ऊर्जा व पर्यावरण संरक्षण बेहद जरूरी

– डेहरी-आन-सोन के पड़ाव मैदान में पहली बार निकाली निकाली गई रैली,  लिया गया सामूहिक संकल्प
– पेट्रोल, डीजल से कार्बन उत्सर्जन व वायुमंडल प्रदूषण सबसे अधिक, जिससे बढ़ता रहा है ग्लोबल वार्मिंग

– नेशनल बुक ट्रस्ट (दिल्ली) से प्रकाशनाधीन हिंदी के वरिष्ठ विज्ञान लेखक-पत्रकार कृष्ण किसलय की  पुस्तक (सुनो मैं समय हूं) में उल्लेख है कि पर्यावरण  व वायु  प्रदूषण  परमाणु युद्ध से भी बड़ा खतरा, जिसकी चेतावनी 1970 से ही देने लगे थे वैज्ञानिक

 डेहरी-आन-सोन (बिहार)-निशांत राज। यह बात स्थापित हो चुकी है कि पर्यावरण के बदलाव में और इसे प्रदूषित करने का सबसे बड़ा कारण पेट्रोलियम पदार्थ की खपत ही है। मोटरगाडिय़ों में तेल (पेट्रोल, डीजल) के इस्तेमाल से कार्बन गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक होता है और वायुमंडल दूषित होता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ता जा रहा है। 1970 में तेल संकट से देश की इकोनिमी पर गहरा असर हुआ था। तब इस बात की जरूरत महसूस की गई थी कि कैसे तेल की खपत कम की जाए और ऊर्जा की उत्पादकता को अधिक से अधिक बढ़ाया जाए। हालांकि इससे पहले वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी दे दी थी कि पृथ्वी से तेल (पेट्रोलियम पदार्थ) के भंडार लगातार कम हो रहे हैं और अगली सदियों में तेल के भंडार सूख जाएंगे। इसलिए ऊर्जा (तेल)  संरक्षण और वायु प्रदूषण पर अंकुश बेहद जरूरी है।

पर्यावरण प्रदूषण : परमाणु युद्ध से भी बड़ा खतरा

भारतीय भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट (दिल्ली) से प्रकाशनाधीन हिंदी के वरिष्ठ विज्ञान लेखक-पत्रकार कृष्ण किसलय की  पुस्तक (सुनो मैं समय हूं) में इस बात का उल्लेख है कि पर्यावरण असंतुलन व वायु प्रदूषण के खतरे की चेतावनी वैज्ञानिक 1970 से ही देने लगे थे। इस पुस्तक में बताया गया है कि दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों की संस्था बुलेटिन आफ द एटामिक साइंटिस्ट ने पर्यावरण प्रदूषण को परमाणु युद्ध से भी बड़ा खतरा माना है, क्योंकि यह खतरा अटल है और इसे सिर्फ न्यूनतम किया जा सकता है। इस आसन्न खतरे के लिए प्राकृतिक तौर पर पर्यावरण परिवर्तन से अधिक  जिम्मेदार आदमी है, जो अपने शिकारी जीवन में तो किराएदार की तरह था, मगर सभ्यता-विकास के क्रम में वह पूरी पृथ्वी का मालिक बन बैठा और जिसके कारण धरती के अन्य जीव-जंतुओं का अस्तित्व भी खतरे में पड़ चुका है।

पीसीआरए का  40 साल पहले 1976 में गठन

अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा के अधिकतम उपयोग वृद्धि, तेल की बर्बादी रोकने, प्रदूषण पर नियंत्रण पाने और समाज के हर तबके में इसके लिए जागरुकता बढ़ाने के लिए भारत सरकार के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के नेतृत्व में सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत संस्था के रूप में पीसीआरए (पेट्रोलियम कंजर्वेशन एंड रिसर्च एसोसिएशन) का गठन 40 साल पहले 1976 में किया गया था।
पीसीआरए तेल की आवश्यकता पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए पेट्रोलियम संरक्षण नीति बनाने में सरकार की सहायता करता है। इसका मुख्य उद्देशय न सिर्फ तेल के अपव्यय को रोकना है बल्कि तेल के बेजा इस्तेमाल से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी कम करना है। पर्यावरण सुरक्षा के लिए सामाजिक जागरूकता के विस्तार में भी पीसीआरए ने भूमिका का निर्वाह किया है।

 

ताकि  समाज तक पहुंच सके ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश

डेहरी-आन-सोन जैसे शहर में पहली बार इस तरह की जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। डेहरी मुख्य बाजार में पोस्टर-बैनर के साथ रोहतास व कैमूर जिलों मेे अग्रणी रसोई गैस एजेंसी मोहिनी इंटरप्राइजेज के साथ अन्य गैस एजेंसियों की टीम ने भी जागरूकता प्रदर्शन किया। 

जागरूकता कार्यक्रम के संयोजक सदस्य उदय शंकर (मोहिनी गैस एजेंसी के प्रंबध निदेशक) के अनुसार, पीसीआरए की ओर से 15 जनवरी से 14 फरवरी तक ऊर्जा एवं पर्यावरण संरक्षण माह का आयोजन किया गया, जिसके समापन पर पीसीआरए के आह्वान पर डेहरी-आन-सोन के पड़ाव मैदान में 14 जनवरी की सुबह  सामूहिक तौर पर ऊर्जा संरक्षण और तेल का उपयोग कम से कम कर इसकी बचत का संकल्प लिया गया। पड़ाव मैदान से  रैली निकाली गई, ताकि ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण का संदेश समाज तक पहुंच सके।

कार्यक्रम में डेहरी अनुमंडल दंडाधिकारी पंकज पटेल, इंडेन गैस (इंडियन आयल कारपोरेशन) के रोहतास व कैमूर जिला प्रभारी सनतकुमार पात्रा, वरिष्ठ चिकित्सक डा. एसबी प्रसाद, डेहरी विधिज्ञ संघ के अध्यक्ष उमाशंकर पांडेय उर्फ मुटुर पांडेय,  वंदना इंडेन की निदेशक वंदना मिश्रा, यूथ इंडिया के अध्यक्ष शिव गांधी, एनजीओ प्रमुख उर्मिला सिंह आदि के नेतृत्व में ऊर्जा एवं पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया गया।

डेहरी-आन-सोन के प्रतिष्ठित चिकित्सक डा. एसबी प्रसाद ने कहा है कि वायु प्रदूषण का व्यापक खराब असर जन स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, जिसके लिए पूरे समाज में जागरूकता की जरूरत है। ताकि लोग पेट्रोल-डीजल का सीमित मात्रा में ही उपयोग करें। वैसे भी पेट्रोल-डीजल के भंडार धरती पर कम हैं, इसलिए इसका पूरी मितव्ययतात से ही उपयोग होना जरूरी है।


डेहरी अनुमंडल विधिज्ञ संघ के अध्यक्ष उमाशंकर पांडेय उर्फ मुटुर पांडेय का कहना है कि हालांकि पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश लगाए जाने को लेकर विभिन्न तरह के कानूनी प्रावधान है, मगर समाज के जागरूक होने पर ही पर्यावरण कानून की सकारात्मक भूमिका हो सकती है। लोगों को प्रदूषण के खतरे और तेल भंडार के सीमित होने की बात को भी गंभीरता को जानकर सजग होनाहोगा।

(वेब रिपोर्टिंग  : निशांत राज,  तस्वीर  : देवेन्द्र सिंह प्रज्ञा)

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