सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है   Click to listen highlighted text! सोनमाटी के न्यूज पोर्टल पर आपका स्वागत है

पहाड़ पर फिर खदबदा रहा माओवादी रक्तबीज

पटना/डेहरी-आन-सोन/औरंगाबाद (बिहार) -कृष्ण किसलय। बिहार के दक्षिणी सीमांत क्षेत्र के कैमूर पहाड़ पर दशकों तक जारी रही रक्तरंजित नक्सली गतिविधियां अद्र्धसैन्य बलों के लगातार अभियान से पिछले कई सालों से थम गई थींऔर माना जा रहा था कि नक्सली सेनाओं की रीढ़ इस इलाके में टूट चुकी है। मगर दक्षिणी सीमांत क्षेत्र में पिछलों दिनों की गतिविधियां यह संकेत दे रही हैं कि कैमूर पहाड़ फिर खदबदाने लगा है और जंगल फिर से सुलगने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि बिहार सहित चार राज्यों झारखंड, उत्तर प्रदेश व छतीसगढ़ को जोडऩे वाले कैमूर पर्वत पर बिखर चुके नक्सलियों ने अपने को फिर से मजबूत करने की रणनीति बनाई है और रक्तबीज की तरह अवसर का आक्सीजन पाकर जीवित (सक्रिय) होने के लिए फिर से संगठित होने के प्रयास में जुट गए हैं।


दशकों तक माओवादियों का शक्तिकेेंद्र
रोहतास जिले में कैमूर पर्वत स्थित प्राचीन काल का रोहतास किला दशकों तक नक्सली संगठनों का शक्ति केेंद्र बना रहा था, जहां 26 जनवरी और 15 अगस्त को राष्ट्रीय तिरंगा के बजाय काला झंडा फहराया जाता था। अंग्रेजों के आधिपत्य जमा लेने से पहले रोहतास किला सदियों तक दिल्ली सल्तनत की एक प्रमुख सैन्य छावनी और पूरे बंगाल (बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश) की रोहतास सरकार के रूप में कैैंप कैपिटल (शिविर राजधानी) रहा था, जो देश की आजादी के बाद केेंद्र व राज्य सरकारों की उपेक्षा और दस्यु गतिविधियों के कारण वीराने में तब्दील हो गया। सड़क संपर्क की सुविधा से विहीन होने और जंगलों से घिरे होने के कारण अलग-थलग पड़ जाने से सरकार और प्रशासन को बहुत बाद में जानकारी हो सकी कि यह स्थल वनोत्पाद व खनिज संपदा के जरिये अवैध कमाई करने वाले विभिन्न राज्यों के विभिन्न नक्सली संगठनों और उनकी आर्मियों का पनाहगाह व रणनीतिक अड्डा बन गया है।
अपराध-धारा में तब्दील नक्सलबाड़ी की आदर्श क्रांति-धारा
पश्चिम बंगाल के एक पिछड़े स्थान नक्सलबाड़ी से निकली नक्सलवाद की आदर्श-धारा आज साफ तौर पर अपराध-धारा में बदल चुकी है। हालांकि विभिन्न माओवादी नक्सली संगठनों द्वारा वनवासियों-आदिवासियों जैसे शोषितों-दलितों और समाज में हाशिए पर पड़े लोगों के हक में संघर्ष करने का दावा किया जा रहा है। इसका उदाहरण नक्सली संगठनों के कमांडरों की व्यक्तिगत आर्थिक हैसियत के रूप में साफ-साफ देखा जा सकता है। बिहार की एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) द्वारा पिछले दिनों तैयार एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आ चुका है कि बिहार और झारखंड के कई माओवादी कमांडर करोड़पति हैं और ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं। वे दूसरे के बच्चों के हाथों में तो हथियार थमाते हैं, मगर अपने बच्चों के भविष्य संवारने के लिए मंहगी शिक्षा दे रहे हैं। यह रिपोर्ट केेंद्र सरकार के ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) को कार्रवाई के लिए सौंपी गई है। इस रिपोर्ट में बिहार में सक्रिय नक्सली कमांडर संदीप यादव और झारखंड में सक्रिय प्रद्युमन शर्मा की भी चर्चा है, जिनके बेटे प्रतिष्ठित कॉलेजों में पढ़ते हैं और जो स्पोट्र्स बाइक रखते हैं। दोनों नक्सली कमांडर और उनके परिवार हवाई जहाज में यात्रा करते हैं।


संदीप यादव : 88 एफआईआर, 5 लाख इनाम
एक नक्सली संगठन के बिहार-झारखंड विशेष क्षेत्र कमिटी के प्रभारी संदीप यादव पर 88 मामले दर्ज हैं और 5 लाख रुपये का इनाम घोषित है। संदीप की पत्नी गया जिले की लुतुआ पंचायत के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं, जिसे स्कूल से अनुपस्थित रहने के बावजूद वेतन मिलता है। रांची में रहने वाली संदीप की पत्नी के पास करीब 80 लाख रुपये की संपत्ति है और औरंगाबाद जिले के तीन बैंकों में 13 लाख 53 हजार रुपये जमा हैं। उसके पास 2 लाख 31 हजार रुपये के म्यूचुअल फंड भी है। इस माओवादी नेता का दामाद नई दिल्ली के राधेश्याम पार्क क्षेत्र के एक स्कूल में शिक्षक है, जिसके पास भी बैंक खातों में 12 लाख रुपये से ज्यादा की रकम है और उसने इसी वर्ष 35 लाख रुपये का एक फ्लैट बुक किया है। पटना के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में बीबीए (द्वितीय वर्ष) के छात्र संदीप के बड़े बेटे ने अपने नाम पर औरंगाबाद के एक शोरूम से स्पोट्र्स बाइक खरीदी है। रांची के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पढऩे वाले संदीप के छोटे बेटे के पास भी स्पोट्र्स बाइक है। उसकी बहन गया जिले के आवासीय स्कूल में पढ़ती है।


प्रद्युमन शर्मा : 51 एफआईआर, 50 हजार का इनाम
एक अन्य नक्सली संगठन के विशेष क्षेत्र कमिटी से जुड़े शीर्ष सदस्य प्रद्युमन शर्मा ने अपने भाई के साथ मिलकर जहानाबाद में 25 एकड़ जमीन खरीदी है, जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये है। कांचीपुरम स्थित मेडिकल कॉलेज में 22 लाख रुपये दाख्रिला खर्च देकर पढऩे वाली प्रद्युमन शर्मा की भतीजी हवाई यात्रा कर कॉलेज आती-जाती है।

 

पुलिस तक पहुंची सक्रियता की जानकारी
बिहार और झारखंड के सोन अंचल के सीमावर्ती जिलों सासाराम, औरंगाबाद व अन्य जेलों से रिहा हुए नक्सलियों ने फिर से मिलना-जुलना और रणनीति बनाकर अपने को संगठित करना शुरू कर दिया है। फिलहाल नक्सलियों की नजर बिहार सरकार द्वारा फिर से दी गई पत्थर खनन की अनुमति के बाद बनने वाली आमदनी की स्थिति पर है। वैध-अवैध खनन को लेकर नक्सली पहले से ही वनोत्पादों और खनिजों के ठेकेदारों-माफियाओं से धन उगाही करते रहे हैं। पुलिस व अद्र्ध सैन्य बलों के दबाव के कारण कैमूर पहाड़ी छोड़कर झारखंड में शरण ले रखे नक्सली कमांडर अजय राजभर ने जेल से रिहा हुए नक्सलियों को संगठित करने की पहल की है। रोहतास जिले के चेनारी, दरिगांव, बड्ड़ी में स्थित पहाड़वर्ती थानों तक नक्सलियों के सक्रिय होने की सूचना पहुंच चुकी है। रोहतास के पुलिस अधीक्षक मानवजीत सिंह ढिल्लो का कहना है कि फिलहाल नक्सलियों द्वारा किसी आपराधिक घटना के अंजाम देने की सूचना नहींहै।

 

One thought on “पहाड़ पर फिर खदबदा रहा माओवादी रक्तबीज

  • October 21, 2017 at 4:47 am
    Permalink

    एकदम अलग। खोजी, तथ्यपरक और दृष्टि को विस्तार देने वाली खबर।

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Click to listen highlighted text!