सोनामाटी : अंचल विशेष के साथ देश-समाज से सरोकार का रोमांचक आख्यान

आंचलिकता ऐतिहासिक चेतना से प्रतिफलित होती है। अंचल शब्द का अर्थ किसी ऐसे भूखंड, प्रांत या क्षेत्र विशेष है, जिसकी अपनी विशेष भौगोलिक स्थिति, संस्कृति, लोकजीवन, भाषा व समस्याएं हों। आंचलिक लेखक क्षेत्र विशेष पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। लेखक विवेकी राय के सोनामाटी (उपन्यास) की पृष्ठभूमि में पूर्वी उत्तर प्रदेश के दो जिलों- गाजीपुर और बलिया का मध्यवर्ती अंचल है करइल। प्रस्तुत कथा में प्रयुक्त करइल क्षेत्र के उन गांवों और पात्रों के माध्यम से समकालीन जीवन संघर्ष को चित्रांकित किया गया है। यह संघर्ष एक अंचल का है, पर वह व्यापक राष्ट्रीय जीवन यथार्थ से जुड़ा है। विवेकी राय की कहानियों में उत्तर प्रदेश के गांवों का सजीव चित्रण हुआ है। उन्हें ग्रामीण जीवन का कुशल चितेरा कहा जाता है। आज के टूटते-बिखरते गांव का सम्पूर्ण सत्य उन्होंने सोनामाटी (उपन्यास) के माध्यम से प्रस्तुत किया है। गांवों में व्याप्त मूल्यहीनता की बात इसमें बहुत ही मार्मिक ढंग से कही गई है। पैसे की संस्कृति से गांव भी अछूता नहीं है।
इस उपन्यास की एक नारी पात्र है कोइली। सुग्रीव से उसे प्यार है। कोइली को सुग्रीव चार हजार रुपए में खरीद कर लाया है। वह दगाबाज निकलता है। उसे हनुमान प्रसाद के हवाले कर देता है। हनुमान प्रसाद उससे शादी करना चाहता है। लेकिन उसके घर में कोइली को अनेक यातनाएं सहनी पड़ती हैं। एक रात वह वहां से भाग खड़ी होती है। भागने के क्रम में वह रामरूप से टकराती है। रामरूप उससे पूछता है- बता, तू कौन है? वह बताती है- आप की ही एक करमजली बेटी।
वहां से निकल कर वह बढ़ारपुर के रामसुमेर नाम के बूढ़े के पास शरण लेती है। रामरूप अपने अध्यापक मित्र की सहायता से उससे मिलने जाता है तो देखता है कि कोइली को भीतर बंद करके घर में ताला लगाया गया है। जब रामरूप ताला खोलकर उससे मिलता है, तब वह उससे कहती है- अपने गऱीब बाप के घर जवान हुई। तब से हर आदमी हमारे पास खास काम के लिए ही आया है, मास्टर जी। यहां एकदम एकान्त है। कहिए, सेज लगा दूं, अपने को सौंप दूं? एक बेटी और कर क्या सकती है? यदि सुग्रीव की तरह आप भी कहीं और सौदा कर आए हों तो सुख भोग के लिए उस पांचवें बाबा के पास आपके साथ चलूं?
असहाय स्त्री की दयनीय स्थिति व पूरी त्रासदी को बयान करता है यह उपन्यास। कोइली का अंकन बड़ा ही मर्मस्पर्शी है। इस वर्ग की स्त्री सबसे पीडि़त होती है। हर किसी के द्वारा शोषित और त्रस्त जीवन उसका नसीब हुआ करता है। पुरुष सत्तात्मक समाज स्त्री के बारे में कितना अत्याचारी हो सकता है, इसका प्रमाण विवेकी राय के इस उपन्यास में मिलता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़े हुए गांव महुआरी में सोनामाटी की कथा शुरु होती है।
गांव के लोग जहां एक ओर आर्थिक मार सह रहे हैं, वहीं उन्हें सामाजिक उदासी और राजनीतिक उठापटक का समना भी करना पड़ता है। एक तरफ चुनावी महौल और दूसरी तरफ अनेक समस्याओं से घिरा गांव है। प्रजातंत्र की चुनावी पद्धति और नेताओं की चुनाव कला पैंतरेबाजी का खूब रोचक वर्णन है इस उपन्यास में। गिरोहबाजी आज की राजनीति का यथार्थ है। धूर्त राजनीतिज्ञों की काली राजनीति के उद्देश्यों के लिए मानवीयता की बलि चढ़ जाती है। रातोंरात निर्लज्ज दलबदल हो जाता है। विवेकी राय ने इस उपन्यास के माध्यम से यह दर्शाया है कि आजादी के बाद की राजनीति का विघटित रूप गांवों तक पहुंच गया है।
समय और समाज ने एक मास्टर को अकेले जूझते और समझौता करते छोड़ दिया है। यही गाँव के बुद्धिजीवी की नियति है। ग्रामीण जीवन की जटिल सच्चाई को उसकी सम्पूर्णता के साथ रचनात्मक स्तर पर प्रस्तुत करना विवेकी राय जैसे कलम के जादूगर से ही संभव है। असीम धैर्य के साथ चकित कर देने वाले सामंजस्य के साथ उन्होंने गांव के विभिन्न पात्रों को चित्रित किया है। भाषा में आंचलिक शब्दों का प्रयोग समाज के मिजाज और उसके विशेष सांस्कृतिक पक्ष को सामने लाता है। यह कहा जा सकता है कि इस उपन्यास को पढऩा अंचल, समाज विशेष के साथ देश और समय के रोमांच के बीच से गुजरना है।

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