योग मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक अनुशासन का संबंध है
-निशांत राज, प्रबंध संपादक, सोनमाटी
योग को हमारे जीवनशैली में बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतराराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। योग दिवस का आयोजन हर साल किसी खास थीम को ध्यान में रखते हुए ही किया जाता है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को महिलाओं पर केंद्रित किया गया है। इस साल यानि 2024 की थीम है ‘योगा फॉर वुमेन इंपावरमेंट’ यानी महिला सशक्तिकरण के लिए योग। महिलाओं के मानसिक और शरीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
योग शारीरिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देकर स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने में मदद करता है। योग व्यक्ति को अनुशासित रहना और अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में अधिक जागरूक रहना सिखाता है।
आधुनिक युग में, भागादौड़ी भरी जिंदगी के बीच व्यक्ति के पास सेहत के लिए वक्त नहीं है और स्ट्रेस लेवल इतना हाई है कि वो न जाने कितनी बीमारियों की चपेट में आ सकता है। ऐसे में आधे घंटे से 45 मिनट का योग न केवल शरीर बल्कि मन को भी स्वस्थ रख सकता है।
योग न केवल जीवन के इन पहलुओं को समाहित करती है, बल्कि व्यक्ति में स्मृति प्रतिधारण में भी सुधार करती है। जो व्यक्ति नियमित रूप से योग का अभ्यास करते हैं, वे तनाव से दूर रहते हैं , अधिक एकाग्रता के साथ अवधारणाओं को समझते हैं और उन्हें लंबे समय तक ऊर्जावान रखते हैं।
हर साल योग दिवस मनाने का मकसद स्पष्टतौर पर सेहत से जुड़े इसके फायदों को उजागर करना और सभी को अपनी सेहत देखते हुए योगा करने के लिए प्रेरित करना है। योगा के और भी कई फायदे हैं। मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक अनुशासन से संबंधित गतिविधियों का एक समूह शरीर और मन के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए संकलित किया जाता है। शरीर, सांस और मन के बीच यह एकता विभिन्न आसन, श्वास अभ्यास और ध्यान का उपयोग करके स्थापित की जाती है। यह मानसिक, आध्यात्मिक, शारीरिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देकर स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह एक स्वस्थ और तनावपूर्ण जीवन जीने की कला और विज्ञान है।
पहली बार दुनियाभर में योग दिवस:
बता दें कि पहली बार 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। जिसमें उन्होंने कहा था कि-‘‘योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक हैय मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य हैय विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह केवल व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन-शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को अपनाने की दिशा में काम करते हैं।‘‘
उसी वर्ष 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति देते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। बता दें कि इस प्रस्ताव को 177 देशों का समर्थन मिला था। जिसके बाद पहली बार दुनियाभर में योग दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया था।
इसके पहले दिसंबर 2011 में ध्यान और योग गुरु श्री श्री रविशंकर और अन्य योग गुरुओं ने 21 जून का दिन दुनिया के लिए एक योग दिवस के रूप में घोषित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सुझाव दिया था।
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता हैः
आज कल छात्रों में पठन दृपाठन के प्रति उदासीनता देखी जाती है। उनका मूल कारण उनका स्वस्थ ही है। हम अपने बच्चों को उनके संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर विचार किए बिना या उनकी परवाह किए बिना शिक्षित कर रहे हैं। हम उनके दिमाग और मन को जानकारी से भर रहे हैं, हमें यह देखना होगा कि विज्ञान बच्चे के विकास के बारे में क्या कहता है, मनोविश्लेषण बाल मनोविज्ञान के बारे में क्या कहता है और हार्मोन तथा ग्रंथियां किस प्रकार बच्चे की तर्कसंगतता, भावनात्मक संरचना और रचनात्मक उत्पादन को प्रभावित करती हैं।
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ शिक्षा का निवास सम्भव है। यह योग से ही संभव है। योग से उसके सारे शरीर के रोगों का निदान होगा। योग का तात्पर्य शरीर को बलशाली बनाना नहीं है। बल्कि उसके मन मस्तिष्क को उसके कार्य के प्रति जागरूक करना है। योग से अस्वस्थ शरीर को सक्रिय एवं रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
वास्तविक शिक्षा पूर्णता की ओर ले जाने वाले ज्ञान की खोज है, इसलिए योग भी उस ज्ञान की खोज है जो एकजुट करता है और एकता पूर्णता की ओर ले जाती है। वास्तविक शिक्षा केवल कक्षाओं में किसी की प्रवृत्तियों जैसे -पैसा, अधिकार की मांगों को पूरा करने के लिए जानकारी का संचयन नहीं है, बल्कि यह उस ज्ञान की खेती है जो इस निम्नतर प्रकृति को रूपांतरित करती है, इसीलिए इसे ‘‘सा विद्या या विमुक्तये‘‘ कहा जाता है। इसका मतलब है कि विद्या वही है जो मुक्त करे, ज्ञान उत्सव लाता है (जुनून, लालसा, इच्छाओं, प्रवृत्तियों आदि की निम्नतर प्रकृति से) योग मन को शक्तिशाली बनता है। इसके नियमित अभ्यास से मस्तिष्क शक्तिशाली एवं संतुलन बना रहता है।
योग का इतिहास पुराना :
योग विज्ञान की उत्पत्ति हजार साल पहले हुई थी। योग एक प्राचीन हिंदू अनुशासन है जिसकी जड़ें प्राचीन भारतीय दर्शन में हैं। ‘योग‘ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज‘ से हुई है, जिसका अर्थ है मतलब ‘जोड़ना‘ या ‘एकजुट होना‘ होता है। यह मन, शरीर और प्रकृति के बीच सामंजस्य लाता है।
पूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) के दौरान योग के अस्तित्व के ऐतिहासिक साक्ष्य देखे गए, और उसके बाद पतंजलि काल तक। वेद, उपनिषद, स्मृति, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पाणिनि की शिक्षाएँ, महाकाव्य, पुराण आदि मुख्य स्रोत हैं जहाँ से हमें इस अवधि के दौरान योग प्रथाओं और संबंधित साहित्य के बारे में जानकारी मिलती है।
आधुनिक काल( 1700 – 1900 ई. ) में रमण महर्षि, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद और विवेकानंद आदि अद्भुत योगाचार्यों ने राजयोग के विकास में योगदान दिया। यह वह काल था जब वेदांत, भक्ति योग, नाथयोग या हठयोग का विकास हुआ।
योग को और अधिक पीछे जाकर ऋग्वेद में ढूंढा जा सकता है, जो सबसे प्राचीन हिंदू ग्रंथ है, जिसमें हमारे मन और अंतर्दृष्टि को सत्य अथवा वास्तविकता के प्रकाश के साथ सम्बद्ध करने की बात कही गई ।
प्राचीन काल में योग करने के काफी कठिन नियम होते थे। सामान्यतः लोग ग्रस्थजीवन त्याग कर वनो में कठिन योग क्रियाएं करते थे। परंतु समय के साथ साथ ही योग की जटिलताओं को अनेक ऋषियों ने सामान्य करने का प्रयास किया है। परंतु महर्षि पतंजलि इस क्रम में एक अलग ही ख्याति अर्जित करने में सफल हुए क्योंकि महर्षि पतंजलि ने योग की जटिलताओं को एक सूत्र में पिरोया जिसे हम पतंजलि योगसूत्र के नाम से जानते है।
महान ऋषि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से योग की तत्कालीन मौजूदा प्रथाओं, इसके महत्व और इससे संबंधित जानकारी को व्यवस्थित और वर्गीकृत किया। पतंजलि के बाद, कई ऋषियों और योग गुरुओं ने अपने सुप्रलेखित अभ्यासों और साहित्य के माध्यम से इस क्षेत्र के संरक्षण और विकास के लिए अविश्वसनीय रूप से योगदान दिया।
योग व्यवसाय के रूप मेंः
आज योग वैश्विक स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। वर्तमान के जीवनशैली में योग सीखना लोगों की जरूरत बन गया है और इस जरूरत ने योग के जानकारों के लिए अवसरों को ईजाद किया है। प्राचीन काल से लाभ पहुंचाने वाला योग मौजूदा समय में कई प्रतिष्ठित योग संस्थानों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, निजी ट्रस्टों, सोसाइटी आदि में सिखाया जा रहा है। लोगों के इसके प्रति आकर्षित करने और इसका लाभ समाज कल्याण के लिए लोगों तक पहुंचाने के मकसद से कई योग क्लिनिक, योग थेरेपी और प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं। पिछले कुछ दशकों में योग करियर के के रूप में विकसित हुआ है।
आज योग पेशेवरों के लिए शिक्षा,स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र,योग शिक्षक, योग प्रशिक्षक, जिम एवं हेल्थ क्लब, रिसर्च ऑफिसर-योग एंड नेचुरोपैथी आदि के तौर पर पहचान बना सकते हैं।
शिक्षा जगत में योग की शिक्षा बहूत ही आवश्यक है क्योंकि आज के वर्तमान परिवेश में ज्यादातर छात्र एवं छात्राएं शारीरिक, मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं। जिनके कारण उनमें शिक्षा का विकास जितना होना चाहिए, उतना नहीं हो पा रहा है। आज भी जरूरत है हमें योग शिक्षा को सभी विद्यालय के पाठ्यक्रममों में शामिल करने की।