पटना (कार्यालय प्रतिनिधि)। पैसे से खरीदा गया सम्मान पत्र अथवा डिजिटल सम्मान पत्र पर ऑनलाइन जबरदस्त चर्चा हुई। पैसे के बदले सम्मान पत्र देना, लेखकों का मानसिक एवं आर्थिक शोषण है। किसी भी सार्थक लेखकों के लिए सबसे बड़ा सम्मान पाठकों के द्वारा प्राप्त प्रतिक्रियाएं और प्रशंसा होती है, न कि डिजिटल प्रमाण पत्र। डिजिटल प्रमाण पत्र मात्र इसकी पहचान है कि आप लिख रहे हैं। लेकिन आप बेहतर लिख रहे हैं या खराब लिख रहे हैं इसको वह प्रमाणित नहीं कर पाती। इसका प्रमाण पत्र तो अंततः पाठक ही देते हैं, रचनाओं पर प्रतिक्रिया देकर। पैसे से खरीदा गया सम्मान अथवा डिजिटल सम्मान पत्र, साहित्य जगत का अपमान है!
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वधान में , फेसबुक के यूट्यूब के पेज पर ऑनलाइन हेलो फेसबुक साहित्य सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने,उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। परिचर्चा का विषय था “पैसे से खरीदा गया सम्मान अथवा डिजिटल सम्मान पत्र का औचित्य !”
इस परिचर्चा में शामिल हुए सभी वक्ताओं ने कहा कि जितना दोषी डिजिटल सम्मान पत्र बांटने वाले हैं या पैसे के बल पर सम्मान बांटने वाले हैं उससे अधिक दोषी वह लेखक है जो इसे प्राप्त करना चाहता है किसी भी तरह, किसी भी शर्त पर। डिजिटल सम्मान पत्र का महत्व तभी है जब वह पैसे के आधार पर नहीं बल्कि साहित्यकारों के व्यक्तित्व कृतित्व के मूल्यांकन के आधार पर किया जाए। अधिकांश लोगों ने इसे व्यावसाय का एक हिस्सा बना लिया है, और श्रेष्ठ साहित्य सृजन करना आता नहीं उन्हें भी महादेवी वर्मा, प्रेमचंद जैसे बड़े-बड़े साहित्यकारों के नाम पर सम्मानित किया जा रहा है।
ऑनलाइन कार्यक्रम में विचार व्यक्त करने वालों में साहित्यकार और संपादक योगराज प्रभाकर, डॉ. अनुज प्रभात, राज प्रिया रानी, अनीता पांडया,सीमा रानी, अनिता रश्मि, ऋचा वर्मा, अनुप्रिया, रश्मि लहर, अपूर्व कुमार, सिद्धेश्वर, अनिल कुमार जैन, दयानंद आदि प्रमुख थे l कार्यक्रम का समापन राज प्रिया रानी के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ l
प्रस्तुति : बीना गुप्ता जन संपर्क पदाधिकारी,भारतीय युवा साहित्यकार परिषद , पटना,बिहार, मोबाइल 9 2 3 4 7 6 0 3 6 5। Email :[email protected]