अहिल्याओं को है राम का इंतजार !
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कृष्ण किसलय
(समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह)
-आखिर क्यों नहीं पहुंची डेहरी-आन-सोन के अंबेदकर मुहल्ले (वार्ड-22) के वंचितों तक आजादी ?
फिरंगी शासन के शोषक राजतंत्र से मुक्ति के लिए आजादी के अगणित परवाने इसी सपने के साथ शहादत के सिलसिला-ए-राह में फना हुए कि आजादी मिलेगी, तब अपना गण-तंत्र होगा और होगा सबके लिए रोजगार, रोटी, कपड़ा, मकान। 72 बरस बीत गए देश को आजाद हुए। क्या ऐसा हुआ? क्या समाज के हाशिये पर, आखिरी पायदान पर पड़ा हुआ आदमी गरीबी रेखा से ऊपर उठ कर खड़ा हुआ? समाज के हाशिये की आबादी के लिए हर साल खरबों रुपये कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च होते रहे हैं। क्या गुजरे 72 सालों में वह 72 फीसदी आबादी ऊपर उठ सकी, जो आजादी मिलने के वक्त गरीबी रेखा से नीचे का जीवन बसर कर रही थी? इसके उत्तर में ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट आंख खोलने वाली, विमर्श करने वाली और धरातल पर खरा उतरने वाली नीति-कार्यक्रम की दरकार बताने वाली है।
ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2002 से 2012 के बीच दस सालों में देश की की समूची संपदा में पूरी आबादी के निचले आधे हिस्से की हिस्सेदारी 8.1 फीसदी से घटकर 4.2 फीसदी हो गई, जबकि एक फीसदी सबसे संपन्न आबादी की हिस्सेदारी 15.7 फीसदी से बढ़कर 25.7 फीसदी हो गई। खरबों रुपये खर्च कर असमानता में इजाफे की यह तथ्य-कथा भारतीय स्वाधीनता की सच्ची व्यथा है। जाहिर है, समाज के आखिरी पायदान के परिवार गरीबी के अंतहीन दुष्चक्र में तो फंसे ही हुए हैं। सच यह भी है कि गरीबी रेखा से थोड़ा ऊपर जीवन जीने वाले लोग भी लगातार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) होते गए हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति में तो हालत बेहद बदतर है।
तब क्या हाशिये पर पड़ी आबादी को ऊपर उठाने के लिए केन्द्र, राज्य सरकारों की दर्जनों कल्याणकारी योजनाओं और इन्हें धरातल पर उतारने के सरकारी अमले की विशालकाय फौज पर सवाल खड़ा नहीं होता? अपवाद छोड़ दें तो अधिसंख्य सरकारी अधिकारी खानापूर्ति कर, चाटुकारों से घिरे रह कर, लूट-तंत्र में शामिल होकर वक्त काटते और चले जाते हैं। हर शहर, हर गांव में भ्रष्टाचार का, अनियमितता का, अराजकता का, कर्तव्यविमुखता का, लोकतंत्र की मौजूदा व्यवहार-व्यवस्था के प्रति असंतोष-आक्रोश के अनेक-अनेक उदाहरण मौजूद हैं।
सोन तट का शहर डेहरी-आन-सोन में भी ऐसा है। उज्ज्वला रसोई गैस योजना समाज के सबसे कमजोर महिला के सशक्तिकरण के लिए है। यानी, हाशिये पर पड़े आखिरी पायदान के परिवार के कल्याण के लिए है। और, चिंताजनक पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति के लिए भी है। मगर डेहरी-डालमियानगर नगर परिषद के वार्ड-22 में स्कूल के पीछे बसी सैकड़ों वंचितों की बस्ती (मुहल्ले) के लिए नहीं है। वंचित परिवार आजादी के इस लाभ (उज्ज्वला) से वंचित इसलिए हैं कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है।
सवाल है कि कौन बनाएगा इन वंचित परिवारों का राशन कार्ड और इन परिवारों की महिलाओं को कैसे मिलेगी सदियों से राख-कोयले से धुंआती जिंदगी से मुक्ति? नगर परिषद, वार्ड पार्षद, सांसद, विधायक, प्रशासन, सरकार, सामाजिक संगठन की क्या कोई जिम्मेदारी नहीं है? जब हजारों अपात्रों को राशन कार्ड रेवड़ी की तरह बांटे गए हैं और फर्जी राशन कार्ड की आड़ में दशकों से हेरा-फेरी जारी है, तब क्या कुछ सौ उचित पात्रों को, अपनी आवाज नहीं उठा सकने वाले इन वंचितों को राशन कार्ड मुहैया कराने के लिए सरकारी, गैर सरकारी संगठनों का अमला जमीन पर नहीं उतर सकता? दरअसल, वार्ड-22 की अम्बेदकर बस्ती (मुहल्ला) के वंचित परिवारों की अहिल्याओं को राम का इन्तजार है।
उज्ज्वला योजना में मोहिनी इंटरप्राइजेज बिहार-झारखंड में अव्वल
डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-विशेष प्रतिनिधि। समाज के अंतिम पायदान के बीपीएल परिवारों के लिए जारी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत 05 किलो का रसोई गैस सिलेंडर देने में शहर की प्रतिष्ठित एजेंसी मोहिनी इंटरप्राइजेज बिहार और झारखंड राज्यों में अव्वल हो गई है। इस योजना में परिवार की व्यस्क महिला सदस्य को 14.2 किलो रसोई गैस सहित सिलेंडर, चूल्हा, रेगुलेटर आदि आरंभ में पूरी तरह निशुल्क दिया जाता है और सिलेंडर में छह बार 14.2 किलो रसोई गैस लेने तक अनुदान की कोई रकम समायोजित नहींहोती है अर्थात उपभोक्ता को गैस के अलावा कोई पैसा गैस एजेंसी को नहींदेनी है। इस योजना में महिला उपभोक्ता 14.2 किलो का एक सिलेंडर या 05 किलो के दो सिलेंडर वाला कनेक्शन ले सकती है। देश भर में केेंद्र सरकार ने 08 करोड़ उज्ज्वला गैस कनेक्शन देने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसमें लोकसभा चुनाव से पहले 7.2 करोड़ कनेक्शन दिए जा चुके थे। बाकी 80 लाख कनेक्शन के लिए चुनाव के बाद सौ दिन का लक्ष्य दिया गया, जिसकी अवधि 10 सितम्बर को पूरी होगी।
लक्ष्य-पूर्ति के लिए मोहिनी इंटरप्राइजेज (डेहरी-आन-सोन, रोहतास) को १००५ उज्ज्वला कनेक्शन देना है। मोहिनी इंटरप्राइजेज के संचालक उदय शंकर ने सोनमाटीडाटकाम को बताया कि मोटिवेशन के जरिये 05 किलो का दो सिलेंडर गैस-चूल्हा-रेगुलेटर सहित देकर 700 कनेक्शन दिए गए हैं, जो बिहार और झारखंड में अब तक का रिकार्ड है। इसका लाभ उपभोक्ता (महिला पात्र) को यह होगा कि गैस से भरा एक सिलेंडर घर में रहेगा। दूसरा कि एक बार में सब-सिडी काटकर 14.2 किलो गैस करीब 500 रुपये (या जो वास्तिवक कीमत हो) में लेने के बदले 05 किलो गैस करीब 250 रुपये में ही लिया जा सकता है, जिससे कमजोर आर्थिक स्थिति वाले के लिए आसानी होगी। तीसरा कि छोटा सिलेंडर हाथ में भी आसानी से ढोया जा सकता है। उपभोक्ता एक साल में 12 बड़ा सिलेंडर (14.2 किलो) के बदले साल में 34 छोटा सिलेंडर (05 किलो) गैस खरीद सकती है।
अगड़ी जाति के एपीएल को भी उज्ज्वला रसोई गैस कनेक्शन
उदय शंकर ने जानकारी दी कि उज्ज्वला रसोई गैस योजना अब अगड़ी जाति की एपीएल परिवार की महिला के लिए भी है। ऐसी परिवार की महिला को घोषणा करनी होती है कि वह पात्रता की निर्धारित 14 शर्तें पूरी करती हैं। उज्ज्वला कनेक्शन पहले संयुक्त परिवार की महिला सदस्य को दी गई हो और बाद में परिवार अलग-अलग हो गया हो तो अलग महिला को भी उज्ज्वला कनेक्शन मिलेगा। ऐसे परिवार की महिला को ग्राम सचिव से प्रमाणित कराकर घोषणापत्र भरना होगा। परिवार की महिला सदस्य की शादी हो जाने के बाद गैस कनेक्शन परिवार की दूसरी व्यस्क महिला या आई बहू के नाम किए जाने का भी प्रावधान है।
(रिपोर्ट : निशान्तकुमार राज, सोनमाटीडाटकाम)