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अम्बष्ट : महान राजवंश के योद्धा मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के समय बिहार (मगध) आए

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, Kavi Vikas Manch Rura सहित संख्या बल में बहुत कम होने के कारण देश की आजादी अर्थात जनतंत्र में चुनिंदा नहीं रह जाने के कारण कायस्थ राजनीतिक ताकत में बेहद कमजोर हो गए। समाज के अन्य समूह में भी ज्ञान का विस्तार होने और आरक्षण के कारण भी उनकी ज्ञान आधारित आर्थिक-संरचना में सेंध लगी। उन्हें भी अन्य पेशा अपनाने और सिद्ध करने की योग्यता अर्जित करनी पड़ी। जबकि अति प्राचीन काल से कायस्थ लिखने-पढऩे में अग्रणी ऋषि वर्ग के साथ युद्ध में निष्णात योद्धा वर्ग की जाति भी रही है। कायस्थ कुल के विश्व धर्म सम्मेलन (अमेरिका) के विश्वविख्यात दार्शनिक वक्ता स्वामी विवेकानंद ने अपने एक बहुचर्चित व्याख्यान में बताया था कि वह उन महापुरुषों के वंशज हैं, जिनका राज भारत-भूभाग के आधे से अधिक हिस्से पर था।

तक्षशिला के निकट चंद्रभागा (चेनाब) और इरावत (रावी) नदियों के बीच था अम्बष्ट कायस्थों का मूल स्थान 

कायस्थों की सबसे पुरानी उपजाति अम्बष्ट है, जिनके सरनेम सिन्हा, वर्मा, प्रसाद, सहाय आदि हैं। तक्षशिला के निकटवर्ती महान अम्बष्ट राजवंश के योद्धा मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के समय बिहार (मगध) आए थे। वे भारतीय उपमहाद्वीप के सीमांत प्रदेश में चंद्रगुप्त की ओर से लड़े गए युद्ध के विजेता थे। अम्बष्टों में विवाह में एक-दूसरे से खासघर पूछने-जानने की परंपरा है। दरअसल खासघर वह प्राचीन गांव थे, जहां सिंध-पंजाब क्षेत्र से आए अम्बष्ट राजवंश के योद्धा-परिवार मगध साम्राज्य तंत्र का हिस्सा बनकर बसे थे। अम्बष्ट कायस्थों का मूल स्थान तक्षशिला के निकट चंद्रभागा (चेनाब) और इरावत (रावी) नदियों के बीच था। जैसेकि उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का सहेत-महेत (श्रावस्ती) श्रीवास्तव कायस्थों का मूल स्थान है। कल्हण की राजतरंगणी से पता चलता है कि चंद्रगुप्त के हजार साल बाद भी कायस्थों का प्रमुख राजवंश था। राजतरंगणी के अनुसार, कश्मीर में कार्कोट कायस्थों का 601 ईस्वी से 253 सालों तक महान राजवंश था।

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग

चित्रगुप्त पूजा कायस्थों को अपनी पीढ़ी को ज्ञान-हस्तांतरण की परंपरा

चित्रगुप्त पूजा कायस्थों को अपनी पीढ़ी को ज्ञान-हस्तांतरण की परंपरा है, जिसमें आय-व्यय का बयौरा लिखने का उपक्रम इस बात का प्रमाण है। हालांकि कायस्थ-परिवारों में प्रचलित यह पूजा अब रूढ़ अर्थात अप्रासंगिक कर्मकांड बन चुका है। चित्रगुप्त पूजा में दही-गुड़ के बजाय अदरख-गुड़ का मिश्रित प्रसाद बनता है, जिसकी सामाजिक ज्ञान की दृष्टि से अनेक तरह से व्याख्या की जा सकती है। अदरख दुनिया के ज्ञात सबसे पुराने प्राकृतिक एंटी-बायोटिक से एक है। यह कायस्थों के अति प्राचीन औषधीय या आयुर्वेदिक ज्ञान का सबूत है।

धन्यवाद दैनिक भास्कर (डेहरी-आन-सोन अनुमंडल संवाददाता उपेन्द्र कश्यप व टीम), न्यूजडाट24 और उन प्रिंट-डिजिटल मीडिया का, जिन्होंने चित्रगुप्त पूजा पर कायस्थों को भी रेखांकित किया।

 

रिपोर्ट : कृष्ण किसलय,

समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह

9708778136

One thought on “अम्बष्ट : महान राजवंश के योद्धा मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के समय बिहार (मगध) आए

  • September 10, 2019 at 5:22 am
    Permalink

    Baat sahi lagti hai.ambashth kayastho ka ek gotre hai ek prachin ambashth bhi kashmir ki taraf shasan karti thi. Jiske ullekh kai jagah milte hai.

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