जलप्रलय : पटना डूबा, नाव चली, सोन तट के शहर में भी त्राहि-त्राहि / ला-स्कूल में व्याख्यान / सिद्धेश्वर सेवानिवृत / नौ महीने में ब्रांच डायरेक्टर

75 साल बाद हुई राजधानी जलमग्न, डेहरी बना नरक-द्वीप

पटना/डेहरी-आन-सोन (कार्यालय प्रतिनिधि)। इस साल बारिश ने बिहार में फिर कहर बरपाया है। पहले बरसात के मौसम के शुरू होते ही और अब मौसम के अंतिम समय में। चार दिनों की लगातार बारिश में राजधानी पटना डुब गया है और लबालब पानी से भरी सड़कों पर नावें चल रही हैं। मंत्रियों के घरों में भी पानी घुस गया है। सितंबर में बारिश ने 102 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। मौसम विभाग के मुताबिक 1901 के बाद से सितंबर महीने में इतनी बारिश का यह तीसरा ही मामला है। 1975 के बाद पहली बार पटना इस तरह जलमग्न हुआ है। राज्य भर में पटना सहित जगह-जगह रेल, बस सेवाएं बाधित हैं और वायु यातायात भी प्रभावित हुआ है। 15 जिलों में रेड अलर्ट जारी करना पड़ा है। स्कूल-कालेज बंद कर दिए गए हैं। मौसम विभाग के मुताबिक बारिश की स्थिति के 03 अक्टूबर के बाद सामान्य होने की उम्मीद है। इस बार की बारिश ने नगर निगमों, नगर परिषदों और राज्य सरकार की तैयारी की पोल खोलकर रख दी है। इसके साथ ही नेताओं, अभियंताओं, ठेकेदारों का भ्रष्ट तंत्र भी उजागर हो गया है। यह भी कि यह आपदा अतिवृष्टि के साथ मानवीय स्वार्थ में जलनिकासी के स्रोत पर कब्जा कर लेने, बंद कर देने और शहरों में कंक्रीट के बढ़ते साम्राज्य के कारण भी पैदा हुई है।

नरक के द्वीप में तब्दील डेहरी-आन-सोन के मुहल्ले
सोन नद तट का सबसे बड़ा शहर डेहरी-आन-सोन नगर परिषद के अकर्मण्यता के कारण जलजमाव से पहले से ही त्रस्त है। इस बार पिछले तीन दिनों से जारी लगातार बारिश ने सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया है। लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं। ठेलों-खोमचों वालों की रोजीरोटी ठप हो गई है और दिहाड़ी मजदूरों के घरों के चूल्हे जलने मुश्किल हो गए हैं। डेहरी-आन-सोन में जब नगर परिषद नहीं थी, तब यह राज्य और दूसरे राज्यों में भी साफ-सुथरा शहर के रूप में जाना जाता था। बेशक बढ़ती आबादी और बेतरतीब बसावट शहर में जलजमाव की वजह है। मगर पानी निकासी प्रबंधन और कूड़ा-कचरा निष्पादन के लिए ही तो नगर परिषद बनाई गई है, जो मनचाहा टैक्स वसूलती है और अन्य राज्य-केन्द्र सरकारों से विभिन्न संसाधनों से आर्थिक सहायता भी प्राप्त करती है। पानी की निकासी के लिए शहर के पूरब में सोन नद है तो शहर के बीच से गुजरने वाली बड़ी नहर भी। लेकिन दूरदृष्टि और बेहतर प्रबंधन के अभाव में शहर के कई इलाके टापू में तब्दील हो गए हैं। जोड़ा मंदिर, न्यू एरिया आदि मुहल्ले नरक एरिया बन गए हैं। घरों के दरवाजों पर बरसात और नाली का पानी घुसने से बचाने के लिए दीवार उठानी पड़ी है। जाहिर है कि नगरपालिका सुविधा देने वाली स्वशासी नागरिक सरकार नहीं, शहर की छाती पर बोझ की अनचाही दरकार बन गई है। टैक्स देने वाले शहरवासियों को नहीं पता है कि यह स्थिति कब तक बनी रहेगी?

अब नगरपालिका ने मच्छर मारने की दवा का छिड़काव करने की चार मशीनें खरीदी हैं, जो बताता है कि नालियों में जलजमाव है, मच्छरों की बहुलता है और मच्छरजनित बीमारियों ने डेरा जमा रखा है। नगर परिषद को खरीद में अधिक रूचि है, मगर नालियों से जल निकासी में कम रूचि है। अगर जल निकासी व्यवस्था पुख्ता हो और नालियों से साल भर में एक बार भी नीचे तल से उड़ाही हो तो जल जमाव नहीं होगा और मच्छरों का प्रकोप भी कम हेगा।
(रिपोर्ट, तस्वीर : निशांत कुमार राज)

वकालत के पेशे में संप्रेषण दक्षता अनिवार्य शर्त

डेहरी-आन-सोन (रोहतास)-कार्यालय संवाददाता। जमुहार स्थित जीएनएसयूके अंतर्गत नारायण स्कूल आफ ला में अतिथि व्याख्याता के रूप में नेशनल ला यूनिवर्सिटी (नई दिल्ली) के प्रो. डा. प्रसन्न अंशु ने न्यायिक व्यवहार में भाषा-संप्रेषण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए बताया कि बेहतर भाषा-संप्रेषण के अभाव में ही वह श्रेष्ठ विधिवेत्ता नहींबन सके थे, जबकि उन्होंने विदेश के श्रेष्ठ संस्थान से वकालत की डिग्री (बैरिस्टर) प्राप्त की थी। यह महात्मा गांधी ने भी स्वीकार की है। इसलिए अपनी बात की वस्तुस्थिति को पूरे प्रभाव के साथ उचित मंच तक पहुंचाना किसी भी अधिवक्ता की प्राथमिक दक्षता होनी चाहिए। यह दक्षता व्यापक अध्ययन और निरंतर अभ्यास से ही प्राप्त हो सकती है। संस्थान के डीन प्रो. अरूण कुमार सिंह ने आरंभ में विषय प्रवर्तन किया। संचालन डा. संजय कुमार सिंह ने किया।
(रिपोर्ट, तस्वीर : भूपेंद्रनारायण सिंह, पीआरओ)

साहित्यकार सिद्धेश्वर हुए रेल-सेवा से रिटायर

पटना (सोनमाटी प्रतिनिधि)। पूर्व मध्य रेल के पटना जंक्शन अंतर्गत उप मुख्य टिकट निरीक्षक के पद पर कार्यरत सिद्धेश्वर प्रसाद गुप्ता सेवानिवृत्त हो गए। पटना जंक्शन के रेलकर्मियों ने उन्हें समारोहपूर्वक भावभीनी विदाई दी। अपनी सेवा के दौरान वह पिछले दो दशक से राजेन्द्रनगर टर्मिनल (स्टेशन) राजभाषा कार्यान्वयन समिति के सचिव और रेलवे की रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने विचारगोष्ठी, कविगोष्ठी, राजभाषा गोष्ठी की गतिविधियों द्वारा हिन्दी से रेलकर्मियों को जोडऩे का उत्साहजनक तरीके से काम किया। इन्हें रेल मंत्रालय और रेल महाप्रबंधक कार्यालय से एवार्ड, सम्मान प्राप्त हुए। सिद्धेश्वर उपनाम से साहित्य सृजन करने वाले सिद्धेश्वर प्रसाद गुप्ता श्रेष्ठ लेखन के लिए रेल मंत्रालय से दो बार प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। उनके काव्यसंग्रह (इतिहास झूठ बोलता है) को मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और उनके कथासंग्रह (ढलता सूरज ढलती शाम) को प्रेमचंद पुरस्कार से सम्मानित जा चुका है। रेल पत्रिकाओं में उनकी कविता, कहानी, लघुकथा, आलेख, भेंटवार्ता बड़ी संख्या में प्रकाशित हुए हैं।
(रिपोर्ट, तस्वीर : बीना गुप्ता, अवसर प्रकाशन 923476036)

नौ महीनों की कड़ी मेहनत में मिली ब्रांच डायरेक्टर की प्रतिष्ठा

सासाराम (रोहतास)-सोनमाटी संवाददाता। परिश्रम और लगन कार्य किया जाए तो उसका सकारात्मक परिणाम होता है। पहले व्यवसाय, फिर शिक्षण कार्य करते हुए अपने परिवार की जीविका चलाने वाले चौक बाजार निवासी संजय गुप्ता की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई तो वह दिल्ली की वेस्टिज मार्केटिंग कंपनी से जुड़ गए। कंपनी की ओर से दिए गए टारगेट को पूरा करने के लिए 50 वर्षीय संजय गुप्ता ने कड़ी मेहनत कर कंपनी उत्पाद को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का काम किया। इनके कार्य से संतुष्ट कंपनी ने नौ महीने में ही इन्हें ब्रांच डायरेक्टर बनाया है। कंपनी से जुड़े स्थानीय क्राउन डायरेक्टर कमलेश कुमार सिंहा, डायमंड डायरेक्टर रिंकू सिंहा, सिल्वर डायरेक्टर संजय सिंह, अमरेंद्र तिवारी, विद्याभूषण तिवारी, अर्जुन कुमार, रीना सिंह, गुडिय़ा सिंह, रामप्रवेश उरांव, दिनेश पासवान, राजेश कुमार सिंह, अजय कुमार आदि ने बधाई दी है।
(रिपोर्ट, तस्वीर : अर्जुन कुमार)

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