हनीफ ने आर्टिकल में अहमदियों के खिलाफ ईशनिंदा के आरोपों की गई कार्रवाइयों और मुकदमों का जिक्र किया है।
अहमदी या अहमदिया संप्रदाय एक सुधारवादी आंदोलन है जिसे मिर्जा गुलाम अहमद ने 19वीं सदी के आखिर में कादियान शहर में शुरू किया था जो अब भारत के पंजाब प्रांत में है। अहमद ने दावा किया था कुरान में जिस मसीहा का जिक्र किया गया है, वह उसी के अवतार हैं। उनका यह दावा मुख्यधारा के मुस्लिमों की उस धारणा के खिलाफ थी जो मानते हैं मुहम्मद ही इस्लाम के अंतिम पैगंबर हैं। अहमद पर ब्रिटिश साम्राज्य का एजेंट होने का आरोप लगा था।
पाकिस्तान में अहमदी शब्द को भी आपत्तिजनक माना जाता है। संसद में किसी भी डिबेट में बमुश्किल इस शब्द का इस्तेमाल होता है। अहमदियों के बजाय उन्हें कादियानी कहा जाता है। हनीफ ने अपने आर्टिकल में कहा कि अहमदियों को हिंदू या यहूदियों से भी बदतर माना जाता है। उन्होंने कहा कि 1980 के दशक के मध्य के अहमदियों को गैर-मुस्लिम घोषित किया गया था। बाद में कई और कानून बनाए गए और उनके मुस्लिमों की तरह बर्ताव करने पर रोक लगा दी गई। हनीफ ने आर्टिकल में लिखा है कि अहमदियों को नौकरी नहीं दी जाती, उन्हें दुकानों या बिजनस मीटिंग से बाहर रखा जाता है।