भोजपुरी, हिंदी, बंगला की प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता-निर्देशक-अभिनेत्री आरती भट्टाचार्य ने ‘नवाब सिराजुद्दौलाÓ की शूटिंग के दौरान विचित्र अनुभव किया था, जो बतौर आपबीती संस्मरण प्रस्तुत है। इनकी भोजपुरी फिल्म ‘हमार दुल्हाÓ की शूटिंग करीब तीन दशक पहले डेहरी-आन-सोन में सोन नद अंचल की विश्वविश्रुत रही सोननहर प्रणाली के उद्गम-स्थल एनिकट में हुई थी। इस फिल्म को भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में बाक्स आफिस पर बेहतर प्रदर्शन का मुकाम हासिल है। -समूह संपादक
मैंने बहुत दिनों बाद लिखने का यह प्रयास किया है। मेरे सामने स्वाभाविक-सा सवाल खड़ा हुआ कि क्या लिखूं और कहां से शुरू करूं? हालांकि स्मृति में बहुत कुछ है, मगर इस आशंका से डरती हूं कि भाषा की अनगढ़ता पढऩे वालों को कहीं बोर न कर दे। इसलिए पहले ही क्षमा-प्रार्थना कर रही हूं। दरअसल कुुुुमार बिन्दु ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया, जो हमारे पारिवारिक मित्र भी हैं।
बात उन दिनों की है, जब मैं ‘नवाब सिराजुदौलाÓ सीरीयल की शूटिंग के लिए गुजरात के राजपीपला स्थित राजवन्त पैलेस में थी। मुम्बई के पास वह सस्ता और अच्छा लोकेशन था। मेरे, कुणाल जी के साथ पूरे 70 लोगों की टीम के रहने का इन्तजाम उसी हवेली में किया गया था। टीम में महिला कलाकार, तकनीकी स्टाफ भी थे। पहले दिन की शूटिंग खत्म होते-होते रात के नौ बज गए। दूसरे दिन की तैयारी का होमवर्क पहले दिन की शूटिंग के बाद करनी थी। सभी अपने-अपने कमरे में जा चुके थे। मेरा तथा कुणाल जी का कमरा मुख्य हवेली से हटकर एक काटेज में, मगर हवेली परिसर में ही था। उस दिन कुणाल जी की शूटिंग नहीं थी। वह अपने कमरे में थे।
…और पत्थर की तरह जम गए मेरे पैर
मैं अकेली ही अंधेरी रात में मुख्य हवेली से निकल कर काटेज की तरफ जाने लगी। कोई 25-30 कदम चलने के बाद मैंने महसूस किया कि मेरे दोनों पैर पत्थर की तरह जम गए हैं। मेरा एक कदम भी आगे नहींबढ़ पा रहा था। मेरे शरीर में शीतलहर दौड़ गई, कंठ सूखने लगा। मुझे लगा कि ठीक मेरी पीठ के पीछे कोई खड़ा है। किसी अनजान की उपस्थिति मैं महसूस कर रही थी। मेरा काटेज मुश्किल से 25-30 कदम दूर होगा, मगर न तो मैं हील पा रही थी और न ही कुणाल जी को आवाज दे पा रही थी। तभी अचानक किसी देवदूत की तरह कुणाल जी काटेज से बाहर निकले और मुझे चुपचाप खड़े देख मेरे करीब आए। मुझे झकझोरते हुए पूछा, क्या बात है, तुम ऐसे एकदम चुपचाप क्यों खड़ी हो? तुम्हारा चेहरा फीका क्यों पड़ा है? तब मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं थी। फिर मैं अचानक अपने कमरे की तरफ दौड़ पड़ी।
कुणाल जी ने मुझे चुप रह जाने को कहा। कहा कि इससे यूनिट में डर का माहौल फैल जाएगा। मैं अपने को कमजोर नहीं होने देना चाहती थी। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि वह अनुभूति क्या थी? मगर किसी से बयां भी नहीं कर सकती थी। मैंने सुन रखा था कि पुरानी हवेली में अक्सर भूत-प्रेत रहा करते हैं। हालांकि मैं इस तरह की बातों पर यकीन नहीं करती थी।
सेवादार ने दी हवेली की पुरानी जानकारी
दूसरे दिन शूंिटंग के दौरान लंच-आवर में मेरी मुलाकात हवेली के एक पुराने सेवादार गजेन्दर सिंह से हुई। मैं उनसे हवेली के पुराने दिनों के बारे में जानकारी लेने लगी। उनके बातों से ऐसा लगा कि वह बताना नहीं चाहते। तब मैंंने बात बदल कर बोगनवलिया के पेड़ के बारे में पूछने लगी। वह पेड़ मेरे काटेज के सामने था। मैंने बोगनवलिया के पेड़ के तना की मोटाई उतनी नहींदेखी थी, जितनी उस बोगनवालिया की थी। दो आदमी दोनों हाथों से घेरा डाले, तब उस घेरा में उसका तना अंट सकता था। उस पेड़ की चारों तरफ एक चबूतरा था। गजेन्दर सिंह ने बताया कि यह पेड़ सौ साल से अधिक पुराना है। इसका चबूतरा बड़ी राणी सा ने बनवाई थी। सामने जो बड़ा दरवाजा है, उसके अन्दर माता राणी की मूर्ति है। रोज शाम को बड़ी राणी सा इसी चबूतरा पर बैठ कर जाप करती थी। तभी मुझे ख्याल आया कि मैं जब रात को लौट रही थी, तब वही बड़ी रानी सा वहां बैठी होंगी। मैंने उनकी पूजा में विध्न डालाा होगा। खैैैर, लंच का समय खत्म हुआ और सभी अपने-अपने निर्धारित काम में लग गए। शूटिंग खत्म होने के बाद मुझे रात को उसी रास्ते से गुजरना था। मगर मैं डरी नहीं। पेड़ के चबूतरे के पास पहुंच कर मैंने रानी साहिबा को प्रणाम कहा और कहा कि माफ कीजिए, मुझे उस पार जाना है। यकीन मानिए, मैं आराम से रास्ता तय कर अपने काटेज तक पहुंच गई।
मगर पहले कभी नहीं हुआ था ऐसा
एक दिन हम महल के एक विशाल खूबसूरत कमरे में शूटिंग करने गए थे। सीन यह था कि सिराजुद्दौला के नाना नवाब अलीवर्दी खान बीमार हैं और सिराजुद्दौला उन्हें देखने उनके ख्वाबगाह में आता है। उस बड़े कमरे में लाइटें लगा दी गई और दो-तीन बार रीहर्सल करने के बाद शूटिंग शुरू हुई। जैसे ही लाइट जलाई गई धप-धप कर सारे बल्ब फ्यूज हो गए। सभी भौंचक रह गए। शूटिंग पांच दिन से चल रही थी, मगर पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था। आज अचानक क्या हुआ? कैमरामैन तथा लाइटमैन लाइट ठीक करने के इंतजाम में लग गए। लाइटिंग का दूसरा सेट मंगाया गया। एक बल्ब का दाम हजार-बारह सौ रुपये था। लाइटिंग का दूसरा सेट लगा। बल्ब फिर फ्यूज हो गए। तीसरी बार भी ऐसा ही हुआ। तब मुझे ऐसा लगा कि बड़ी राणी सा वाकई बड़े गुस्से में थीं। कैमरामैन, लाइटमैन ने आगे शूटिंग करने से हाथ खड़े कर लिए। अब स्टाक में कुछ ही बल्ब बचे हुए थे। समस्या यह थी कि अगर बचे हुए बल्ब भी फ्यूज कर गए तो शूटिंग ही रोक देनी पड़ेगी।
मेरे दिमाग में ख्याल आया। क्यों ना बड़ी राणी सा से मैं विनती करूं? तब मैंने सभी को कमरे से बाहर जाने का निर्देश दिया। फिर हाथ में सुगंन्धित अगरबत्तियां जलाकर मैंने हाथ जोड़े और कमरे मे ऊपर की ओर देखते हुए बोली, हमारे कारण आपको असुविधा हो रही है, हम क्षमाप्रार्थी हैं, मैं वादा करती हूं कि शोरगुल नहीं होगी, कमरे के सामान से भी छेड़-छाड़ नहींहोगी, आप हमें काम करने दीजिए। इसके बाद मैंने बाहर आकर सबको अंदर आने के लिए कहा।
सचुमच बड़ी राणी सा की आत्मा थी ?
इसके बाद शूटिंग निर्विघ्न संपन्न हुई। हमने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि शोरगुल नहीं हो। उसके बाद अगले दिन से महल के जिस हिस्से के लोकेशन पर शूटिंग करनी होती थी, वहां पहले ही जाकर अगरबत्तियां जलाकर सामूहिक मौन प्रार्थना की जाती थी। इस तरह इस बात को सब लोग जान गए कि महल में किसी की आत्मा का वास है। तब तरह-तरह की कहानी भी सामने आने लगी। उन कहानियों में सच्चाई कितनी है? यह कहना मुश्किल था। मगर हमारी शूटिंग के दौरान जो हुआ और हम सबको जो अनुभव-अहसास हुआ, उसके मद्देनजर कहानियों को अस्वीकार करना मुश्किल था। यह घटना दस साल पुरानी है। अब तो आए दिन राजवन्त पैलेस मेंं शूटिंग चलती रहती है। मैं सोचती हूं, क्या सचमुच बड़ी राणी सा की आत्मा वहां थी। और, क्या अब बड़ी रानी साहिबा ने रोजमर्रा की शोरगुल के कारण दूर कहींअपना ठीकाना बना लिया है?
(आरती सिंह भट्टाचार्य की आपबीती पर आधारित। संबंधित विचार और सोच उनकी अपनी है।
तस्वीर संयोजन : निशांत राज)
चुनावी आईकान : कुदरा का कलाकार रस्तोगी दंपत्ति
कुदरा (कैमूर)-सोनमाटी संवाददाता। तिलकामांझी विश्वविद्यालय की ओर से विक्रमशीला गांधी डाकटिकट प्रदर्शनी-2019 में श्रेष्ठ प्रचार-भूमिका के लिए कुदरा के चर्चित फिलाटेलिस्ट दम्पति को विशेष प्रमाणपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया है। डाकटिकट संग्रहकर्ता फिलाटेलिस्ट दंपति में अनुराधाकृष्ण रस्तोगी कस्तूरबा और सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी महात्मा गांधी की वेष-भूमिका में गांघी के संदेशों को प्रसारित करने का कार्य करती हैं। दोनों फिल्म कलाकार भी हैं। जबकि अनुराधाकृष्ण रस्तोगी एक बेहतर भोजपुरी लोकगायिका हैं और कैमूर कोकिला के रूप में चर्चित हैं। अनुराधाकृष्ण रस्तोगी को मतदाता जागरुकता अभियान के लिए कैमूर जिला का चुनावी आईकान भी बनाया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने अनुराधाकृष्ण रस्तोगी को जिला आइकान बनाए जाने की औपचारिक स्वीकृत प्रदान की है। इस आशय का प्रस्ताव जिला निर्वाचन कार्यालय की ओर से राज्य आयोग को भेजा गया था। जिला निर्वाचन विभाग की ओर से ईवीएम और वीवीपैट के प्रति मतदाताओं को आकर्षित करने का कार्य सैंपा गया है। इस कार्य में उनके पति सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी भी संबंधित सहयोग कर रहे हैं। अनुराधाकृष्ण रस्तोगी ने मतदाता जागरुकता के लिए एक गीत बनाया है, जिसे वे मतदाताओं के बीच अपने मुधर कंठ-स्वर में प्रस्तुत कर रही हैं- ले मशाल मतदान का, हम जन-जन तक जाएंगे…।
(रिपोर्ट : सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी)
रोहित वर्मा को समाज-सेवा सम्मान
सासाराम (रोहतास)-सोनमाटी संवाददाता। प्राइवेट स्कूल्स चिल्ड्रेन वेल्फेयर एसोसिएशन (पीएससीडब्ल्यूए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद शमाएल अहमद और बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने पीएससीडब्ल्यूए के रोहतास जिला अध्यक्ष रोहित वर्मा को जिला में शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य के लिए पटना में बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन सभागार में आयोजित समारोह में स्मृतिचिह्नï देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में पीएससीडब्ल्यूए की ओर से 54 बच्चों को छात्रवृतियां प्रदान की गईं। कार्यक्रम में पीएससीडब्ल्यूए की रोहतास जिला इकाई के उपाध्यक्ष सुभाष कुमार कुशवाहा, महामंत्री समरेंद्र कुमार, जिला समन्वयक धीरेंद्र कुमार और पीएससीडब्ल्यूए के अन्य इकाइयों के पदाधिकारी-प्रतिनिधि उपस्थित थे। इस अवसर पर रोहित वर्मा ने बताया कि पीएससीडब्ल्यूए बिहार के महासचिव डा. एसपी वर्मा के निर्देशन में रोहतास जिला के 19 प्रखंडों में कमिटी गठन के साथ सक्रिय हो चुका है।
(अर्जुन कुमार, जिला मीडिया प्रभारी, पीएससीडब्ल्यूए)
फिल्म फेस्टिवल नवम्बर में, निर्णायक मंडल में कृष्ण किसलय भी
औरंगाबाद (बिहार)-विशेष प्रतिनिधि। धर्मवीर फिल्म एंड टीवी प्रोडक्शन द्वारा राष्ट्रीय स्तर का चार दिवसीय ‘औरंगाबाद फिल्म फेस्टिवल-2Ó नवंबर में होगा। फिल्म महोत्सव के निर्णायक मंडल में वरिष्ठ लेखक, नाटककार और सोनमाटी मीडिया ग्रुप (डेहरी-आन-सोन) के समूह संपादक कृष्ण किसलय बतौर फिल्म कला समालोचक सदस्य बनाए गए हैं। फिल्म फेस्टिवल के संयोजक चर्चित युवा फिल्मकार, नाटककार डा. धर्मवीर भारती के अनुसार, फेस्टिवल की लघु फीचर, डाक्युमेन्ट्री फिल्में नई पीढ़ी के लिए सीखने-समझने का प्लेटफार्म होंगी, जिसके निर्णायक मंडल में देश के वरिष्ठ फिल्मकार, अभिनेता, रंगकर्मी, नाटककार हैं।