ब्राजील की अमेजन नदी घाटी के जंगल में प्राकृतिक अवस्था में रहने वाली एक ऐसी नई जनजाति का पता चला है, जिनका दुनिया के सभ्य संसार से अब तक कोई संपर्क नहीं रहा है। ड्रोन के जरिए ली गई तस्वीरों से अमेजन नदी के इलाके में इस जनजाति समुदाय के होने की जानकारी सामने आई है। सरवाइवल इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तस्वीरों में पेरू की सीमा के पास अमेजन की सहयोगी नदी जावारी के घने जंगल में अनेक लोगों का चलना-फिरना साफ दिख रहा है। एक तस्वीर में एक नंग-धड़ंग व्यक्ति भाला या डंडा जैसी चीज लिए हुए दिखाई दे रहा है, जिसके पास चार अन्य लोग भी नंग-धड़ंग खड़े हैं। हालांकि जंगल में नीचे खड़े लोगों में से कोई यह देख-जान नहींपाया कि उनके ऊपर कोई अजीब चीज (ड्रोन) उड़ रही है। उन जनजाति को उस छोटे-से मानव समहू की टोह लेने के क्रम में तस्वीर खींचते समय ड्रोन पेड़ों की ऊंचाई से काफी ऊपर उड़ रहा था।
सरवाइवल इंटरनेशनल ने की खोज
सरवाइवल इंटरनेशनल दुनिया की एक गैर सरकारी उपक्रम है, जो जंगलों में मौजूद उन और वैसी जनजातियों के संरक्षण के कार्य में जुटा हुआ है, जिनका किसी राज्य-देश या दूसरी जंगली जनजाति से भी से कोई संपर्क नहीं रहा है। इस कार्य के लिए सरवाइवल इंटरनेशनल की टीम ने पिछले दिनों अपने निर्धारित सर्वेक्षण अवधि में अमेजन के जंगल में 180 किलोमीटर की यात्रा नाव, ट्रक और मोटरसाइकिल के जरिये तय की थी। इससे पहले भी सरवाइवल इंटरनेशनल की टीम ने 120 किलोमीटर की खोज-यात्रा कर चुकी है।
(सरवाइवल इंटरनेशनल द्वारा खोजी गई नई जनजाति की तस्वीरें। तस्वीर संयोजन : निशांत राज)
– प्रस्तुति : अवधेशकुमार सिंह,
सेवानिवृत्त बीज निरीक्षक, बिहार सरकार कृषि विभाग
संयुक्त सचिव, सोनघाटी पुरातत्व परिषद, बिहार
एएसईआर : बच्चों की बुनियादी शिक्षा में चौंकाने वाला खुलासा
भारत के 14 फीसदी बच्चे अपने ही देश का नक्शा नहीं पहचान पाते हैं। 36 फीसदी बच्चों को यह भी नहीं पता है कि उनके देश की राजधानी कहां है? 21 फीसदी बच्चे यह भी नहीं जानते कि वे किस राज्य में रहते हैं? आठवीं से बारहवीं तक के एक-चौथाई विद्यार्थी पैसों की बड़ी संख्या नहीं गिन सकते हैं। 44 फीसदी विद्यार्थी चार-पांच वजनों का जोड़ एक साथ नहीं कर पाते और 40 फीसदी तो घंटा-मिनट में समय भी नहीं बता पाते है। इस जमीनी हकीकत का खुलासा ऐनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (एएसईआर) में किया गया है।
सरकारी आंकड़ों से पता नहींचलता बच्चों की जानने की क्षमता में कितनी हुई वृद्धि
एएसईआर वर्ष 2006 से ही देश में शिक्षा की स्थिति पर अपने वार्षिक सर्वेक्षण की निष्षर्क रिपोर्ट जारी करती रही है। साक्षरता के सरकारी आंकड़े से इतना ही पता चल पाता है कि कितने बच्चों का नामांकन किस स्कूल के रजिस्टर में दर्ज हुआ है? मगर सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले साक्षरता के आंकड़े से यह पता ही नहींचलता है कि स्कूल में दी जा रही शिक्षा से बच्चों के जानने की क्षमता में कितना इजाफा हुआ है? अब एएसईआर की रिपोर्ट से देश में बुनियादी अर्थात प्राथमिक शिक्षा की जमीनी हकीकत सामने आई है।
चिंताजनक बात कि सरकारों ने जिम्मेदारी से झाड़ रखा है पल्ला
शिक्षा के मामले में सरकारी नीति के बाबत सबसे चिंताजनक बात यह है कि सरकारों ने बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ रखा है। जबकि बुनियादी जरूरत शिक्षा के व्यावहारिक पक्ष को मजबूत करने की ही है। साक्षरता दर से संबंधित सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ा का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि यह ठीक उसी तरह है, जैसाकि प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय से संंबंधित आंकड़ा होता है। देश में रहने वाले करोड़पतियों-खरबपतियों और भारी अभाव के शिकार लोगों को एक साथ मिलाकर प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा तैयार करने से प्रति व्यक्ति औसत आय तो बढ़ जाती है, मगर इससे यह नहींजाना जा सकता कि देश के ज्यादातर लोग (जो गरीब हैं) किस तरह की बदहाल स्थिति में अपना जीवनयापन कर रहे हैं?
एएसईआर से उजागर होता सरकरी आंकड़े का झूठ
अब तक एएसईआर का फोकस 5 से 16 वर्ष तक की उम्र के बच्चों पर था। इस साल इसका फोकस इससे आगे की उम्र 14 से 18 वर्ष के बच्चों पर भी हुआ है। इससे एएसईआर की रिपोर्ट से देश में शिक्षा की वस्तुस्थिति का पता तो चलता ही है, शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी आंकड़ों के झूठ और भ्रम का जाल भी उजागर होता है।
– प्रस्तुति : डा. सरिता सिंह,
सेवानिवृत्त अध्यापिका,
दरिहट बालिका उच्च विद्यालय (रोहतास, बिहार)