दूसरे ब्रह्मांड में ले जाने वाला वर्महोल!/ रोहित वर्मा बने लायंस इंटरनेशनल के प्रशिक्षक/ भारतपुत्रियों ने ‘अगम’ उड़ान को किया संभव

ब्लैकहोल में दूसरे ब्रह्मांड में ले जाने वाला वर्महोल !
(नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया से प्रकाशित कृष्ण किसलय की पुस्तक ‘सुनो मैं समय हूं’ में है इसकी चर्चा)

(नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा प्रकाशित कृष्ण किसलय की पुस्तक ‘सुनो मैं समय हूं’)

निशान्त राज (सोनमाटी समाचार नेटवर्क) ।अमेरिका की सेंट्रल ऐस्ट्रोनामिकल आब्जर्वेटरी के विशेषज्ञ ने पिछले सप्ताह दावा किया है कि अपनी आकाशगंगा की सबसे करीबी आकाशगंगा (गैलेक्सी) के बीच में स्थित ब्लैकहोल में वर्महोल हो सकता है। भौतिक विज्ञान की सैद्धांतिक मान्यता है कि वर्महोल एक आकाशगंगा से दूसरी आकाशगंगा में जाने का रास्ता हो सकता है और जिससे स्पेसक्राफ्ट गुजर सकता है। ब्लैक होल में बहुत-बहुत रेडिएशन होने की वजह से इंसान का जाना मुमकिन नहींहै। वर्महोल और ब्लैकहोल बहुत-बहुत सघन होते हैं, जिनमें ब्रह्म्ïड की सबसे अधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति होती है। जहां ब्लैकहोल के दायरे में आनेवाली कोई चीज कभी वापस नहीं लौट सकती, वहीं वर्महोल के एक सिरे से दाखिल होने वाली चीज दूसरे सिरे से बाहर निकल सकती है। नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा प्रकाशित विज्ञान लेखक कृष्ण किसलय की विज्ञान के इतिहास की चर्चित पुस्तक ‘सुनो मैं समय हूं’ में वर्महोल की चर्चा है।
द रायल ऐस्ट्रोनामिकल सोसायटी की हर महीने प्रकाशित होने वाले शोध अध्ययन बुलेटिन में वर्महोल और ब्लैकहोल से निकलने वाली ऊर्जा और विकिरण (रेडिएशन) के प्रकार का अध्ययन पृथ्वी के नजदीक की आकाशंगगा (गैलेक्सी) पर किया गया है, जो 1.3 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर है। वर्महोल प्लाज्मा के रिंग होता है, जिसके दोनों सिरों से शक्तिशाली रेडिएशन जेट निकलते रहते हैं। बहुत ताकतवर रेडिएशन के बावजूद भौतिक विज्ञान के सिद्धात में वर्महोल में अनुकूल सक्षम स्पेसक्राफ्ट का गुजरना संभव माना गया है। 1.3 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर वर्महोल तक यात्रा में पृथ्वीवासी सक्षम नहीं हैं। अभी तो अंतरिक्षयात्रा का ज्ञान और अनुभव अपने सौर मंडल तक ही सीमित है, जबकि अपनी आकाशगंगा में ही अरबों सूरज के मंडल हैं। वर्महोल से गुजरने की अंतरिक्षयात्रा के लिए रेडिएशन से बचनेकी और बहुत-बहुत तेज गति की तकनीक विकसित करनी होगी। प्रकाश एक सेकेेंड में 03 लाख कि.मी. दूरी तय करती है। जाहिर है, इस सिद्धांत के आकार ग्रहण करने के लिए धरतीवासियों को अभी किसी सदी इंतजार करना होगा।

लायंस क्लब इंटरनेशनल जिला 322-ए से रोहित वर्मा बने प्रमाणित प्रशिक्षक

(रोहित वर्मा)

सासाराम (रोहतास)-कार्यालय प्रतिनिधि। लायंस क्लब, सासाराम के अध्यक्ष रोहित वर्मा लायंस इंटरनेशनल के प्रमाणित प्रशिक्षक के रूप में चयनित किए गए हैं, जो नए लायन सदस्यों को प्रशिक्षित करने का कार्य करेंगे। रोहित वर्मा लायंस इंटरनेशनल के जि़ला-322 से चुने गए एकमात्र प्रशिक्षक हैं। इस लायंस जि़ला (322-ए) में पूरा झारखंड राज्य, बिहार राज्य के रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर और गया जिले हैं। प्रमाणित प्रशिक्षक चयन के लिए बिहार, झारखंड, ओडि़शा, पश्चिम बंगाल और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के 88 वरिष्ठ लायन सदस्यों को दो दिवसीय आनलाइन प्रशिक्षण दिया गया था। इसके बाद वीडियो प्रस्तुति के जरिये श्रेष्ठ प्रशिक्षक के रूप में चयन किया गया। रोहित वर्मा ने वर्ष 2014 में लायंस क्लब आफ सासाराम की सदस्यता ग्रहण की थी। उनकी सक्रियता और संगठन क्षमता के आधार पर उन्हें सर्वानुमति से वर्ष 2016 में सासाराम का अध्यक्ष बनाया गया । वह 2017-18 में जोनल चेयरमैन और फिर वर्ष 2020-21 में रीजनल चेयरमैन भी बनाए गए। वर्तमान में वह लायंस क्लब आफ सासाराम के अध्यक्ष हैं।
रोहित वर्मा का प्रमाणित प्रशिक्षक के रूप में चयन किए जाने पर लायंस इंटरनेशनल के पूर्व जिला पाल डा. एसपी वर्मा ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रशिक्षण के कार्य से क्लब से नए लोगों को जोडऩे और लायंस क्लब के मूल उद्देश्यों को समाज में व्यापक तौर पर प्रसारित करने में मदद मिलेगी। रोहित वर्मा ने सफलता का श्रेय अपने पिता लायंस क्लब के पूर्व जिलापाल डा. एसपी वर्मा और लायंस क्लब के सभी सहयोगियों को दिया है, जिनके समर्थन से वह लायंस की गतिविधियों को सफलतापूर्वक अंजाम देते रहे हैं। लायंस क्लब आफ सासाराम के सचिव अभिषेक कुमार राय, पीआरओ गौतम कुमार, डा. दिनेश शर्मा, अक्षय कुमार, मार्कण्डेय प्रसाद, डा. मिराजूल इस्लाम, राकेशरंजन मिश्रा, विजीतकुमार बंधुल, कृष्ण कुमार, किशोरकुमार कमल, पवनकुमार प्रिय, रजनीश पाठक, समरेंद्र कुमार, अरविंद भारती, संजय कुमार, सूरज अरोरा, नागेंद्र कुमार, गिरीश चंद्रा, किशन चंद्रा, डा. गिरीश मिश्रा, रजनीश कुमार पाठक, संजय मिश्रा, डा. राकेश तिवारी, डा. विजय कुमार, रोहित कुमार, विवेक जयसवाल, नीरज कुमार, सुभाष कुमार कुशवाहा, सत्यनारायण सिंह, प्रशांत कुमार, धनंजय सिंह, धनेंद्र कुमार, डा.सरोज कुमार, डा. केपी सिंह, अंजनीकुमार राय, कुमार विकास प्रकाश आदि ने रोहित वर्मा को बधाई दी है।

भारतपुत्रियों ने ‘अगम’ उड़ान को किया संभव, सैनफ्रांसिस्को से बंगलुरू

बेंगलुरू (सोनमाटी समाचार नेटवर्क)। एयर इंडिया की आल महिला क्रू पायलट की कमाडिंग आफिसर कैप्टन जोया अग्रवाल के नेतृत्व में भारत की बेटियों ने दुनिया की सबसे लंबी और जटिल हवाई उड़ान भरकर विश्व के सबसे लंबे हवाई यात्रा-मार्ग को एक ही उड़ान में नापकर असंभव जैसा लगने वाले कार्य को संभव बनाने वाला अपनी तरह का एक महत्वपूर्ण रिकार्ड कायम किया। भारतीय रिकार्ड वाली इस लंबी उड़ान के गवाह एयर इंडिया 176 के यात्री बने। इस हवाई उड़ान टीम में जोया अग्रवाल, थान्मई पापागरी, आकांक्षा सोनावने, शिवानी मन्हास और निवेदिता भसीन शामिल थीं। ये सभी पांच महिला पायलट एयर इंडिया की अनुभवी कैप्टन हैं। इस टीम में कैप्टन जोया अग्रवाल जहां कमांडिग आफिसर थीं, वहीं कैप्टन निवेदिता भसीन एयर इंडिया की कार्यकारी निदेशक हैं। भारतपुत्रियों की इस साहसी टीम की लड़कियों के लिए असंभव जैसा लगने वाले कार्य को संभव बनाया। विमानन विशेषज्ञ यह मानते रहे हैं कि पृथ्वी के 7.9 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले धरती के सबसे बर्फीले प्रांतर उत्तरी ध्रुव के ऊपर उड़ान भरना बहुत जटिलता भरा, बेहद कठिनाई वाला और अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस विमानन-कार्य के लिए अति कौशल अत्याधिक अनुभव की जरूरत होती है।
उत्तरी ध्रुव के ऊपर उड़ान भरने पर चुंबकीय कपास (मैगनेटिक सूई) घूमने लगती है और विमान पायलटों के लिए उड़ान की स्थिति तय करना कठिन होता है। देश-दुनिया की एयरलाइंस एजेंसियां उत्तरी ध्रुव के इस हवाई मार्ग पर हमेशा सुदक्ष पायलटों को ही भेजती हैं। पृथ्वी की पश्चिमी दुनिया में स्थित सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका) से पूर्वी दुनिया में बंगलुरू (भारत) तक 16 हजार किलोमीटर की हवाई दूरी करीब 72 घंटा में बिना रुके तय हुई। सैन फ्रांसिस्को में 09 जनवरी को शुरू हुई उड़ान बंगलुरू में 11 जनवरी को दिन में दो बजे खत्म हुई। दुर्गम उड़ान को अंजाम देने वाली पायलट टीम की कमांडिंग आफिसर जोया अग्रवाल वर्ष 2013 में बोइंग-777 विमान उड़ाने वाली दुनिया की सबसे युवा भारतीय महिला पायलट बनी थीं। इस भारत की इन बेटियों ने नई 21वींसदी के शब्दकोष में खुद पर भरोसा करने की नई परिभाषा गढ़ी है।

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