अथ मच्छर कथा, इति नहीं नगर व्यथा
(समाचार विश्लेषण : कृष्ण किसलय)
बात 56 साल पहले मध्य प्रदेश की है, मगर देश के सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान लेने के कारण बिहार राज्य के नगर निकायों के कार्य-कलाप के संदर्भ में भी विचारणीय है। मामला यह है कि नगर निकाय तो अपने व्याख्यायित और अव्याख्यायित अधिकार का इस्तेमाल तो किसी गुट की तरह सक्रिय समूह बनाकर करते हैं, पर अपने मूल कर्तव्य से दूर जाकर जन-उपेक्षा की नीति पर काम करते हंै। इसीलिए देश के मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोवड़े को भी टिप्पणी करनी पड़ी है कि नगर निकायों के कर्तव्य नहींनिभाने से बड़ी संख्या में जनहित याचिकाएं आ रही हैं।
वर्ष 1963 में सफाई-स्वच्छता, मच्छरों के आंतक आदि परेशानी को लेकर रतलाम शहर के नागरिकों की ओर से शास्त्रीनगर वार्ड के वकील वरदीचंद पोरवाल ने नगरपालिका रतलाम के विरुद्ध जनहित याचिका न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में दायर की। निर्णय जनता के पक्ष में आया। नगरपालिका ने जिला सत्र न्यायालय में फैसले को चुनौती दी, जहां फैसला तकनीकी कारण के आधार पर पलट गया। मामला जबलपुर हाईकोर्ट पहुंचा, जहां नगर निकाय ने पैसा नहींहोने का रोना रोया। फिर अजीब तर्क दिया कि शास्त्रीनगर के मकान मालिक अपनी मर्जी से गंदगी वाली जगह में जा बसे। हाईकोर्ट ने जनता के ही पक्ष में फैसला दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वीआर कृष्ण अय्यर ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा।
अब इस प्रसंग के परिप्रेक्ष्य में डेहरी-डालमियानगर नगरपरिषद को देखिए। 2013 में नगरपरिषद ने टैक्स में 20 गुना से ज्यादा वृद्धि की। वह भवन-कर, जल-कर के साथ स्वास्थ्य और शिक्षा सेस पहले से लेती थी। 2013 से हर घर से शौच-कर भी लेने लगी। इसके साथ ही प्लिंथ एरिया के हिसाब से हर घर की मंजिल (एक, दो, तीन, चार) के गुणित में टैक्स लेने लगी। फिर भी नालियां साफ नहीं होती। गलियां-सड़केें गंदी रहती हैं। नाली से सिर्फ खर-पतवार निकाला जाता है। खामियाजा नगरवासी भुगत रहे हैं कि नाली का जलस्तर उठता जा रहा है और घर के आगे पानी नहीं घुसने के लिए दरवाजों पर बरसात में घेरा लगाना पड़ता है। नाली से पानी निकासी नहीं होने से बारिश में गलियां-सड़कें नर्क बनजाती हैं। गलियां क्रंकीट हुईं, पर प्रावधान के बावजूद नालियां नहीं बनीं। इससे एकतरफ के घरों की दीवारें रिस-सिड़ रहीं है, मकान खराब हो रहे हैं। मच्छरों के रोग-विष के डंक तो हर घर झेल रहा है।
अब नया तुर्रा यह कि हर घर से 25 रुपये मासिक यानी 300 रुपये सालाना और अन्य जुर्माने का प्रस्ताव है। और, बोझ भी चाहे घर आधा या चार कट्ठा हो, सब पर समान लादी जाएगी। कोई बताए, ‘टके सेर खाजा टके सेर भाजीÓ की तर्ज पर इस दोहरे टैक्स की तैयारी क्यों? नालियों से गंदा पानी निकासी की मुकम्मल व्यवस्था नहोने और मच्छरों का आतंक बदस्तूर जारी होने के बावजूद भवन, शौच, जल, स्वास्थ्य, शिक्षा टैक्स/सेस बाजाप्ता पहले से लिए जाते रहे हैं। बेशक, नगर वासियों को जानना ही चाहिए कि हम जो कचरा पैदा करते हैं, जिम्मेदारी हमारी है और उसके निष्पादन का जरिया नागरिकों द्वारा निर्वाचित पार्षदों का परिषद है। तब क्या सफाई व्यवस्था नगरपरिषद का मूल कार्य नहीं है? क्या जुर्माने का अर्थ यह नहीं कि गंदगी के दोषी नागरिक हैं, निर्वाचित नगरपरिषद नहीं? इसकी क्या गारंटी कि एकबार राह खुल गई तो भविष्य में मनमानी शुल्क-बोझ नहीं लादी जाएगी? नगरपरिषद आखिर वसूलखोर की तरह पैसे बटोर कब तक वेतन पर खर्च करती रहेगी? और, सवाल यह भी है कि ऐसी कोई नीति शहर की छाती पर बोझ मानी जाएगी या वरदान?
खत्म होगी बाजार पर बिजली की निर्भरता, एनटीपीसी की भूमिका अहम
बारुन/नवीनगर (औरंगाबाद)-मिथिलेश दीपक/निशांत राज। बिहार के तीन बिजलीघरों नवीनगर, बाढ़ और बरौनी की पांच यूनिटों के निर्माण का कार्य अब करीब-करीब अपने अंतिम चरण में है। इनसे आने वाले दिनों में बिहार को 2000 मेगावाट बिजली मिलने लगेगी। इन तीनों बिजलीघरों में एनटीपीसी की बदौलत बिहार का बिजली के लिए बाजार पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। वर्ष 2020 में सौर, पनबिजली और अन्य पारंपरिक स्रोतों से भी बिहार को 300 मेगावाट बिजली उपलब्ध होने लगेगी। कांटी, बरौनी और नवीनगर के बिजलीघर बिहार (राज्य सरकार) के अपने हैं, जिन्हें राज्य सरकार ने संचालन के लिए एनटीपीसी को सौंप दिया है। इस समय बिहार को अपनी जरूरत की पूर्ति के लिए करीब औसतन 1000 मेगावाट बिजली बाजार से खरीदनी पड़ती है। इसके लिए राज्य को केेंद्र सरकार के भरोसे रहना पड़ता है। फिर बाजार में बिजली की जो कीमत प्रति यूनिट होती है, उसी महंगी दर पर बिजली खरीदनी पड़ती है, क्योंकि बिजली पहले से भंडारित नहींहो सकती और जरूरत तत्काल आपूर्ति की होती है।
ऐसी उम्मीद है, मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय सिंह के नेतृत्व में नवीनगर पावर जेनरेटिंग कंपनी से वर्ष 2020 में ही 1000 मेगावाट की आपूर्ति होने लगेगी। नवीनगर बिजली घर की पहली यूनिट ०६ सितम्बर को चालू हो चुकी है। यहां 660 मेगावाट बिजली उत्पादन की तीन इकाइयां हैं। पहली चालू इकाई से 518 मेगावाट बिजली बिहार को मिलने और छह-छह महीनों के अंतराल पर दूसरी, तीसरी इकाई के चालू होने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन तीनों बिजली इकाइयों से बिहार को कुल 1678 मेगावाट बिजली मिलेगी। पहले 1553 मेगावाट बिजली ही इनसे राज्य को मिलना तय किया गया था।
बाढ़ में 660 मेगावाट की पहली इकाई से 341 मेगावाट बिजली बिहार को मिलेगी। इसका शिलान्यास 1999 में हुआ था। इसे 2009 में पूरा होना था। इसका निर्माण रूस की कंपनी द्वारा किया जा रहा था। अब इसके निर्माण का कार्य एनटीपीसी को सौंपा गया है। इसमें भी 2020 के अंत तक उत्पादन लक्ष्य तय हुआ है। 14 अगस्त को इसका निर्माण पूरा हो चुका है, मगर अभी बिजली उत्पादन का परीक्षण बाकी है। बिहार की बरौनी बिजली घर की कुल उत्पादन क्षमता 720 मेगावाट की है। वहां पहले चरण में दो इकाइयों को और दूसरे चरण में चार इकाइयों को चालू किया जाएगा। दो इकाइयां निर्माण के अंतिम चरण में हैं, जिनमें 220 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। बरौनी बिजली घर में बिजली उत्पादन की नौ इकाइयां हैं। इनकी क्षमता 55 मेगावाट से लेकर 250 मेगावाट तक बिजली उत्पादन करने की है।