सोनमाटीडाटकाम के पाठकों के लिए तीन कवियों मिथिलेशकुमार सिंह, कुमार बिन्दु और तूलिका चेतिया येइन की रचनाओं के साथ होली की शुभकामनाएं। बिहार में ढाई दशक पहले नवभारत टाइम्स (पटना) के संपादकीय डेस्क के सिद्धहस्त वरिष्ठ उप संपादकों में से एक मिथिलेशकुमार सिंह पिछले वर्षों राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय संपादक (पटना) और इंडिपेंडेन्ट मेल (भोपाल) के समूह संपादक रह चुके हैं। अखबारी दुनिया की आपाधापी में बहुत कम लोगों को पता है कि वह संवेदना के एक अलग धरातल के काव्यशिल्पी भी हैं। जबकि सासाराम के हिन्दुस्तान कार्यालय में कार्यरत (निज संवाददाता) कुमार बिन्दु बिहार के सोनघाटी (डेहरी-आन-सोन निवासी) इलाके के सुपरिचित कवि हैं और तूलिका चेतिया येइन पूर्वोत्तर भारत की गैर-हिन्दी युवा कवयित्री हैं।
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वह नहीं हो सकती मां
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0- मिथिलेशकुमार सिंह
कभी-कभी ही आती है
कोई चिट्ठी कि कैसे हो?
यह चिट्ठी अम्मा की भी हो सकती है
जिसे गये बरसों बीत गये
जाती हुई अम्मा से नहीं हो
पाई थी मेरी मुलाकात
नहीं छू पाई थी अम्मा मेरे हाथ
बदन सहलाते हुए उसकी आंखें
जिनमें रह गयी थी बहुत मामूली सी रोशनी
टोह नहीं ले पायीं
वरना कहतीं जरूर कि
हाथ होने चाहिए शेर के पंजे जैसे
चीते जैसी चाहिए फुर्ती
मर्द को होना चाहिए सख्त
बिल्कुल नारियल जैसा।
असल में अम्मा की
चिंता बिल्कुल दूसरी थी, दोस्तो!
उसकी चिंता में था सरयू घाट
जहां वह अंतिम रूप से जाना चाहती थी
बिल्कुल ठंडी पड़ जाने के बाद
उसकी इच्छा में नहीं था
कोई स्वर्ग, नहीं था कोई नर्क
नहीं थी कोई वैतरणी
नहीं थे भाले और फरसे चमकाते यमराज
वह इन सबसे लडऩा चाहती थी
नहीं लड़ पाने का था
उसे बडा़ गंभीर संताप
वह चाहती थी उसकी नस्लें लड़ें
ठीक वैसे ही जैसे कोई लड़ता है अपनों से
अपनों की हिफाजत में
ठीक वैसे ही जैसे मेरी रेवा
लड़ती है अपनों से
सपनों की हिफाजत में।
यह चिट्ठी अम्मा की नहीं हो सकती
क्योंकि चिट्ठी में और कुछ हो न हो
गमक नहीं है
अम्मा की सादी चिट्ठी में भी
होती थी एक गमक
और वह गमक
हमें बिना टिकट बिना पास
घुमा लाती थी ददरी
सोनपुर जैसे मेले जहां
पानी के जहाज हमारा
इंतजार कर रहे होते थे
कुछ नहीं लिखती थी अम्मा
तब भी लेकिन उसकी चिट्ठी
पढ़ते हुए हम भाई
घूम आते थे दिग-दिगंत
उस गंध की टोह में
जिसका हर सिरा मां से जुड़ता था
मां से ही खुलता था।
मां नहीं है
इसलिए वह गमक नहीं है
इसीलिए मैं पूरे एतमाद के साथ
कह रहा हूं
वह चिट्ठी मां की नहीं है
वह चिट्ठी किसी दोस्त की हो सकती है
हो सकता है
चौंकाना चाहता हो वह
हो सकता है उसे लेना हो
मेरी याददाश्त का इम्तहान
जानना चाहता हो कि
लिखावट सूंघ लेने का हुनर मुझमें
अब भी बचा है या नहीं
होने को कुछ भी हो सकता है दोस्तो
हम जिस दुनिया में हैं
वहां साबित करने को
अब कुछ भी नहीं बचा
यह साबित करने का वक्त भी नहीं है
दोस्तो, यह वक्त है
कोई चिट्ठी पढऩे का
जिसमें बिना किसी भूमिका
बिना किसी प्रस्तावना के
लिखा हो- कैसे हो ?
फोन 7903772108
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चमन में ये कैसी बहार ?
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0- कुमार बिन्दु
चमन में कैसी बहार या खुदा आयी है।
नर्म शाखों ने लचकने की सजा पायी है।।
उल्फत में तिजारत सजदे में भी सियासत,
ये रस्मए ये रवायत बनके कजा आयी है।
हर सू फैली आग नफरत की अदावत की,
दामन में भरकर बारूद हवा लायी है।
फिर कयामत कोई हुई बेजार बेकरार,
फिर कहीं से मोहब्बत की सदा आयी है।
जिस्म से रूह तलक उठा दर्द का सैलाब,
आज साकी तू ये कैसा नगमा गायी है?
फोन 9939388474
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निस्तब्ध !
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0- तूलिका चेतिया येइन
लंबे अंतराल के बाद
मैंने अपनी प्रेमिका से बातें कीं
टेलीफोन पर मिठी-मिठी बातें सुनकर
मैं भाव विभोर हो गया
आपा तक भूल गया,
उसने पूछा कैसे हो?
मैंने अपने-आप से पूछा- मैं कैसे हूं.
प्रेमिका से झूठ नहीं बोल सकता,
कैसे समझाऊं उसको कि मैं
उससे नाता टूटने के बाद
मैं पीला पड़ गई हूं
कोई आशा नहीं, स्वप्न नहीं
बस चल रही हूं
चोट खाकर भी शिकवा नहीं
आह भरकर भी चित्कार नहीं
मैं हो गई आकांक्षाविहीन
दिल में प्रेम नहीं, नफरत नहीं, प्रतिक्रिया नहीं
बस, एक कक्ष में अकेला बैठा हूं
निस्तब्ध, निर्वाक !
(अनुवाद : देबीप्रसाद बागड़ोदिया)
फोन 8011167203
मुझे सोन माटी की संपादयकी बहुत अच्छी लगती हैं