न्याय की जटिल प्रक्रियाओं से गुजरने और न्यायालय का फैसला आने-लागू होने में लगा सात साल से ज्यादा वक्त
दिल्ली/औरंगाबाद (कार्यालय प्रतिनिधि)। देश के बहुचर्चित निर्भया कांड के चारों दोषियों को अतत: फांसी के फंदे पर लटका ही दिया गया। न्याय की जटिल प्रक्रियाओं से गुजरने और न्यायालय का फैसला आने, लागू होने में सात साल से ज्यादा वक्त लगा। तीन बार सजा तामील होने की तारीखें टलीं। फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले दोषियों को उनके परिवार वालों से अंतिम मुलाकात 19 मार्च की दोपहर 12 बजे तक ही हुई। इसके बाद इन्हें किसी से नहीं मिलने दिया गया। उन्हें दिल्ली जेल के फांसीघर में 20 मार्च की तड़के सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर लटका दिया गया। 16 दिसंबर 2012 की रात चलती बस में निर्भया के साथ छह लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया। क्रूरता की अति इतनी थी कि हफ्ते भर अस्पतालों में जूझते हुए निर्भया की मौत हो गई। बलात्कारियों में एक के नाबालिग होने से उस पर जुवेनाइल एक्ट (किशोर कानून) के तहत मामला चला। बस के ड्राइवर राम सिंह ने जेल में ही आत्महत्या कर ली। बाकी चारों दोषियों ने फांसी से बचने के लिए हर कानूनी विकल्प का इस्तेमाल किया। अक्षय, पवन और विनय ने वकील एपी सिंह के जरिये अंतरराष्ट्रीय अदालत का भी दरवाजा खटखटाया। पीडि़ता के परिजनों और देश भर के उन सभी लोगों ने राहत की सांस ली है, जो इस हादसे के बाद सड़क पर स्त्री की सुरक्षा और सम्मान को लेकर चिंतित रहे हैं।
नहींसुधरा न्याय का पुराना ढर्रा : निर्भयाकांड के बाद देश में जबर्दस्त आक्रोश फैला था और महिला सुरक्षा-सम्मान को लेकर आंदोलन का सिलसिला चला था। सरकार पर दबाव बढ़ा तो जस्टिस वर्मा कमिटी गठित हुई, जिसकी सिफारिश के अनुरूप कई नियम-कायदे भी बने। मगर निर्भया कांड के गुजरे सात सालों बाद भी इन्साफ का ढर्रा नहींबदला। यह असर जरूर हुआ कि महिलाएं पहले से ज्यादा अत्याचार-बलात्कार की सूचना देने के लिए सामने आने लगी और पुलिस उनकी शिकायत पर पहले से ज्यादा ध्यान देने लगी। दुष्कर्म मामलों में आरोपियों में से 27 फीसदी को ही सजा मिल पाती है, क्योंकि पुलिस सटीक ठोस सबूत जुटा नहींपाती। माना जाता है कि सरकारों ने पुलिस को जांच की आधुनिकतम तकनीकों से लैस नहींकिया है। सजा कितनी मिलती है, इससे ज्यादा अहम बात यह भी है कि सजा कितनी जल्दी मिलती है, ताकि त्वरित न्याय अपराधियों में खौफ पैदा कर सके।
ऐसे हुई थी अक्षय की गिरफ्तारी : दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर नीरज कुमार ने अपनी किताब (खाकी फाइल्स) में निर्भया कांड के दोषियों को गिरफ्तार करने की पुलिस-प्रक्रिया के बारे में बताया है। दोषियों में एक अक्षय सिंह बिहार के औरंगाबाद जिले के नक्सली प्रभाव वाले उस इलाके का रहने वाला था, जहां पुलिस पर चार बार माओवादी हमला हो चुका था। कांड के बाद वह भागकर अपने गांव आ गया। उसे उसके मोबाइल नंबर के जरिये गिरफ्तार किया गया था। इस कांड में पहली गिरफ्तारी बस चालक राम सिंह की हुई। गिरफ्तारी के बाद उसने पुलिस को अक्षय के घर का फोन नंबर दिया था, जिस पर पर वह अपने परिवार से बात करता था। 19 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने औरंगाबाद के टंडवा पुलिस थाने से संपर्क किया। उसे गिरफ्तार करने दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर ऋतुराज औरंगाबाद आए। आरोपी के बारे जानकारी इक_ा करने के लिए आस-पास के लोगों से पूछताछ हुई। औरंगाबाद पुलिस के सब-इंस्पेक्टर अजय कुमार ने पुलिस के खबरी से अक्षय के बारे में जानकारी हासिल की। 21 दिसंबर 2012 को टंडवा रेलवे स्टेशन (हाल्ट) से उसे गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तार कर उसे जिलाधिकारी के समक्ष पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर लिया गया और रात 9 बजे के बाद दिल्ली पुलिस उसे लेकर भाया वाराणसी रवाना हो गई।
पुनीता ने दी तलाक की अर्जी : अक्षय ठाकुर की पत्नी पुनीता देवी ने औरंगाबाद परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी देते हुए यह कहा कि वह अक्षय की विधवा बनकर नहीं रहना चाहती, क्योंकि वह तो निर्दोष है। माना गया कि उसने अपने पति को फांसी से बचाने या टालने के लिए तलाक लेने का कानून का एक दांव चला। इस मामले में अक्षय की पत्नी के वकील मुकेश कुमार सिंह का कहना है कि महिला को हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत कई मामलों में तलाक का अधिकार है और दुष्कर्म के दोषी से वह तलाक ले सकती है।
(तस्वीर, रिपोर्ट : निशांत राज)
कागजों में तो स्वर्ग बनाते, मगर जमीन पर नरक बनी रहती है… क्योंकि हम नगरपालिका हैं!
डेहरी-आन-सोन (कार्यालय प्रतिनिधि)। 13 और 14 मार्च को बमुश्किल घंटे भर की बारिश से जलजमाव का जो नजारा बना, उसने शहर को डरा दिया है कि इस बार बरसात में हालत नर्क से बदतर होगी। स्टेशन रोड से जीटी रोड तक की पांच-छह वार्डोंंं के बाशिंदे बरसात की सूरतेहाल की आशंका से सहमे हुए हैं। नियमानुसार नालीबनाए बिना ही और पुरानी सतह की खुदाई किए बिना सड़कें-गलियां बना दी गईं। ठेकेदारों को भुगतान हो गया। सड़केें ऊंची हुईं तो घर के दरवाजों के आगे लोगों को बरसात के पानी के घुसने से बचने के लिए घेरा उठाना पड़ा है। दशकों से पुरानी नालियों से घरों का मल-जल बाहर आकर घरों के सामने बहता रहता है। बाशिंदे दशकों से नरक झेलते रहे हैं। फिर भी आज तक जल निकासी की मुकम्मल व्यवस्था नहींहुई। जमीन पर सफाई की कारगर जिम्मेदारी वहन किए बिना और टैक्स उगाहने का डंडा दिखाते हुए अंधा-बहरा बने रहकर कमीशन की बंदरबांट कर पांच वर्ष में जनप्रतिनिधि और तीन वर्ष में अधिकारी चले जाते रहे हैं। एक गुट बजट पर हावी बना रहता है तो गुट से बाहर के वार्ड पार्षद को परेशानी झेलनी पड़ती है। स्टेशन रोड, मोहन बिगहा, न्यू एरिया, जक्खी बिगहा, जोड़ा मंदिर, जीटी रोड तक स्थिति नारकीय है। वार्ड 25 के पार्षद प्रतिनिधि (पति) का कहना है कि मल-जल निकासी के मुद्दे पर पार्षद की बात नहींसुनी जाती। दरअसल, नगर परिषद कागजों में स्वर्ग बनाती, आंकड़ों में स्वच्छता-सफाई का डंका तो पिटती है। मगर सच यही है कि जमीन पर नरक बनी रहती है। सवाल है कि नालियों का बहता नरक और शहर भर में बिखरी हुई गंदगी सबको दिखती है, मगर नगरपालिका को क्यों नहीं दिखती?
झोलाछाप की गंभीर गड़बड़ी एनएमसीएच में दूर, महिला को मिला नया जीवन
जमुहार, डेहरी-आन-सोन (विशेष संवाददाता)। भोजपुर जिला के पकड़ी गांव के निवासी दिलीप राय की पत्नी मिन्ता देवी आठ महीनों से दर्द से बेहद परेशान थी। उसने अपने को देहात के किसी झोलाछाप डाक्टर को दिखाया, जिसने पित्त की थैली का आपरेशन यह बताकर किया कि इसमें पथरी हो गई है। महिला को पित्त की थैली से आपरेशन के जरिये कथित पथरी निकाले जाने के बावजूद आराम नहींमिला। महीनों तक दर्द से परेशान रहने के बाद महिला इलाज के लिए गोपालनारायणसिंह विश्वविद्यालय (जीएनएसयू) के अंतर्गत संचालित नारायण मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल (एनएमसीएच) में आई। एनएमसीएच में जांच में यह पाया गया कि झोलाछाप से आपरेशन कराने में महिला की पित्त थैली की नली ही कट गई है। एनएमसीएच के सर्जरी विभाग के चिकित्सकों ने महिला के पेट के भीतर फिर से आपरेशन कर पित्त की थैली को उसकी आंत में दूसरी जगह पर जोडऩे का गंभीर चिकित्सकीय कार्य सफलता के साथ किया। महिला को नया जीवन मिला, दर्द से निजात मिली और वह स्वस्थ हो गई। इस आपरेशन में सर्जरी विभाग के डा. राजीव रंजन, डा. आदित्य विक्रम, डा. शिशिर और डा. अंकित ने चिकित्सा कार्य और सर्जरी विभाग की प्रभारी परिचारिका तुलसी चौधरी ने सघन परिचार कार्य किया।
(रिपोर्ट, तस्वीर : भूपेंद्रनारायण सिंह, पीआरओ, जीएनएसयू)