस्ट इंडिया इरिगेशन एंड कैनाल कंपनी के वाणिज्यिक उपक्रम सोन नहर प्रणाली का निर्माण कार्य 1868 में शुरू हुआ था। एनिकट में धीरे-धीरे बालू भरता गया और सोन नहर प्रणाली में पानी का प्रवाह कम होता गया। तब 1965 में डेहरी-आन-सोन से आठ किलोमीटर ऊपर इंद्रपुरी में सोन नदी पर 4624 फीट लंबा बैराज (बांध) गया और इसके दोनों सिरे से नहरें निकालकर उन्हें डेहरी-आन-सोन और बारुण की पुरानी नहरों से जोड़ा गया। तब नहरों से पानी की पहुंच फिर से 17.5 लाख एकड़ खेतों तक हुई और गया व औरंगाबाद जिलों के पांच लाख एकड़ खेतों के लिए सिंचाई क्षमता का भी विस्तार हुआ था। मगर सोन नदी के ऊपर मध्य प्रदेश में वाणसागर जलाशय और उत्तर प्रदेश में रिहंद जलाशय बनने के बाद इंद्रपुरी बैराज में भी पानी की आवक कम हो गई।
180 फीट चौड़ी मुख्य नहर में बहता था नौ फीट गहरा पानी
आज बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रही सोन नहर प्रणाली की 65 मील लंबी मुख्य डेहरी-आरा नहर में नौ फीट गहरा पानी बहता था, जिसकी चौड़ाई 180 फीट है। इस नहर प्रणाली के दोनों सिरों (पूरब व पश्चिम) से जुड़ी मुख्य नहरों में 218 मील में नौपरिवहन भी होता था, जिसके लिए 4547 माल-वाहक और 530 यात्री-वाहक छोटे जलपोत (वाप्ष चालित स्टीमर) पंजीकृत थे। 20वींसदी के पूर्वाद्ध तक ये स्टीमर डेहरी-आन-सोन (रोहतास) और बारुण (औरंगाबाद) से सोन नदी से चलकर गंगा नदी में उतरते थे, जहां से यात्री और माल बड़े स्टीमरों के जरिये पूरब में कोलकाता तक और पश्चिम में बनारस होकर इलाहाबाद तक पहुंचते थे।
सोन नहर प्रणाली का अध्ययन करने आया था अमेरिका का विशेषज्ञ
सोन नहर प्रणाली की प्रसिद्धि स्वेज नहर की तरह थी। इसकी ख्याति से प्रभावित होकर अमेरिका ने 1890 में अपने विशेषज्ञ अभियंता डा. एचएम विल्सन को इसके अवलोकन के लिए भेजा था। डा. विल्सन ने देहरी घाट (डेहरी-आन-सोन) से आरा व बक्सर तक स्टीमर से चार दिनों (2-5 फरवरी) तक भ्रमण किया था और अपने अध्ययन की रिपोर्ट अपने देश की सरकार को भेजी थी। डा. विल्सन ने प्रतिवेदन में लिखा था कि सोन नदी के बीचोबीच करीब पौने तीन मील वीयर (एनिकट) बनाकर नदी की जल-सतह को ऊपर उठा दिया गया है, जिसके दोनों सिरों की नहरों में पानी नियंत्रित रूप में प्रवाहित किया जा रहा है। अनाज और पत्थर से भरी नावें व छोटी स्टीमर नहरों के रास्ते गंगा नदी में जा रही हैं। लोग स्टीमरों से यात्रा कर रहे हैं। महत्वपूर्ण गांवों के निकट स्टीमरों के ठहराव के लिए लाक बनाए गए हैं। बीते साल स्टीमरों से 83 हजार 680 टन माल की ढुलाई हुई थी और 46 हजार 170 यात्रियों ने अपने-अपने गंतव्य की यात्रा की थी। एक दशक पहले जब सोन नहरें नहींथी, तब यह इलाका वीरान और बंजर था। अब स्टीमरों, नावों और यात्रियों के आवागमन व गहमागहमी से सोन नहरें स्वेज नहरों की तरह लग रही हैं।
आजादी के बाद उजड़ गया एनिकट का विश्वविख्यात ऐश्वर्य
अफसोस, डा. विल्सन की उस रिपोर्ट के 75 साल पूरे होते-होते सोन नहर प्रणाली के एनिकट का विश्वविख्यात ऐश्वर्य का अवसान हो गया और अब तो एनिकट में सब कुछ उजड़ व नष्ट होकर इतिहास का विषय बन चुका है। जब सोन नहर प्रणाली नहींबनी थी, तब डेहरी-आन-सोन और डालमियानगर का नामोनिशान नहींथा। तब तक घने जंगलों के बीच सोन नदी से होकर गुजरने वाला और उस समय की राष्ट्रीय राजधानी कोलकाता को जोडऩे वाला राष्ट्रीय राजमार्ग (अब जीटी रोड) ही व्यापारियों के कारवां और धार्मिक यात्रियों के जत्थे से देहरी घाट (डेहरी-आन-सोन) दिन में कभी-कभी गुलजार हो जाया करता था। सदियों से मुस्लिम और फिर ब्रिटिश फौज के लगातार हमलों के कारण नागवंशियों का यह देश (इलाका) और उनका प्राचीन झारखंडी मंदिर लगभग वीरान पड़ा हुआ था। तब देहरी घाट से सटे दक्षिण में जंगल काट मैदान बनाकर अंग्रेजी फौज ने अपना अस्थाई शिविर स्थल (पड़ाव) लिया था।
एनिकट के अकबरपुर में बनाने की थी अंग्रेजों की योजना
सोन नहर प्रणाली के निर्माण के वक्त तब देहरी घाट (आज के शिवगंज) में नौका चलाने वाले मल्लाहों की छोटी-सी चिरागी बस्ती बसनी शुरू हो गई थी और यहां से एक किलोमीटर उत्तर सोन के ठीक किनारे मौसमी गांव पाली बस चुका था। तब देहरी घाट से दो किलोमीटर दक्षिण सोन तट पर प्राचीन गांव मकराईं आबाद था, जो कभी नागवंशियों का यहां से कैमूर पहाड़ की तलहटी तक विस्तृत देश (डेहरी) का एक नाका और मुगल साम्राज्य की रोहतासगढ़ सरकार के अधीन फौजदारी अधिकार वाला एक केेंद्र हुआ करता था। उस वक्त यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर हरिहर गंज (नासरी गंज ही) मुख्य बाजार और सोनघाटी के इस क्षेत्र का गुलजार इलाका हुआ करता था। इससे भी अधिक सोन तट का सबसे गुलजार इलाका तिलौथू, अकबरपुर (रोहतासगढ़ के नीचे) और दारानगर (बांदू तक) हुआ करता था। यही वजह थी कि डा. फ्रांसिस बुकानन के स्थल-सर्वेक्षण के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने 19वींसदी के पांचवें दशक में हरिद्वार से गंगनहर (headwork 1860) निकाले जाने से पहले सोनघाटी के अकबरपुर, रोहतास, बिहार) में एनिकट बनाकर नहर निकालने की योजना तैयार की थी। मगर किन्हीं कारण से इस प्रस्ताव पर तब अमल नहीं हो सका और ब्रिटिश सरकार ने बाद में 1857 की क्रांति से उत्पन्न सुरक्षा कारणों और राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ाव के कारण देहरी घाट के दक्षिण स्थित झारखंडी मंदिर से सटे ही एनिकट बनाने का निर्णय लिया गया।
(तस्वींंरें : निशांत राज, संदर्भ : 27 साल पहले सोनमाटी में प्रकाशित रिपोर्ट)
(इस समाचारकथा के क्रमानुसार फोटो विवरण : बिहार के रोहतास जिला में 1965 में बना इंद्रपुरी जलाशय, सूखी पड़ी मुख्य सोन नहर की एक उपशाखा, 1873 में निर्माणाधीन सोन नहर प्रणाली का बनता हुआ एनिकट, अब उजड़ा पड़ा वह एनिकट, 1860 में गंगनहर का हरिद्वार में बना हेडवर्क)
Thanks a lot Krishna Krishlay ji your report on the Sone and her journey is really eyeopener for the river lover. Its very important for us who are belong to Dehri on sone.