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विचार/समाचार विश्लेषण (कृष्ण किसलय) : कोरोना से जंग लड़ते हुए ही है जीना / लाकडाउन की ट्रेजडी

-: विचार/समाचार विश्लेषण :-
कोरोना : जंग लड़ते हुए ही है जीना / लाकडाउन की ट्रेजडी
०- कृष्ण किसलय -०
(समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया ग्रुप)

अब तो महाआपदा से जंग लड़ते हुए ही है जीना !

यह तो तय हो चुका है कि पूरी दुनिया को कोरोना महाआपदा से जंग लड़ते हुए ही जीना है, क्योंकि गुजरे तीन-चार महीनों का अनुभव यही बता रहा है कि दुनिया में कोराना वायरस निकट भविष्य में खत्म होने वाला नहीं है। फ्लू के वायरस की तरह कोरोना गर्मी आने के साथ नरम पड़ेगा, यह समझ खारिज हो चुकी है। कोविड-19 का असर कब कम होगा, कैसे कम होगा? इस बारे में दुनिया में कोई कुछ नहीं जानता। अब इस बात ने दुनिया में चिंता बढ़ा दी है कि कोरोना वायरस ग्रस्त कई मरीज ठीक होने के बावजूद दुबारा कोरोना के शिकार हो गए। चीन के वुहान में 50 साल का मरीज ठीक होने के 70 दिन बाद दुबारा कोरोना मरीज बन गया। कई मामलों में यह बात भी सामने आई है कि मरीजों में कोई लक्षण पहले से दिखाई नहीं दिया, मगर जांच में वे कोरोना पाजिटिव पाए गए। उधर, अमेरिका के न्यूयार्क स्थित माउंट सिनाई हास्पिटल, नेफ्रोलाजिस्ट डा. जे. मोक्क ने बताया है कि कोरोना वायरस शरीर में खून जमा रहा है और मरीजों के गुर्दे में खून जमने से दिल का दौरा पडऩे की घटना हुई है। मार्च के तीन हफ्तों में कमउम्र के 32 मरीजों को मस्तिष्क में ब्लड-ब्लाकेज के साथ दिल का दौरा पड़ा। इसका वैक्सीन या कोई पक्का इलाज नहीं होने से में बचकर चलना और गंभीरता से एहतियात बरतना ही सुरक्षित रास्ता है। यही वजह है कि अमेरिका के 39 राज्यों में साल भर के लिए विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए हैं। भारत में 25 मार्च से लाकडाउन होने से कोविड-19 का प्रसार अन्य देशों की तुलना में कम है। लाकडाउन पार्ट-2 के आखिरी सप्ताह की अग्निपरीक्षा ठीक से पार हो गई तो इस महामारी की घेराबंदी आसान होगी। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोविड-19 स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य के. श्रीनाथ रेड्डी ने तो यह कहा है कि विषाणु संक्रमण प्रसार और संक्रमण परीक्षण में देर होने की वजह से अप्रैल के अंत तक संक्रमण के ज्यादा मामले हो सकते हैं।
पारदर्शी निगरानी तंत्र की भी दरकार :
भारत में संक्रमण से पैदा हुई परिस्थिति से लड़ते हुए एहतियात के साथ आर्थिक गतिविधि शुरू हो रही है। भारत सरकार ने 18 अप्रैल से पड़ोसी देशों से होने वाले निवेश के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य बनाकर ठीक किया, क्योंकि अधिकतर भारतीय कंपनियों के शेयरों में गिरावट आने से भारतीय कंपनियों का सस्ते में अधिग्रहण होने और नियंत्रण विदेशी हाथों में जाने का खतरा पैदा हो गया था। यह पाबंदी पहले पाकिस्तान और बांग्लादेश से निवेश पर ही थी। अब चालीस दिन के लाकडाउन ने यह चिंता पैदा कर दी है कि लाकडाउन में सशर्त छूट दी गई तो भी क्या अगले महीनों में आम लोगों की नौकरी सुरक्षित रह सकेगी, काम-धंधा मिल सकेगा और आमदनी का जरिया बचा रहेगा? अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि भारत के असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ श्रमिकों को तुरंत राहत तभी मिल सकती है, जब छोटे उद्योग और कुछ सेवाएं शुरू हों। विश्व बैंक रोज 3.2 डालर यानी 243 रुपये से कम कमाने वाले को गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) मानता हैं। भारत में कोरोना संकट से पहले 81.2 करोड़ यानी आबादी की करीब 60 फीसदी बीपीएल थे। इनमें करीब 7.6 करोड़ की कमाई तो 145 रुपये से भी कम है। यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी का आकलन है कि लाकडाउन से भारत की आबादी में 10 करोड़ से अधिक नए बीपीएल जुड़ जाएंगे। अर्थात, दो-तिहाई से अधिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले होंगे। प्रति व्यक्ति कम आय वाले बिहार में तो समाज के निम्न वर्ग का बड़ा तबका रोजी-रोटी का संकट झेल रहा है। जाहिर है, भुखमरी की समस्या नया सामाजिक संकट पैदा करेगी। इसलिए सरकार को कड़ी मेहनत और पारदर्शी निगरानी तंत्र के जरिये यह भी देखना होगा कि क्या सरकारी राहत योजनाओं का लाभ सभी जरूरतमंदों तक वास्तव में पहुंच रहा है। या, अधिकारी, कर्मचारी, बिचौलिए बंदरबांट में भी लगे हुए हैं। जैसाकि पहले हर आपदा में होता रहा है। यह भी देखना होगा कि पुलिस-प्रशासन का रुख दुराग्रहपूर्ण कड़ा न हो। और, यह भी कि आवश्यक चीजों की आपूर्ति की निरंतरता बाजारों से गांवों-गलियों तक बनी रहे।

लाकडाउन में आत्मा को झकझोर देने वाली ट्रेजडी

न्यायालय का संवेदनशील निर्णय :
लाकडाउन के कारण देश में तरह-तरह की त्रासदी सामने आई है। स्वतंत्र-गणतंत्र भारत के न्यायिक इतिहास में एक संत्रस्त करने वाला दृश्य बिहार के नालंदा न्यायालय में उपस्थित हुआ। नालन्दा जिला के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मानवेन्द्र मिश्र की कोर्ट में पुलिस द्वारा पर्स चुराने के आरोप में गिरफ्तार 16 साल के किशोर को पेश किया गया और न्यायाधीश ने जब विवरण सुना तो समूचा कोर्ट-रूम हालात पर व्यथित-द्रवित हो उठा। कोर्ट ने किशोर को बाल सुधारगृह में रखने के बजाय संवेदनात्मक विवेकपूर्ण कार्य किया और पुलिस को किशोर के घर की दशा की खोज-खबर लेने का निर्देश दिया। इससे पहले मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने कोर्टरूम में मौजूद न्यायालय परिसर के कर्मियों से अनाज, सब्जी, कपड़ा और अन्य जरूरी सामान निजी पैसे से खरीदकर किशोर को देने का आग्रह किया। किशोर ने कोर्ट को बताया कि घर में उसकी मां और उसका 12-13 वर्षीय छोटा भाई भूखा था, इसलिए उसने इस्लामपुर बाजार में एक महिला का पर्स छिन लिया। लोगों ने पकड़ कर उसकी पिटाई की, जिससे उसकी दायीं आंख की देखने की क्षमता खराब हो गई। पैर की टूटी हड्डी इलाज के अभाव में नहीं जुडऩे के कारण वह पहले से लंगड़ा था। उसके पिता की मौत हो चुकी है और विक्षप्त मां बीमार है। किशोर को उसके घर छोड़ने और घर के निरीक्षण के बाद पुलिस इंस्पेक्टर पुष्प राज ने कोर्ट को बताया कि किशोर के परिवार के पास राशन कार्ड, आधार कार्ड नहीं है। उसका घर एक कमरे का मिट्टी की दीवार वाली झोंपड़ी है, जिसमें बिस्तर, खाना बनाने के बर्तन और चूल्हा भी नहीं है। कोर्ट ने स्थानीय प्रशासन को समाज कल्याण की सुविधाएं देने का निर्देश दिया। इस प्रकरण पर द टेलीग्राफ में 22 अप्रैल को पटना संवाददाता देवराज की खबर (छाया : संजय चौधरी) प्रकाशित हुई।

बेटी को कंधे पर ले गया 26 किमी दूर अस्पताल :
स्वतंत्र-गणतंत्र भारत की एक और त्रासद तस्वीर इस लाकडाउन में सामने आई है। 60 साल के बुजुर्ग गरीब मोहम्मद रफी को 17 साल की जवान बीमार बेटी को कंधे पर उठाकर भरी दोपहर में गोवंडी से परेल तक 26 किलोमीटर पैदल चल अस्पताल पहुंचना पड़ा, क्योंकि सार्वजनिक वाहन चल नहीं रहा था और निजी वाहन के लिए पैसे नहीं थे। महाराष्ट्र में मुंबई के निकट गोवंडी झुग्गी बस्ती के मोहम्मद रफी का रसोइया का काम लाकडाउन से बंद हो गया है। 23 अप्रैल को बेटी के पेट में भयानक दर्द उठा तो तुरंत अस्पताल जाने के सिवा दूसरी सूरत नहीं थी।

बुरे फंसे बाराती, मददगार बने गांव वाले :
कोलकाता के बंदिल जंक्शन के निकट भिखमही गांव से आए तीन दर्जन बाराती के छपरा जिला (बिहार) के इनायतपुर गांव के विद्यालय में फंसे हुए हैं। बारातियों के पास खाने के पैसे नहीं बचने के बाद लड़की के गांव और पड़ोसी गांव के लोग बारातियों को खाना खिला रहे हैं। गरीब लड़की वाले की तीन हफ्तों तक बाराती को खाना खिलाने में माली हालत खराब हो गई। फिरोज अख्तर (कोलकाता) की शादी खुशबू खातून (छपरा) के साथ रीति-रिवाज के साथ हुई और अगले दिन लाकडाउन हो गया। बरात में महिलाएं भी हैंं। दुल्हन मायके के बजाय बारातियों के साथ रह रही है। प्रशासन से पास लेकर बारातियों ने वापस जाने की कोशिश की, लेकिन झारखंड की सीमा से पुलिस ने वापस लौटा दिया।
आपदा में अनुकरणीय तरीके से हुआ विवाह : बिहार के नवादा जिले के हिसुआ में हुई शादी में न बैंडबाजा बजा, न रिश्तेदारों का हुजूम जुटा और दूल्हा-दुल्हन समेत मास्क लगाए सभी बारातियों द्वारा सोशल डिस्टेन्स बनाकर शादी की रस्म पूरी हुई। हिसुआ के कालीस्थान निवासी स्व. धर्म देव की बेटी श्वेता की शादी शेखपुरा जिला के बरबीघा, हनुमान गली निवासी स्व. गोपाल प्रसाद वैश्कियार के बेटे गौरव से 25 मार्च को होनी थी। लाकडाउन की वजह से तब शादी नहीं हो सकी। बाद में शेखपुरा अनुमंडल कार्यालय से निर्गत अनुमति-पत्र के आधार पर बिना बैंड-बाजा बमुश्किल एक दर्जन लोगों के बीच गौरव-श्वेता की शादी 15 अप्रैल को हो सकी।
और यह बदमिजाजी भी : एक महिला अपने मायके काम से गई थी और लाकडाउन घोषित होने के कारण वह पति के बुलाने पर नहीं ससुराल नहीं पहुंच सकी तो पति ने दूसरी शादी कर ली। बिहार में पालीगंज के दुल्हिन बाजार थाना के भरतपुरा निवासी धीरज कुमार की शादी कुछ साल पहले करपी थाना क्षेत्र के पुराण में हुई थी। धीरज कुमार के खिरीमोर थानाक्षेत्र के रघुनाथपुर की प्रेमिका से दूसरी शादी करने की शिकायत पुराण की पहली पत्नी ने दुल्हिन बाजार थाना में दर्ज कराई है।
(तस्वीर संयोजन : निशान्त राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह)

One thought on “विचार/समाचार विश्लेषण (कृष्ण किसलय) : कोरोना से जंग लड़ते हुए ही है जीना / लाकडाउन की ट्रेजडी

  • April 26, 2020 at 9:16 am
    Permalink

    Middle class family k lie soche nitish sarkar.ward no 6se Prity Srivastva jo ki apne madhyam vargiye bhai bahan k lie nitish sarkar tk ye massage pahuchana chahti hai

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