नोबेल पुरस्कारों की 116 वर्षों की यात्रा में अब तक 881 लोगों और संस्थाओं को पुरस्कृत किया जा चुका है। 2017 में शांति का नोबेल आइसीएएनवी (इंटरनेशनल कैंपेन अगेंस्ट न्यूक्लियर वेपन) को दिया गया है। ऑस्ट्रेलिया में स्थापित की गई और स्विट्जरलैंड के शहर जिनेवा में चलने वाली संस्था आइसीएएनवी सन 2007 से दुनियाभर में परमाणु हथियारों को खत्म करने को लेकर कैंपेन चलाती रही है। आइसीएएनवी को यह सम्मान देकर नॉर्वे की नोबेल कमेटी ने नाभिकीय शस्त्र निरोध की उस प्रथम बहुपक्षीय संधि को साकार करने में आइसीएएनवी के अहम योगदान को मान्यता प्रदान की है, जो नाभिकीय शस्त्रों के स्वामित्व, उत्पादन, उपयोग, एकत्रीकरण तैनाती तथा परिवहन को प्रतिबंधित करती है। यह संधि एक नाभिकीय शस्त्ररहित विश्व की दिशा में प्रगति के लिए एक नये अंतरराष्ट्रीय मानक की घोषणा करती है, मगर यह तब लागू मानी जायेगी जब कम से कम 50 देश इस पर हस्ताक्षर कर इसकी संपुष्टि कर देते हैं। अब तक इस संधि पर 53 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। संपुष्टि की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। जब यह संधि अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत स्थापित हो जाएगी, तब इसके आधार पर भारत समेत नौ नाभिकीय शस्त्रसंपन्न देश गैरकानूनी तथा आपराधिक व्यवहार के दोषी माने जायेंगे।
दुनिया में दासता की समाप्ति के संघर्ष को उसकी आपराधिकता को लेकर नैतिक-कानूनी सिद्धांत की स्थापना से ही बल मिला था। ठीक उसी तरह आइसीएएनवी ने यह महसूस किया कि विश्व से नाभिकीय शस्त्रों की समाप्ति के लिए भी नैतिक-कानूनी सिद्धांत की स्थापना करना बड़ा कदम सिद्ध होगा। नोबेल के लिए संस्था का चयन करने वाली कमिटी ने अपनी घोषणा में कहा भी है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से होने वाली भीषण मानवीय त्रासदी की तरफ लोगों का ध्यान आकृष्ट करने, इनके इस्तेमाल पर रोक लगाने और अंतरराष्ट्रीय संधि का प्रयास करने के लिए आईसीएएनवी ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस संस्था के चलाए कैंपेन का ही नतीजा है कि इस साल जुलाई में परमाणु हथियारों पर रोक के लिए दुनिया के 122 देश इस संधि के समर्थन में आगे आए।
एटमी हथियार वाले देशों ने अपनी-अपनी दलीलों के साथ इस संधि का विरोध भी किया। नोबेल की घोषणा होने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह संधि दुनिया को ज्यादा शांतिपूर्ण नहीं बनाएगी और न ही इससे किसी देश की सुरक्षा बढ़ेगी। वास्तव में सन 1970 में हुई परमाणु अप्रसार संधि के बाद से दुनिया में परमाणु हथियारों वाले देश लगभग दोगुने हो चुके हैं। शीतयुद्ध के समय सिर्फ अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन के पास परमाणु हथियार थे। अब भारत, पाकिस्तान, नॉर्थ कोरिया और अघोषित रूप से इजरायल का भी हैं। ईरान और अमेरिका के बीच का समझौता अगर टूटता है तो ईरान को दसवां परमाणु हथियार संपन्न देश बनने से रोकना मुश्किल होगा। एटमी हथियारों का इस्तेमाल को लेकर अब संदेह भी नहींरह गया है। अमेरिका और नॉर्थ कोरिया के बीच कभी भी युद्ध हो सकता है। जब दुनिया हिरोशिमा-नागासाकी की चिरंतन यातना को भूलकर परमाणु हथियारों के ढेर पर खड़ी हो चुकी है। इस तरह नोबेल पुरस्कार की मंशा और आईसीएवीएनवी का प्रयास सिर्फ ख्वाब भर लगता है।