कृष्ण किसलय जीः आप बहुत याद आएंगे,दूसरी पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि
आज कृष्ण किसलय का दूसरी पुण्यतिथि हैं। आज ही के दिन वर्ष 2021को वह हम सबको छोड़ कर चले गए थे। यह आलेख उनकी यादों में समर्पित करते हुए 2022 में लिखा गया था। उनकी याद में 2022 में सूरज देव प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार “दैनिक प्रभात” मेरठ द्वारा लिखा गया यह संस्मरण आपके समक्ष प्रस्तुत है……

किसलय जी को कुछ आभास हो गया था। वह कुछ ऐसा देख रहे थे कि बिना लिखे उनसे नहीं रहा गया। 30 मई 2021 का लिखा वह लेख ऐसा मार्मिक आलेख, मानो अंतिम लेख लिख रहे हों। पहले के बनाये सभी नियम यहां तोड़ दिये। इससे पहले वह कभी भी निजी बातें या दुःख की बातें साक्षा नहीं करते थे। ऐसा लगता है कि यहां उन्हें जरूरत महसूस हुई। उन्हें कुछ ऐसा दिखाई दे रहा था कि जहां से वापस आना संभव नहीं होगा।
बहुत सी बातें एक साथ कह रहे थे। यदि मेरठ स्थित दैनिक प्रभात में किसलय जी नहीं आते तो संभव था, मेरा उनसे परिचय न हो पाता। बेशक मेरा डेहरी आना-जाना होता था, कई रिश्तेदार भी हैं और जीवन में डेहरी से बड़ा करीब का नाता रहा, बावजूद इसके किसलय जी को मैं नहीं जानता था।
दैनिक प्रभात मेरठ में उन दिनों कई बदलाव हो रहे थे। नये संपादक के रूप में सुनील छईंया आ चुके थे। तब सिटी आॅफिस गढ़ रोड स्थित लोकप्रिय हास्पिटल हुआ करता था। वरिष्ठ संवाददाता होने के कारण मेरा सिटी में ही बैठना होता था, लेकिन सुनील छईंया जी ने संवाददाताओं को सुभारती परिसर स्थित कार्यालय में ही समाचार लिखने की व्यवस्था दी। यहीं एक दिन जानकारी मिली कि कृष्ण किसलय देहरादून जागरण से यहां आये हैं। वह संपादकीय विभाग में थे। यहीं मेरा परिचय किसलय जी से हुआ तो भाषा से हम दोनों को पता चला कि हमलोग इधर के नहीं हैं। परिचय आगे बढ़ा तो पता चला वह डेहरी आॅन सोन के हैं और डेहरी मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। असल में वह मोड़ की भांति रहा, जहां बहुत ठहरना तो नहीं हुआ, लेकिन वहां से गुजरना हमेशा हुआ। एक प्रकार से वह हमारा स्थानीय बाजार भी था। शादी-ब्याह में सामान आदि वहां से खरीदना होता था। खैर। चाहे मैं बनारस रहा या इलाहाबाद या दिल्ली, गांव से जब भी यात्रा प्रारंभ हुई, यहां जरूर रूकना पड़ा। गंतव्य के लिये यहीं से ट्रेन मिलती थी। यह भी संयोग ही है कि 2019 के अप्रैल माह के अंतिम दिनों में मैं किसलय जी के घर भी गया। गांव से दिल्ली जा रहा था। ट्रेन 3 बजे की थी। मेरे पास दो घंटे से अधिक का समय था। मैंने किसलय जी को फोन किया तो उन्होंने अपना पता बताया। मैं एक आटो लेकर उनके यहां पहुंचा। मुख्य सड़क पर वह मुझे लेने पहुंचे थे। दोपहर का समय था, तो उन्होंने भोजन पर आमंत्रित किया। साथ में भोजन किया और पत्रकारिता और आगे के कई विषयों पर चर्चा हुई। उन्होंने सोनमाटी की कई प्रतियां और ‘मैं समय हूं’ हस्ताक्षर के साथ भेंट किया। बड़े सरल व्यक्ति। उनसे मिलकर हमेशा अच्छा लगा। बड़े लोग केवल दिल्ली-मुंबई और महानगरों में ही नहीं रहते। डेहरी में भी रहते हैं। लगातार काम करना उनकी आदत में शुमार था। बड़ा सोचना और उस पर बढ़कर काम करना।
मैंने कई बार किसलय जी से कहा था कि यदि रोटी की व्यवस्था हो तो मैं अपने क्षेत्र में लौट जाउंगा। उनके साथ समस्या थी कि सोनमाटी अभी उस स्थिति में नहीं पहुंच पाया था। बहुत संघर्ष कर रहे थे, लेकिन उनकी अच्छी साख और पहचान थी और वह अच्छा काम कर रहे थे।
किसलय जी बड़े संजीदा और गंभीर व्यक्तित्व के स्वामी थे। काम से काम रखते थे, लेकिन कोई मुद्दा हो तो उस पर अपनी राय बेबाकी से रखते थे। उनका कोई विरोधी नहीं था। मैं उर्मिलेश जी के इस कथन का समर्थन करता हूं कि ‘‘आमतौर पर पत्रकारों और खासतौर पर हिन्दी पत्रकारों में आपसी ईष्र्या-द्वेष कुछ ज्यादा ही रहता है, लेकिन कृष्ण किसलय इसके खूबसूरत अपवाद थे।’’ निश्चय ही खेमे-खाचों में बंटे लोगों के बीच किसलय जी अपवाद थे। उनके खिलाफ कोई खड़ा नहीं होता था। तमाम विरोधों के बावजूद, उनसे सभी की सहमति थी। वह विज्ञान के साथ प्राग-ऐतिहासिक काल से मानव विकास यात्रा की नई थ्योरी गढ़ने की ओर अग्रसर थे। वह मानते थे कि सोनघाटी सहित पलामू में मानव सभ्यता की उत्पत्ति हुई है और यहां से कई जातियां दूसरे स्थानों की ओर कूच की है। इस पर वह काम कर रहे थे और इस पर बेबाकी से राय रखते थे। इस विषय पर उनसे बातें भी होती थी। जब किसलय जी प्रभात में थे, उस समय उन्होंने ‘मैं समय हूं’ की पांडुलिपि दिखाई थी, उन्होंने बताया था कि इसके प्रकाशन के लिये एनबीटी से वार्ता चल रही है। फिर सूचना दी कि अनुमोदन मिल गया है और एक समय वह भी आया, जब इसकी प्रकाशित प्रति हमारे हाथ में दी। इसका पूरा हिस्सा एनबीटी ने प्रकाशित नहीं किया था। दूसरा भाग जल्दी ही आने वाला था।
किसलय जी सोनघाटी पुरातत्व परिषद से भी जुड़े थे, संभवतः इसके संस्थापकों में थे। कबरा कला और कबरा खुर्द, पलामू में इन्होंने भ्रमण किया था और इस क्षेत्र को प्राग-ऐतिहासिक सिद्ध करने को लेकर कई आलेख भी लिखे थे। मेरा संबंध भी कबरा से रहा है और मैं वहां आता-जाता रहता हूं। इस पर मेरी भी एक थ्योरी है जिसे समय आने पर लिखूंगा। सोनघाटी पुरातत्व परिषद से लेखक-कवि, पत्रकार, शिक्षाविद, चिंतक, समाजसेवी अंगद किशोर भी जुड़े हैं और जपला जैसे स्थान पर रहकर भी बड़ा काम कर रहे हैं।
मेरठ में दैनिक प्रभात में एसोसिएट एडिटर किसलय जी को संपादक सुनील छईंया लेकर आये थे। वह 2010 तक देहरादून जागरण में थे। 2012 से लेकर 30 सितंबर 2017 तक किसलय जी मेरठ में रहे। वह सुभारती परिसर में ही रहते थे। 2017 में दैनिक प्रभात में उठा-पटक का दौर शुरू हो चुका था। सितंबर 20217 में उनके जाने के चार माह बाद मैंने भी प्रभात को अलविदा कह दिया। बहुत सही समय पर। प्रभात के संपादकीय विभाग में अपनेे काम से काम रखने वाले किसलय जी किसी से बात करते थे तो काम की और एक भी शब्द इधर-उधर की नहीं। यह उन दिनों उनके साथ काम करने वाले साथी भी स्वीकार करते हैं। प्रभात में बौद्धिक-वैचारिक चर्चा करने वाले कम थे, लेकिन जो भी थे, उनके साथ किसलय जी की खूब चर्चा होती थी। हालांकि मूढ-मगज वालों से खिन्न भी होते थे, तो भी वह अकेले पचा जाते थे। भविष्य की चर्चाएं होती और यहां से जाने के बाद उन्होंनेे अपना काम बखूबी संभाल लिया था।
मैं यह स्वीकार करता हूं कि यदि किसलय जी मेरठ प्रभात में नहीं आये होते तो शायद उनसे मेरा परिचय नहीं होता। किसलय जी आज हमारे बीच नहीं हैं। देर से ही सही, उनके लिये दो शब्द लिखे बिना कैसे रह सकता हूं। बौद्धिक परिचर्चा और विज्ञान लेखन को लेकर किसलय जी आप बहुत याद आएंगे। डेहरी आॅन सोन से गुजरते आपकी याद आएगी। अंत में अश्रुपूरित नेत्रों से विनम्र श्रद्धांजलि। ईश्वर परिवार को इस कठिन समय में दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करे।