मोबाइल युग की दुष्प्रवृति पर बन रही टेलीफिल्म आईना
कुदरा (कैमूर)-सुरेंद्रकृष्ण रस्तोगी। मोबाइल फोन आम आदमी की भी जरूरत है तो इसका तरह-तरह से दुरुपयोग भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। बनने वाली फिल्म आईना में लड़के-लड़की के मोबाइल फोन पर प्यार होने, सुनहरा सपना टूटने, परिवारों के कठिनाई में फंसने और मान-सम्मान पर चोट पहुंचने की कहानी है। जीसस प्रोडक्शन के बैनरतले मोनिका जेम्स की परिकल्पना पर हिंदी टेलीफिल्म आईना कुर्जी (पटना) में विक्टर फ्रांसिस के निर्देशन में बन रही है। इसकी कथा-पटकथा-संवाद भी विक्टर फ्रांसिस ने ही लिखे हैं। एक घंटे की इस सामाजिक फिल्म में अशोक कुमार आनन्द, कैरोलीन पुष्पा, उर्मिला सिंह, सिमरन ओसता, संजय स्बास्टिन, नन्दकिशोर मेहता, मनोज पांडे, हेमन्त कुमार, जीतन जोशी, कृष्णा कुमार, एबी शिवम, बसंत सेठ आदि के साथ कुदरा (कैमूर) की लोकगायिका अभिनेत्री अनुराधकृष्ण रस्तोगी भी भूमिका में हैं। इसमें कैमरामैन और संपादक अनिल कुमार हैं। रूप-सज्जा सुमन कुमार का है। गीतकार उदय प्रताप और संगीतकार आलोक झा हैं। गीतों को मनोज कुमार ने गाया है।
विशारद बस्नेत को अलगिलानी फाउंडेशन सम्मान
मुम्बई (संजना/सिनेग्लोबल)। अलगिलानी फाउंडेशन ने अभिनेता-निर्देशक विशारद बस्नेत को तीन पुरस्कारों एक्सीलेंस अवार्ड, ग्लोबल पीस अवार्ड और सर्टिफिकेशन फार हिज कान्ट्रिब्यूशन इन सोशल वर्क प्रदान किया है। विशारद बस्नेत को इस साल डायनेमिक पीस रेस्क्यू मिशन इंटरनेशनल की मानद डाक्टेरट उपाधि भी मिली है। विशारद बस्नेत 2001 में अपनी आकांक्षा और अपने सपने के साथ मायानगरी मुम्बई पहुंचे थे। उन्होंने मुम्बई में बने रहने के लिए दिन में सड़क पर किताबें बेचकर और शाम में थिएटर में काम कर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया। यह सिलसिला दस साल चलने के बाद उन्हें पुलिस फाइल में भूमिका मिली। फिर टेलीविजन विज्ञापन में काम किया। 2010 में एक्टिंग स्कूल आफ इंडिया की स्थापना की। 2015 में पिता के लकवाग्रस्त होने पर काठमांडू (नेपाल) में रहना पड़ा तो उन्होंने फिल्म स्कूल में अभिनय पढ़ाने-सिखाने का काम कर अपनी क्षमता और पेशेवर लाइन को बनाए रखा। 2017 में पहली फीचर फिल्म मिस्टर वर्जिन और फिर 2018 में दूसरी फीचर फिल्म न एत्ता न उत्ता का निर्देशन किया। फिलहाल वह अगली फीचर फिल्म लाल सलाम की तैयारी में व्यस्त हैं।
मौत तुमसे डरूंगा नहीं, मार दोगे मरूंगा नहीं…!
पटना (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। मौत तुमसे कभी मैं डरूंगा नहीं, मार दोगे मगर मैं मरूंगा नहीं ! इस काव्य पंक्ति के लेखक और पचास के दशक से साहित्य सृजन में संलग्न सतीश प्रसाद सिन्हा नहीं रहे। हिन्दी और भोजपुरी के इस लब्धप्रतिष्ठ नाटककार, व्यंग्यकार, कवि की अपने-पराए (हिन्दी नाटक), छरमतिया (भोजपुरी नाटक), अदिमी के दुम (व्यंग्य संग्रह), सपने हुए सयाने (हिन्दी कविता संग्रह) और मन के अंगना में (भोजपुरी कविता संग्रह) प्रकाशित पुस्तकेें हैं। उनके निधन पर भारतीय युवा साहित्यकार परिषद की ओर से फेसबुक पर अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका पेज पर आयोजित आनलाइन श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि अक्षर पुरुष का क्षरण नहीं होता, सतीश प्रसाद सिन्हा की सृजनात्मकता का मूल्यांकन अभी शेष है। वरिष्ठ कवि मधुरेश नारायण ने कहा कि सतीश प्रसाद सिन्हा की कहानियां, कविताएं, नाटक हमारे बीच हैं। उनके लिखित नाटकों का 50 से अधिक मंचन रंगकर्मियों की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हो चुका है। पूनम आनंद ने कहा कि व्यक्तित्व-कृतित्व से प्रभावित करने वाले सतीश जी का कोरोना काल में परलोक गमन इस बात को लेकर सालने वाला है कि मन होते हुए भी एहतियातवश हम उनके घर संवेदना व्यक्त करने नहीं पहुंच सके। मीना कुमारी परिहार ने कहा कि रचनाकार-नाटककार सतीश प्रसाद सिन्हा ने हिन्दी साहित्य जगत में अपनी कृतियों से चार चांद लगाया। शोकसभा का संचालन करते हुए सिद्धेश्वर ने बताया कि रुको ना मेरे पांव अभी तो चलना है, बचा हुआ विश्वास अभी बची हुई है आस अभी, बुझो न मन के दीप अभी तो जलना है जैसी काव्य पंक्तियों के वह सर्जक हैं। उनकी रचनाओं में मौजूद जिजीविषा उनके बाद की पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेगी। विभा रानी श्रीवास्तव, अपूर्व कुमार, राजप्रिया रानी, विजयकांत द्विवेदी, प्रेम किरण, घनश्याम ने भी शोक संवेदना प्रकट की।
नहीं रहे राजनेता प्रो. अरुण कुमार, शायर शैफ सहसरामी
सासाराम (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। कांग्रेस के बड़े नेता, बिहार विधान परिषद के सभापति रहे साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता प्रो. अरुण कुमार का 90 वर्ष की उम्र में पटना में निधन हो गया। वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यासों पर उन्होंने चर्चित शोध-कार्य किया था। दुर्गावती के मछनहट्टा में जन्मे सासाराम केप्रेमचंद पथ (गौरक्षिणी निवासी) प्रो. कुमार की पहचान मानव भारती के महामंत्री के रूप में अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता की भी थी।
एक अन्य खबर के मुताबिक, देशभर में मुशायरों के मंच पर अपनी शायरी से उर्दू अदब में खास पहचान कायम करने वाले सासाराम के मशहूर वरिष्ठ शायर सैफ सहसरामी का भी इंतकाल हो गया।