अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव : सृजन के विस्फोट-विस्तार का नया अनुभव संसार
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– कृष्ण किसलय
(समूह संपादक, सोनमाटी मीडिया समूह)
बिहार के विश्वविश्रुत सोन नद अंचल के दाउदनगर (औरंगाबाद) में अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव-2020 के सफल आयोजन से फिल्म के जरिये अंतरमुखी प्रतिभा (अभिनय आदि) और बहिरमुखी प्रतिभा (निर्माण तकनीक आदि) के संरक्षण-संवरण की एक नई ऐतिहासिक यात्रा आरंभ हुई है। बेशक इस महात्वाकांक्षी संयोजन ने प्रदेश की 90 साल पुरानी जड़ों से जुड़ते हुए विराट सोन अंचल की भूमि पर नया अध्याय उत्कीर्ण किया है। 1930 में देव (औरंगाबाद) के राजा जगन्नाथ किंकर ने चार रील की छठ मेला फिल्म बनाई थी। तब फिल्म मूक होती थी और उसमें आवाज डालने की तकनीक का विकास नहीं हुआ था। बिहार बाल अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव-2020 ने वट-वृक्ष बीजारोपण का कार्य किया है, जिससे भविष्य में शाखा-प्रशाखा फूटेंगी। इस आयोजन का आधार-प्रस्तर कालान्तर में नव बिहार का परकोटा निर्मित करेगा, जगह-जगह मेधा-ऊर्जा के ध्रुवीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा और समय के साथ सिनेमा-क्षेत्र के नए गढ़ों का निर्माण भी करेगा।
भारतीय सिनेमा के आदिपुरुष दादासाहब फालके ने 1913 में पहली मूक फिल्म ‘हरिश्चंद्रÓ से वालीवुड (भारतीय सिनेमा) की नींव रखी थी। दादासाहब फालके ने सिनेमा की बुनियाद डालने के लिए अपना सबकुछ गिरवी रख दिया था। फिल्म तकनीक सीखने के लिए सात समंदर पार के देश की कठिन यात्रा की थी। गांव-गांव बैलगाड़ी पर घूमकर, पर्दा टांगकर अपनी फिल्म का प्रदर्शन किया और एक नई दर्शक-संस्कृति का बीजोरोपण किया था। वहीं बीज आज वालीवुड के विशाल वटवृक्ष रूप में खड़ा है, जिसमें हिन्दुस्तान के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और अन्य देशों का भी दिल धड़कता है। 107 सालों के सफर में भारतीय सिनेमा ने कई मीलस्तंभ खड़े किए। कभी फर्श पर चीटीं जैसी रेंगने वाली फिल्मों से लेकर अर्श तक उड़ान भरने का क्वांटम जंप भी वालीवुड ने लगाया है।
बीती 20वीं सदी में हाउस (सिनेमा-घर) के अवतरण ने आदमी के सभ्यता आरंभ के समय से स्थापित हजारों सालों तक राज करने वाला संचार माध्यम थियेटर (रंगमंच) के वर्चस्व को विस्थापित कर दिया। वहीं 21वीं सदी में संचार के नए माध्यम (न्यू मीडिया) ने सिनेमा-घरों को मुख्य बाजार से धकेलकर हाशिये पर ला दिया। मगर न्यू मिडिया (डिजिटल) के विभिन्न प्लेटफार्म इंटरनेट, यूट्यूब आदि ने संभावना का नया द्वार भी खोला है। देश के एक फीसदी लोग अर्थात सबसे अमीर 63 अरबपतियों के पास 70 फीसदी (95.3 करोड़) लोगों की संपत्ति के बराबर दौलत होने के केेंद्रीकृत सच का प्रतिनिधित्व मौजूदा वालीवुड कर रहा है, क्योंकि वालीवुड ने सिनेमा को एकाधिकार वाला संगठित कारोबार में तब्दील कर दिया है। कम संसाधन वालों को और संगठित दायरे से बाहर की प्रतिभा को आज वालीवुड में अवसर या काम नहीं मिल पा रहा है। भारत में दुनिया में सबसे अधिक 20 भाषाओं में प्रति वर्ष करीब 2000 फिल्में बनती हैं। फिर भी यह कमजोर पक्ष है कि इन हजार फिल्मों में देश-समाज के भविष्य बच्चों के लिए उ’गली पर गिनी जा सकने भर भी श्रेष्ठ और लोकप्रिय बाल फिल्में नहीं होतीं। हालांकि बाल फिल्मों का निर्माण अनेक कारणों से बेहद चुनौतीपूर्ण भी है।
यह सुखद है कि बिहार अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव-2020 के मंच पर बच्चों से संबंधित अपने समय के समाज की प्रतिध्वनि और कला विधाओं के अंतरगुंफन का प्रतिबिंब देखने का अवसर दर्शकों को मिला। देश-प्रदेश की विभूतियों ने शिरकत कर अपने-अपने अनुभवों का वितरण-संचरण कर फिल्म महोत्सव के मंच की प्रभाव-प्रभा को विस्तार दिया। नई 21वीं सदी में न्यू मीडिया ने मायानगरी (मुंबई) से दूर प्रदेश-प्रदेश के आंचलिक प्रान्तरों तक मेधा के विस्फोट और विस्तार का जो नया मार्ग खोला है, उसका परिदर्शन बिहार बाल फिल्म महोत्सव-2020 में बखूबी हुआ। प्रतियोगिता के अंतर्गत बाल विषयों पर आधारित बड़े स्टुडियो और नामचीन चेहरों से अलग छोटे कैमरों, मोबाइल फोन और स्थानीय कलाकारों के जरिये बनाई गईं जो लघु फिल्में प्रदर्शित हुईं, उनमें निर्देशकों की दृष्टि की झलक थी। इस नाते फिल्मोत्सव को उस आंदोलन का आगाज माना जा सकता है, जिसका अगला मुकाम-ए-मंजिल वालीवुड से अलग अपना स्थानीय बाजार बनाना भी है।
अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव के मंच पर मेधा और समय-श्रम साध्य तपस्या का जो संगम दिखा, वह आशा बंधाता है। वह बताता है कि फीचर फिल्म निर्माण की पंरपरा से अलग डाक्युमेंट्री और लघु फीचर फिल्म निर्माण की जो नई लीक बन रही है, उसमें सुरक्षा और संभावना दोनों ही हैं। आंचलिक पृष्ठभूमि वाले दाउदनगर में फिल्म की ज्ञान-तकनीक और विज्ञ-विमर्श का संयोजन बड़े साहस का काम रहा है। हिमालय से जमीन पर गंगा-अवतरण जैसा यह उपक्रम दो युवा प्रतिभाओं के सहधर्मी संगम का, दो सृजनात्मक संगठनों धर्मवीर फिल्म एंड टीवी प्रोडक्शन और विद्यानिकेतन ग्रुप आफ स्कूल्स के साहचर्य का प्रतिफल है। बिहार अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह में रोशनी की जो किरण पैदा हुई है, वह आने वाले वक्त के अंधेरे में रौशन-चिराग बनेगी, यह उम्मीद है। जाहिर है कि प्रभावकारी संचार माध्यम होने के नाते सिनेमा के कंधे पर बड़ी जिम्मेदारी है। दरअसल, सरकारों की अपनी सीमाओं में रहने और राजनीतिक कारणों से अनसुनी करने की वजह से बच्चों की व्यापक चिंता समाज के संवेदनशील कला जगत को ही करनी है। – कृष्ण किसलय –®–
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बिहार राज्य सीमा पार राष्ट्रीय स्तर तक बाल फिल्मोत्सव की गूंज
नवरतन चक, दाउदनगर (बिहार) से विशेष संवाददाता उपेंद्र कश्यप और प्रबंध संपादक निशांत राज की विशेष रिपोर्ट
दाउदनगर (औरंगाबाद)-सोनमाटीडाटकाम टीम। उत्तर मुगल काल के शहर दाउदनगर में इंटरनेशनल चाइल्ड फिल्म फेस्टिवल-2020 का तीन दिवसीय आयोजन भव्य और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति के साथ संपन्न हुआ। यह बिहार में आयोजित अपनी तरह का प्रथम बाल फिल्म समारोह था, जिसकी खासियत थी कि आयोजन महानगरों और राजधानियों से दूर, किसी नगर (शहरी निकाय) से भी अलग दाउदनगर से छह किलोमीटर गांव की गोद में स्थित संस्कार विद्या परिसर में हुआ। अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म समारोह का औपचारिक उद्घाटन औरंगाबाद के जिलाधिकारी राहुलरंजन महिवाल ने दीप-प्रज्ज्वलन कर किया। उन्होंने अपने संबोधन में मुंबई के गोरेगांव स्थित फिल्म सिटी के बारे में बताया। दाउदनगर के अनुमंडलाधिकारी तनय सुल्तानिया ने फिल्मों के बाल आवश्यकताओं का पूरक बनने की बात कहीं।
आरंभ में विद्यानिकेतन विद्यालयसमूह के अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक और फिल्मोत्सव के मुख्य संरक्षक सुरेशकुमार गुप्ता ने स्वागत-भाषण दिया। अलग-अलग सत्रों का सफल संचालन विद्यालय निकेतन विद्यालय समूह के मुख्य कार्याधिकारी आनंद प्रकाश और धर्मवीर फिल्म एंड टीवी प्रोडक्शन के अध्यक्ष निर्देशक डा. धर्मवीर भारती के साथ प्रस्तुति-निर्देशक डाली भारती (गया) ने किया। कलाप्रभा संंगम (दाउदनगर) के कलाकारों ने सत्र-अंतरों के बीच-बीच में आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। काव्या मिश्र (अरवल, बिहार) ने कत्थक की सधी हुई प्रस्तुति दी। श्रेया सिंह राजपूत (रांची) ने विभिन्न प्रस्तुतियों की एंकरिंग की। विद्यानिकेतन विद्यालयसमूह के उप मुख्य कार्याधिकारी समारोह के प्रबंध संरक्षक विद्या सागर और विद्यालय के चिकित्सा पदाधिकारी डा. मनोज कुमार ने आगत अतिथियों का पुष्पगुच्छ भेंटकर स्वागत किया।
समारोह में मुख्य, विशिष्ट और उद्बोधक अतिथि के रूप में भारतीय सिने जगत के सशक्त हस्ताक्षर अखिलेंद्र मिश्र (मुंबई), पद्मश्री लेफ्टिनेंट जनरल एके चौधरी (दिल्ली), सुपर-थर्टी के प्रख्यात शिक्षाविद आनंद कुमार (पटना), अद्धभुत बेटी के रूप में चर्चित सुश्री जाह्नïवी (पानीपत, हरियाणा), बिहार राज्य बाल संरक्षण आयोग की सदस्य उषा देवी (पटना), क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार के आयुक्त सुशील कुमार (पटना), बिहार अति पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्य प्रमोद चंद्रवंशी (पटना), भारत स्काउट-गाइड के बिहार सचिव श्रीनिवास कुमार आदि ने अपने संबोधन में बच्चों से संबंधित विषयों पर प्रकाश डाला और स्वाभाविक सकारात्मक बाल संस्कार के निर्माण पर बल दिया। सभी अतिथियों को सुनना और इनसे रू-ब-रू होना नए अनुभव संसार से गुजरने जैसा था। तीन दिवसीय समारोह में दो दिन प्रतियोगिता के अंतर्गत चुनी गई फिल्मों का मंच के पर्दे पर प्रदर्शन हुआ, जिसका निर्णय फिल्म और रंगमंच के अग्रणी निर्देशकों-नाटककारों-अभिनेताओं-फोटोग्राफरों-समीक्षकों के निर्णायक-मंडल ने किया, जिसमें आरिफ शहडोली, माधवचंद्र परिडा, अशोक मेहरा, कृष्ण किसलय, अनीता पंडित और मनोज पंडित शामिल थे।
लेफ्टिनेंट जनरल एके चौधरी ने बच्चों को बताया कि किस तरह माइनस 50 डिग्री तापमान में हिमालय की कारगिल चोटी जैसी जगह पर रहकर भी सैनिक देश की सुरक्षा करते हैं। सुपर-थर्टी के शिक्षाविद आनंद कुमार ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करते हुए अभिभावकों से इस पीड़ाजनक विडंबना पर प्रश्न खड़ा किया कि हर अभिभावक अपने बच्चे के लिए बेहतर शिक्षक तो चाहता है, मगर क्या वह अपने बच्चे को अच्छा शिक्षक बनाना चाहता है? अद्भुत बेटी (वंडर गर्ल) जाह्नïवी ने विद्यार्थियों के सवालों का जवाब देते हुए उनसे कहा कि माता-पिता को अपना आदर्श मानें और अभिभावकों से कहा कि बच्चों पर अपनी इच्छा लादने के बजाय उन्हें उनकी रूचि के अनुरूप ढालने में सहयोग करें। जाह््नवी के साथ विद्या निकेतन विद्यालयसमूह के मुख्य कार्याधिकारी आनंद प्रकाश ने एक घंटे से अधिक समय तक सवाल-जवाब के रूप में शिक्षाप्रद मंच-वार्ता की। जबकि शिक्षाविद लेखक डा. कुमार विमलेन्दु और डाली भारती ने वरिष्ठ सिने अभिनेता अखिलेश मिश्र के साथ मंच पर परिचर्चा के जरिये बच्चों-अभिभावकों के साथ वैचारिक समागम किया।
मुंबई के निर्देशक अनिल दुबे की तृप्ति को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, झारखंड के हंसलोहरा को मुटरी के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, मुटरी के लिए ही मुंबई की कनुप्रिया को सर्वश्रेष्ठ कहानी और बचाओ के लिए विजय तिवारी को सर्वश्रेष्ठ संपादन का पुरस्कार प्रदान किया गया। श्रेष्ठ अभिनेता-अभिनेत्री, श्रेष्ठ सह अभिनेता-अभिनेत्री और श्रेष्ठ बाल अभिनेता-अभिनेत्री के लिए गिरिजेश पांडेय (स्कूल चलें हम), छोटी सी चाहत (अनिता पंडित), नदीम जाफरी (जागो), मनोज पंडित (इंजोर), अदिति परमार्थ (स्कूल चलें हम), भावना मेहरा (नजरिया), दृष्टि (निर्देशक रवीन्द्र चौहान) को पुरस्कृत किया गया। श्रेष्ठ बाल निर्देशक का पुरस्कार अंश पल्लव (स्कूल चलें हम) को और हाफ ट्रुथ (निर्देशक इमरान अली) को नकारात्मक चरित्र अभिनय के लिए प्रदान किया गया। प्रतियोगिता से अलग प्रदर्शित फिल्मों में इमरान अली की जागो को श्रेष्ठ फिल्म और अनिल दुबे की गोहू को विशेष फिल्म का पुरस्कार दिया गया। अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में आयोजक मंडल की ओर से बिहार के दादासाहब फालके माने जाने वाले राजा जगन्नाथ किंकर स्मृति सम्मान अखिलेंद्र मिश्र, अनिल दुबे, आनंद कुमार, सुरेशकुमार गुप्ता, आरिफ शहडोली और उपेंद्र कश्यप को दिया गया। निर्णायक मंडल के सदस्यों को अंगवस्त्र भेंटकर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया गया। फिल्मोत्सव के मुख्य अतिथि वालीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता अखिलेंद्र मिश्र ने सभी को पुरस्कृत- सम्मानित किया।
फिल्मोत्सव-2020 के प्रतियोगिता संयोजन अध्यक्ष एवं निर्देशक डा. धर्मवीर भारती और निर्णायक-मंडल के सभी सदस्यों ने अपने संबोधन में कहा कि इस समारोह का उद्देश्य बच्चों के प्रति समाज में चिंता-चिंतन को जागृत करना, वालीवुड के मुख्य बाजार से अलग फिल्म निर्माण के प्रोत्साहन की जमीन तैयार करना, तकनीकी बारीकियां बताना, आंचलिक प्रतिभाओं को महत्व देना और सिनेमा को गांवों तक पहुंचाना भी रहा है। डा. धर्मवीर भारती ने बताया कि 1930 में अपना स्टुडियो बनाकर छठमेला फिल्म बनाने वाले बिहार के दादासाहेब फालके के रूप में ज्ञात राजा जगन्नाथ किंकर की स्मृति में सम्मान का आरंभ इस अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्म उत्सव से किया गया है। 14 मिलीमीटर में बनी चार रील की फिल्म छठमेला का प्रदर्शन राजा जगन्नाथ किंकर ने अपने महल में ही किया था, जिसे देखने औरंगाबाद, नवादा, रोहतास, पटना जिला के लोग आए थे।
विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी कार्य कर रहे विद्या निकेतन के तीन पुरातन छात्रों को स्व. रमेशकुमार गुप्ता स्मृतिचिह्नï भेंटकर सम्मानित किया गया। समारोह की खबरों को समाचारपत्रों और चैनलों में स्थान देने वाले स्थानीय मीडियाकर्मियों और समारोह के प्रबंधन, तकनीकी टीम के अग्रणी सदस्यों को भी मंच पर आभार प्रतीकचिह्न भेंट किया गया। विभिन्न स्तरों पर समारोह के निष्पादन में संस्कार विद्या के प्राचार्य सूरजमोहन लाल दास, प्रशासक संदीप कुमार, धर्मवीर फिल्म एंड टीवी प्रोडक्शन के रणवीर कुमार, पप्पू प्रकाश, विशाल राय, संकेत सिंह, अंजन सिंह, गोविंदा आदि ने सहयोग किया। तीन दिन 7, 8, 9 फरवरी को डा. धर्मवीर भारती के निर्देशन में बनाई गई फिल्मों एक अप्रैल : अल्कोहल फ्रीडम डे, बूढ़ा-बूढ़ी चेकडैम और जिउतिया : द सोल आफ कल्चरल सिटी दाउदनगर का प्रदर्शन किया गया। पहली फिल्म में विद्या निकेतन के विद्यार्थियों-शिक्षकों ने अभिनय किया है। दूसरी और तीसरी फिल्में बिहार के विश्वविश्रुत सोन अंचल केेंद्रित व्यापक दृष्टि वाली बेहतर वृतचित्र (डाक्युमेंट्री) के उदाहरण हैं।
समापन पर वरिष्ठ विज्ञान लेखक कृष्ण किसलय ने नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित अपनी पुस्तक (सुनो मैं समय हूं) अखिलेंद्र मिश्र, डा. कुमार विमलेंदु, डा. धर्मवीर भारती और आनंद कुमार को भेंट की। समारोह परिसर में भारतीय डाक (विभाग) द्वाार बाल विषयों पर प्रदर्शनी लगाई गई थी और रेत-हस्तशिल्पकार मधुरेंद्र (चंपारण) द्वारा दर्शकों के अवलोकनार्थ बालू निर्मित फिल्म फेस्टिवल-2020 का भव्य लोगो (प्रतीकचिह्नï) बनाया गया था।