गर्मी के मौसम में मछली पालकों को सचेत रहने की आवश्यकता : डॉ. प्रज्ञा मेहता

डेहरी-आन-सोन (रोहतास) विशेष संवाददाता। जमुहार स्थित गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित नारायण कृषि विज्ञान संस्थान के मत्स्य विज्ञान विभाग में कार्यरत सहायक प्राध्यापक डॉ. प्रज्ञा मेहता बताती हैं कि यदि वैज्ञानिक तरीकों से प्रबंधन किया जाए तो गर्मियों के मौसम में भी मछली पालन से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। गर्मी का मौसम मछली पालकों के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि इस दौरान जल का तापमान सामान्य से अधिक बढ़ जाता है। ऐसा होने से पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घटती है और इसका मछलियों के स्वास्थ्य व उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

डॉ. मेहता के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए तालाब की गहराई कम से कम 5–6 फीट होनी चाहिए ताकि निचली परत में ठंडक बनी रहे। तालाब के किनारों पर छाया देने वाले पेड़ों की उपस्थिति गर्मी के प्रभाव को कम करने में सहायक होती है। तालाब में जलस्तर घटने पर समय-समय पर बाहरी स्रोत से जल की आपूर्ति करनी चाहिए। विशेषकर सुबह के समय घुलित ऑक्सीजन की मात्रा अत्यंत कम हो जाती है, जिससे मछलियों को सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसी स्थिति में एरेटर या पैडल व्हील जैसे उपकरणों का सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद उपयोग करना चाहिए। यदि उपकरण उपलब्ध न हों, तो जल को हिलाकर या ताजे जल का प्रवाह बनाकर ऑक्सीजन की पूर्ति की जा सकती है। यदि मछलियाँ सतह पर आकर मुंह से सांस लेने लगें, तो आहार और उर्वरकों का प्रयोग तुरंत बंद कर एरेशन की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।

गर्मी में मछलियों की भूख सामान्यतः कम हो जाती इसलिए उन्हें सुबह 9 बजे से पहले या शाम 4 बजे के बाद उनके शरीर के वजन के अनुसार 1.5–2% मात्रा में 25% प्रोटीन युक्त संतुलित आहार देना चाहिए। आहार की बर्बादी रोकने के लिए बैग फीडिंग विधि अपनाना लाभकारी होता है। किसी भी असामान्य व्यवहार की स्थिति में आहार देना तुरंत रोक देना चाहिए।तालाब में प्लवकों की उपस्थिति मछलियों के लिए प्राकृतिक आहार का कार्य करती है। इसके लिए जैविक पेखाद (जैसे सड़ा गोबर, बायोगैस स्लरी, वर्मी कम्पोस्ट) तथा अकार्बनिक खाद (जैसे यूरिया, सुपर फॉस्फेट) का संतुलित उपयोग करें। अधिक मात्रा में खाद का प्रयोग शैवाल की अत्यधिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है, जिससे रात में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। यदि जल का रंग अत्यधिक हरा, भूरा या लाल हो जाए, तो तुरंत उर्वरकों का प्रयोग बंद करें और आवश्यकता अनुसार शैवाल की सफाई, पानी की खुरचाई तथा फिटकरी या जिप्सम का प्रयोग करें। गर्मी के मौसम में मछलियाँ रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं, इसलिए उनकी गतिविधियों और रंग-रूप का नियमित निरीक्षण आवश्यक है।

रोगों की रोकथाम हेतु चूना, पोटैशियम परमैगनेट या सिफैक्स का सावधानीपूर्वक उपयोग करें। संकट की स्थिति में जब  मछलियां  सतह पर आने लगें तब तुरंत ऑक्सीजन टैबलेट का उपयोग करें या जल का छिड़काव करें  और बैकअप के रूप में एरेटर चालू रखें। विशेष रूप से छोटे तालाबों में ऑक्सीजन टैबलेट अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं।  जल प्रबंधन के अंतर्गत तालाब के पोषक जल को खेतों की सिंचाई में उपयोग कर  बदले में ताजा जल तालाब में डालना चाहिए  जिससे जल की गुणवत्ता बनी रहती है और साथ ही फसलों को पोषण भी मिलता है। ऐसा करने पर रासायनिक खाद की आवश्यकता कम होती है। इस प्रकार यदि मछली पालन वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ किया जाए  तो गर्मियों के मौसम में भी इसे सुरक्षित टिकाऊ और लाभदायक बनाया जा सकता है।

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