सरकार का दावा कि कालेधन पर लगा अंकुश, विपक्ष ने विनाशकारी नीति बताई, लोगों की शिकायतों पर नही किया गया गौर
मंत्री ने कारोबारियों के साथ की बैठक, प्राप्त की अनुभवों व कठिनाइयों की जानकारी, मारवाड़ी समाज ने मंत्री को अंगवस्त्र भेंटकर व्यक्त किया सम्मान
नई दिल्ली/डेहरी-आन-सोन (सोनमाटी समाचार)। नोटबंदी लागू होने एक साल बाद केंद्र सरकार ने एंटी ब्लैक मनी डे मनाया, जबकि विपक्ष ने विरोध दिवस। आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) ने 08 नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर किया था। इसके बाद इस फैसले के पक्ष और विपक्ष में इतनी बातें कही गईं कि आम नागरिक के लिए इस बारे में कोई पुख्ता राय बनाना मुश्किल हो गया।
मंत्री ने जाने अनुभव व कठिनाई
नोटबंदी के एक साल बीतने पर डेहरी-आन-सोन में भी केेंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री एवं स्थानीय (काराकाट संसदीय क्षेत्र) सांसद उपेन्द्र कुशवाहा ने व्यापारियों-कारोबारियों के साथ बैठक की और उनके अनुभवों व कठिनाइयों की जानकारी प्राप्त की। इस मौके पर जीएसटी से संबंधित उद्यमियों की परेशानियों से भी श्री कुशवाहा अवगत हुए औैर संबंंधित दिक्कतों को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने का आश्वासन दिया। बैठक में मारवाड़ी समाज की ओर से मंत्री को अंगवस्त्र भेंटकर उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया गया। अध्यक्षता मारवाड़ी समाज की ओर से ओमप्रकाश केजरीवाल ने की।
प्रधानमंत्री ने फायदे गिनाए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो जारी कर नोटबंदी के फायदे गिनाए और देशवासियों को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने लोगों से राय भी जाननी चाही है। नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी पर ट्वीट कर कहा है कि भ्रष्टाचार और कालेधन को जड़ से उखाडऩे के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों का दृढ़तापूर्वक समर्थन करने के लिए मैं भारत के लोगों के आगे सर झुकाता हूं। 125 करोड़ भारतीयों ने एक निर्णायक लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। केेंद्र सरकार का यह दावा है कि इससे कालेधन पर अंकुश लगा है, टैक्स कलेक्शन का दायरा बढ़ा है और अर्थव्यवस्था डिजिटल हुई है। इससे उत्साहित होकर वह काले धन के खिलाफ व अभियान के दूसरे भाग की ओर बढऩे की तैयारी में है।
विपक्ष ने विनाशकारी बताया
दूसरी तरफ , विपक्ष इसे विनाशकारी आर्थिक नीति बताता रहा है। इसकी वजह से पूरी अर्थव्यवस्था में ठहराव आया, मांग कम हो गई, औद्योगिक उत्पादन सुस्त पड़ गया और निर्यात लगभग ठहर गया। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने नोटबंदी को त्रासदी बताया और कहा कि कांग्रेस नोटबंदी से बर्बाद हुए ईमानदार लोगों के साथ खड़ी है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि इसके कारण नौकरियां खत्म हुई हैं और जीडीपी की दर गिरी है। इस तरह की बातें कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी कही।
बहरहाल, देश में नोटबंदी एक झटके की तरह आई थी। लोगों को अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए भी बैंक परिसरों में लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ा था। यह सब देश के लोगों ने यही सोचकर झेला था कि इससे काले धन के खिलाडिय़ों पर अंकुश लगेगा। नोटबंदी के जो फायदे-नुकसान देश को झेलना पड़ा हो, मगर अब नोटबंदी की हलचल के एक साल बाद सरकार को लोगों की शिकायतों पर भी गौर करना चाहिए।
फेल हुआ सरकार का दावा
नोटबंदी में देश के बाजार में चलन में रहे कुल नगदी का लगभग 86 प्रतशित प्रतिबंधित कर दिया गया था। सरकार का दावा था कि बाजार की नगदी में बड़ी मात्रा कालेधन की है, इसलिए काफी बड़ा हिस्सा सिस्टम में वापस नहीं आएगा। मगर करेंसी का 90 प्रतिशत से ज्यादा करीब 15 लाख करोड़ रुपये बैंकों में वापस आ गए। सरकार ने कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए नोटबंदी को जरूरी बताया था। बाजार में नगदी उपलब्ध होते ही कैशलेस ट्रांजेक्शंस में गिरावट आ गई। हालांकि यह सच है कि पहले के मुकाबले कैशलेस ट्राजेक्शंन में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई।
नकली नोट भी आ गए
आरबीआई ने नोटबंदी के बाद 500 रुपये का नया नोट और पहली बार 2000 रुपये का नोट जारी किया। इन नोटों को जारी करने का उद्देश्य भारी मात्रा में चलन में रहे नकली नोटों पर लगाम लगाना था। आरबीआई का दावा था कि इन नोटों की नकल करना मुश्किल है, लेकिन यह प्रयोग सफल नहीं रहा और अर्थव्यवस्था में 500 और 2000 रुपये के नकली नोट भी आ गए।
आर्थिक विकास दर घटने का अनुमान
पिछले महीने ही अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने 2017 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अपना अनुमान घटाकर इसे 7.2 से 6.7 प्रतिशत पर ला दिया और इस कटौती के लिए नोटबंदी को जिम्मेदार ठहराया। कई अन्य एजेंसियों का भी यही राय रही है। हालांकि अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का यह भी कहना है कि लंबी अवधि में इसके फायदे देखने को मिल सकते हैं।
फिर भी फायदेमंद रही नोटबंदी
नोटबंदी कई मामलों में फायदेमंद भी रही। नोटबंदी का लाभ यह हुआ है कि इनकम टैक्स भरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। 2016-17 में इनकम टैक्स भरने वाले लोगों की संख्या में पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। 2015-16 में 2.23 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न भरे थे। 2016-17 में 2.79 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न भरे। सरकार को 17 लाख से ज्यादा संदेहास्पद खातों का पता चला, जिनके इनकम टैक्स रिटर्न उनके द्वारा नोटबंदी के दौरान बैंकों में जमा किए पैसों के हिसाब से मेल नहीं खा रहे हैं। इनकम टैक्स विभाग ने भारी मात्रा में ऐसे लोगों नोटिस भेजा है।
सरकार ने 2016-17 के बजट में 2 लाख रुपये से ज्यादा के कैश ट्रांजेक्शन पर रोक लगी दी। ऐसा कालेधन के चलन पर रोक लगाने के लिए किया गया। वहीं दो लाख रुपये से ज्यादा का सोना खरीदने पर पैन कार्ड डीटेल देना अनिवार्य कर दिया गया है।
बदला कारोबार का चरित्र
यह बात दुनिया भर के विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि नोटबंदी ने लेन-देन और कारोबार के चरित्र में परिवर्तन की प्रक्रिया तेज कर दी। इसकी वजह से बैंक खातों की संख्या बढ़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी चेक, क्रेडिट-डेबिट कार्ड, ऑनलाइन मनी ट्रांसफर व ई-वॉलेट के इस्तेमाल में तेजी आई है। अर्थव्यवस्था में अनेक चीजें ऑन रिकॉर्ड और पारदर्शी हुईं। नोटबंदी ने पहली बार आम लोगों को यह अहसास भी कराया कि पैसा घर में रखने की चीज नहीं, बाजार में लगाए रखने में समझदारी है।
डेहरी-आन-सोन में केेंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने कारोबारियों को संबोधित करते हुए कहा कि काले धन के कारण देश, देश के गरीब लोगों व सरकार को भी नुकसान होता है और ये तीनों इस कारण कमजोर बन रहते हैं। अर्जित और संचित संपूर्ण आय व मुनाफे पर टैक्स दिया जाता है तो इससे सरकार के खजाने में अधिक राजस्व प्राप्त होता है। उससे जन कल्याण के कार्य अधिक होते हैं और देश का विकास भी सभी क्षेत्रों में ज्यादा तेज गति से होता है। काला धन से हर कोई मुक्त होना चाहता है, मगर सिस्टम को इतना जटिल बनाकर रखा गया है कि चाहकर भी सबके लिए मुक्त होना संभव नहींहोता और ईमानदार की राह चुनने वालों को नुकसान होता है।
काले धन की समस्या से देश के हर वर्ग के कारोबारी मुक्त होना चाहते हैं और चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। एक साल पहले हुई नोटबंदी का यह सबक भी है कि काला धन हर हाल में खत्म होना चाहिए। आम जनता तो इसके पक्ष में एकदम नहींहै और इसीलिए नोटबंदी के दौर में तकलीफ झेलकर और जान पर खेलकर भी वह इसके पक्ष में मजबूती से खड़ी रही। नोटबंदी के अनुभव के बाद कारोबारियों में व्हाइट मनी का जज्बा बढ़ा है।