अरुण दिव्यांश की कविता: योग


अरुण दिव्यांश की कविता : योग

कविता-योग

एक एक लोग ,
नित्य करें योग ।
स्वयं स्वस्थ रहकर ,
तन से भगाऍं रोग ।।
पहले योग आजमाऍं ,
फिर योग ये अपनाऍं ।
दवा से हम दूर रहकर ,
योग को करें कराऍं ।।
नित्य सुबह योग करेंगे ,
जीवन ये व्यस्त होगा ।
आजीवन ही चंगे रहेंगे ,
तन से रोग पस्त होगा ।।
योग करो उपभोग करो ,
दुर्लभ यह संयोग करो ।
सेहत न हो रोगग्रसित ,
नित्य योग प्रयोग करो ।।
योगगुरु रामदेव बाबा ,
कोटि कोटि नमन उन्हें ।
राष्ट्र किया विश्व में ऊॅंचा ,
मिलता है ये श्रेय जिन्हें ।।
सदा रहा है गुरु भारत ,
सदा ऊॅंचा स्थान रहा है ।
सदा दिया विश्व को शिक्षा ,
विश्व का अरमान रहा है ।।

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