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सामयिक

‘आधार’ पर रोक लगने की उम्मीद!

पंद्रह वर्ष पहले जिस समाचारपत्र का मैं संपादन करता था, उसमें सलमान खान और ऐश्वर्या राय की एक बातचीत छपी थी। बातचीत में प्रीटी जिंटा का भी जिक्र था, जिन पर सलमान खान ने अश्लील टिप्पणी की थी। इससे नाराज होकर जिंटा ने मेरे खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था। कुछ वर्षों तक मुकदमा चला और फिर उन्होंने इसे वापस ले लिया था। बहरहाल, इस मामले में पुलिस का यह दावा मजेदार था कि उसने फोन टेप नहीं किया है। उस टेप में दोनों कलाकारों की आवाज एकदम स्पष्ट थी और इसलिए वह टेप असली था। ऐसे में सवाल है कि आखिर बातचीत को किसने टेप किया था?
ऐसे कई और उदाहरण हैं। जैसे 20 वर्ष पूर्व टाटा टेप, जिसमें इंडियन एक्सप्रेस ने दावा किया था कि असम के अलगाववादियों को उगाही कर पैसा देने के लिए इस कॉरपोरेट संगठन पर दबाव डाला गया था। नुस्ली वाडिया, केशव महिंद्रा, जनरल सैम मानेकशॉ और रतन टाटा की निजी बातचीत रिकॉर्ड कर सार्वजनिक कर दिया गया था। किसके द्वारा? हम नहीं जानते।
ये सभी उदाहरण यह दर्शाते हैं कि बिना किसी अधिकार या निरीक्षण के सरकार द्वारा अवैध तरीके से भारतीय नागरिकों की जासूसी की जाती है। हालांकि, इस अपराध को सार्वजनिक करने के बाद भी अवैध निगरानी जैसे गलत काम करने के लिए किसी भी अधिकारी पर आरोप तय नहीं किये गये थे। भारत में बड़े पैमाने पर वैध निगरानी भी होती है। हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर आरटीआइ याचिका से पता चला कि केंद्रीय गृह सचिव ने एक महीने में 10,000 फोन टेप करने की मंजूरी दी। आखिर क्यों ये आंकड़े इक_े किये जा रहे हैं? हमें नहीं बताया जाता है।
दुनिया के अन्य लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की तरह ऐसा करने के लिए हमारे पास कोई सुरक्षा तंत्र और जांच नहीं है। अमेरिका में, जिस पुलिस को फोन टेप करने के लिए अधिकृत किया जाता है, उसके सबूत उसे न्यायाधीश को दिखाना होता है और ऐसा कठिन परिस्थितियों में ही किया जाता है। भारत में इसका अभाव है। लॉबिस्ट नीरा राडिया के फोन महीनों से टेप हो रहे थे और तब आपराधिक तरीके से प्रेस के सामने उस बातचीत का खुलासा कर दिया गया था। यहां तक कि अगर अपराध के कोई संकेत नहीं थे, तब भी लोगों को उसमें लपेट दिया गया था।
भारत में सरकार अपने नागरिकों की बातचीत टेप करती है और फिर इससे इनकार करती है, जैसा कि ऊपर उल्लिखित मामलों में बताया गया है। सांस्थानिक प्रक्रिया के अभाव में जासूसी द्वारा एकत्रित आंकड़ों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। यहां तक कि अगर ये वैध तरीके से एकत्रित किये गये हों, तब भी (राडिया टेप मामले जैसा)। निजता का अधिकार मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय की यही पृष्ठभूमि है।
मैंने आधार कार्ड नहीं बनवाया है, क्योंकि मुझे भारत में निगरानी के इतिहास की जानकारी है। मेरी बायोमीट्रिक जानकारी को खुद को सौंपने के लिए सरकार को मुझ पर क्यों दबाव बनाना चाहिए? मेरी पहचान के तौर पर मेरे पास पहले से ही पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, लैंडलाइन टेलीफोन का बिल, बिजली बिल, घर के कागज और मतदाता पहचान पत्र हैं। ये सभी सरकार द्वारा जारी वैध पहचान पत्र के दस्तावेज हैं। सरकार को मेरी पहचान से जुड़ी और कितनी चीजें चाहिए? मेरे मोबाइल और बैंक खाते को आधार से जोडऩे के लिए एयरटेल और एचडीएफसी बैंक की तरफ से मुझे नोटिस भेजा गया है।
इस संबंध में स्कूल की कहानियां भयभीत करनेवाली हैं, जहां परीक्षा में शामिल होने से पहले बच्चों को आधार लानेे के लिए कहा जा रहा है। टैक्स रिटर्न के लिए पहले से ही आधार को अनिवार्य कर दिया गया है (इस बेतुके नियम से बचने के लिए मैंने पहले ही दाखिल कर दिया)। सरकार के समर्थकों का तर्क है कि अगर आपके पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है, तो आधार के तहत पंजीकरण कराने का विरोध क्यों? इस संबंध में मेरा उत्तर है कि ऐसा मैं इसलिए नहीं चाहता, क्योंकि सरकार का सुरक्षा तंत्र कमजोर है। अगर मुद्दा यह है कि आधार को बैंक खाते और पैन संख्या से जोड़कर टैक्स चोरों को पकड़ा जा सकता है, तब इस पर मेरी आपत्ति है। लोकतंत्र के सभ्य स्वरूप में लोगों को निर्दोष माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके वित्त के लिए बायोमीट्रिक पहचान से जोडऩे पर जोर देना, सभी को दोषी मानने के समान है, जो स्वीकार्य नहीं हो सकता है।
आम चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी 8 अप्रैल 2014 को बेंगलुरु में जनसभा कर रहे थे। उसमें उन्होंने कहा था कि जीतने के बाद वे आधार को हटा देंगे। नंदन नीलेकणी (वे ही आधार का सुझाव लेकर आये थे) पर आक्रमण करते हुए मोदी ने कहा था, मैं पूछना चाहता हूं, आपने कौन-सा अपराध किया था कि उच्चतम न्यायालय ने आपकी आधार परियोजना को खारिज कर दिया था? मोदी ने आगे कहा था, पहली बार मैं सार्वजनिक तौर पर यह कहना चाहता हूं कि मैंने आधार परियोजना पर अनेक प्रश्न पूछे, अवैध प्रवासियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सवाल पूछे। उन्होंने (यूपीए सरकार) ने कोई जवाब नहीं दिया। अपनी कही उस बात से मोदी पूरी तरह पलट चुके हैं और जो आधार बनवाना नहीं चाह रहा है, उस पर भी इसे बनवाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। क्या उन्हें यह नहीं बताना चाहिए कि आखिर वे क्यों पलट गये हैं? बेशक नरेंद्र मोदी इसका उत्तर नहीं देंगे।
कुछ दिनों पहले खुफिया एजेंसी से जुड़े एक व्यक्ति ने यह बताया था कि उसके पास एक फाइल थी, जिसमें बहुत से लोगों का ब्योरा था। उनमें से काफी ब्योरे अवैध तरीके से जुटाये गये थे। वैसे लाखों नहीं तो हजारों लोग तो रहे ही होंगे, जिनकी सरकार ने अवैध जासूसी करवायी होगी। अपने विवरणों को स्वयं ही साझा कर हमें इस आपराधिक गतिविधि को सक्षम क्यों बनाना चाहिए भला? हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। आधार में नामांकन और हमारे जीवन से जुड़े सभी पक्षों से बायोमीट्रिक पहचान को जोडऩे को अनिवार्य बनाये जाने संबंधी मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने हमें यह आस बंधायी है कि शायद आधार पर रोक लग जायेगी।

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