बेंगलुरु (सोनमाटी समाचार)। कर्नाटक में हाई वोल्टेज सियासी ड्रामा का फाइनल पार्ट यह है कि अंतत: दो दिन के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार बनाने का रास्ता साफ होने के बाद अब पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री होंगे। गठबंधन ने एचडी कुमारस्वामी की अगुवाई में राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया और कुमारस्वामी को भी बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त दिया गया। वह सोमवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और जेडीएस की याचिका खारिज कर यह फैसला सुनाया कि केजी बोपैया विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर बने रहेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिन का समय एक दिन किया तो येदियुरप्पा ने दे दिया इस्तीफा
224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। राज्यपाल वजुभाई वाला ने विधायक संख्या के हिसाब से सबसे बड़ा दल होने के कारण भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया और विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने के लिए 15 दिन का समय दे दियाा। भाजपा की ओर से बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। राज्यपाल ने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की ओर से समर्थनपत्र सौंपे जाने के बावजूद सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया तो कर्नाटक का यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया और सुप्रीम कोर्ट ने शपथग्रहण पर रोक से तो इनकार किया, लेकिन बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा दी गई 14 दिनों की मोहलत घटाकर एक दिन कर दी। इसके बाद कर्नाटक में दो दिन पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले बीएस येदियुरप्पा ने विधानसभा में विश्वासमत प्राप्त करने से पहले ही इस्तीफा देने का ऐलान किया और राज्य की जनता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए भावुकतापूर्ण भाषण देने के बाद अपना इस्तीफा सौंपने राजभवन चले गए।
शिवकुमार की भूमिका अहम, विधायक रिजार्ट में रहे महफूज
दरअसल कांग्रेस विधायकों को टूटने से रोकने में कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार की भूमिका अहम है, जबकि वे एचडी देवेगौड़ा परिवार के कट्टर प्रतिद्वंदी माने जाते रहे हैं। डीके शिवकुमार पहले भी कांग्रेस को संकट की स्थिति में विधायकों को एकजुट रखने में अहम भूमिका निभा चुके हैं। कांग्रेस-जेडीएस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार कुमारस्वामी ने भी स्पष्ट लहजे में चेतावनी दी थी कि भाजाप के 10-20 विधायक उनके संपर्क में हैं और वह भाजपा को उसकी भाषा में जवाब देंगे। कांग्रेस विधायकों को खरीद-फरोख्त से महफूज रखने के लिए ईगलटन रिजॉर्ट भेजा गया था। यह वही रिजॉर्ट है जहां पिछले साल राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के विधायकों को रखा गया था। तब भी विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगे थे। रिजॉर्ट 2006 के दौरान भी चर्चा में आया था, जब कुमारस्वामी ने पिता देवेगौड़ा को नाराज कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी। तब वे अपने समर्थक विधायकों के साथ वे इसी रिजॉर्ट में ठहरे थे।
समय सीमा तय नहीं, संविधान में राज्यपाल के विवेक को महत्व
वास्तव में सदन में बहुमत साबित करने के लिए दिए जाने वाले समय की सीमा निर्धारित नहीं है। अतीत में अलग-अलग राष्ट्रपति और राज्यपालों ने सरकारों को अलग-अलग समय दिया है। 1996 में राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने अटलबिहारी वाजपेयी को 15 दिन का समय दिया था। भाजपा तब लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। हालांकिए वाजयेपी सरकार 13 दिन में ही गिर गई थी। जब अटलबिहारी वाजपेयी सरकार को 1998 में बहुमत साबित करना था, तब उन्हें 10 दिन का समय दिया गया था। उन्होंने 9वें दिन ही बहुमत साबित कर दिया था। राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने विश्वनाथ प्रताप सिंह और पीवी नरसिम्हा राव को एक महीने का समय दिया था। आर. वेंकटरमन ने विपक्षी दलों से बात करने के बाद फैसला लिया था। 2014 के बाद गोवा, मणिपुर और मेघालय में त्रिशंकु विधानसभाएं बनने की स्थिति में गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने मनोहर पर्रिकर को 15 दिन का समय दिया, मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्लाह ने 9 दिन का समय दिया और मेघालय में भाजपा ने बहुमत जुटाने में समय ही नहीं लगाया।
सत्ता की लड़ाई का बदसूर
बेशक, यह तो कहा ही जा सकता है कि कर्नाटक में सत्ता की लड़ाई बदशक्ल रूप में देखी जा चुकी है। एक तरफ कांग्रेस ने मतगणना परिणाम आने के बाद जेडीएस को समर्थन का ऐलान किया तो दूसरी तरफ राज्यपाल ने पूर्ण बहुमत वाले गठबंधन के दावे को दरकिनार कर बहुमत से दूर के दल के नेता को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। राज्यपाल के फैसले को लेकर भाजपा ने यह तर्क दिया कि राज्यपाल ने जनादेश का सम्मान कर विवेक का इस्तेमाल किया है।
बहरहाल चिंता की बात यह है कि अलग-अलग राज्यों में सरकार बनाने की अलग-अलग शर्तें इस्तेमाल होने से संसदीय जनतंत्र को लेकर बुनियादी सवाल उठ खड़ा हुआ है। चूंकि संविधान इस मामले में राज्यपाल के विवेक को ही तवज्जो देता है। इसलिए भ्रम को दूर करने के लिए इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट विचार करे कि राज्यपाल की ओर से ऐसी विषम परिस्थिति में सरकार बनाने के लिए कितना समय दिया जाना चाहिए?
विश्लेषण/समाचार संयोजन : कृष्ण किसलय
(सोनमाटी समाचार के लिए इनपुट : डेहरी-आन-सोन, बिहार में निशांत राज, दिल्ली में संजय सिन्हा, बेंगलुरू में राहुल अभिषेक )
बहुत अच्छा विश्लेषण।
सहृदय धन्यवाद।