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19वीं सदी : जिन्हें काटना पड़ा अपना स्तन

इस पोस्ट की सामग्री पर पटना (बिहार) के वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल रंजन दफ्तुआर ने 08 मार्च की शाम सोनमाटी मीडिया समूह के समूह संपादक से फोन 9708778136 पर लंबी वार्ता की और नांगेली के ऐतिहासिक तथ्यों से वाकिफ होने का प्रयास किया। विशाल रंजन दफ्तुआर प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और साइंस ओलिम्पियाड (दिल्ली) के समन्वयक के रूप में भी सक्रिय हैं। दरअसल नांगेली के इतिहास पर और त्रावणकोर राज में दलित जाति की महिलाओं पर स्तन-कर लगाए जाने के मामले में  कम काम हुआ है। नांगेली ही नहीं, देश में स्थानीय इतिहास पर भी बेहद कम काम हुए हैं। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के इतिहासकार स्थानीय इतिहास पर काम करने में संकोच करते हैं। यदि वे काम करें तो सार्वकालिक दृष्टि वाली विशेष और व्यापक तथ्यों वाले इतिहास से लोग वाकिफ हो सकेेंगे।
 
यह पोस्ट विदर्भ अंचल (नागपुर, महाराष्ट्र) के अग्रणी न्यूज पोर्टल विदर्भआपलाडाटकाम vidarbhaapla.com (संपादक कल्याण सिन्हा) पर भी सोनमाटी के विशेष उल्लेख के साथ प्रसारित की गई है।
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केरल की नांगेली ने स्तन-कर के बर्बर कानून के खिलाफ आवाज उठाई थी और अपना जीवन कुर्बान कर दिया था। उसकी उम्र करीब तीस साल की थी। नांगेली खूबसूरत महिला थीं, मगर वह तब सामाजिक व्यवस्था में नीच माने जाने वाले तबके (एड़वा जाति) की थी। उस दौर में महिला दिवस की परंपरा या महिला सशक्तिकरण की आम चलन नहीं थी और नांगेली ने पूरी हिम्मत के साथ आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ी थी। यह घटना वर्ष 1803 की केरल के तटवर्ती स्थान चेरथला की है। नांगेली के बलिदान के बाद ब्रेस्ट टैक्स का बर्बर कानून हटा लिया गया।
 वसूला जाता था मुलक्करम (स्तन-कर)
केरल (त्रावणकोर) में सार्वजनिक तौर पर अपने स्तनों को ढककर रखने की इच्छा रखने वाली महिलाओं से मुलक्करम (स्तन-कर) वसूला जाता था। गरीब महिलाओं को अपने स्तन ढंकने के लिए राजा को कर चुकाना पड़ता था और अपने स्तन को ढंकने के अधिकार को पाने के लिए टैक्स देना होता था। जितने बड़े स्तन होते थे, टैक्स की रकम उतनी ज्यादा होती थी।
ज्यादा खून बहने से हो गई मौत
स्थानीय कर अधिकारी (परवथियार) बकाया ब्रेस्ट टैक्स वसूलने के लिए बार-बार नांगेली के घर आ रहा था। नांगेली ने तय कर लिया था कि त्रावणकोर के राजा द्वारा लगाए जाना वाला यह अमानवीय टैक्स वह नहीं देगी। अंतिम बार घर पर आए परवथियार को उसने इंतजार करने को कहा। उसने केले का पत्ता सामने फर्श पर रखकर दीप जलाया और प्रार्थना पूरी करने के बाद धारदार हथियार से अपने दोनों स्तन काट डाले। ज्यादा खून बह जाने के चलते उसकी मौत हो गई। नंगेली के दाह-संस्कार के दौरान उनके पति ने भी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी।

जो आग नंगेली महिलाओं के अंदर जगा के गईं, बुझी नहीं। उनकी मौत के बाद एड़वा जाति की महिलाओं में हिम्मत आई और उन्होंने ‘स्तन-कर’ देने से मना कर दिया। महिलाओं के विरोध के बाद त्रावणकोर में ‘स्तन कर’ खत्म हो गया।

 मुलाचिपा राम्बु में दिया था बलिदान
ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था। यह एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी। इस कर को बार-बार अदा कर पाना ग़रीब समुदाय के लिए मुमकिन नहीं था। नांगेली का केरल की स्थानीय भाषा में अर्थ है खूबसूरत। चेरथला में नांगेली ने जिस जगह पर यह बलिदान दिया था, उसे मुलाचिपा राम्बु (मलयालम में इसका अर्थ महिला के स्तन की भूमि) कहते हैं।
इतिहास की किताबों में कम पड़ताल
इतिहास की किताबों में नंगेली के बारे में कम पड़ताल की गई है। चेरथला में नांगेली का घर (झोपड़ी) अभी भी वही पर है, जहां उसने बलिदान दिया था। झोंपड़ी के पास एक तालाब है, जिसके एक किनारे पर दो बड़ी इमारतें बन गई हैं। नांगेली और उनके पति (चिरूकंदन) की कोई संतान नहीं थी। चेरथला में ही षष्ठम कवला के पास नेदुम्ब्रकाड में नांगेली की बहन की परपोती (लीला अम्मा) रहती हैं, जिनकी उम्र 67 साल है। वहां से कुछ किलोमीटर की दूरी पर नंगेली के पड़पोते मणियन वेलू रहते हैं।
(प्रस्तुति : कृ.कि./निशांत राज, तस्वीर : केरल के कलाकार टी. मुरली द्वारा बनाई गई)
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Reference : See Channar revolt · Nangeli. References Journal of Kerala Studies. University of Kerala. 2011. p. 93.   Breast Tax or Mulakkaram was a tax imposed on lower caste Hindu women if they wanted to cover their chests, including their breasts in public, in the Kingdom of Travancore, now part of Kerala. The Channar Lahala or Channar revolt, also called Maru Marakkal Samaram. the fight from 1813 to 1859 of Nadar climber women in Travancore kingdom for the right to wear upper-body clothes to cover their breasts. This right was previously reserved for Nair women, who were higher-class Hindu women. In 19th century Travancore lower-class women were not allowed to wear clothes that covered their breasts. Baring of chest to higher status was considered a sign of respect, by both males and females.The Nadar and Ezhava women successfully campaigned to be allowed to cover their breasts. In 1813, Colonel John Munro, British dewan in the Travancore court, issued an order granting permission to women converted to Christianity to wear upper cloth. In 1858, new violence broke out in several places in Travancore. On 26 July 1859, under pressure from Charles Trevelyan, the Madras Governor, the king of Travancore issued a proclamation proclaiming the right for all Nadar women to cover their breasts.
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