दाउदनगर (औरंगाबाद)-विशेष संवाददाता। वह समय दूर नहीं है कि जैसे पीने का पानी खरीदना और लेकर चलना पड़ा रहा है, वैसे ही पर्वतारोहण की तरह आक्सीजन भी खरीदना और ढोकर चलना पड़ेगा। वायुमंडल में प्राणवायु आक्सीजन की मात्रा दिन-ब-दिन घट रही है और घातक कार्बन-डाइ-आक्साइड, अन्य गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है। यह बात विश्व पर्यावरण दिवस पर दाउदनगर अनुमंडल के देवकुंड स्थित नीलकोठी बाघोई में वनौषधियों वाले वन क्षेत्र में बिगड़ते पर्यावरण पर विमर्श में सामने आई। गोष्ठी में रूड़की (उत्तराखंड) के विजिटिंग प्रोफेसर एवं प्राणविद्या पीठ के अध्यक्ष डा. सुरेश बोहिदार, आयुर्वेद के आचार्य डा. राधेश्याम यादव, पर्यावरणविद भाई रंजन, लेखक-पत्रकार उपेंद्र कश्यप, औषधियों के जानकार अरविंद तिवारी, औषधिवन कृषक मदनकिशोर सिंह, भोला सिंह आदि शामिल हुए। देवकुंड स्थित नीलकोठी बाघोई के वानिकी क्षेत्र में करीब दो सौ प्रकार की वनौषधियां हैं, जहां आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार करने का भी प्रबंध है।
प्राणविद्या पीठ के अध्यक्ष डा. सुरेशचंद्र बोहिदार ने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण आपस में गुंथा हुआ रिश्ता है। अनेक कारणों से पर्यावरण बिगड़ रहा है, जिनमें कई कारण प्राकृतिक हंै और कई मानवीय। मगर पर्यावरण के प्रदूषण में बीती सदी में मानवीय कारण का योग अधिक रहा है और बीती सदी वाली स्थिति 21वीं सदी में भी जारी है। मनुष्य प्रकृति का ही अंश है, मगर इसका भार पृथ्वी पर बढ़ता जा रहा है। इसलिए बेहद जरूरी हो गया है कि पर्यावरण के लिए आम लोगों को जागरूक किया जाए। इसके प्रति लापरवाही से पानी और आक्सीजन का संकट पैदा होने जा रहा है। हर साल गर्मी बढ़ रही है और मानसून गड़बड़ हो रहा है। यह पर्यावरण के बिगडऩे का, प्रकृति के असंतुलित होने के कारण ही है।
पर्यावरणविद रंजन भाई ने कहा कि जनसंख्या पर नियंत्रण और पेड़-पौधे का सम्मान करना होगा अन्यथा जीवन नहीं बचेगा। पूर्वजों ने नदी में पानी देखा था। आने वाली पीढ़ी बोतल पानी देखेगी। धरती पर जीवन इस सदी तक ही बमुश्किल सुरक्षित है। नहीं सुधरे और नहीं चेते तो मानव जीवन का अंत हो जाएगा। आयुर्वेदाचार्य डा. राधेश्याम यादव ने कहा कि प्रकृति रोग नहीं पैदा करती, रोग के लिए तो खराब व्यवस्था दोषी है। हमारा आहार-विहार, रहन-सहन, खान-पान बदल गया, खराब व्यवस्था हो गया है। जरूरत है कि आम जनता की चेतना जगाई जाए। पेड़-पौधे, जलाशयों का प्रबंध किया जाए।
लेखक-पत्रकार उपेन्द्र कश्यप ने कहा कि पर्यावरण की जागरूकता के लिए बच्चों को टारगेट करना होगा। नई पीढ़ी ने पिछली सदियों की तरह मौसम और जल की सहज उपलब्धता को देखा नहीं है, इसलिए उसे संकट समझ में नहीं आता। जब सोन के पुराने जल प्रवाह वाले रेतीली भूमि को जंगल में तब्दील किया जा सकता है, तब पर्यावरण संरक्षण मुश्किल भले हो, असंभव नहीं है। आवश्यकता जागरूक होने, प्राकृतिक संसाधन का दोहन कम करने और भविष्य के साथ पूरे समाज के प्रति भी जिम्मेदारी समझने की है। इसके लिए जागरूकता की शुरुआत प्राथामिक स्कूल के बच्चों से ही होना जरूरी है।
अरविंद तिवारी ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण मानव जीवन के लिए आवश्यक है। हम पर्यावरण से ही बने हैं। इसका संरक्षण नहीं करेंगे तो हम नष्ट हो जाएंगे। गर्भकाल से लेकर मृत्यु तक सब कुछ पर्यावरण-तंत्र है। नई खाद्य संस्कृति अपनाने और वनौषधियों को इस तंत्र में शामिल करने पर जोर होना चाहिए। मदनकिशोर सिंह ने कहा कि आयुर्वेद आहार है और आहार ही औषधि है। मेडिसिन के चलन को बढ़ाकर आयुर्वेद को हाशिये पर डाल दिया गया।
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पांच जून : आखिर क्यों मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस
दुनिया के सभी समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने और इसके खतरे के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसमें प्रकृति के प्रति चिंता और उसके संरक्षण की भावना है। वास्तव में आदमी पहले तो ज्ञान के अभाव में प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन करता रहा। अब यह समझ में आ गया अनियंत्रित दोहन तो अपने पांव पर ही कुल्हाड़ी चलाने जैसा है। इसी बात को बताने-समझाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। आज से 47 साल पहले 1972 में संयुक्त राष्ट्र (संघ) के सदस्य देशों ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को समझा। विश्व के स्तर पर इसके प्रति चिंता के प्रसार के लिए साल का एक दिन पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस घोषित किया गया। इसकी शुरुआत स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम से हुई। इसके 15 साल बाद भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से लागू हुआ। पर्यावरण दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र हर साल एक थीम चुनता है। वर्ष 2019 के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है बीट एयरपाल्यूशन (वायु प्रदूषण को हराओ)। इस थीम को चीन ने चुना है, जो विश्व पर्यावरण दिवस (2019) के लिए मेजबान देश है।
12 फीसदी से ज्यादा मौत की वजह प्रदूषण
पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर स्टेट ऑफ इंडिया इन्वायरनमेंट-2019 की रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में होने वाली कुल व्यक्तियों की मौत में से प्रदूषण की वजह से 12 फीसदी से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है।
पर्यावरण का संबंध पानी, हवा, जमीन (मिट्टी) से है। इन तीनों से मानव, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, नंगी आंखों से नहीं दिखने वाले सूक्ष्म जीवों का अन्योन्याश्रय संबंध है और ये सभी आपस में मिलकर पर्यावरण का, प्रकृति का निर्माण करते हैं। पर्यावरण कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है। इसमें असंतुलन ही पर्यावरण प्रदूषण है। इसीलिए हवा, पानी और मृदा के प्रदूषण प्रमुख माने जाते हैं। प्रदूषण की सूची में दुनिया में वायु प्रदूषण पहले स्थान पर है, शीर्ष पर है। पहले पानी, मिट्टी, जंगल को लेकर चिंता थी। अब वायु प्रदूषण को लेकर बड़ी चिंता है। वायु प्रदूषण वैश्विक संकट बन चुका है।
प्रदूषण से 90 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रभावित
विकास की अंधाधुंध दौड़ में आदमी ने ही पर्यावरण का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। अनियंत्रिक विकास की छलांग के परिणाम और नुकसान अब साफ-साफ दिखाई देने लगे हैं। वायु प्रदूषण की समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही हैं। ग्लोबल एयर रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रदूषण से प्रभावित हैं। इससे सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत भी शामिल है। हवा में अवांछित गैसों, धूल कणों मौजूदगी बढ़ गई है, जो आदमी तथा प्राकृति दोनों के लिए खतरे का कारण है। कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फरडाइआक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन और नाइट्रोजनआक्साइड जैसी गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी से प्रदूषण में वृद्धि हुई है। सड़कों पर गाडिय़ों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनसे निकलने वाला धुआं कार्बनडाइआक्साइड और अन्य अवांछित गैसों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ा रहा है। तेजी से शुद्ध हवा (आक्सीजन) खत्म हो रही है। इस कारण बिजिंग और अन्य शहरों में हवा यानी आक्सीजन अब डिब्बों में बिकने लगा है।
औद्योगिक इकाइयां, कचरा, कोयला, प्लास्टिक, परमाणु संयंत्र प्रदूषण को बढ़ाते हैं। इससे फेफड़े के कैंसर, त्वचा रोग, सांस की बीमारी हृदय रोग में वृद्धि हुई है। कटते जंगल और बढ़ता शहरीकरण, औद्योगिकरण की होड़ प्रदूषण की बड़ी वजह हैं। इससे मिट्टी, हवा और पानी लगातार खराब हो रहे हंै। जल संकट ने तो विकराल रूप धारण कर लिया है। यह गर्मी के साथ सर्दी के दिनों में भी दिखने लगा है। साफ पानी के अभाव के कारण ही बाजार में बोतलबंद पानी बिकता है। प्रदूषण का असर पशु-पक्षियों पर भी है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां लुप्त हो चुकी है और हजारों प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। अभी भी वक्त हैं, हम सब संभल जाएं। अपनी जीवनशैली को नियंत्रित करें, ग्राम्य शैली अर्थात प्रकृति मित्र शैली अपनाएं। तभी जीवन अधिक से अधिक समय तक सुरक्षित बना रह सकता है।
– निशांत राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटीडाटकाम