(समाचार विश्लेषण/कृष्ण किसलय)
बिहार फिर राजनीति की नई प्रयोगशाला!
लालू-रिक्त बिहार में स्ट्रगल फार स्पेस की सियासत करवट लेने की तैयारी में, सोनभूमि पर अंतरमंथन में मिशन 2019-20 के लिए भाजपा ने बनाया छह संकल्पबद्ध नारों का चुनावी युद्धसूत्र
लालू प्रसाद यादव के चारा घोटाले में जेल जाने के बाद बिहार एक बार फिर राजनीति की प्रयोगशाला बनने की ओर अग्रसर है। प्रमुख दलों में अपने लिए जगह नहींबन पाने की स्थिति वाले और असंतुष्ट नेताओं के मद्देनजर ‘स्ट्रगल फार स्पेसÓ की कूटनीतिक कवायद के तेज होने के आसार बढ़ गए हैं। इस दिशा में आने वाले दिनों में अधिक सियासी सरगर्मी दिखाई देगी। यदि लालू प्रसाद की गैर मौजूदगी में पिछड़े वर्ग के मतों का बिखराव होने पर नए सियासी समीकरण का बनना तय है।
संभव है कि कांग्रेस में टूट हो
हालांकि राजद में एकता के बने रहने की संभावना है, क्योंकि इस दल के रघुवंश सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी और जगदानंद सिंह जैसे नेताओं ने पहले से ही लालू प्रसाद यादव के दूसरे बेटे व उप मुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव को राजद का नेता मान लिया है। संभव है कि कांग्रेस में टूट हो जाए, क्योंकि कांग्रेस के सत्ता में आने की संभावना आने वाले सालों में नहींहै। लालू यादव जैसा नेतृत्व की रिक्तिता होने से बिहार कांग्रेस में ज्यादा निराशा हो सकती है और उसके विधायक व नेता दो ताकतवर दलों भाजपा और जदयू की ओर जा सकते हैं। फिलहाल तो कांग्रेस के टूटने पर जदयू को ज्यादा लाभ मिलने की उम्मीद है।
भाजपा करेगी पिछड़े वर्ग में पैठ बढ़ाने का प्रयास
लालू की बिहार से गैर मौजूदगी में भाजपा पिछड़े वर्ग में अपनी पैठ बढ़ाने और लाभ उठाने का प्रयास करेगी। लालू प्रसाद यादव के जेल जाने से पहले डेहरी-आन-सोन (जमुहार स्थित नारायण विश्वविद्यालय परिसर) में संपन्न भाजपा के राज्यस्तरीय प्रशिक्षण शिविर में लोकसभा चुनाव (2019) व बिहार विधानसभा चुनाव (2020) के मद्देनजर तैयारी का शंखनाद किया जा चुका है। भाजपा ने शिविर में अपने कार्यकताओं को चुनावी युद्ध के लिए लोकलुभावन छह सकल्पबद्ध नारों भ्रष्टाचार, संप्रदाय, जातिवाद, वंशवाद,गरीबी विहीन समाज का सूत्रसमूह बनाया है। लालू रिक्त बिहार भाजपा के लिए फायदेमंद भी हो सकता है।
भाजपा में दिख सकता है स्पेस फार स्ट्रगल का अंतरसंघर्ष
आम तौर पर अगड़ों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा में ‘स्पेस फार स्ट्रगलÓ की रस्साकशी, अंतरद्वंद्व व अंतरसंघर्ष भी है, जो आने वाले दिनों में सतह पर दिख सकता है। संभव है, राजद के कारण बदली हुई परिस्थिति में केेंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव, सांसद छेदी पासवान, पूर्व विधायक सत्यनारायण यादव जैसे नई संस्कृति (आयातित) वाले नेताओं के लिए भाजपा में नया अवसर या आकांक्षा-महत्वाकांक्षा कोई आकार ग्रहण कर सके।
उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में लघु ध्रुवीकरण की संभावना
यह भी संभव है कि भाजपा के सहयोगी दल रालोसपा के नेता उपेन्द्र कुशवाहा के नेतृत्व में कोई लघु ध्रुवीकरण हो और बिहार के लव-कुश की संयुक्त प्रतिनिधि शक्ति बनने की प्रतीक्षारत मंशा परवान चढ़े या परिणामपरक आकार ग्रहण करे।
इलियास हुसैन के लिए चुनौती
इस बीच एक और चेहरा स्ट्रगल फार स्पेस की राह पर है। मोमिन कांफ्रेेंस के देशप्रसिद्ध नेता अब्दुलक्यूम अंसारी के पोते व विधायक पिता खालिदअनवर अंसारी के बेटे तनवीर अंसारी ने दादा-पोते के सरजमीं डेहरी-आन-सोनपर बिहारस्टेट मोमिन कांफ्रेेंस के बैनरतले मौजूदगी दर्ज की है। यह अलकतरा घोटाले के आरोप से पूरी तरह मुक्त नहींहुए विधायक इलियास हुसैन के लिए ‘सिंहासन खाली करोÓ जैसी चुनैती बन सकती है। इसी परिदृश्य में पूर्व विधायक प्रदीप जोशी, रश्मि जोशी भी स्ट्रगल फार स्पेस के लिए सक्रिय हैं।
फिलहाल तो भाजपा लहर
लोकसभा चुनाव के बाद 18 राज्यों के चुनाव में 11 में भाजपा जीत चुकी है। आज भाजपा की सरकार 14 राज्यों में है और वह बिहार सहित 5 राज्यों की सरकार में जूनियर पार्टनर है। कांग्रेस की सरकारें चार राज्यों कर्नाटक, पंजाब, मिजोरम व मेघालय में ही बची हुई हंै। जाहिर है, फिलहाल भाजपा लहर है और वह इस लहर की धार को आगे भी साम, दाम, दंड, भेद आदि सियासी शस्त्रों के जरिये बनाए रखना चाहती है।
पिछड़ा या दलित चेहरा ही पा सकता है मुख्यमंत्री के रूप में बहुस्वीकृति
बिहार में स्थिति यह है कि भाजपा को अगड़ों की पार्टी मानी जाती है और पिछड़ों-दलितों का वोट बैंक अधिक होने से कोई पिछड़ा या दलित चेहरा ही यहां मुख्यमंत्री के रूप में सर्वस्वीकृति या बहुस्वीकृति पा सकता है। बेशक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वच्छ राजनीतिक छवि वाले बड़े कद के राजनेता हैं, पर इनका जनाधार या वोट बैंक लालू प्रसाद से अपेक्षाकृत छोटा है। बड़े जनाधार वाले नेता लालू अब सजा के इंतजार में हैं, जिन्हें सीबीआई की विशेष अदालत ने देवघर (अब झारखंड में) कोषागार से 89 लाख रुपये की अवैध निकासी के मामले में दोषी पाया है। तब वे मुख्यमंत्री थे। विडंबना है कि सभी दल अलकतरा, चारा व अन्य घोटालों के आरोपी नेताओं से दूरी बनाने के बजाय सम्मान के साथ जगह देते रहे है, जिससे राजनीति व भ्रष्टाचार का संबंध चोला-दामन वाला हो गया है। बहरहाल, लालू-रिक्त बिहार में स्ट्रगल फार स्पेस की सियासत करवट लेने की नई तैयारी में है
— कृष्ण किसलय