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हुई कार्रवाई : नक्सली कमांडर की संपत्ति जब्त

पटना/डेहरी-आन-सोन/औरंगाबाद (बिहार) -सोनमाटी समाचार। भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बड़का भैया नाम से चर्चित नक्सली संगठन के बिहार-झारखंड कमेटी के प्रमुख की करोड़ों की संपत्ति जब्त की है। ईडी ने इस तरह की कार्रवाई पहली बार की है। जब्त संपत्ति में नक्सली कमांडर की पत्नी के नाम जमा रकम, भूखंड व महंगी मोटरगाड़ी शामिल हैं। दो दशक से बिहार और झारखंड पुलिस के लिए सिरदर्द बने बिहार के गया जिले के लुटुआ थाना निवासी इस नक्सली कमांडर पर गया जिले के विभिन्न थानों में हत्या, अपहरण, रंगदारी मांगने के 64 मामलों के अलावे झारखंड में भी कई मामले दर्ज हैं। नक्सली संगठन में रहकर इस कमांडर ने भयादोहन से करोड़ों रुपये की संपत्ति अर्जित की। इसकेे प्रभाव क्षेत्र में निर्माण कार्य रंगदारी देकर ही पूरा किया जा सकताहै। इसकी पत्नी लुटुआ में पंचायत शिक्षिका है, जिसके नाम पर औरंगाबाद शहर के सीमावर्ती मुहल्ले (रतनुआ गांव के करीब) में मकान है। दूसरों को साम्यवादी क्रांति का सपना दिखाने और अपने बच्चों का भविष्य संवारने वाले नक्सलियों पर एक विशेष रिपोर्ट सोनमाटी ने जनवरी में ‘हवाई यात्रा करते हैं नक्सली, बच्चे हाईफाई कालेजों मेंÓ शीर्षक से प्रकाशित की थी।

जनवरी में सोनमाटी (प्रिंट) में प्रकाशित और सोनमाटीडाटकाम में प्रसारित रिपोर्ट
पहाड़ पर खदबदा रहा माओवाद का रक्तबीज

पटना/डेहरी-आन-सोन/ गया/औरंगाबाद (कृष्ण किसलय)। बिहार के दक्षिणी सीमांत क्षेत्र के कैमूर पहाड़ पर दशकों तक जारी रही रक्तरंजित नक्सली गतिविधियां अद्र्धसैन्य बलों के लगातार अभियान से पिछले कई सालों से थमी हुई थीं? यह माना जाने लगा था कि नक्सली सेनाओं की रीढ़ इस इलाके में टूट चुकी है। मगर दक्षिणी सीमांत क्षेत्र की कई घटनाएं संकेत दे रही हैं कि कैमूर पहाड़ फिर खदबदा रहा है और जंगल फिर से सुलगने लगा है। रक्तबीज की तरह अवसर का आक्सीजन पाकर नक्सली गिरोह फिर जीवित (सक्रिय) होने के लिए संगठित होने की तैयारी में हैं।
कैमूर पर्वत स्थित प्राचीन रोहतास किला दशकों तक नक्सली संगठनों का शक्ति केेंद्र बना रहा था, जहां 26 जनवरी व 15 अगस्त को राष्ट्रीय तिरंगा के बजाय काला झंडा फहरता था। अंग्रेजों के आधिपत्य जमाने से पहले रोहतास किला सदियों तक दिल्ली सल्तनत की प्रमुख सैन्य छावनी और पूरे बंगाल (बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश) की रोहतास सरकार का कैैंप कैपिटल (शिविर राजधानी) था, जो देश की आजादी के बाद केेंद्र व राज्य सरकारों की उपेक्षा व दस्यु गतिविधियों के कारण वीराने में तब्दील हो गया। सड़क संपर्क से वंचित होने और जंगलों से घिरे होने से अलग-थलग रहने के कारण सरकार व प्रशासन को बहुत बाद में जानकारी हुई कि रोहतास किला वनोत्पाद व खनिज संपदा के जरिये अवैध कमाई करने वाले विभिन्न राज्यों के सशस्त्र नक्सली संगठनों का पनाहगाह बन चुका है।

अपराध-धारा में बदल चुकी नक्सलवाद की आदर्श-धारा

नक्सलबाड़ी (प.बंगाल) से निकली नक्सलवाद की आदर्श-धारा आज साफ तौर पर अपराध-धारा में बदल चुकी है। आज भी माओवादी नक्सली संगठन वनवासियों आदिवासियों जैसे समाज में हाशिए पर पड़े लोगों के हक में संघर्ष करने का दावा करते हैं। जबकि बिहार की एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) द्वारा तैयार रिपोर्ट यह बताती है किबिहार-झारखंड के माओवादी कमांडर करोड़पति हैं और ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं। वे दूसरे के बच्चों के हाथों में तो हथियार थमाते हैं, पर अपने बच्चों को भविष्य संवारने के लिए मंहगी शिक्षा दिलाते हैं। केेंद्र सरकार के प्रवर्तन निदेशालय को सौंपी गई रिपोर्ट में बिहार व झारखंड में सक्रिय दो कमांडरों की भी चर्चा है। रिपोर्ट यह बताती है कि एक नक्सली संगठन के बिहार-झारखंड विशेष क्षेत्र कमिटी के प्रभारी  पर 88 मामले दर्ज हैं और 5 लाख रुपये का इनाम घोषित है। पत्नी गया जिले की लुतुआ पंचायत के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं, जिसे स्कूल से अनुपस्थित रहने के बावजूद वेतन मिलता है। रांची में रहने वाली पत्नी के पास करीब 80 लाख रुपये की संपत्ति है और औरंगाबाद जिले के तीन बैंकों में 13 लाख 53 हजार रुपये जमा हैं। उसके पास 2 लाख 31 हजार रुपये के म्यूचुअल फंड भी है। इस माओवादी नेता का दामाद नई दिल्ली के राधेश्याम पार्क क्षेत्र के एक स्कूल शिक्षक है, जिनके पास भी बैंक खातों में 12 लाख रुपये से ज्यादा की रकम है और उसने इसी वर्ष 35 लाख रुपये का एक फ्लैट बुक किया है।

हवाई यात्रा करते हैं नक्सली, बच्चे हाईफाई कालेजों में

पटना के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में बीबीए (द्वितीय वर्ष) के छात्र इसके बड़े बेटे ने अपने नाम पर औरंगाबाद के शोरूम से स्पोट्र्स बाइक खरीदी है। रांची के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पढऩे वाले संदीप के छोटे बेटे के पास भी स्पोट्र्स बाइक है। उसकी बहन गया जिले के आवासीय स्कूल में पढ़ती है। एक अन्य नक्सली संगठन के विशेष क्षेत्र कमिटी से जुड़े प्रद्युमन शर्मा पर 51 एफआईआर दर्ज है और 50 हजार का इनाम है। प्रद्युमन शर्मा ने भाई के साथ मिलकर जहानाबाद में 25 एकड़ जमीन खरीदी है, जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये है। कांचीपुरम स्थिति मेडिकल कॉलेज में 22 लाख रुपये दाख्रिला खर्च देकर पढऩे वाली प्रद्युमन शर्मा की भतीजी हवाई यात्रा कर कालेज आती-जाती है। बिहार और झारखंड के सोन अंचल के सीमावर्ती जिलों सासाराम, औरंगाबाद व अन्यजेलों से रिहा हुए नक्सलियों ने फिर से अपने को संगठित करना शुरू कर दिया है। नक्सलियों की नजर बिहार सरकार द्वारा फिर से दी गई पत्थर खनन की अनुमति के बाद बनने वाली आमदनी की स्थिति पर है। वैध-अवैध खनन से नक्सली पहले भी धन उगाही करते रहे हैं। पुलिस व अद्र्ध सैन्य बलों के दबावके बाद कैमूर पहाड़ी छोड़कर झारखंड में शरण ले रखे नक्सली कमांडर अजय राजभर ने सासाराम जेल से रिहा हुए नक्सलियों को संगठित करने की पहल कर रहे हैं।
सक्रियता की सूचना थानों में
रोहतास जिले के पहाड़वर्ती थानों चेनारी, दरिगांव, बड्ड़ी तक नक्सलियों के सक्रिय होने की सूचना पहुंच चुकी है। रोहतास के पुलिस अधीक्षक मानवजीत सिंह ढिल्लो का कहना है कि फिलहाल नक्सलियों द्वारा किसी आपराधिक घटना के अंजाम देने की सूचना नहींहै।

कैमूर पर खड़ा फिर यक्ष प्रश्न!
रोहतास किला (डेहरी-आन-सोन, बिहार) से लौटकर उपेन्द्र कश्यप। क्या कैमूर फिर करवट बदलने लगा है और बिहार सहित चार राज्यों को जोडऩे वाले कैमूर पर्वत पर नक्सली गतिविधियां फिर वापस लौटेंगी? क्या पुलिस का रवैया अपने मुखबीर या सहयोग देने वालों के प्रति न्यायपूर्ण नहीं होता? कैमूर पहाड़ पर नक्सल विरोधी अभियान में पुलिस-प्रशासन के साथ लंबे समय तक कदम मिलाकर चलने वाले और अपने आदिवासी इलाके के ग्राम पंचायत के निर्वाचित जनप्रतिनिधि (मुखिया) रहे सुग्रीव खरवार की गिरफ्तारी से अनेक सवाल खड़े हुए है।
एक समय था जब कैमूर पहाड़ पर स्थित प्राचीन रोहतासगढ़ किले पर राष्ट्रध्वज तिरंगे को फहराने की जगह नक्सलियों का प्रतीक ध्वज काला झंडा लहराया जाता था। कैमूर पर्वत के रोहतासगढ़ शिखर पर राज्यों के नक्सली संगठन काला झंडा फहराते और प्रशिक्षण शिविर चलाते थे। कैमूर पहाड़ और इसके पाश्र्ववर्ती क्षेत्र में पुलिस के आम चरित्र से अलग सामुदायिक पुलिसिंग का विस्तार किया गया। आदिवासी.वनवासी.पर्वतवासी समुदाय में भी समाज की मुख्य धारा से जुडऩे की ललक बढ़ी और जनतांत्रिक व्यवस्था में उन्हें अवसर भी मिला। पहाड़ के 300 से अधिक युवाओं को पर्यटन गाइड के रूप में जोड़ा गया। रोहतासगढ़ पर राष्ट्रीय तिरंगा फहरने लगा।
यदि सुग्रीव खरवार पहले नक्सल विरोधी मुहिम में पुलिस के साथ थे तो अचानक वे कैसे नक्सली घटना को अंजाम देने वाले बन गए? रोहतास के एसपी का कहना है कि सुग्रीव खरवार को नक्सल गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यदि पुलिस सही है तो पिर जनता अपने ही जनप्रतिनिधि पर कैसे भरोसा करे? आखिर खरवार किस परिस्थिति में भटके या पुलिस के इस्तेमाल होने वाले उपकरण बन गए? संदेह व सवाल दोनों तरफ हैं और इन प्रश्नों के उत्तर मिले बिना संदेह दूर नहीं होंगे।
– सोनमाटीडाटकाम में उपेन्द्र कश्यप, लेखक-पत्रकार

 

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