कि गालिब को याद करके गा सकूं…

वरिष्ठ कवयित्री सरला माहेश्वरी का छठवां काव्य संग्रह पिछले दिनों प्रकाशित हुआ है। कवि-पत्रकार मनोज कुमार झा ने इस पुस्तक की सोनमाटीडाटकाम के पाठकों-दर्शकों के लिए वैचारिक टिप्पणी के साथ समीक्षा की है। भारत के विश्वविश्रुत सोन नद तट (बिहार के डेहरी-आन-सोन) वासी  मनोज कुमार झा फिलहाल भोपाल में दैनिक पंजाब केसरी के आनलाइन संस्करण के संपादकीय संभाग से जुड़े हैं।

———————–

कि गालिब को याद करके गा सकूं… !

यह सरला माहेश्वरी की कविताओं का छठा संग्रह है। सरला माहेश्वरी के लिए काव्य-सृजन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इस संग्रह की शुरुआत में उन्होंने लिखा है- यह लिखना तो रुकता ही नहीं, क्या करूं? रोऊं या सर तोड़ूं? सामने जो हर रोज दिखता है, उसे कैसे झेलूं? जो दिखाई दे, उससे मुंह मोड़कर चलने की फितरत नहीं और जो इस दृश्य में प्रवेश करूं तो उसके तल तक न जाऊं, यह मुमकिन नहीं। कवि की यह अनोखी फांस है। इससे सचमुच मुक्ति नहीं। इन पंक्तियों से सरला माहेश्वरी की रचना-प्रक्रिया को समझा जा सकता है। उनकी कविताएँ किस बेचैनी से हो कर गुजरती और रूप-आकार लेती हैं, इसे समझने के लिए वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक यथार्थ और उसकी चुनौतियों को समझना ही नहीं, संवेदना के धरातल पर महसूस करना भी जरूरी है।
पाठकों को भी बेचैन करने की क्षमता रखती हैं बेचैनी से निकली कविताएं
उनके एक कविता संग्रह का शीर्षक है- तुम्हें सोने नहीं देंगी। यह अनायास रखा गया शीर्षक नहींहै। सरला जी की कविताएँ बेचैनी से तो निकलती ही हैं, वह पाठकों को भी बेचैन कर देने की क्षमता रखती हैं। सरला माहेश्वरी लिखती हैं- बढ़ती हुई बेचैनी का सार्थक अंत एक नई रचना ही हो सकती है। यह बात व्यक्ति, समाज, राष्ट्र की सीमा से बाहर निकलकर विश्व पर भी लागू होती है। और, इसीलिये कलम को कभी थमने नहीं देना चाहती। कविता सरला माहेश्वरी के लिए जीवन से एकाकार है, पूरी तरह संपृक्त और सांस लेने की तरह सहज है। उस दर्द को जो चारों तरफ पसरा है, जिससे शायद हम बचकर, कटकर निकल जाना चाहते हैं। इसी विडंबना से उनकी कविताएँ साक्षात्कार कराती हैं। उनका कथ्य होता है कि आज के कटु यथार्थ से बच कर हम भला कैसे निकल सकते हैं, क्योंकि हमारी जिंदगी तो उसी की जद में हैं और हम उसे भुगतने को विवश भी हैं।
समय की सच्चाई को अभिव्यक्त करती है सरला माहेश्वरी की कलम
सरला माहेश्वरी की कविताएं सुसुप्त चेतना पर प्रहार कर बेचैन करती हैं और ऐसे सवाल खड़ी करती हैं कि उन पर सोचे बिना नहीं रहा जा सकता। उनकी कविताओं में अभिव्यक्त समय की सच्चाई और देश-समाज का मौजूदा रूप-बोध आंखें खोलने वाली होती हैं। उनकी कविताएँ सिर्फ सवाल खड़ा नहीं करतीं, वह इतिहास के कालखंड की जटिलताओं के सामने जवाब भी पेश करती हैं कि मनुष्य के अस्तित्व को हर हाल बचाए रखना ही सार्थक विकल्प है। जो कविता समसामयिक नहीं होती, वह इतिहास की सच्चाई से दूर होती है और शब्दों की बाजीगरी बनकर रह जाती है। उनकी कविताओं की संप्रेषणीयता आम पाठक को भी समझ में आ जाती है। पाठक उनकी कविताओं से जुड़ जाता है, क्योंकि उनमें उसकी ही बात कही गई होती है। यही उनकी कविताओं की ताकत है, जो अब कविताओं में दुर्लभ होती जा रही है।

कविताओं में सत्ता की चालबाजी और दुर्नीति पर प्रहार
आमतौर पर यह बता कही जाने लगी है कि हिन्दी में कविताएं दुरुह होने के कारण उसके पाठक नहींहैं, इसलिए कविताएं या कवि जन-परिदृश्य से ही दूर होते जा रहे हैं। मगर सरला माहेश्वरी की कविताओं के संदर्भ में ऐसा तो नहींही कहा जा सकता। इनकी कविताएं समझ में भी आती हैं और किसी न किसी स्तर पर पाठकों को सोचने के लिए विवश भी करती हैं। और, जीवन के संघर्ष के प्रति आस्था पैदा करती हैं, भरोसा दिलाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में सत्ता पूरी निर्लज्जता के साथ नंगा नाच करती रही है। सत्ताधारियों द्वारा आम जनता और उसके संसाधनों के निर्मम शोषण-दोहन के साथ गाय के नाम पर निर्दोषों को मारे जाने, धार्मिक विद्वेष को बढ़ावा दिए जाने, जुमलों से जनता को भ्रमित करने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। सरला जी अपनी कविताओं में सत्ता की चालबाजी और दुर्नीतियों पर जिस प्रकार से प्रहार करती हैं, वह हिंदी कविता में पहली बार रेखांकित हुआ है। उनके व्यंग्य की धार यह भरोसा दिलाती हैं कि झूठ, छल, छद्म पर आधारित राजनीति जो चंद पूंजीपतियों की तिजोरी भरने का उपक्रम बन गई हैं, ज्यादा दिन नहीं चल सकती। जनता अपने जनशत्रु-शासकों को सत्ता से उखाड़ फेंकेगी। कविताओं की अभिव्यक्ति पाठकों में नई उर्जा का संचार करती है।
समीक्षकों ने माना, जीवन के उद्दाम संघर्ष की कविताएं
सरला माहेश्वरी की कविताओं पर साहित्य-वीक्षक लेखिका वीणा भाटिया ने लिखा है- उनकी कविताओं को पढऩा अनुभूति के ऐसे संसार से गुजरना है, जहां जीवन का संघर्ष अपने उद्दाम वेग में जारी रहता है। उनकी कविताओं में राजनीतिक स्वर की मौजूदगी की वजह राजनीति से सक्रिय जुड़ाव है, मगर कविता उन्हें विरासत में मिली है। आलोचक अजय तिवारी लिखते ने लिखा है- आधुनिक समाज का तत्व विचार है, जिसके जरिये हम अपने धर्म (कत्र्तव्य) को पहचानते हैं और अनुरूप आचार सीखते हैं। ्राजनीतिष् इस शिष्ट आचार का विद्रूप बन कर खड़ी है। सरला माहेश्वरी विद्रूपता की राजनीति की आलोचना कर वैकल्पिक राजनीति की वकालत करती हैं। उनके लिए राजनीति उसी व्यापक अर्थ में ग्राह्य है, जिसकी संकल्पना भारतेंदु ने की थी। राजनीति समाज का नियमन करती है, इसलिए कोई भी कवि राजनीति से निरपेक्ष नहींरह सकता। हालांकि उनकी कविताओं का फलक विस्तृत है और जिसमें मनुष्य जीवन, जगत और ज्ञान-संवेदना के साथ आदमी की ऐतिहासिक नियति का अंकन बेहतर तरीके से होता है।

जाने से पहले जगाना चाहती हूं तुम्हें
इस संग्रह (कि गालिब को याद करके गा सकूं…) में 75 कविताएं संग्रहित हैं, जिनमें से अधिसंख्य में आज की कलुषित राजनीति पर प्रहार है। सरला माहेश्वरी के काव्य-शिल्प की सादगी और मर्मवेेधक अभिव्यक्ति उनकी कविताओं की सबसे बड़ी शक्ति है। ये कविताएँ आज के सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ का आईना और नवनिर्माण की पूर्वपीठिका तैयार करती आलोचना हैं। प्रस्तुत है पुस्तक से काव्य-अंश- जाने से पहले जगाना चाहती हूं तुम्हें।
दर्दनाक चीखें रात के अंधेरे में
और और बढ़ती जाती हैं
सामिहक रुदन का बेहद कारुणिक स्वर
वो दर्दनाक चीखें तुम्हें
सुनाई नहीं देती
तुम्हारी पथरीली आँखें
कुछ भी नहीं देखती
पाश की तरह मुझे
तुम्हारी ये मुर्दा शांति
बेहद ख़तरनाक लगती है!
इसीलिये जाने से पहले
जगाना चाहती हूँ तुम्हें
तुम्हारे दिल को कुछ दर्द देना चाहती हूँ
तुम्हारी सूखी हुई आँखों से
उस दर्द को बहाना चाहती हूँ कि
ग़ालिब को याद करके गा सकूँ
दिल ही तो है न संग-ओ-खश्ति दर्द से भर न आये क्यों!
(इसी पुस्तक से)

——————————-——–
पुस्तक : कि ग़ालिब को याद करके गा सकूँ   (कविता संग्रह)     कवयित्री : सरला माहेश्वरी
प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर     प्रकाशन वर्ष 2018, मूल्य 400 रुपये
समीक्षक : मनोज कुमार झा,   पंजाब केसरी, भोपाल फोन 7509664223
—————————————

  • Related Posts

    बाबा नागार्जुन स्मृति सम्मान से नवाजे गए कवि कुमार बिंदु

    डेहरी-आन-सोन  (रोहतास) कार्यालय प्रतिनिधि। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के पटना में हुए 106 वें स्थापना दिवस समारोह एवं 43 वें महाधिवेशन में रोहतास जिले के वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात कवि…

    विश्व खाद्य दिवस पर डॉ.आशुतोष उपाध्याय की कविता

    डॉ.आशुतोष उपाध्याय की कविता : बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए भोजन का अधिकार   (1) आओ मित्रों! 16अक्टूबर 2024 को, विश्व खाद्य दिवस कुछ इस प्रकार मनायें भोजन…

    One thought on “कि गालिब को याद करके गा सकूं…

    1. सोनमाटी की सामग्री स्तरीय है। सरला माहेश्वरीजी के काव्य संकलन की समीक्षा अच्छी लगी ।
      संपादक मंडल को इस सार्थक प्रयास हेतु बधाई !

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

    You Missed

    मशरूम की खेती कर किसान बढ़ा सकते है अपनी आय, शुरु हुआ जीएनएसयू में प्रशिक्षण कार्यक्रम

    मशरूम की खेती कर किसान बढ़ा सकते है अपनी आय, शुरु हुआ जीएनएसयू में प्रशिक्षण कार्यक्रम

    नारायण फार्मेसी संस्थान में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस आधारित ड्रग डिस्कवरी पर कार्यशाला का आयोजन

    नारायण फार्मेसी संस्थान में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस आधारित ड्रग डिस्कवरी पर कार्यशाला का आयोजन

    आईसीएआर परिसर पटना में मृदा देखभाल हेतु कार्यशाला का हुआआयोजन

    आईसीएआर परिसर पटना में मृदा देखभाल हेतु कार्यशाला का हुआआयोजन

    मीडिया कार्यशाला में विकसित भारत 2047 और वेब्स समिट पर हुई चर्चा

    मीडिया कार्यशाला में विकसित भारत 2047 और वेब्स समिट पर हुई चर्चा

    हम सभी को अपनी जीवन शैली में सुधार कर के बच्चों एवं वृद्ध व्यक्ति को दिव्यांगता से बचाव के निरंतर प्रयास करना चाहिए : गोपाल नारायण सिंह

    हम सभी को अपनी जीवन शैली में सुधार कर के बच्चों एवं वृद्ध व्यक्ति को दिव्यांगता से बचाव के निरंतर प्रयास करना चाहिए : गोपाल नारायण सिंह

    7 दिसंबर को सासाराम में होगा जदयू का जिला कार्यकर्ता सम्मेलन

    7 दिसंबर को सासाराम में होगा जदयू का जिला कार्यकर्ता सम्मेलन